हाल के वर्षों में एमआरएसए का नाम एंटीबायोटिक प्रतिरोध के संदर्भ में काफी चर्चित रहा है। एमआरएसए का पूरा नाम है मेथिसिलीन रेसिस्टेंट स्टेफिलोकॉकस ऑरियस। यह बैक्टीरिया मेथिसिलीन नामक एंटीबायोटिक का प्रतिरोधी है। यह रक्त संक्रमण, निमोनिया पैदा कर सकता है और मरीज़ की जान तक ले सकता है। सामान्य सोच से निष्कर्ष निकलता है कि इस बैक्टीरिया (एसए) में मेथिसिलीन के खिलाफ प्रतिरोध तब विकसित हुआ होगा जब इसका संपर्क मेथिसिलीन से हुआ होगा। किंतु जीनोम बायोलॉजी में प्रकाशित एक शोध पत्र का निष्कर्ष है कि एसए में मेथिसिलीन प्रतिरोध मेथिसिलीन के एक औषधि के रूप में इस्तेमाल से बहुत पहले विकसित हो चुका था।
स्कॉटलैण्ड के सैन्ट एंड्रूज़विश्वविद्यालय के आणविक सूक्ष्मजीव वैज्ञानिक मैथ्यू होल्डेन और साथियों ने एमआरएसए बैक्टीरिया के प्राचीन नमूनों के विश्लेषण के आधार पर उक्त निष्कर्ष निकाला है। उन्होंने 1960 से लेकर 1980 के दशक में संरक्षित एमआरएसए के नमूनों के जीनोम का विश्लेषण किया। एक मायने में वे जीनोम-पुरातात्विक विश्लेषण कर रहे थे।
टीम ने पाया कि एसए बैक्टीरिया ने मेथिसिलीन प्रतिरोध का जीन 1940 के दशक में ही हासिल कर लिया था। यानी एसए में मेथिसिलीन प्रतिरोध का गुण मेथिसिलीन के बाज़ार में आने से पूरे 15 वर्ष पहले पैदा हो चुका था। सवाल था कि ऐसा कैसे हो सकता है।
होल्डेन की टीम ने पता किया है कि एसए में मेथिसिलीन प्रतिरोध दरअसल एक अन्य एंटीबायोटिक - पेनिसिलीन - के व्यापक उपयोग की वजह से पैदा हुआ है। पेनिसिलीन और मेथिसिलीन संरचना के लिहाज़ से कुछ हद तक परस्पर सम्बंधित हैं। इस अध्ययन का निष्कर्ष है कि किसी एंटीबायोटिक-विशेष से संपर्क से पहले भी बैक्टीरिया में उसके खिलाफ प्रतिरोध पैदा हो सकता है और यह प्रतिरोध किसी सम्बंधित एंटीबायोटिक के दबाव में पैदा होता है।
इस निष्कर्ष का निहितार्थ यह है कि हमें मौजूदा बैक्टीरिया का लगातार निरीक्षण करना होगा ताकि हम यह देख सकें कि नए एंटीबायोटिक के खिलाफ प्रतिरोध की संभावना वाली किस्में कौन-सी हैं। (स्रोत फीचर्स)