उमेशचंद्र चौहान

कक्षा में विज्ञान पढ़ाना एक चुनौती भरा काम होता है। प्रयोग और गतिविधियों की मदद से विज्ञान पढ़ाया जा संकता है लेकिन इसमें कई समस्याएं आ खड़ी होती हैं; जैसे पाठ्यपुस्तकों में पर्याप्त प्रयोग नहीं होते, या पाठ्यपुस्तकों में दिए गए प्रयोग अत्यन्त जटिल होते हैं, या शिक्षकों को गतिविधियों की जानकारी नहीं होती, या प्रयोगशाला के उपकरण महंगे होने के कारण बच्चों को नहीं दिए जाते।
विज्ञान शिक्षण की ऐसी ही कुछ कमियों को दूर करने के लिए होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम में माध्यमिक स्तर की कक्षा के बच्चों को प्रयोग करके, अपने अवलोकनों के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना होता था। बच्चे काफी सस्ती प्रयोग सामग्री का इस्तेमाल करते हुए प्रयोग करते थे। कई बार तो शिक्षक व बच्चे भी किसी स्थानीय सामग्री से वैकल्पिक प्रयोग सामग्री बना लेते थे। जब मैं धौलपुर गांव में शिक्षक बनकर गया तो मैंने देखा कि ऑलपिन के विकल्प के रूप में बबूल के कांटे का उपयोग किया जा रहा था। वहां बच्चे बबूल के कांटे को शर्ट के टूटे बटन की जगह, फिरकी की कील के रूप में, निमोरियों का चकरदार मूला बनाने आदि में इस्तेमाल कर रहे थे। मुझे सबसे ज्यादा अचरज तब हुआ जब मैंने देखा कि बच्चे फूलों का विच्छेदन भी बबूल के कांटे से कर रहे हैं! मैंने तब से एक बात गांठ बाँध ली - वस्तु एक काम अनेक।

ऐसा ही एक अन्य उदाहरण इंजेक्शन की खाली शीशी है। यह शीशी अत्यन्त बहुउपयोगी है। देखिए एक शीशी कितने कामों में आती है। यहां तो उसकी एक बानगी भर दी गई है। उम्मीद है आप यहां बताए व अन्य प्रयोग बच्चों से करवाएंगे और साथ ही इन पर बच्चों से बातचीत भी करेंगे।
1. एक इंजेक्शन की शीशी को साफ कर लीजिए। इसमें पानी भरकर ढक्कन लगा दीजिए। पानी भरी यह बोतल एक बढ़िया लेंस का काम करती है। इससे बच्चों को किताब के अक्षर, कपड़े के रेशे, बाल, नाखून आदि दिखा सकते हैं।

2. पानी में घुलनशील व अघुलनशील पदार्थ पता करने के प्रयोग करवाएं।

3. शीशी में पानी भरकर उसके मुंह पर कागज का टुकड़ा रख दें। अब शीशी को उलटा दीजिए। पानी नहीं गिरेगा। पता करने की कोशिश करें कि पानी क्यों नहीं गिर रहा।

4. शीशी को आधी ऊंचाई तक पानी से भर दीजिए। अब एक खाली, साफ की गई रीफिल से फूकिए। हवा बुलबुलों के रूप में ऊपर की ओर क्यों आती है? हवा पानी से हल्की है या भारी?

5. शीशी के ढक्कन के बीचोंबीच डिवाइडर से छेद कीजिए। अब उसमें एक रीफिल का टुकड़ा लगा दीजिए। शीशी में पानी भर लीजिए। लीजिए हमारा ड्रॉपर तैयार हो गया। यह ड्रॉपर अब विज्ञान के कई प्रयोगों में काम आ सकता है। इस ड्रॉपर की 20 बूंदें लगभग एक मिली लीटर के बराबर होती हैं।

ड्रॉपर वाली बोतल में बिना पानी भरे भी इसका उपयोग कई तरह से हो सकता है। जैसेः -

➔    हवा की दिशा का सूचकः एक सुई लीजिए जो शीशी से लंबी हो। कागज़ का तीर बनाकर उसमें सुई को फंसा देते हैं। तीर समेत सुई को ड्रॉपर वाली शीशी में रख दीजिए। अब इसकी मदद से हवा के बहाव की दिशा पता की जा सकती है।

➔    हवा का प्रसार-संकुचनः खाली ड्रॉपर शीशी में लगी रीफिल में स्याही की एक बूंद अटका लीजिए। अब शीशी को ठंडे पानी से भरी प्याली में आधी ऊंचाई तक डूबो दीजिए। कुछ समय के बाद रीफिल में फंसी स्याही की बूंद नीचे खिसकी हुई दिखेगी। आप भी सोचिए व बच्चों से भी पूछिए, ऐसा क्यों हुआ होगा? शीशी में मौजूद हवा संकुचित किस तरह हुई होगी? अब रीफिल में स्याही की बूंद फंसी शीशी को धूप में रख दीजिए। थोड़ी देर बाद स्याही की बूंद कहां है? क्या यह रीफिल के बाहर निकल आई।

➔    गैस बनाने वाले उपकरण के रूप में: यदि आपको गैस बनाकर उसे किसी पात्र में एकत्रित करना हो तो भी ड्रॉपर बोतल का उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए आपको दो ड्रॉपर शीशियां और वाल्व ट्यूब का 15-20 सेंटीमीटर लंबा टुकड़ा चाहिए। 

➔    रीफिल फंसे ढक्कन को बोतल से अलग किया जाए तो ढक्कन का फिरकी की तरह उपयोग किया जा सकता है।
इंजेक्शन की शीशी के बहाने मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि किसी बेकार या फालतू समझी जाने वाली वस्तु को भी उपयोगी बनाया जा सकता है। यकीन मानिए प्रयोगों के लिए सामग्री व उपकरण बनाने के लिए यह कतई जरूरी नहीं है कि आप बड़े नामी-गिरामी वैज्ञानिक हों। हम आप जैसे शिक्षक भी बखूबी ऐसे नवाचार कर सकते हैं। आप भी कोशिश कीजिए। मेरा विश्वास है विज्ञान शिक्षण इसी तरह आगे बढ़ता है।


उमेशचंद्र चौहानः होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम के स्रोत शिक्षक विज्ञान शिक्षण, उपकरण नवाचार व चित्रकला में विशेष रुचि। फिलहाल टिमरनी ब्लोक की एक प्राथमिक शाला में प्रधान पाठक हैं।
सभी चित्र : उमेशचंद्र चौहान।