एंज़ाइम (enzyme) ऐसे प्रोटीन होते हैं जो कोशिका में अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं, इससे चयापचय कुशलता से होता है। कुशल कामकाज के लिए कई एंज़ाइमों को सहकारक के रूप में कुछ अणु चाहिए होते हैं। इन सहायक अणुओं को को-एंज़ाइम (co-enzyme) कहा जाता है।
को-एंज़ाइम नैसर्गिक रूप से पाए जाने वाले कार्बनिक अणु होते हैं जो एंज़ाइम के साथ जुड़कर उनके कार्य में मदद करते हैं। को-एंज़ाइम क्यू (Coenzyme Q), जिसे यूबिक्विनोन के रूप में भी जाना जाता है, एक अणु है जिसमें कई आइसोप्रीन इकाइयां होती हैं। गौरतलब है कि आइसोप्रीन एंटीऑक्सिडेंट होते हैं और तनाव की स्थिति से उबरने में मदद करते हैं।
यूबिक्विनोन हर कोशिका झिल्ली में मौजूद होता है और ऊर्जा उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण होता है। यूबिक्विनोन 10 प्रकार (CoQ1…CoQ10) के होते हैं। प्रत्येक यूबिक्विनोन श्वसन शृंखला का एक अणु होता है। ये पानी में अघुलनशील है लेकिन वसीय माध्यम में घुलनशील एंटीऑक्सीडेंट होते हैं। ये सभी को-एंज़ाइम कोशिका के प्रमुख ऊर्जा उत्पादक उपांग, माइटोकॉन्ड्रिया, के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस लेख में, हम मुख्य रूप से दो को-एंज़ाइम - CoQ9 और CoQ10 - पर बात करेंगे।
CoQ9 में नौ आइसोप्रीन इकाइयां होती हैं। गेहूं, चावल, जई, जौं, मक्का और बाजरा जैसे अधिकांश अनाजों में CoQ9 प्रचुर मात्रा में पाया जाता  है। इसके अलावा यह बांस और दालचीनी, एवोकाडो और काली मिर्च जैसे फूल वाले पौधों में भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

CoQ10 का महत्व
मनुष्यों में, CoQ10 माइटोकॉन्ड्रिया  में इलेक्ट्रॉन परिवहन शृंखला का एक घटक है -  यही वह प्रक्रिया है जिससे शरीर की अधिकांश कोशिकीय ऊर्जा का उत्पादन होता है। हृदय जैसे अंगों को बहुत ज़्यादा ऊर्जा चाहिए होती है और उनमें CoQ10 अधिक मात्रा में पाया जाता है। CoQ9 तो हमें अपने दैनिक भोजन के साथ खूब मिल जाता है। लेकिन कभी-कभी हमें अच्छे स्वास्थ्य के लिए अतिरिक्त CoQ10 की आवश्यकता होती है, क्योंकि कतिपय जेनेटिक कारकों, उम्र बढ़ने और तंत्रिका सम्बंधी समस्याओं के लिए इस यूबिक्विनोन की अधिक ज़रूरत होती है।
2008 में, इटली के मोंटिनी और उनके साथियों ने न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में बताया था कि CoQ10 की खुराक देने से उन रोगियों को मदद मिली जिन्हें तंत्रिका सम्बंधी समस्याएं थीं। इसी तरह, 2012 में, लंदन के न्यूरोलॉजी एंड नेशनल हॉस्पिटल की शमीमा अहमद और उनके साथियों ने बताया था कि CoQ10 की कमी वाले शिशुओं को यूबिक्विनोन एनालॉग (CoQ10 जैसा पदार्थ) देकर मदद की जा सकती है। और कई आहार विशेषज्ञ ऐसी दवाएं लिखते हैं और कंपनियां बेचती हैं जो CoQ10 के समान होती हैं।

CoQ10 का उत्पादन
जापान के इबाराकी स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रोबायोलॉजिकल साइंसेज़ के कोइचि कोदोवाकी और उनके दल ने 2006 में फेडरेशन ऑफ युरोपियन बायोसाइन्स सोसायटीज़ (FEBS) लेटर्स में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया था कि धान के पौधों को जेनेटिक रूप से परिवर्तित करके उनमें CoQ10 बनाया जा सकता है। शोधकर्ता धान के पौधों में ‘DdsA’ नामक जीन को प्रविष्ट करवाकर CoQ10 का उत्पादन भी कर पाए थे। उनमें CoQ10 का निर्माण 1.3 से 1.6 गुना अधिक हुआ और शर्करा भी उसी अनुपात में अधिक बनी। फिर, 2021 में नेचर सेल बायोलॉजी में मुनीकी नाकामुरा और उनके साथियों ने नोबेल फेम की मशहूर तकनीक, CRISPR-Cas9 की मदद से इसी उद्देश्य से सफलतापूर्वक जीन संपादन किया था।
खेत से कारखाने तक
‘जीन-संपादित पौधे खेत से कारखाने तक’, यह शीर्षक है नेचर जर्नल के 20 फरवरी, 2025 के अंक में प्रकाशित शोधपत्र का। इस शोधपत्र की लेखक चाइनीज़ एकेडमी ऑफ साइंसेज़ के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन मॉलीक्यूलर प्लांट साइंसेज़ की जिंग-जिंग शू और उनके साथी हैं। इसमें शोधकर्ताओं ने CoQ1 पर ध्यान केंद्रित करते हुए पौधों की सैकड़ों प्रजातियों का अध्ययन किया। यह एक ऐसा एंज़ाइम है जो CoQ की आइसोप्रिनॉइड शृंखला को संश्लेषित करता है। एंज़ाइम के जीन को उन्होंने जेनेटिक रूप से परिवर्तित किया, ताकि धान की ऐसी किस्म तैयार हो जो 75 प्रतिशत तक CoQ10 से युक्त हो। शू के इस श्रमसाध्य काम से यह पता चलता है कि एंटीऑक्सीडेंट अनुपूरक का कारखाना उत्पादन करने के लिए विभिन्न प्रकार की खाद्य फसलों को कैसे तैयार किया जा सकता है। (स्रोत फीचर्स)