शर्मिला पाल
बढ़ते तापमान का अर्थ केवल पृथ्वी का गर्म होना नहीं है। इसका सीधा प्रभाव अब सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य के हालात पर पड़ रहा है। पृथ्वी के बढ़ते तापमान के लिए इंसानी गतिविधियां तो ज़िम्मेदार हैं ही लेकिन टेक्नॉलॉजी भी इसका बड़ा कारण है। बढ़ती जनसंख्या के लिए घर मुहैया कराने के लिए जंगलों की कटाई, अधिक से अधिक उपकरणों का प्रयोग, इसका परिणाम बढ़ते तापमान और पर्यावरण में असंतुलन के रूप में सामने आ रहा है। इसके भयावह परिणामों की चेतावनी पिछले कई दशकों से वैज्ञानिक देते आ रहे हैं।
औसत तापमान में वृद्धि
पृथ्वी के जल, थल और वायु के औसत तापमान में होने वाली वृद्धि ग्लोबल वॉर्मिंग कहलाती है। इंटर गवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के अनुसार ग्लोबल वॉर्मिंग का मुख्य कारण ग्रीन हाउस प्रभाव है। यह प्रक्रिया तब होती है, जब सूर्य की रोशनी वातावरण को गर्म करती है। ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण गर्मी वातावरण को भेद कर निकल नहीं पाती हैं और यहीं कैद होकर रह जाती है। इससे पृथ्वी का तापमान तेज़ी से बढ़ता जा रहा है।
पिघलते ग्लेशियर
ग्लोबल वार्मिंग का सीधा-सीधा प्रभाव ग्लेशियर्स पर पड़ रहा है। तापमान के बढ़ने के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे वि·ा के कई हिस्सों में बाढ़ की स्थिति बन जाती है। इतना ही नहीं, समुद्र का स्तर बढ़ने से जीवों की कई प्रजातियां खतरे के जद में आ गई हैं और हमारे इकोसिस्टम का संतुलन बिगड़ता जा रहा है।
मौसम का बिगड़ता मिजाज़
तापमान में वृद्धि के परिणाम बदलते मौसम के रूप में हमें नज़र आने लगे हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज़ होने लगती है, जिससे अनियंत्रित बारिश का खतरा बढ़ता है, कई इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती है। अत्यधिक बारिश को कई जानवर और पेड़-पौधे सहन नहीं कर पाते, नतीजतन पेड़-पौधे कम हो रहे हैं और जानवर अपनी जगह से पलायन कर रहे हैं। इसका प्रभाव इकोसिस्टम के संतुलन पर पड़ रहा है।
सूखे की समस्या
एक तरफ जहां ग्लोबल वॉर्मिंग से बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो रही है, वहीं कई देशों में सूखे की समस्या पैदा हो रही है क्योंकि वाष्पीकरण के कारण केवल बारिश की मात्रा नहीं बढ़ी है, बल्कि सूखे की समस्या भी बढ़ रही है। इससे वि·ा के कई हिस्सों में पीने योग्य पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है। सूखे के कारण लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा और इससे कई देशों में भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है।
बढ़ती बीमारियां
जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जा रहा है, उसका असर हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। अत्यधिक बारिश के कारण जलजनित बीमारियां जैसे मलेरिया, डेंगू का प्रकोप बढ़ रहा है। वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर बढ़ता जा रहा है, जिससे लोगों को सांस लेने में भी परेशानी का अनुभव होता है। यदि तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो सांस सम्बंधी बीमारियां और उसके लक्षण तेज़ी से फैलेंगे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की हेल्थ रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया था कि पूरे वि·ा में मध्यम आय वर्ग वाले लोगों में दस्त की वजह से 2.4 प्रतिशत लोग और मलेरिया की वजह से 6 प्रतिशत लोगों की मौत होगी।
दिमाग पर असर
यह ग्लोबल वॉर्मिंग के एक नए पक्ष के रूप में उभर रहा है, जिस पर विशेषज्ञ शोध कर रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि जो लोग सूखे, बाढ़, आंधी और ऐसी ही किसी प्राकृतिक आपदा में अपना घर और परिवार खो देते हैं, उसका प्रभाव उनकी मानसिक सेहत पर पड़ता है। उनमें पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी), गंभीर अवसाद एवं अन्य मानसिक बीमारियों के लक्षण देखे जाते हैं। सूखे की गंभीर स्थिति होने पर कई किसान आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं।
कृषि पर प्रभाव
आने वाले वर्षों में ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे अधिक प्रभाव हमारी कृषि पर पड़ने वाला है। वैसे कई बार हमें इसका परिणाम फसल की बर्बादी के रूप में भुगतना भी पड़ता है। अधिक तापमान के बीच कई पौधों का पनप पाना मुश्किल होता है और धीरे-धीरे उनका अस्तित्व खत्म होता जाता है। बेमौसम बारिश या अत्यधिक सूखे के कारण कई फसलें टिक नहीं पातीं। ऐसे में अनाजों के दाम तेज़ी से बढ़ रहे हैं। पेड़-पौधे हमारे भोजन का मुख्य स्रोत होते हैं, ऐसे में इनके खत्म होने से हमारा आधार ही छिन जाएगा। पूरे वि·ा में खाने की कमी हो जाएगी और इसकी अत्यधिक आशंका है कि यह कई देशों के बीच युद्ध का कारण बने।
लंबे या छोटे होते मौसम
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण अब कई मौसमों के आने का पता भी नहीं चल पाता। कई बार वसंत समय से पूर्व आता है और समय से पूर्व चला भी जाता है। कई हिस्सों में बारिश का मौसम इतना लंबा चलता है कि फसलें बर्बाद हो जाती हैं और कुछ इलाकों में गर्मी का लंबा मौसम हमारे जीवन को प्रभावित करता है।
जानवर हो रहे खत्म
इकोसिस्टम के असंतुलन से कई जानवरों की प्रजातियां खतरे में आ गई हैं। कई प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं तो कई विलुप्ति के कगार पर खड़ी हैं। इस तरह जानवरों के खत्म होने से वि·ा भर में संतुलन खतरे में पड़ जाएगा।
जंगलों की आग बढ़ रही है
बढ़ती गर्मी के कारण जंगलों में लगने वाली आग की घटनाओं में और इज़ाफा हो गया है। इससे जंगलों में रहने वाले जीव-जंतुओं के साथ-साथ उसके आसपास रह रहे लोगों के जीवन पर भी संकट मंडरा रहा है।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
फसलों के खत्म होने के साथ-साथ वस्तुओं के उत्पादन और निर्माण पर भी प्रभाव पड़ रहा है। प्रकृति के लगातार प्रभावित होने से खाद्य उद्योगों पर भी उसका गंभीर असर होने लगा है। लोगों की खाने की ज़रूरतों को पूरा करना अब एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है।
ठप न हो जाए बिजली व्यवस्था
यदि समुद्र का स्तर बढ़ेगा तो बाढ़ की समस्या भी बढ़ती जाएगी और इसका प्रभाव हमारी पूरी बिजली व्यवस्था पर पड़ेगा। आंधी, तूफान और तेज़ बारिश की वजह से पूरा ग्रिड उखड़ सकता है और इससे हमारी पूरी जीवनशैली तहस-नहस हो सकती है क्योंकि बिजली से ही हमारे कई कार्य संचालित होते हैं।
कई देश पानी में समा जाएंगे
समुद्र का स्तर बढ़ने से कई देशों के इसके अंदर समा जाने की आशंका बढ़ती जा रही है। जिस तरह से ग्रीनलैंड जैसे देश का अस्तित्व तेज़ी से खत्म होता जा रहा है, उससे आने वाले समय में सुंदर शहर, देश और यहां तक कि महादेश भी समुद्र में समाकर इतिहास बन जाएंगे।
हिंसा और युद्ध
यूं तो इंसानों में हिंसा के कई कारण होते हैं लेकिन आने वाले समय में इसकी मुख्य वजहों में धरती का बढ़ता तापमान भी शामिल हो जाएगा। खाने और पानी की कमी से लोगों में असंतोष पैदा होगा और वे इसे पाने के लिए हिंसा करने से भी नहीं चूकेंगे। यह स्थिति वै·िाक स्तर पर युद्ध का रूप ले सकती है।
कहीं देर न हो जाए
तापमान में लगातार वृद्धि के कारण घरों और दफ्तरों में एअरकंडीशनर का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। जिससे घरों या दफ्तरों के अंदर और बाहर तापमान में काफी अंतर पाया जाता है। और यही अंतर समस्या का कारण बनता है। इससे त्वचा, म्यूकस मेम्ब्रोन और आंखों में सूखेपन की समस्या हो जाती है। आंखों और श्वसन सम्बंधी इंफेक्शन की परेशानी बढ़ जाती है, साथ ही तापमान में परिवर्तन के कारण मांसपेशियों में दर्द महसूस होता है। दमा पीड़ितों के लिए इस तरह का परिवर्तन बहुत पीड़ादायी होता है, उन्हें बार-बार इसका दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। लोगों को नाक बहने, मांसपेशियों में दर्द, साइनुसाइटिस, ज़ुकाम, गले में खराश और शरीर में दर्द की समस्या लगातार होती रहती है। इन समस्याओं का सबसे बड़ा कारण एअरकंडीशनर होता है। मौसम में अचानक होने वाले बदलाव के साथ कई सारी परेशानियां जुड़ी होती हैं। इस परिवर्तन के कारण ब्लड प्रेशर कम हो जाता है, जोड़ों में दर्द की समस्या होती है, सिरदर्द और माइग्रेन की आशंका बढ़ जाती है।
वायरल बुखार के बढ़ते मामले
इन दिनों जैसे-जैसे मौसम में बदलाव होने लगता है, वैसे-वैसे वायरल बुखार के मामले सामने आने लगते हैं। वायरस से होने वाला यह बुखार गला दर्द व नाक बहने की समस्याओं को साथ लेकर आता है जो बच्चों और बड़ों को समान रूप से प्रभावित करता है। किसी के साथ भी ऐसा हो सकता है कि एक सुबह जब वह उठे तो उसके सिर में दर्द हो, जोड़ों में दर्द हो या त्वचा पर ददोरे उभर आए हों। वायरस की प्रकृति के मुताबिक प्राथमिक संक्रमण की अवधि कुछ दिनों से लेकर हफ्तों तक रह सकती है। यदि बुखार नीचे भी आ जाए तो भी कुछ मामलों में वायरस बढ़ता रहता है जिससे संक्रमण बना रहता है। ज़्यादातर वायरल बुखार एक सप्ताह में ठीक हो जाते हैं हालांकि कमज़ोरी हफ्तों तक बनी रह सकती है।
कैसे रोकें ग्लोबल वॉर्मिंग
ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने के छोटे-छोटे प्रयास ला सकते हैं बड़ा परिवर्तन। इसे रोकना किसी एक व्यक्ति के बस की बात नहीं, लेकिन छोटे-छोटे प्रयास इसकी गति को कम ज़रूर कर सकते हैं। हम चाहे घर पर हों या दफ्तर में हमारी हर गतिविधि पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखकर होनी चाहिए।
• प्रदूषण कम से कम करने और ऊर्जा के साधनों को सुरक्षित रखने का प्रयास करें। जब आप किसी कमरे की लाइट प्रयोग न कर रहे हों या कंप्यूटर पर काम न कर रहे हों तो उन्हें बंद कर दें।
• सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें या फिर एक ही स्थान पर जाने के लिए लोग कारपूलिंग करके ईधन की बचत कर सकते हैं।
• ऊर्जा की बचत करने वाले उपकरण ही खरीदें या ऐसी गाड़ियां खरीदें जिनमें ईधन की खपत कम होती हो।
• स्थानीय रूप से उगाई गई सब्ज़ियां या निर्मित उत्पाद ही खरीदें। इससे ढुलाई में लगने वाले अतिरिक्त ईधन की बचत होगी। (स्रोत फीचर्स)