एफ्लाटॉक्सिन ज़हरीले पदार्थों का एक समूह है जो खास तौर से बच्चों की सेहत पर असर डालता है। इसकी वजह से बच्चों का विकास धीमा पड़ जाता है। इसके अलावा एफ्लाटॉक्सिन लीवर के कैंसर के लिए भी ज़िम्मेदार होते हैं और मात्रा ज़्यादा होने पर जानलेवा भी हो सकते हैं। यह विष एक फफूंद एस्पर्जिलस फ्लेवस द्वारा बनाया जाता है। हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि यह फफूंद एफ्लाटॉक्सिन का निर्माण तब ज़्यादा करती है जब कोई कीट इसे कुतरने की कोशिश करे।
एस्पर्जिलस फ्लेवस कई फसलों को संक्रमित करती है और उनमें यह विष पहुंचा देती है। इनमें मक्का, मूंगफली, ज्वार आदि शामिल हैं। इन फसलों के ज़रिए यह विष हमारे भोजन में पहुंचता है। यह फफूंद फसल कटने के बाद भी इन फसलों के उत्पादों में जीवित रहती है और एफ्लाटॉक्सिन बनाती रहती है।
ज़ाहिर है, एफ्लाटॉक्सिन का उत्पादन करने में फफूंद को भी कुछ कीमत चुकानी पड़ती है। इसके निर्माण के लिए उसे अपने पोषण व ऊर्जा का कुछ हिस्सा खर्च करना पड़ता है। चूंकि एस्पर्जिलस फ्लेवस की अधिकांश किस्में इस विष का उत्पादन करती हैं, इसलिए लाज़मी है कि इन्हें इससे कुछ फायदा मिलता होगा। इसी तर्क के आधार पर कॉर्नेल विश्व विद्यालय के मिकी ड्रॉट और उनके साथियों ने फलभक्षी मक्खी की मदद से इस विचार की जांच की।
यह मक्खी और फफूंद दोनों एक ही वनस्पति को अपना भोजन बनाती हैं और उसी पर प्रजनन करती हैं। इस मक्खी के लारवा कभी-कभी फफूंद का भक्षण भी करते हैं। लिहाज़ा शोधकर्ताओं ने सोचा कि शायद एफ्लाटॉक्सिन फफूंद को और फफूंद के भोजन को लारवा से बचाता होगा। अपने शुरुआती प्रयोगों में शोधकर्ताओं के इस विचार की पुष्टि हुई कि एफ्लाटॉक्सिन फफूंद को इन कीटों से बचाता है। जब शोधकर्ताओं ने लारवा के भोजन में एफ्लाटॉक्सिन मिला दिया तो इसे खाने के बाद लारवा मारे गए। मगर यहां एक पेंच सामने आया।
लारवा तो मर गए और फफूंद खूब फैली किंतु फफूंद की वृद्धि तभी हुई जब ये लारवा वहां उपस्थित थे। लारवा की अनुपस्थिति में फफूंद की वृद्धि भी रुक गई। प्रोसीडिंग्स ऑफ दी रॉयल सोसायटी बी में प्रकाशित अपने शोध पत्र में ड्रॉट और साथियों ने बताया है कि जब लारवा उपस्थित होते हैं तब फफूंद ज़्यादा एफ्लाटॉक्सिन का निर्माण करती है। इससे लगता है कि कीटों पर नियंत्रण के माध्यम से फफूंद द्वारा एफ्लाटॉक्सिन के उत्पादन को नियंत्रित किया जा सकता है।
बहरहाल, अन्य पादप वैज्ञानिकों का कहना है कि कीटों और फफूंद के बीच इस तरह का आमना-सामना प्रकृति में नहीं होता। इसलिए लगता है कि यह उतनी कारगर विधि नहीं होगी। दूसरी ओर, ड्रॉट का विचार है कि यह एफ्लाटॉक्सिन विषाक्तता से छुटकारा पाने की एक नई दिशा हो सकती है। (स्रोत फीचर्स)