भाव्या खुल्लर एवं नवनीत कुमार गुप्ता
आज दुनिया भर में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग पर ज़ोर दिया जा रहा है। इनकी मदद से जलवायु परिवर्तन की समस्या को रोका जा सकता है। इस संदर्भ में हाइड्रोजन ईंधन का उपयोग एक विकल्प है। किंतु स्वच्छ ऊर्जा स्रोत होने के बाद भी हाइड्रोजन ऊर्जा अधिक लोकप्रिय नहीं हो पा रही है। इसका एक तकनीकी पहलू भी है। इसका भंडारण आसान नहीं है। अनेक शोध संस्थान इस समस्या के हल के लिए प्रयासरत हैं। भारत के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में सफलता हासिल की है।
वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी अनुसंधान परिषद के कोलकाता स्थित केंद्रीय कांच एवं सिरामिक अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा इस दिशा में किया गया शोध महत्वपूर्ण साबित हुआ है। यहां की वैज्ञानिक डॉ. नंदिनी दास और डॉ. प्रियंका रॉय ने सस्ती सामग्री ‘बिकिटाइट ज़ीओलाइट’ का विकास किया है जिसमें हाइड्रोजन भंडारण की सबसे अधिक क्षमता है। यह अभी तक उपलब्ध सामग्रियों में सबसे सस्ती है। उन्होंने इस शोध के परिणाम अंतर्राष्ट्रीय शोध जर्नल अल्ट्रासोनिक्स सोनोकेमेस्ट्री में प्रकाशित किए हैं।
हाइड्रोजन स्वच्छ ईंधन है क्योंकि यह प्रदूषणरहित ऊर्जा उत्पन्न करता है। लेकिन यदि इसे ठीक से भंडारित न किया जाए तो इसमें विस्फोट हो सकता है जिससे जान-माल की हानि हो सकती है। वैसे तो हाइड्रोजन को भंडारित करने की दो विधियां हैं। इसे या तो धात्विक डिब्बों में या फिर ज़ीओलाइट नामक विशेष पदार्थ में अवशोषित करके रखा जाता है।
ज़ीओलाइट स्पंज जैसी संरचना होती है जिसकी सतह पर अनेक रंध्र होते हैं। हाइड्रोजन ईंधन इन रंध्रों में अवशोषित हो जाता है। ज़ीओलाइट में कोई धातु मिलाने से यह हाइड्रोजन को भलीभांति अवशोषित कर लेता है। ऐसा करने से ऊष्मा और रसायनों के प्रति इसका स्थायित्व बढ़ जाता है। लीथियम ऐसी ही एक धातु है जिसे ज़ीओलाइट में मिलाकर हाइड्रोजन के प्रति बंधन क्षमता को बढ़ाया जाता है। अन्य धातुओं की तुलना में इसे इसलिए अधिक पसंद किया जाता है क्योंकि यह गर्मी के प्रति स्थायित्व को बढ़ा देता है। लीथियम का अणु भार कम होने और हाइड्रोजन के साथ उच्च बंधन क्षमता के कारण इसे प्राथमिकता दी जाती है। हाइड्रोजन को भंडारित करने वाली सामग्रियों के निर्माण की परंपरागत विधि में ज़ीओलाइट को 24 घंटे तक 90-200 डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म किया जाता है। और अधिक कठोरता प्रदान करने के लिए कुछ दिनों तक गर्म किया जाता है।
डॉ. दास और डॉ. राय ने इस प्रक्रिया में ऊष्मीय ऊर्जा की बजाय अल्ट्रासाउंड तरंगों का उपयोग किया है। चूंकि अल्ट्रासाउंड तरंगें बहुत अधिक ऊर्जा (150 से 250 वॉट) प्रदान करती हैं, इसलिए यह प्रक्रिया कमरे के तापमान पर 6 घंटों में पूरी हो जाती है। ज़ीओलाइट में लीथियम धातु मिलाकर बनाए गए इस पदार्थ को बिकिटाइट नाम दिया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस विधि से कम ऊर्जा व्यय होगी और उपकरणों की लागत में कमी आएगी जिससे नया पदार्थ बहुत ही सस्ता बनेगा।
प्रति ग्राम बिकिटाइट में -200 डिग्री सेल्सियस पर 143.22 घन सेंटीमीटर हाइड्रोजन भंडारित की जा सकेगी, जो अब तक बने किसी भी पदार्थ की तुलना में अधिक है। आशा है कि भविष्य में बिकिटाइट ज़ीओलाइट हाइड्रोजन भंडारण के लिए अत्यंत उपयोगी सामग्री साबित होगी। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - July 2017
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