हृदयकांत दीवान

प्रयोग का मतलब दिए गए निष्कर्ष सिद्ध करना ही है क्या? गिलास में पानी चढ़ने के एक प्रयोग से खड़े किए गए हैं कुछ सवाल।

विज्ञान पढ़ाने में प्रयोगों के महत्व के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। यह भी कहा जाता है कि विज्ञान सीखना प्रयोगों पर आधारित होना चाहिए और बच्चों को हम जो भी समझाते हैं उससे संबंधित प्रयोग करके सिखाना चाहिए।

इन मान्यताओं के चलते विज्ञान की किताबों में प्रयोग डाले गए हैं। पर आपने ध्यान दिया होगा कि प्रयोगों की भूमिका, प्रस्तुति व बाद में दी गई जानकारी में यह स्पष्ट कर दिया जाता है कि प्रयोगों में क्या होना है, उनके द्वारा क्या अवलोकन आएंगे और क्या निष्कर्ष निकलेंगे।

प्रयोग करने हैं, ताकि कराए गए अवलोकन ही आएं। उनका मकसद यह नहीं होता कि बच्चे किसी मुद्दे पर प्रयोग करके खुले रूप से और सावधानी से अवलोकन लें, जो उन्हें दिख रहा है उस पर विश्वास करें, उसके आधार पर तर्क करते हुए निष्कर्ष निकालने के प्रयास करें।

एक प्रयोग हवा पर
उदाहरण के लिए हम प्राथमिक शाला की पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाए जाने वाले एक प्रयोग पर गौर करेंगे।

प्रयोग यह हैः किसी थाली में बीचों-बीच एक मोमबत्ती जलाओ। फिर थाली में पानी डाल दो। जलती हुई मोमबत्ती पर सावधानी से कोई गिलास या बड़े चौड़े मुंह वाली बोतल ढंक दो। ध्यान से देखो क्या होता है। थोड़ी देर में मोमबत्ती जलना बन्द कर देती है। गिलास में पानी भी चढ़ जाता है।

मोमबत्ती जलना क्यों बन्द कर देती है?
पानी कितना चढ़ जाता है?

यह इसलिए होता है क्योंकि बोतल की हवा में जो ऑक्सीजन है वह मोमबत्ती को जलने में सहायता करती है और खर्च हो जाती है। धीरे-धीरे बोतल की हवा का ऑक्सीजन वाला हिस्सा खत्म हो जाता है और मोमबत्ती जलना बन्द कर देती है। ऑक्सीजन के खत्म होने से बोतल में शून्यता आ जाती है और इसी शून्यता को भरने के लिए पानी ऊपर चढ़ जाता है। चूंकि हवा में ऑक्सीजन की मात्रा 1/5 है, इसलिए मोमबत्ती के बुझने पर गिलास में 1/5 हिस्से तक पानी चढ़ जाता है।

हवा का एक बड़ा भाग जलती हुई मोमबत्ती द्वारा प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। यह 4/5 भाग ( लगभग 70 प्रतिशत ) नाइट्रोजन गैस का है।

यदि मोमबत्ती को कांच के बर्तन से न ढंका जाए तो वह जलती रहेगी क्योंकि उ से लगातार खुली हवा से ऑक्सीजन मिलती रह सकती है। ज़ाहिर है इस प्रयोग को करने वाला छात्र जी-तोड़ मेहनत करके यह नतीजा ही निकालना चाहेगा कि गिलास में लगभग 1/5 ऊंचाई तक ही पानी चढ़ेगा। प्रयोग करने पर उसके वास्तविक अवलोकन कुछ भी हों वह निष्कर्ष में यही मानना चाहेगा कि गिलास में 1/5 हिस्से तक पानी चढ़ा। यानी वह अपने अवलोकनों को या तो 1/5 के आसपास का मान लेगा या अगर अवलोकन बहुत ही अलग आए तो उन्हें छिपाकर यही लिखेगा कि 1/5 हिस्से तक पानी चढ़ा।

खुद करके देखें
चाहें तो आप भी यह प्रयोग करके देखें। मोमबत्ती पर ढकने के लिए कांच के अलग-अलग आकार के बर्तनों का उपयोग भी करके देख सकते हैं। देखिए कि मोमबत्ती के बुझने पर गिलास में कितना पानी चढ़ता है। क्या बार-बार प्रयोग करने पर भी एक सी ऊंचाई तक पानी चढ़ता है?

मैंने जब अलग-अलग ऊंचाई की मोमबत्तियां लेकर प्रयोग किए तो हर बार एक जैसे अवलोकन नहीं आए। यही नहीं, बर्तन कितना बड़ा है या छोटा, उसका भी असर पड़ाजैसे इतना ही काफी न हो, नीचे वाले बर्तन में पानी की मात्रा कितनी है, उसका भी असर दिखाई दिया। यह सब करते-करते और प्रयोग को ध्यान से देखने पर समझ में आया कि किताबों में जैसा लिखा होता है, मामला उतना आसान है नहीं। ये कुछ बातें सामने आई।

  1. मोमबत्ती के साईज़, नीचे के बर्तन में पानी की मात्रा और ऊपर उल्टाकर रखे बर्तन के साईज़ - इन सबसे इस बात पर असर पड़ता है कि पानी कितना ऊपर चढ़ेगा।
  2. जलने में पूरी-की-पूरी ऑक्सीजन खत्म नहीं होगी और मोम के जलने से जहां ऑक्सीजन खर्च होती है, वहां कार्बन-डाईऑक्साइड और पानी बनते भी हैं।
  3. जब अंदर मोमबत्ती जल रही हो तो कभी-कभी बोतल के अंदर से बाहर की तरफ बुलबुले निकलते दिखाई देते हैं। किसी वजह से अंदर दबाव बढ़ रहा है, शायद अंदर का तापमान बढ़ने का भी कुछ असर होता होगा।
  4. अगर यही प्रयोग बर्तन के अंदर अलग-अलग साईज़ दो मोमबत्तियां रखकर किया जाए तो कई बार पानी खूब ऊपर तक चढ़ जाता है - लगभग आधी ऊंचाई तक। अब इसका क्या कारण होगा?

प्रयोगों का मकसद क्या है?
अगर यह सच है कि गिलास में पानी 1/5 हिस्से ऊंचाई तक नहीं बल्कि लगभग आधी ऊंचाई तक चढ़ जाता है तो फिर किताबों में यह क्यों लिखा जाता रहा है। कि पानी 1/5 ऊंचाई तक चढ़ता है? क्यों इस बात की जांच नहीं की गई है?

इसके पीछे जो कारण मुझे समझ में आता है वह यह है कि विज्ञान शिक्षा में प्रयोगों को, जानकारी पहुंचाने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए पाठों में ऊपरी तौर पर चिपका दिया जाता है। जैसे ऊपर वाले उदाहरण में मूल उद्देश्य तो यही है कि बच्चा यह याद रखे कि हवा में 1/5 भाग ऑक्सीजन है और 4/5 भाग नाईट्रोजन है। इस बात को स्थापित करने के लिए अगर कोई प्रयोग दिख गया जो कुछ-कुछ उस जानकारी से संबंधित है, तो बिना जांचे, बिना नापे उस प्रयोग को पाठ में डाल दिया।

हमारी किताबों में और कहां-कहां ऐसा हुआ है, यह ढूंढना चाहिए, और विज्ञान शिक्षण के दृष्टिकोण पर बुनियादी रूप से सोचना भी चाहिए। सोचना यह है कि जिन बातों को हम छात्रों को सत्य के रूप में बता रहे हैं उन्हें सिद्ध भर करने के लिए प्रयोग रखने से हम विज्ञान शिक्षण में प्रयोगों की उपयोगिता को खत्म तो नहीं कर रहे? ऐसा क्या किया जाए जिससे बच्चे, प्रयोगों के जरिए सावधानी से अवलोकन करना और ईमानदारी तथा विश्वास के साथ अपनी देखी बातों के आधार पर सोचना समझना सीख सकें?

यदि ऐसा नहीं हो तो आखिर कोई किसलिए करे प्रयोग?


हृदयकांत दीवान - एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम और प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम से संबद्ध।