गारे पाल्मा कोयला खदानों को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रायबूनल के निर्देश पर गठित विशेषज्ञ समिति ने पाया है कि इन खदानों के संचालन में पर्यावरणीय शर्तों की घोर अनदेखी की गई है। समिति की यह महत्वपूर्ण रिपोर्ट यहां से डाउनलोड की जा सकती है: https://pfcollectiveindia.files.wordpress.com/2018/01/moefcc-report-raigarh.pdf
छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ ज़िले में कोयला खदान गारे पाल्मा में एसईसीएल द्वारा खनन किया जा रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रायबूनल के निर्देश पर गठित समिति ने एसईसीएल को गारे पाल्मा की खुली व भूमिगत खनन परियोजनाओं का निरीक्षण किया। समिति का नेतृत्व कोयला मंत्रालय और पर्यावरण के संयुक्त सचिव तथा वन एवं जलवायु परिवर्तन के वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारा किया गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट में एसईसीएल और पिछले मालिक जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड दोनों को पर्यावरणीय उल्लंघन का दोषी ठहराया है।
खनन स्थल का निरीक्षण करने और सभी हितधारकों (मौजूदा संरक्षक, पूर्व मालिकों और स्थानीय निवासियों सहित) के साथ बातचीत करने के बाद समिति ने अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा है कि जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड ने पर्यावरणीय मंज़ूरी को गंभीरता से नहीं लिया और उसकी शर्तों का अनुपालन नहीं किया और सिर्फ कोयले के दोहन पर ध्यान दिया। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि “पर्यावरण मंज़ूरी की शर्तों के अनुपालन का मुद्दा नहीं उठाने के लिए संरक्षक भी ज़िम्मेदार हैं। उन्होंने पर्यावरण मंज़ूरी की शर्तों का ज़मीनी वास्तविकता के साथ का मिलान नहीं किया और निष्क्रिय रहे।” समिति ने सुझाव दिया है कि मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय को छह माह बाद खदान का फिर से निरीक्षण करना चाहिए और अनुपालन दर्ज करना चाहिए। गंभीर गैर-अनुपालन पाए जाने पर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट ने मौजूदा पर्यावरण प्रदूषण और इस क्षेत्र के निवासियों पर इसके प्रभाव के बारे में भी महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं। वायु प्रदूषण के मुद्दे पर समिति ने कहा है कि, “स्थल निरीक्षण के दिन बारिश होने के बावजूद इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण का स्तर काफी अधिक दिखाई पड़ा।” खदानों में आग के मुद्दे पर समिति ने कहा है कि “आग लगने के कारण क्षेत्र में भारी धुआं दिखाई दे रहा है, जो कि वहां के निवासियों और उनके पालतू पशुओं और अन्य प्राणियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इसके परिणामस्वरूप तापमान में वृद्धि हुई है।”
समिति ने यह भी पाया कि खनन गतिविधियों के कारण क्षेत्र के भूजल में कमी आई है। अपनी रिपोर्ट में समिति ने निवासियों के दावे की पुष्टि करते हुए कहा है कि “भूजल स्तर कम हुआ है, जिसकी वजह से खदान का गंदा पानी सतह और भूजल दोनों में पहुंच रहा है। आसपास के गांवों में हैंडपंप सूख रहे हैं।”
पिछली और मौजूदा खदान संचालक कंपनियों द्वारा हरित पट्टी की शर्तों का अनुपालन न करने के बारे में भी समिति की टिप्पणियां क्षेत्र के निवासियों की शिकायतों की पुष्टि करती है। समिति ने कहा है कि “हरित पट्टी का विकास पिछली और मौजूदा दोनों खदान संचालक कंपनियों द्वारा उपेक्षित किया गया है। दोनों ही इस महत्वपूर्ण शर्त का अनुपालन न करने के लिए ज़िम्मेदार हैं। वे हरित पट्टी की अवधारणा के बारे में स्पष्ट नहीं हैं और वृक्षारोपण को लेकर हमेशा भ्रमित होते हैं। हरित पट्टी का मतलब प्रदूषण को कम करने के लिए गतिविधि क्षेत्र के आसपास पेड़ों की एक पट्टी। हरित पट्टी के विकास के सम्बंध में पर्यावरणीय शर्तों का अनुपालन न करने की ज़िम्मेदारी जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड पर ज़्यादा है। दोनों में से किसी ने भी इस शर्त को गंभीरता से नहीं लिया। यदि गंभीरता से लिया गया होता, तो स्थिति इतनी खतरनाक न होती।”
समिति ने निम्नलिखित कार्रवाइयों की सिफारिश की है:
1. खदान के मौजूदा संरक्षक को पर्यावरणीय मंज़ूरी की शर्त के अनुसार हरित पट्टी का विकास करना चाहिए और इसकी लागत पिछले मालिक से वसूल की जानी चाहिए।
2. गांवों और खदान सीमा के बीच 500 मीटर की न्यूनतम दूरी हो और खदानों से होने वाला वायु प्रदूषण गांवों को प्रभावित न करे, यह सुनिश्चित करने के लिए अन्य उपयुक्त उपाय किए जाएं। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसा दिशानिर्र्देश पहली बार दिया गया है।
3. मौजूदा संरक्षक को अपने खर्च पर आसपास के सभी गांवों में स्थायी रूप से एक डॉक्टर नियुक्त करना चाहिए। ग्रामीणों को मुफ्त में दवाइयां मुहैया कराना चाहिए और आवासीय क्षेत्रों में हवा की गुणवत्ता जांचने के लिए निगरानी स्टेशन स्थापित करके उसका रख रखाव सुनिश्चित करना चाहिए।
4. पर्यावरणीय मंज़ूरी की शर्तों का अनुपालन न करने के लिए एनजीटी प्रथम आवंटी अर्थात जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड पर उपयुक्त दंड लगा सकता है।
प्रभावित गांवों और समुदायों ने समिति की रिपोर्ट और टिप्पणियों का स्वागत करते हुए कहा है कि “ये निष्कर्ष पर्यावरण की शर्तों के अनुपालन में गंभीर उल्लंघन, गंभीर वायु प्रदूषण, भूजल में कमी, खदान में लगी आग और इस क्षेत्र के लोगों और पशुओं के स्वास्थ्य पर भारी प्रभाव के हमारे दावों को सही साबित करते हैं।” साथ ही राज्य प्रशासन और एनजीटी से आग्रह किया गया है कि इन सिफारिशों को समयबद्ध तरीके से लागू किया जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि स्वास्थ्य और पर्यावरण पर खनन गतिविधियों से कोई और नुकसान न हो।
स्थानीय लोगों का मत है कि इस क्षेत्र में तब तक खदानों का विस्तार या नई खदान शुरू न की जाए जब तक कि इन सभी उल्लंघनों को सही नहीं किया जाता और प्रतिकूल असर ठीक नहीं हो जाते। (स्रोत फीचर्स)