देर रात तक जागना शायद आपके दिमाग को अंदर ही अंदर खा जाएगा। मस्तिष्क की जो कोशिकाएं क्षतिग्रस्त कोशिकाओं तथा उनके मलबे की सफाई करती हैं, वे तब ज़्यादा मेहनत करने लगती हैं जब आप लगातार नींद से वंचित रहें।
आप कहेंगे कि जब इस प्रक्रिया में पुरानी, क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की सफाई की जा रही है, तो यह तो अच्छी बात है। इटली के मार्च पोलीटेक्निक विश्वविद्यालय के माइकेल बेलेसी आपसे सहमत होंगे जिन्होंने उक्त अध्ययन किया है। हानिकारक मलबे की सफाई और मस्तिष्क के फटे-पुराने परिपथों के नए सिरे से निर्माण की यह प्रक्रिया अल्पावधि में तो लाभदायक होती है। किंतु बेलेसी के मुताबिक लंबे समय में यह प्रक्रिया हानिकारक हो सकती है।
बेलेसी के ये निष्कर्ष चूहों को नींद से वंचित करके किए गए प्रयोगों पर आधारित हैं। चूहे तीन तरह के थे - पहले वे जिन्हें खूब सोने की मोहलत दी गई थी, दूसरे समूह को आठ घंटे ज़्यादा जागने पर मजबूर किया गया था। तीसरे समूह के चूहों को लगातार पांच दिन तक जगाकर रखा गया था। यह तीसरा समूह नींद की गंभीर समस्या का प्रतिनिधित्व करता था। इन तीनों समूहों के मस्तिष्क की तुलना की गई।
शोधकर्ताओं ने खास तौर से मस्तिष्क की ग्लिअल कोशिकाओं पर ध्यान दिया। ग्लिअल कोशिकाएं मस्तिष्क के रख-रखाव का काम करती हैं। पूर्व में किए गए शोध से पता चला था कि नींद न मिले तो इन कोशिकाओं का नियमन करने लाले जीन्स ज़्यादा सक्रिय हो जाते हैं।
इनमें से एक तरह की ग्लिअल कोशिकाओं को एस्ट्रोसाइट कहते हैं ये तंत्रिकाओं के बीच अनावश्यक जुड़ावों (सायनेप्स) की छंटाई करती हैं ताकि नए जुड़ाव बन सकें। दूसरे किस्म की ग्लिअल कोशिकाएं (सूक्ष्म-ग्लिअल कोशिकाएं) मस्तिष्क में क्षतिग्रस्त कोशिकाओं व मलबे को लपक लेती हैं।
बेलेसी ने पाया कि निर्विघ्न नींद के बाद चूहों के मस्तिष्क में एस्ट्रोसाइट 6 प्रतिशत सायनेप्स के आसपास सक्रिय थे। किंतु 8 घंटे की नींद से वंचित चूहों में ये 8 प्रतिशत तथा नींद से पूरी तरह वंचित चूहों में ये 13.5 प्रतिशत सायनेप्स के इर्द-गिर्द सक्रिय पाए गए। इससे लगता है कि नींद से वंचना एस्ट्रोसाइट्स को ज़्यादा काम करने को उकसाती है। यह अवश्य एक अच्छी बात हो सकती है क्योंकि अधिकांश एस्ट्रोसाइट पुराने सायनेप्स और उनके मलबे के आसपास सक्रिय थे। टीम ने यह भी देखा कि नींद न मिलने के बाद सूक्ष्म ग्लिअल कोशिकाएं भी अधिक सक्रिय हो गई थीं। यह चिंता का विषय है क्योंकि सूक्षम-ग्लिअल कोशिकाओं की अति सक्रियता का सम्बंध अल्ज़ाइमर व अन्य तंत्रिका सम्बंधी दिक्कतों से देखा गया है।
कुल मिलाकर जर्नल ऑफ न्यूरोसाइन्स में प्रकाशित इन निष्कर्षों के आधार पर कहा जा सकता है कि नींद की थोड़ी-बहुत कमी शायद लाभदायक हो किंतु लगातार नींद की कमी समस्यामूलक है। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - July 2017
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