विपुल कीर्ति शर्मा

मैं अपने  कॉलेज  के  लड़कों  को बेहिचक तरह-तरह से बाल कटवाते, दाढ़ी बढ़ाते, भिन्न प्रकार के जूते एवं पहनावे में तथा लड़कियों को रंग-बिरंगी नेल पॉलिश, परफ्यूम, रिप्ड जीन्स तथा बेहद आकर्षक कपड़ों और आर्टिफिशियल ज्युलरी का बेबाक उपयोग करते हुए देखता हूँ। कुछ नाचकर, गाकर अपने आपको प्रदर्शन योग्य बनाते हैं तो कुछ सभ्य, संस्कारी, वाकपटुता तथा ज्ञान द्वारा प्रभावित करते हैं। कुल मिलाकर यह मामला खुद को विपरीत सेक्स के समक्ष अन्य से अधिक सुन्दर, आकर्षक, प्रसन्नचित्त, समझदार एवं बेहतर दिखने के तरीके का है।
अगर निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो तितलियों में आकर्षक रंग एवं विपरीत सेक्स के प्रति कामुकता का प्रदर्शन मानव से बहुत अधिक दिखता है। दृश्य और अन्य संवेदी संकेत भी इन छोटे प्राणियों में आश्चर्यजनक रूप से विपरीत सेक्स को लुभाने के लिए उपयोग में आते हैं। सभी जन्तुओं के समान इनका लक्ष्य भी अगली पीढ़ी में स्वयं के जीन्स को पहुँचाना-मात्र है। चार्ल्स डार्विन के समय जीन की खोज तो नहीं हुई थी परन्तु प्रजनन द्वारा लक्षणों का अगली पीढ़ी में पहुँचना सभी को ज्ञात था। 1817 में डार्विन ने पहली बार बताया था कि किसी भी प्राणी में विकास के दौरान अनेक गुण तथा प्रजनन के लिए आवश्यक व्यवहार विकासरत होते हैं जिनसे प्रजनन में सफलता मिलती है। कुछ लक्षण विपरीत सेक्स को प्रतियोगी से अधिक आकर्षक बनाते हैं और प्रजनन में सफलता दिलाते हैं। प्रजनन के लिए चयन के इस सिद्धान्त को प्रतिपादित करने के पूर्व डार्विन के मस्तिष्क में तितलियों का ख्याल भी था क्योंकि कीट-पतंगों में पाए जाने वाले शोख रंग तथा डिज़ाइन विपरीत सेक्स को आकर्षित करने में प्रमुख रहे होंगे। द डिसेन्ट ऑफ मैन एंड सिलेक्शन इन रिलेशन टू सेक्स (The Descent of Man and Selection in Relation to Sex) में वे लिखते हैं कि रंग तथा सुरुचिपूर्ण पैटर्न की जमावट प्रदर्शन के लिए ही होती है। इसलिए उन्हें लगता था कि मादा आम तौर पर अधिक चमकदार नरों से ज़्यादा आकर्षित होती हैं। एक शताब्दी से भी ज़्यादा समय पूर्व, डार्विन द्वारा प्रस्तावित परिकल्पनाओं को वर्तमान में तितलियों पर किए गए हमारे प्रयोगों से समर्थन मिलता है।
तितलियों  के  संसार  में  कुछ तितलियाँ रंग देखकर प्रजनन के लिए आकर्षित होती हैं तो कुछ अन्य तितलियाँ ऐसे संवेदी संकेत को पहचानती हैं जो मानव द्वारा भी उपयोग में नहीं लाए जाते। प्रयोगों से प्राप्त जानकारी के अनुसार तितलियाँ प्रजनन के मामलों में हमारी कल्पना से भी अधिक समझदार सिद्ध हुई हैं। भड़कीले रंग तथा गन्ध के उपयोग की महत्ता केवल विपरित सेक्स का ध्यान आकर्षित करने से अधिक है। आकर्षक रंग रूप एवं गन्ध तितलियों में विपरीत सेक्स के स्वास्थ्य एवं जोशीले अन्दाज़ को भाँपने के तरीके भी हो सकते हैं।

तितलियों के रंग के संकेत
अधिकांश तितलियों में नर एवं मादा एक समान ही दिखते हैं। विपरीत सेक्स को आकर्षित करने में रंगों की भूमिका के स्पष्ट प्रमाण उन तितली प्रजातियों से प्राप्त होते हैं जिनमें नर तितली, मादा से दिखने में बिलकुल भिन्न रंग की होती है। सफलतापूर्वक प्रजनन के लिए ज़ाहिर है कि एक तितली यह पहचान सके कि उसे आकर्षित करने वाला, उसी की प्रजाति का है और विपरीत सेक्स का है। फिर मनपसन्द लक्षणों में रुचि प्रजनन के लिए आतुर करती है। मध्य भारत में ग्रेट ऐगफ्लाय तितली में यौन द्विरूपता (सेक्शुअल डायमॉर्फिज़्म) स्पष्ट देखी जा सकती है। बेहद खूबसूरत काले रंग की इस तितली में नर के पिछले पंखों के अन्दर की सतह पर अण्डाकार सफेद गोले होते हैं। गोलों की सतह पर नीली आभा होती है। अण्डाकार गोलों की उपस्थिति के कारण ये बड़ी तितलियाँ ग्रेट ऐगफ्लाय कहलाती हैं और नीली आभा के कारण इन्हें ब्लू मून भी कहते हैं। मादा ग्रेट ऐगफ्लाय में पिछले पंखों में गोलों वाली अण्डाकार रचना नहीं होती किन्तु दोनों जोड़ी पंखों  के  पीछे  की  ओर  सुन्दर नक्काशीदार झालर बनी होती है।
प्राय: पौधों पर मण्डराती पीले रंग की छोटी तितली कॉमन ग्रास येलो (यूरेमा हेकाबे) कहलाती है। इन तितलियों में दोनों सेक्स, नर एवं मादा, मानव को बिलकुल एक जैसे पीले रंग के ही दिखते हैं। तितलियों में दोनों जोड़ी पंख बेहद छोटे स्केल्स से आच्छादित होते हैं। पंखो के ये स्केल रंगीन होते हैं। तितलियों के पंख प्रकाश के परावर्तन से रंगीन दिखते हैं। प्राय: तितली को पंख से पकड़ते समय, ये स्केल हमारी त्वचा पर पॉवडर के समान चिपक जाते हैं। कॉमन ग्रास येलो के नर एवं मादा हमें भले ही एक से ही प्रतीत होते हों परन्तु तितलियों को विपरीत सेक्स बिलकुल भिन्न रंग के दिखते हैं क्योंकि तितलियाँ मानव की देखने की क्षमता से परे, पराबैंगनी प्रकाश की किरणों को परावर्तित करती हैं तथा उन्हें देख भी सकती हैं।
कॉमन ग्रास येलो के समान दिखने वाली तथा यूरोप में पाई जाने वाली लिटिल येलो (यूरेमा लिसा) नामक तितली में भी नर एवं मादा, मानव को एक जैसे ही दिखते हैं। नर यूरेमा के पंखों की ऊपरी सतह पर पाए जाने वाले पीले स्केल पराबैंगनी किरणों को परावर्तित करते हैं परन्तु मादा के स्केल पराबैंगनी किरणों को परावर्तित नहीं कर सकते इसीलिए दोनों एक-दूसरे को भिन्न नज़र आते हैं। नर का सामना जब अपनी ही प्रजाति की मादा से होता है तो नर मादा के पास जाकर प्रजनन करने से पूर्व कुछ पलों के लिए आकर्षित करने और रिझाने की कोशिश करते हैं। इस ‘इश्कबाज़ी’ के दौरान यदि नर का सामना अपनी ही प्रजाति के किसी अन्य नर से हो जाए तो उससे लड़ने की बजाए वह नर अन्य मादा की खोज में निकल पड़ता है। बगीचों में इस प्रकार के अनेक आसान-से परीक्षण मुझे यह जानने में मदद करते हैं कि कैसे एक नर संकेतों का उपयोग कर मादा को पहचानता है। अगर शिकार हो चुकी या दुर्घटनाग्रस्त मादा तितली के अच्छे पंख को सावधानी से प्लास्टिक के टेप से फूलों की शाखाओं के पास इस प्रकार चिपकाकर रखा जाए कि खुले पंख आसानी-से देखे जा सकें तो नर तितली अक्सर इन पंखों को मादा समझकर उन पर बैठकर प्रजनन की कोशिश करती हुई दिख जाती हैं।

तितलियों पर विभिन्न प्रयोग
दूसरे प्रयोग में यदि एक नर के पंखों को टेप से चिपका दिया जाए तो घुमक्कड़ नर टेप से चिपके हुए पंखों की उपेक्षा कर उनसे दूर निकल जाते हैं। इस अवलोकन से यह ज्ञात होता है कि नर तितलियों में मादा के लिए संघर्ष की स्थिति कभी नहीं बनती।
क्या तितलियों के रंग-बिरंगे पंख विपरीत सेक्स को आकर्षित करने में महत्वपूर्ण होते हैं? इसको सिद्ध करने के लिए एक साधारण किन्तु मज़ेदार प्रयोग किया जा सकता है। एक जैसी तितली के दो नरों के पंखों को एकत्रित करके उन्हें प्लास्टिक के पारदर्शक एवं कठोर आधार से चिपका दें। एक नर तितली के पंखों के ऊपर सामान्य ग्लास स्लाइड रखें जो प्रकाश एवं पराबैंगनी विकिरणों, दोनों को अपने में से गुज़रने दे। दूसरे में नर के पंखों पर ऐसा काँच का फिल्टर रखें जो पराबैंगनी विकिरणों को रोक दे। पराबैंगनी विकिरण अवरुद्ध करने वाला गोलाकार फिल्टर आपको कैमरे की दुकानों पर आसानी-से उपलब्ध हो जाएगा। मादा तितलियों की तलाश में घूमते अनेक नर, फिल्टर से ढँके नर के पंख पर आकर प्रजनन का प्रयास करने लगते हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि फिल्टर ने पराबैंगनी विकिरणों को गुज़रने ही नहीं दिया। इससे नर के पंख पराबैंगनी विकिरणों को परावर्तित नहीं कर सके और इन पंखों पर मण्डराते नर, नर के पंखों को ही मादा समझते रहे। उपरोक्त प्रयोग मध्यम आकार तथा बरसात के समय बहुतायत में मिलने वाली मॉटल्ड एमिग्रेन्ट के साथ बहुत ही आसानी-से किए जा सकते हैं।

तितलियों में रंग का महत्व
नर को खोजती मादा तितलियों में भी रंग के महत्व को समझा जा सकता है। इसके लिए आपको तितलियों की एक घनी आबादी को खोजना पड़ सकता है जो शहर के बाहर आसानी-से मिल जाएगी। अक्सर कुँवारी या लम्बे समय से प्रजनन से दूर रही मादा तितली को भी नर तितली का पीछा करते हुए देखा जा सकता है। इस प्रयोग के लिए रोनाल्ड स्टोवास्की ने नॉर्थ अमेरिका में पाई जाने वाली नर एवं मादा चेकर्ड व्हाइट तितली के थोरेक्स तथा एब्डॉमिन को जोड़ने वाले हिस्से को सरिये बाँधने वाले लोहे के तार से लूप बनाकर बाँध दिया। तार का एक सिरा पौधे से बँधा था तो दूसरे सिरे पर तितली बँधी हुई थी। कमर पर लूप बनाते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था कि तितली को चोट नहीं पहुँचे। बँधी हुई मादा तितली के पास जब मुक्त मादा तितली पहुँचती थी तो बँधी तितली उसके साथ उड़ने को बहुत बेताब नहीं दिखती थी परन्तु जब नर तितली पास में आती थी तो बँधी मादा नर का पीछा करने को आतुर दिखती थी। मादा चेकर्ड व्हाइट तितली के पंखों के कुछ हिस्से के स्केल पराबैंगनी विकिरणों को परावर्तित कर नर को आकर्षित करते हैं और नर में उसी स्थान पर उपस्थित स्केल के रंग पराबैंगनी किरणों को सोख लेते हैं और परावर्तित नहीं करते। नर के पंखों को अगर कम सान्द्रता वाले अमोनिया के विलयन में निश्चित जगह नहला दिया जाए तो रंग उतरने के कारण स्केल फिर से पराबैंगनी विकिरणों को परावर्तित करने लगते हैं। मृत चेकर्ड व्हाइट नर के पंखों को नियत स्थान पर नहलाए पंखों में किसी जीवित तितली के समान दिखने वाले मॉडल में लगा दिया जाए तो क्या होगा? नर मॉडल तितली के पंख, मादा के समान पराबैंगनी विकिरणों को परावर्तित करने लगते हैं और मादा चेकर्ड तितली तो दूर भागती है परन्तु मण्डराते नर जोड़ा बनाने के प्रयास में जुट जाते हैं।

तितलियों में चयन का आधार
कुछ मादा तितलियाँ नर के चयन में नखरेल प्रतीत होती हैं। अनेक नरों में से वे अपनी पसन्द के छैल-छबीले नर को चुनने के लिए रंगों का मुआयना बहुत बारीकी से करती हैं। हयूसटन विश्वविद्यालय की डायेन सी विरनाज़ ने चेकर्ड व्हाइट तितली की नज़दीकी रिश्तेदार  वेस्टर्न  व्हाइट  (पी. ओसिडेन्टेलि)  नामक  तितली  के व्यवहार की पड़ताल की। उन्होंने वेस्टर्न व्हाइट की कुँवारी मादाओं को परीक्षण स्थल में छोड़कर इन तितलियों से सफलतापूर्वक प्रजनन सम्पन्न करने वाले नरों को पकड़ लिया। प्रजनन में सफल रहे सभी नरों के अगले पंखों के सिरों पर गहरे रंग के धब्बे थे। ऐसे नर जिनके अगले पंखों पर मादाओं के पसन्दीदा निशान यानी धब्बे नहीं थे, वे प्रजनन में असफल रहे थे। अब विरनाज़ ने आकर्षक पंखों के गहरे रंग के धब्बों को सफेद रंग से पोत दिया। जब इन नरों को फिर से परीक्षण स्थल पर छोड़ा गया तो गहरे रंगों की अनुपस्थिति के कारण अब ये नर मादा तितलियों के लिए आकर्षक नहीं रहे। उपरोक्त प्रयोग अपने प्रकार का एक मात्र ऐसा अध्ययन है जो यह सिद्ध करता है कि कुछ मादा तितलियाँ, कुछ विशेष रंग या धब्बों के आधार पर नर का चयन करती हैं।
तितलियों में स्वस्थ एवं युवा नरों में पंखों के रंग बेहद चटकीले एवं आकर्षक होते हैं परन्तु बढ़ती उम्र के साथ रंग की चटक एवं क्षेत्र कम आकर्षक होते जाते हैं। इसलिए चटकीले रंगीन पंखों वाले नरों का चुनाव करने वाली मादाओं को सबसे कम उम्र के स्वस्थ युवा से प्रजनन करने का अवसर मिलता है। इस परिकल्पना को सही सिद्ध करने के लिए विरनाज़ एवं उनकी टीम एक बार फिर मैदान में उतरी। इस बार वे ऑरेंज सल्फर जिसे अलफाल्फा, या कोलिअस भी कहते हैं, नामक तितलियों पर ऐरिज़ोना (अमेरिका) की गर्मियों में अलफाल्फा पौधों की फूलों से लदी शाखाओं पर नज़रें गड़ाए हुए थे। ऑरेंज सल्फर की मादा तितलियाँ नर के पंखों से परावर्तित पराबैंगनी विकिरणों से आकर्षित होती हैं। जैसे-जैसे बढ़ती उम्र के साथ नर के पंखों के स्केल गिरने लगते हैं उनमें पराबैंगनी विकिरणों को परावर्तित करने की क्षमता भी कम होती जाती है। ऐसे नरों के प्रति मादाओं का आकर्षण कम होता जाता है और वर्जिन मादाएँ तो ऐसे नरों की तरफ ध्यान भी नहीं देतीं।

तितलियों में प्रणय निवेदन
जैसे ही नर एवं मादा तितली एक-दूसरे को देख लेते हैं, कोर्टशिप यानी प्रणय निवेदन प्रारम्भ हो जाता है। नर तितली का लक्ष्य प्रजनन हो जाने तक मादा को उत्तेेजित एवं प्रेरित करते रहना होता है। यह प्रक्रिया लम्बी और बेहद थकाने वाली होती है और कुछ मामलों में एक घण्टे से भी ज़्यादा समय तक चलती है। कुछ प्रजातियों में तो मादा तितली को प्रजनन के लिए अपने पेट को पिछले पंखों से नीचे झुकाकर रखना पड़ता है जिससे नर को मैथुन में आसानी रहे।
दुनियाभर  में  तितलियों  की प्रजातियाँ तो लगभग बीस हज़ार हैं परन्तु तितलियों में प्रणय निवेदन एवं प्रजनन का अध्ययन केवल कुछ ही प्रजातियों पर ही हुआ है। प्रणय निवेदन के साथ-साथ विपरीत सेक्स द्वारा उत्पन्न रसायन भी तितलियों को प्रजनन के लिए आतुर बनाते हैं, इन्हें ‘फेरोमोन्स’ कहते हैं। ये हमें दिखाई नहीं पड़ते किन्तु बेहद प्रभावशाली होते हैं। फेरोमोन्स कैसे तितलियों में प्रजनन के सन्देश प्रसारित करते हैं, यह समझने के लिए वैज्ञानिकों ने क्वीन बटरफ्लाय, डेनेअस गिलिप्पस पर प्रयोग किए। इन तितलियों के नर सदस्य मादा में यौन उत्तेजना बढ़ाने के लिए पेट के अन्तिम सिरे पर स्थित ब्रश के समान संरचना ‘हेयर पेंसिल’ द्वारा फेरोमोन्स उत्पन्न करते हैं। ब्रश के समान संरचना फेरोमोन्स निकालने वाली सतह का क्षेत्रफल बढ़ाकर प्रभावशाली तरीके से रसायनों का वितरण करती है।

मादा तितली की खोज के तरीके
अधिकांश तितलियों के नर अपनी प्रजाति की मादाओं को खोजने के लिए दो तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। पहला, पर्चिंग और दूसरा, पेट्रोलिंग। पर्चिंग में नर तितली ऐसे स्थान पर सीमित रहती है और मादा तितली के आने की प्रतिक्षा करती है जहाँ उसके आने की सम्भावनाएँ सबसे प्रबल हों। प्राय: ऐसा स्थान फूलों से लदी डाली हो सकती है जिसमें बहुत-सा मकरन्द उपस्थित हो। ऐसे नर मादा तितली को उनके उड़ने की अदा और चाल से पहचानकर पीछा करते हैं तथा रंग-रूप और रसायनिक पहचान के उपरान्त प्रणय निवेदन करते हैं। ऐसे नर फूलों के आसपास तथा दिन के निश्चित समय ही प्रजनन करते हैं। एक ही स्थान तक सीमित रहने से नरों में प्रजनन की सम्भावनाएँ तो कम हो जाती हैं परन्तु ऊर्जा संरक्षण के कारण वे सदैव ऊर्जावान व स्फुर्तीवान बने रहते हैं।
कुछ तितलियों के पर्चिंग करते हुए नर तो मादा में विकसित होते हुए प्यूपा के पास बैठकर, नवजात मादा के बाहर निकलने का अर्थात् जन्म लेने को इन्तज़ार करते हैं और कई बार तो वे मादा को प्यूपा से बाहर निकलने में मदद भी करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को प्री-कॉप्यूलेटरी मेट गार्डिंग या प्यूपल मेटिंग भी कहते हैं। प्यूपल अवस्था के अन्तिम समय मादा तितली नर को आकर्षित करने वाले रसायन मोनोटर्पेन्स का स्त्रवण करती है। प्यूपा के खोल से निकलने के 24 घण्टे पहले प्यूपा अर्द्धपारदर्र्शी हो जाता है। एक सजग नर, प्यूपा के सारे परिवर्तनों तथा मोनोटर्पेन्स की गन्ध को पहचानकर समझ जाता है कि कोई मादा तितली प्यूपा के खोल से निकलकर जन्म लेने वाली है। मादा से प्रजनन करने के इन्तज़ार में बैठे नर को इन्तज़ार का फल मिलता है। प्यूपा के खोल से निकलते ही मादा वयस्क हो जाती है तथा नर को प्रजनन का मौका मिल जाता है। पूरी प्रक्रिया में मादा को एक अन्य बेहतर तथा चपल नर का चयन कर प्रजनन करने या पसन्द के साथी से प्रजनन करने का समय और अवसर ही नहीं मिलता है। प्यूपा की सुरक्षा में जुटा हुआ नर अन्य नरों से प्रजनन या बेहतर जीन को ग्रहण करने का मौका नवजात मादा को नहीं देता और इसलिए यह अनुवांशिक तौर पर हानिकारक भी हो सकता है।

पेट्रोलिंग - इस प्रकार के तरीके में नर सीमित क्षेत्र में इन्तज़ार करने की अपेक्षा उड़ते हुए निरन्तर मादा को खोजता रहता है। गश्त लगाते हुए नर को इसके लिए बहुत सारी ऊर्जा व्यय करनी पड़ती है क्योंकि गश्त में सदैव उपयुक्त साथी मिल ही जाए, इसकी सम्भावनाएँ कम होती हैं। ठण्ड के समय यह प्रयास बेहतर तरीका हो सकता है क्योंकि ठण्ड के दिनों में असमतापी जीव होने के कारण तितलियों में शारीरिक कार्य धीमे हो जाते हैं। गश्त के कारण शरीर का तापमान बढ़ने लगता है तो सारे कार्य आसानी-से हो पाते हैं। ऐसे गश्त लगाते नर मादा को शरीर के आकार, चाल-ढाल, पंखों के रंग और पैटर्न तथा पराबैंगनी विकिरणों के परार्वतन के आधार पर ही पहचानते हैं।
प्रणय के दौरान कई नर बहुधा अपने शरीर का पिछला हिस्सा मादा के ऐंटिना से सहलाते हैं। ऐसा करते हुए नर हेयर पेंसिल पर उपस्थित फेरोमोन्स को मादा के ऐंटिना में लगा देते हैं। प्रजनन की इच्छुक मादा इन रसायनिक सन्देशों के प्रत्युत्तर में स्थिर बैठकर प्रजनन में सहयोग करती हैं।
तितलियों की अधिकांश प्रजातियों में फेरोमोन्स उत्पन्न करना प्रणय निवेदन का तरीका है। कुछ तितलियों की प्रजाति के नरों में हेयर पेंसिल के परिवर्तित स्वरूप के रूप में पंखों पर विशेष स्केल के समूह तथा थोरेक्स पर ब्रश के समान संरचनाएँ भी पाई जाती हैं। हेयर पेंसिल के समान ही ये संरचनाएँ फेरोमोन्स के वितरण को बढ़ाने के लिए अधिक सतही क्षेत्रफल वाली विकसित हो गई हैं।

तितलियों में प्रणय निवेदन के प्रकार
तितलियों की कुछ प्रजातियों में तो प्रणय निवेदन के दौरान नर मादा के ऐंटिना को अपने पिछले पंखों से दबाकर उन पर फेरोमोन्स चिपका देते हैं। कुछ अन्य प्रजातियों में नर मादा के पास या आमने-सामने बैठकर अपने अगले पंखों के किनारों को मादा के ऐंटिना से रगड़ते हैं। फेरोमोन्स ऐंटिना पर चिपकाने के लिए अक्सर नर तितलियाँ मादा के ऊपर-नीचे उड़ती रहती हैं। नर के द्वारा मादा के ऐंटिना पर फेरोमोन्स लपेटने का कार्य केवल 30 सेकण्ड में ही पूरा हो जाता है और प्राय: हम इस प्रक्रिया का वीडियो बनाने से भी चूक ही जाते हैं। प्रजनन के लिए नर तितली के इतने प्रयास ही  पर्याप्त  होते  हैं  परन्तु  कुछ परिस्थितियों  में  मादा  इतने  सब क्रियाकलापों के बाद भी उदासीन बनी रहती है। ये वो मादाएँ होती हैं जो हाल ही के दिनों में किसी दूसरे नर से सम्भोग कर चुकी होती हैं। ऐसी मादा तितलियाँ नरों को हतोत्साहित करके रक्षात्मक उपाय अपनाती हैं। अगर नर द्वारा प्रजनन के लिए दबाव डाला जाए तो वे उड़ते हुए तेज़ी-से पंख फड़फड़ाती हैं और भागने की कोशिश करती हैं और कई बार पैर पटककर तिरस्कार भी करती हैं। ये सभी प्रकार की अनएच्छिक मुद्राएँ नर से दूरी बनाने के प्रयास होते हैं। इन्हें प्राय: असेंडिंग फ्लाइट कहते हैं।
तिरस्कृत और ठुकराया हुआ नर फिर भी प्रजनन के लिए दृढ़ रहता है। ऐसी स्थिति में हवाई प्रणय निवेदन और तिरस्कार नाटकीय अन्दाज़ में कई मिनटों तक चलता रहता है। कई बार प्रणय निवेदन में आतुर नर एवं मादा तितलियों को गौर से देखने की तुलना में, इनका झगड़ा देखना भी बहुत ही आकर्षक होता है। हवा में तितलियों के इस संघर्ष को देखकर कई बार अन्य तितलियाँ भी वैसे ही इकट्ठा हो जाती हैं जैसे सड़कों पर तमाशबीन।
यदि कोई नर मादा की खोज न कर पाए तो मादा के चटकीले रंगों वाले पंख, बल खाती उड़ने की अदाएँ तथा लुभावने फेरोमोन्स जैसे सभी प्रलोभन बेकार हैं। पर ऐसा नहीं होता क्योंकि नर तितलियाँ मादा को उड़ान के दौरान खोजती-भटकती हुई सदैव दिख जाती हैं।
अण्डे तथा लार्वा को सुरक्षा और भोजन देने वाले पौधों में छुपे हुए प्यूपा, ककून से निकलने को तैयार मादाएँ ही अक्सर ऐसे सम्भावित क्षेत्र हैं जहाँ नर नज़रें गड़ाए रहते हैं।

तितलियों की व्यवस्थित कार्यनीति
इम्प्रेस  लिलिया  नामक  तितली प्रजाति के नर बेहद व्यवस्थित रणनीति के अनुसार कार्य करते हैं। निम्फेलिडि फेमिली की यह तितली संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम भाग के साथ-साथ टेक्सास, एरिज़ोना और मेक्सिको में भी देखी जा सकती है। इस तितली के वयस्क सदस्य अपना भोजन लीद, गोबर, सड़े हुए फल तथा पेड़ों से निकलने वाले सेप से प्राप्त करते हैं। इन तितलियों का लार्वा- फीड (लार्वा जिनसे भोजन प्राप्त करते हैं) रेगिस्तानी हैक बैरी का पेड़ है जो कम उपजाऊ मिट्टी तथा रेगिस्तानी परिस्थितियों मे भी फलता-फूलता है।
इम्प्रेस लिलिया के नर हेक बैरी के पेड़ पर मादा की खोज में उड़ते रहते हैं क्योंकि इनकी मादाएँ छोटे आयुकाल में केवल एक बार ही सम्भोग करती हैं। भोर होने के कुछ घण्टों बाद ही जैसे ही नवजात परन्तु वयस्क एवं कुँवारी मादा तितली ककून से बाहर आकर पहली उड़ान की तैयारी करती  है,  तब  से  ही  नर  उनकी  सभी गतिविधियों को भाँपते रहते हैं। नर खुले मैदानों में पेड़ के पास सुबह की धूप का मज़ा लेते हुए मादा का पीछा करने के लिए शरीर को गर्म भी रखते हैं।
जैसे-जैसे दिन चढ़ता जाता है नर ज़मीन से लगभग एक मीटर ऊपर, मादाओं की उड़ान की ऊँचाई के पास किसी स्थान पर आ बैठते हैं तथा एक क्षण के लिए भी मादा को अपनी निगाहों से ओझल नहीं होने देते। नर का बैठने का कोण कैसा भी हो, इस बात का हमेशा ध्यान रखा जाता है कि विहंगम दृष्टि भी रहे और मादा नज़रों से ओझल न हो सके। प्रत्येक नर अपने इलाके की रक्षा में सारा दम लगा देता है और उसके इलाके से निकलने  वाले  प्रत्येक  कीट-पतंगे, चिड़िया या उछाले गए पत्थर पर भी आक्रमण करने से नहीं हिचकता।
प्रणय  निवेदन  के  लिए  बेहद आकर्षक रंगों से सजे पंख से लेकर प्रलोभी फेरोमोन्स तक, सभी नर तितली के गम्भीर प्रयास में सफलता सुनिश्चित करने के लिए काफी हैं। अक्सर नर तितलियों द्वारा प्रजनन के लिए युवा मादा को चयन में वरीयता देने का कारण यह है कि युवा मादा पर्याप्त लम्बे समय तक जीवित रहकर अधिक सन्तानोत्पत्ति कर सकती है।

तितलियों में शिष्टता   
प्रत्येक नर में अनुवांशिक पदार्थों को अगली पीढ़ी में भेजने की दृढ़ लालसा की पूर्ति, अपने साथी को अन्य के साथ प्रजनन करने से रोकने पर ही सम्भव है। इसलिए इम्प्रेस नर तितली और कई कीट पतंगे सम्भोग के दौरान ही बड़े आकार की मादा में पोषक तत्वों को भी मादा जननांगों में पहुँचा देते हैं। मादा में डाले गए पोषक तत्वों तथा अनुवांशिक पदार्थ को सम्मिलित रूप से स्परमेटोफोर कहा जाता है जो नर तितली के वज़न का 6-10% तक हो सकता है। एक नर ये कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकता कि उसके द्वारा दिए गए पोषक तत्वों के उपहार का उपयोग मादा अन्य प्रतिद्वन्द्वी के शुक्राणुओं से अण्डों के निषेचन में करे। इसलिए उद्विकास में उन नरों को प्राथमिकता मिली है जो सबसे पहले प्रजनन करते हैं और इसलिए मादा जननांगों में डाले गए स्परमेटोफोर के रसायन मादा को अन्य नरों से सम्भोग के लिए उदासीन बना देते हैं। अनेक वैज्ञानिक शोध के परिणाम बताते हैं कि कृत्रिम तरीके से यदि स्परमेटोफोर  को  कुँवारी  मादा  के जननांगों में डाल दिया जाए तो फिर ऐसी मादाएँ सम्भोग के लिए आतुर नहीं जान पड़तीं। परन्तु जननांगों के आसपास की तंत्रिकाओं को काट देने पर वे फिर से सम्भोग के लिए इच्छुक हो जाती हैं। नर द्वारा अपनी मादा साथी को अन्य नरों से प्रजनन करने से रोकने का एक दूसरा कम शिष्ट तरीका मादा जननांग के रास्ते को एक प्लग लगाकर बन्द कर देने का है।
मादा इम्प्रेस तितलियों पर उद्विकास के दबाव बिलकुल अलग तरीके के होते हैं। चूँकि वे केवल एक बार ही सम्भोग कर पाएँगी इसलिए नर के चयन में वे बहुत सतर्क रहती हैं। वे केवल उन्हीं नर तितलियों से सम्भोग करती हैं जिनसे उच्च गुणवत्ता वाले जीन्स, ज़्यादा अण्डे व लम्बी बेहतर सेहत बनाए रखने में मददगार पोषक तत्व प्राप्त हो रहे हों। मादा अक्सर ऐसी खूबी वाले नरों का चयन पंखों के चटकीले रंग, फेरोमोन्स तथा प्रणय निवेदन की लचकदार अदाओं को देखकर करती हैं। वैज्ञानिकों को लगता है कि कुछ विशेष प्रकार के पौधों का रस पीने से ही इम्प्रेस तितली के नरों में बेहतर प्रकार के फेरोमोन्स बनते हैं। इसलिए मादा तितलियाँ नर के फेरोमोन्स को उनकी आहार की गुणवत्ता से जोड़कर पसन्दगी या नापसन्दगी तय करती हैं। तथापि युवा और स्वस्थ साथी को पहचानने का सर्व-सामान्य तरीका पंखों के चटकीले और भड़कीले रंग ही हैं।
मनुष्यों के समान ही तितलियों में भी साथी के चयन के कुछ तरीके जहाँ गुण और व्यवहार को परखने वाले हैं तो कुछ बेहद गैर-दिलचस्प लगते हैं। तरीके सरल हों या जटिल, प्रणय निवेदन तथा प्रजनन ही वह तरीका है जिससे सभी का अस्तित्व बना रहता है तथा उद्विकास होता रहता है।

आप भी तितलियों के व्यवहार का अवलोकन करके उसे समझ सकते हैं। ज़रूरत है केवल ऐसे पौधों को उगाने की जिन पर तितलियाँ प्राय: पोषण प्राप्त करने के लिए आती हों या जिनसे उनके लार्वा को भोजन प्राप्त होता हो। जंगली लेन्टाना का पौधा इसी प्रकार का एक सामान्य उदाहरण है।
नई पीढ़ी के युवाओं में आकर्षक बनने के लिए टेटू (मांडने) का बढ़ता चलन देख रहा हूँ। सोचता हूँ कुछ प्रयोग तितलियों पर टेटू बनाकर ही करूँ। देखूँ कि क्या मादा तितलियाँ भी टेटू पसन्द करती हैं!!!


विपुल कीर्ति शर्मा: शासकीय होल्कर विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर में प्राणिशास्त्र के वरिष्ठ प्रोफेसर। इन्होंने ‘बाघ बेड्स’ के जीवाश्म का गहन अध्ययन किया है तथा जीवाश्मित सीअर्चिन की एक नई प्रजाति की खोज की है। नेचुरल म्यूज़ियम, लंदन ने इस नई प्रजाति का नाम उनके नाम पर स्टीरियोसिडेरिस कीर्ति रखा है। वर्तमान में वे अपने विद्यार्थियों के साथ मकड़ियों पर शोध कार्य कर रहे हैं। पीएच.डी. के अतिरिक्त बायोटेक्नोलॉजी में भी स्नातकोत्तर किया है।