सुशील शुक्ल

न कहा हुआ कहे हुए का शेष नहीं है
कहा हुआ न कहे हुए का
वह अंग है जो न जाने कैसे
दिखाई दे गया होता है
                                    — उदयन वाजपेयी

नहीं चाहता था कि एक कहानी की तस्वीर पेश करने के लिए किसी कविता के टुकड़े का सहारा लूँ। शायद इसलिए कि हज़ारों सालों से कविता को साहित्य की अन्य विधाओं पर कुछ बढ़त-सी मिली हुई है। पर यह कहानी जिसके बारे में बात करूँगा वह किसी कविता से कम सिरेदार नहीं है। बल्कि वह जैसे किसी सघन संकट की छाया ओढ़े कोई कविता ही है।

यह कहानी जून 2008 में पहले हाथ और फिर दिल लगी। पहली दफा इसे मैंने लम्बे-लम्बे डग भरते हुए पढ़ा था। इस पहले तेज़कदम पाठ में ही बहुत स्पष्ट हो गया था कि यह कहानी उतनी भर नहीं है जितनी दिखाई देती है। बुनकर ने इसे बड़े हुनर से तैयार किया था कि रास्ता ढूँढने की गतिविधि की तरह इसमें एक सबसे छोटा रास्ता है और इस छोटे रास्ते से सैकड़ों और छोटे रास्ते निकलते हैं। (हर छोटे रास्ते पर बहुत-से छोटे-छोटे जुगनू बैठे हैं। अगर आप चीन्हते हैं तो वेे पूरे छोटे रास्ते आपके साथ हो लेंगेे।) जैसे किसी शहर की मुख्य सड़क शहर के बीच से गुज़र जाती है लेकिन शहर की तासीर का पता उसकी गलियों से चलता है। इस कहानी में भी कुछ ऐसा ही है।

‘द वेपन’ नाम की यह कहानी विज्ञान की तरक्की की दिशा पर सवाल उठाती है। कहानी कुछ यूँ नज़र आती है।
जॉन ग्रेहम एक मशहूर वैज्ञानिक हैं जो एक हथियार को तैयार करने में जुटे हैं। एक ऐसा हथियार जो समूची मानव सभ्यता को धरती से पोंछ सकता हैै। ग्रेहम का पन्द्रह वर्षीय इकलौता बेटा है जिसका मानसिक विकास चार साल के बच्चे बराबर है। यह कहानी एक शाम से शु डिग्री होती है। यह एक शाम है जब वे अपने बेटे के बारे में चिन्तित हैं। अकसर वे अपना काम निपटाकर शाम को यूँ ही तन्हा बैठते हैं। ऐसे माहौल में उनकी रचनात्मकता उफान पर होती है। पर इस शाम उन पर बच्चे की चिन्ता हावी हो रही है। ठीक इसी समय दरवाज़े पर दस्तक होती है। किसी का आ जाना उनके लिए इस चिन्ता से बाहर निकलने के रास्ते का दिख जाना लगता है।

एक अजनबी आता है जो उनसे उस महाविनाशकारी हथियार के बारे में बात करना चाहता है जिसे बनाने में वे जुटे हैं। अजनबी मानता है कि इस तरह के हथियार की आज मानवता को कोई ज़रूरत नहीं है और विज्ञान की तरक्की मानव कल्याण की दिशा में होनी चाहिए। ग्रेहम उससे यह कहते हुए असहमत होते हैं कि वे अपने इस काम को हथियार के रूप न देखकर विज्ञान के विकास के रूप में देखते हैं। उनकी बातचीत के दौरान दो बार उनके बेटे का ज़िक्र आता है। पहली बार जब ग्रेहम अजनबी के प्रश्नों से आवेश में आ जाते हैं। बातचीत किसी अप्रिय अन्त के कगार पर थी कि उनका बेटा शयनकक्ष का दरवाज़ा खोलकर आता है, “पापा, क्या आप आज मुझे चिकन लिटिल सुनाएँगे?” ग्रेहम उसके आग्रह को स्वीकारते हुए कहते हैं, “ठीक है, पर अभी तुम जाओ।” दूसरी बार, अन्त में जब यह अजनबी ग्रेहम से यह कहते हुए विदा लेता है कि बगैर पूछे उसने बच्चे को एक खिलौना दिया। ग्रेहम देखते हैं कि वह अजनबी बच्चे को भरी हुई पिस्तौल थमा गया है। वे सोचते हैं कि कोई पागल ही किसी इडियट को भरी हुई पिस्तौल देगा। कहानी बेहद सटीक रूप में इस पंक्ति के साथ पूरी हो जाती है।

मोटे रूप में कहानी इतनी भर है। पर फ्रैडरिक ब्राउन की यह महज़ दो पेज लम्बी कहानी एक दूसरे स्तर पर भी प्रवाहित होती है। इस कहानी में तीन पात्र हैं वैज्ञानिक ग्रेहम, निमाण्ड - एक अजनबी तथा एक बच्चा हैरी। चूँकि यह कहानी मानव सभ्यता के भविष्य के बारे में बात करती है इसलिए यह पात्र हैरी जो दरअसल, भविष्य के स्पष्ट संकेत के रूप में प्रयुक्त है सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है। आप देखेंगे कि यही वह पात्र है जो लगातार न सिर्फ कहानी के साथ चल रहा है, निरन्तर कहानी के पात्रों के बीच आ रहा है बल्कि उसी से कहानी शु डिग्री और खत्म हो रही है। हैरी को लेखक ने सायास सबसे ज़्यादा स्थान दिया है, सबसे ज़्यादा चर्चा की है जबकि वह कहानी में एक गैरज़रूरी पात्र के रूप में वैसे ही नज़रअन्दाज़ रहता है जैसे ग्रेहम भविष्य को नज़रअन्दाज़ कर रहे हैं।

हैरी के इस पात्र पर तफसील से बात करते हैं - वह ग्रेहम का बेटा है, एक बहुप्रचलित अर्थ में उसका भविष्य भी है। वह इकलौता है। यानी हैरी के रूप में भविष्य का कोई विकल्प नहीं है। हैरी शारीरिक रूप से अपने हमउम्र किसी आम बच्चे की तरह ही दिखता है पर अगर कोई उसे देखे-समझे, निकट आए तो पता चलता है कि वह मानसिक विकास के मामले में एक चार वर्ष के शिशु समान है। विज्ञान के विकास को लेकर भी तो लेखक ठीक यही कह रहा है कि वह जितना विकसित होते दिख रहा है उतना बुद्धिमत्तापूर्ण वह असल में है नहीं। शायद इसीलिए जब निमाण्ड हैरी को देखकर मुस्कुराता है तो लेखक ग्रेहम के ज़रिए यह कहता है - ग्रेहम ने अतिथि की ओर आश्चर्य से देखा कि क्या वह बच्चे के बारे में जान गया है। निमाण्ड के चेहरे पर आश्चर्य का भाव न देखकर ग्रेहम समझ गया कि वह बच्चे के बारे में निश्चित रूप से जान गया है। क्योंकि निमाण्ड विज्ञान के विकास को देख पा रहा है इसलिए वह हैरी के बाहरी अस्तित्व को नहीं बल्कि उसके असल विकास को मुस्कुराकर सम्बोधित करता है।

इस कहानी में जब निमाण्ड और ग्रेहम की बातचीत टूटने को आती है तभी हैरी बीच में आकर उसे फिर से जोड़ता है। हैरी इस दौरान ग्रेहम से जिस किताब को सुनाने के बारे में कह रहा है वह खरगोश की एक कहानी की हमशक्ल है जिसमें किसी आवाज़ पर खरगोश को आसमान के टूटने का आभास होता है। निमाण्ड इस किताब के सन्दर्भ में एक चुटकी भी लेता है, “आशा है आप उसे जो भी पढ़कर सुनाएँगे, हमेशा सच होगा।”

हैरी की निमाण्ड से पहली मुलाकात को ही लीजिए। इसमें निमाण्ड ग्रेहम से कह रहे हैं, “आप ही वह वैज्ञानिक हैं जिसने मानव सभ्यता के अस्तित्व को खत्म करने के लिए सबसे ज़्यादा काम किया है।... डॉ. ग्रेहम आप जिस हथियार पर काम कर रहे हैं....।” यहीं हैरी एक व्यवधान की तरह आता है। और ग्रेहम से चिकन लिटिल पढ़कर सुनाने की ज़िद करता है।

निमाण्ड भविष्य के बारे में चिन्तित है और इस भविष्य से परिचित भी है इसलिए जब वह हैरी से ऐसे मिलता है जैसे कोई जान-पहचान के व्यक्ति से मिलते हैं तो ग्रेहम की प्रतिक्रिया होती है कि वह बच्चे के बारे में निश्चित रूप से जान गया है। एक और जगह लेखक विवरण देता है जो सरसरी तौर से देखने पर बहुत ही गैरज़रूरी लगता है ‘द बॉय स्किप्ड बैक टू द बेडरूम, नॉट क्लोज़िंग द डोर।’ यह दरवाज़ा खुला छोड़ना असल में हैरी का निमाण्ड और ग्रेहम की बातचीत को फिर से शु डिग्री कर भविष्य के बारे में एक दरीचा खुला छोड़कर चला जाना है। इस पूरी कहानी पर हैरी के रूप में एक डरावने भविष्य की छाया बनी रहती है। शेष दो पात्र इसी छाया को और मज़बूत करते हैं।

कहानी की दो बातें उसकी बुनावट में गिरह-सी लगती हैं एक तो जब निमाण्ड ग्रेहम से पूछता है, “इज़ ह्यूमेनिटी रेडी फॉर एन अल्टिमेट वेपन?” यह सवाल अपनी इस व्याख्या से बेखबर खड़ा हो जाता है कि वक्त आएगा जब ह्यूमेनिटी किसी विनाशकारी हथियार के लिए तैयार हो जाएगी।

दूसरी गिरह कहानी की आखिरी पंक्ति में नज़र आती है जब ग्रेहम सोचते हैं - कोई पागल ही किसी इडियट को भरी पिस्तौल देगा। पहली ही नज़र में हैरी के लिए इस्तेमाल होने वाला यह शब्द इडियट खटकता है। ग्रेहम भी तो इस कहानी में एक महा-विनाशकारी हथियार किसी को सौंप रहे हैं। क्या लेखक यह उक्ति ग्रेहम के माध्यम से ग्रेहम के ही लिए कह रहा होता है? इस स्थिति में भी इडियट शब्द समाज के हिस्से आ रहा है। तो क्या ग्रेहम जो सोच रहे हैं वह उनका आत्मबोध है? या इसे यूँ कहूँ कियह एक सुखान्त कहानी है।


सुशील शुक्ल - एकलव्य द्वारा प्रकाशित बाल विज्ञान पत्रिका ‘चकमक’ से सम्बद्ध हैं।
‘हथियार’ कहानी ‘संदर्भ’ के अंक 61 में प्रकाशित हुई थी।