खगोलशास्त्री लंबे समय से एक सवाल का जवाब खोजने का प्रयास कर रहे हैं: कोई तारा कितना छोटा हो सकता है? नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) द्वारा एक ब्राउन ड्वार्फ का हालिया अवलोकन संभवत: इस जवाब के करीब ले जाता है। JWST की पैनी व अवरक्त निगाह ने अब तक देखे गए सबसे छोटे ब्राउन ड्वार्फ में से कुछ की पहचान की है। इनका द्रव्यमान बृहस्पति ग्रह के द्रव्यमान से तीन से आठ गुना के बीच है।
ब्राउन ड्वार्फ ऐसे खगोलीय पिंड होते हैं जिनका निर्माण तो तारों की तरह ही होता है लेकिन इनका द्रव्यमान इतना कम होता है कि इनके केंद्र में नाभिकीय संलयन बहुत कम हो पाता है - इतना कम कि वह इन्हें तारों समान चमकीला बनाने के लिए पर्याप्त नहीं होता। इसी कारण से ब्राउन ड्वार्फ को कभी-कभी ‘नाकाम तारे’ भी कहा जाता है। गौरतलब है कि संलयन से चमक पैदा करने के लिए सितारों को बृहस्पति ग्रह से लगभग 70 गुना अधिक द्रव्यमान का होना आवश्यक होता है। फिर भी बृहस्पति के द्रव्यमान से 13 गुना अधिक द्रव्यमान के ब्राउन ड्वार्फ थोड़े समय के लिए ड्यूटेरियम नामक हाइड्रोजन समस्थानिक परमाणुओं का संलयन करके धीमे-धीमे जल सकते हैं। उससे कम पर वे बिल्कुल भी नहीं जलते हैं। अलबत्ता, सबसे छोटे ब्राउन ड्वार्फ और ग्रहों के बीच अंतर करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि हो सकता है कि वे एक जैसे दिखाई दें।
2021 में JWST लॉन्च होने से पहले, खगोलविद बृहस्पति के पांच गुना साइज़ के ब्राउन ड्वार्फ का पता लगा सकते थे। लेकिन अब, JWST के उन्नत अवरक्त सेंसर के माध्यम से वस्तुओं की अत्यंत मंद रोशनी को देखने की क्षमता ने शोधकर्ताओं को बृहस्पति से तीन गुना द्रव्यमानों के बराबर हल्के ब्राउन ड्वार्फ को खोजने में सक्षम बनाया है।
युरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के मार्क मैककॉग्रेन और सैमुअल पीयर्सन के दल ने ओरायन नेबुला (कालपुरुष तारामंडल) में चतुर्भुजी झुंड के निरीक्षण के दौरान जोड़ियों में परिक्रमा करते हुए 42 ब्राउन ड्वार्फ की खोज की है। इनमें से कुछ जोड़ियां, जिन्हें जुपिटर-मास बायनरी ऑब्जेक्ट्स (JuMBOs) कहा जाता है, लगभग बृहस्पति जितने छोटे हैं। यह खोज वर्तमान तारा निर्माण मॉडल को चुनौती देती है, जो भविष्यवाणी करते हैं कि द्रव्यमान में कमी के साथ-साथ युग्मित तारे दुर्लभ होते जाने चाहिए। यदि ये JuMBOs वास्तव में उतने ही हल्के हैं जितने वे दिखाई देते हैं, तो वे तारों के निर्माण के बारे में हमारी सोच को बदल सकते हैं।
हालांकि, हर कोई इस व्याख्या से सहमत नहीं है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि ये वस्तुएं ब्राउन ड्वार्फ हो ही नहीं हो सकती हैं। उनके मुताबिक वे दूर के तारे या आकाशगंगाएं हो सकती हैं जिनका प्रकाश ओरायन नेबुला में धूल के कारण धुंधला पड़ जाता है, जिसकी वजह वे अपने वास्तविक आकार से छोटे दिखाई देते हैं। हालांकि, मैककॉग्रीन का कहना है कि सांख्यिकीय रूप से इन वस्तुओं का दूर की पृष्ठभूमि की वस्तुएं होना असंभव है, क्योंकि इतने सारे पिंडों का इस तरह पंक्तिबद्ध दिखाई देना संभव नहीं लगता। इन तारों की इस जमावट को वे ‘जंबो एली’ कहते हैं।
बहरहाल, इस मुद्दे पर बहस जारी है। मैककॉग्रीन और पीयर्सन आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने पहले ही चतुर्भुजी झुंड की अधिक विस्तृत तस्वीरें ले ली हैं और जल्द ही नए निष्कर्ष प्रकाशित करेंगे। ये अवलोकन JuMBO के अस्तित्व की पुष्टि कर सकते हैं और खगोलविदों को अपनी पूर्व मान्यताओं पर पुनर्विचार करने को मजबूर कर सकते हैं। मैककॉग्रीन JWST की सीमाओं को बढ़ाने की योजना बना रहे हैं ताकि उन छोटे ब्राउन ड्वार्फ की खोज की जा सके जो शनि जितने हल्के हैं। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - February 2025
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