हाल ही में नासा ने शुक्र ग्रह पर दो यान भेजने की घोषणा है। शुक्र हमारा पड़ोसी है और अत्यधिक गर्म है। इस मिशन का उद्देश्य यह समझना है कि शुक्र ऐसा आग का गोला कैसे बन गया जहां लेड भी पिघल जाता है, पृथ्वी कैसे विकसित हुई और पृथ्वी पर जीवन योग्य परिस्थितियां कैसे बनीं?
इन दो अंतरिक्ष यान में से एक यान है DAVINCI+ (डीप एटमॉस्फियर वीनस इनवेस्टिगेशन ऑफ नोबेल गैसेस, कैमिस्ट्री एंड इमेजिंग)। यह शुक्र पर कार्बन डाईऑक्साइड और सल्फ्यूरिक एसिड से संतृप्त विषाक्त बादलों की मोटी परत का अध्ययन करेगा। दूसरा यान है VERITAS (वीनस एमिसिविटी, रेडियो साइंस, इनसार, टोपोग्राफी एंड स्पेक्ट्रोस्कोपी) जो शुक्र की सतह का विस्तृत नक्शा बनाएगा और इसका भूगर्भीय इतिहास पता लगाएगा।
आकार और द्रव्यमान में शुक्र लगभग पृथ्वी के समान है। दूसरी ओर, पृथ्वी के विपरीत इसका वातावरण अत्यंत गर्म और दुर्गम है, लेकिन इस पर कभी हमारी पृथ्वी की तरह समशीतोष्ण वातावरण और समुद्र रहे होंगे। शुक्र की परिस्थितियों में यह बदलाव कैसे आए, इसे समझना यह समझने के लिए भी महत्वपूर्ण है कि वास्तव में शुक्र और पृथ्वी में कितनी समानता थी।
नासा के इस मिशन की घोषणा भूले-बिसरे ग्रह शुक्र में अंतरिक्ष विज्ञानियों की बढ़ती दिलचस्पी के दौर में हुई है। अमेरिका का अंतिम शुक्र मिशन, मैजेलन, वर्ष 1994 में समाप्त हुआ था। उसके बाद युरोप और जापान ने अपने यान शुक्र पर भेजे, और पृथ्वी स्थित दूरबीनों की मदद से ही वैज्ञानिक इस पर नज़र रखे हुए थे। लेकिन इतने अध्ययन के बावजूद भी शुक्र के बारे में कई जानकारियां स्पष्ट नहीं हैं। जैसे शुक्र की सतह पर ज्वालामुखीय गतिविधियों के प्रमाण मिले थे, लेकिन वहां वैसी टेक्टॉनिक गतिविधियों का अभाव है जो पृथ्वी पर ज्वालामुखीय गतिविधियां चलाती है। इसके अलावा शुक्र के वायुमंडल में फॉस्फीन गैस की उपस्थिति भी विवादास्पद रही है, जो वहां जीवन होने का संकेत हो सकती है।
संभवत: 2030 तक DAVINCI+ अंतरिक्ष यान शुक्र के लिए रवाना हो जाएगा। शुक्र पर पहुंचकर यह वहां के पृथ्वी की तुलना में 90 गुना घने वायुमंडल मे उतरेगा, उतरते-उतरते विभिन्न ऊंचाइयों पर हवा के नमूने लेगा और पृथ्वी पर जानकारियां भेजता रहेगा। ये वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद करेंगी कि शुक्र कैसे विकसित हुआ था, और क्या इस पर कभी महासागर थे।
एक ओर, DAVINCI+ शुक्र के वायुमंडल का अध्ययन करेगा, वहीं VERITAS शुक्र की कक्षा में रहकर ही उसकी सतह का मानचित्रण करेगा। इससे प्राप्त चित्र, सतह के रसायन विज्ञान और स्थलाकृति के बारे में विस्तृत जानकारी शुक्र के भूगर्भीय इतिहास को समझने में मदद करेगी, और इस गुत्थी को सुलझाएगी कि शुक्र पर इतनी भीषण परिस्थितियां कैसे बनीं? (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - August 2021
- अंतर्राष्ट्रीय महामारी संधि का आह्वान
- संरक्षित ऊतकों से 1918 की महामारी के साक्ष्य
- एंटीबॉडी युक्त नेज़ल स्प्रे बचाएगा कोविड से
- दीर्घ कोविड से जुड़े चार अहम सवाल
- मिले-जुले टीके और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया
- कोविड-19 वायरस का आणविक विश्लेषण
- आजकल फफूंद की चर्चा हर ज़ुबान पर
- भारत में अंधत्व की समस्या
- पुतली का आकार और बुद्धिमत्ता
- वायरस का तोहफा है स्तनधारियों में गर्भधारण
- तालाबंदी की सामाजिक कीमत
- नासा की शुक्र की ओर उड़ान
- क्या वनस्पति विज्ञान का अंत हो चुका है?
- क्या कुछ पौधे रात में भी ऑक्सीजन छोड़ते हैं?
- निएंडरथल की विरासत
- वैज्ञानिक साहित्य में नकली शोध पत्रों की भरमार
- समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण पर बढ़ती चिंता
- नाभिकीय संलयन आधारित बिजली संयंत्र
- गरीबी कम करने से ऊर्जा की मांग में कमी
- एकाकी उदबिलाव बहुत ‘वाचाल’ हैं
- चांद पर पहुंचे टार्डिग्रेड शायद मर चुके होंगे
- एक नई गैंडा प्रजाति के जीवाश्म