हमारे सौर मंडल के कई पिंडों की यह खासियत है कि ध्रुव से ध्रुव तक उनके व्यास की अपेक्षा विषुवत रेखा पर उनका व्यास ज़्यादा होता है। यानी वे विषुवत रेखा पर थोड़े ज़्यादा फूले हुए होते हैं। इसका कारण यह है कि पिंड के घूर्णन की वजह से बीच वाले भाग के पदार्थ पर बाहर की ओर थोड़ा ज़्यादा बल लगता है।
यदि पृथ्वी को देखें तो उसका ध्रुवीय व्यास 12,713 किलोमीटर है जबकि विषुवत व्यास 12,756 किलोमीटर है। चंद्रमा के मामले में विषुवत व्यास ध्रुवीय व्यास से करीब 4.34 कि.मी. ज़्यादा है जो अपेक्षा से 20 गुना ज़्यादा है क्योंकि वास्तव में यह अंतर मात्र 200 मीटर होना चाहिए। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अंतर काफी ज़्यादा है। वर्तमान में चांद प्रतिदिन एक बार अपनी अक्ष पर घूमता है। इस घूर्णन गति से हिसाब लगाएं तो ध्रुवीय व्यास और विषुवत व्यास के बीच इतना अंतर नहीं होना चाहिए। कोलेरैडो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर अनुकृति बनाकर इसकी एक व्याख्या प्रस्तुत की है। कंप्यूटर अनुकृति का मतलब है कि आप सारे उपलब्ध आंकड़े कंप्यूटर में डाल देते हैं और साथ में कुछ नियम डाले जाते हैं। कंप्यूटर इन नियमों के अनुसार उपलब्ध आंकड़ों का विश्लेषण करके निष्कर्ष प्रस्तुत कर देता है। जियोफिज़िका लेटर्स नामक शोध पत्रिका में शोधकर्ताओं ने बताया है कि अनुकृति से पता चलता है कि चंद्रमा की बाहरी परत और उसकी आकृति लगभग 4 अरब वर्ष पहले अपने वर्तमान स्वरूप में आ चुकी थी। यानी जो विषुवत तोंद नज़र आती है वह 4 अरब वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई थी। इसका मतलब है कि चांद की घूर्णन गति उससे पहले कहीं ज़्यादा थी।
शोधकर्ता दल का मत है कि उनके मॉडल के अनुसार इसका कारण यह है कि उस समय पृथ्वी की घूर्णन गति उतनी रफ्तार से मंद नहीं पड़ रही थी। पृथ्वी की घूर्णन गति में धीमी रफ्तार से मंदन का असर यह था कि चांद और पृथ्वी के मिले-जुले तंत्र के घूर्णन संवेग को संतुलित करने के लिए चांद की घूर्णन गति ज़्यादा तेज़ी से मंद पड़ी।
सवाल यह है कि उस समय पृथ्वी की घूर्णन गति में तेज़ी से मंदन क्यों नहीं हुआ? टीम को लगता है कि इसका कारण शायद यह था कि उस समय पृथ्वी के घूमने की गति को धीमा करने वाले समंदर या तो थे नहीं अथवा वे बर्फ के रूप में जमे हुए थे। इसका कारण यह हो सकता है कि उस समय (4 अरब वर्ष पूर्व) सूरज की रोशनी इतनी तीव्र नहीं थी। (स्रोत फीचर्स)