राकेश कारपेंटर

खरगोन ज़िले   की   चार-पाँच  माध्यमिक शालाओं में सूक्ष्मदर्शी की सहायता से कोशिका के अवलोकनों पर बच्चों व शिक्षकों के अनुभवों को जानने-समझने की कोशिश की। इस काम के लिए हमने उन विद्यालयों की विज़िट की जिनके शिक्षकों के साथ कोशिका को लेकर हम पूर्व में कार्य-शालाओं में काम कर चुके थे। इन शिक्षकों ने कार्यशाला में सूक्ष्मदर्शी की सहायता से कोशिकाओं का अवलोकन किया था और ये सब कोशिका की खोज के इतिहास, विभिन्न पादप कोशिकाओं की संरचना व कार्य-प्रणाली पर चर्चा भी कर चुके थे।
स्कूल में जाकर हमने शिक्षकों से बात की और सूक्ष्मदर्शी की उपलब्धता के बारे में जाना। उनका जवाब ‘हाँ’ में ही रहता, लेकिन वे साथ ही यह भी जोड़ देते कि “लेकिन सर वह काम नहीं करता है, वह खराब है।” हम उनसे सूक्ष्मदर्शी निकलवाकर यह कोशिश करते कि उसमें कुछ देख पाएँ।
कुछ माध्यमिक शालाओं में तो हमने एक से लेकर चार सूक्ष्मदर्शी उपलब्ध पाए और उनमें से हर जगह एक तो बहुत अच्छे से काम कर रहा था। कई जगह ये सूक्ष्मदर्शी कक्षा-8 के स्तर तक की चीज़ें दिखा पाने में सक्षम थे या यूँ कहें कि प्याज़ की कोशिका का अवलोकन तो किसी-न-किसी सूक्ष्मदर्शी से हो ही जाता।
जब हम बच्चों से सवाल करते कि “इससे पहले सूक्ष्मदर्शी किस-किसने देखा है?” तो कुछ स्कूलों में तो ज़्यादातर बच्चे यही कहते कि दीवार पर टंगा चित्र देखा है और कुछ कहते कि गुरुजी ने दिखाया था, पर यह कहने वालों की संख्या बहुत कम होती। कक्षा आठवीं के बच्चों से जब बात करते कि क्या आपने सूक्ष्मदर्शी में कभी प्याज़ की कोशिका देखी है तो जवाब हमें ‘ना’ में ही मिला। जब हम उनसे कोशिका का चित्र बनाने को कहते तो वे किताब में दिया हुआ पादप कोशिका का चित्र बना देते।

बच्चों द्वारा बनाई आकृति हमेशा षटकोणीय होती थी क्योंकि किताब में पादप कोशिका को ऐसा ही दिखाया गया है। इसके बाद हम एक प्याज़, पानी, स्लाइड आदि सामग्री लाकर सूक्ष्मदर्शी में प्याज़ की झिल्ली लगा  देते और किताब में दिए हुए चित्र को भी देख लेने को कहते। बच्चे किताब में देखने के बाद एक-एक कर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से उस झिल्ली का अवलोकन करते। अपने इस अवलोकन के बाद हम उन्हें वैसा चित्र बनाने को कहते जैसा उन्होंने सूक्ष्मदर्शी की मदद से देखा है। बच्चे तुरन्त परकार और पेंसिल निकालने लगते और कुछ बार-बार रबर से मिटाकर पहले एक गोला बनाने की कोशिश करने लगते। लड़कियों के पास चूड़ी होती है, वे उससे आसानी-से गोला बना लेतीं। हम उन्हें कहते, “कोई बात नहीं, एकदम गोल नहीं बने तो कुछ नहीं। आप तो जो  देखा  है, उसका  चित्र  बना दीजिए।”

चित्रों में अन्तर
कुछ बच्चे सवाल करते, “क्या पेन से बना सकते हैं?” हम कहते, “आपको सुविधा हो तो पेन से भी बना लो।” सारे बच्चे सूक्ष्मदर्शी में देख लेने के बाद, उसका चित्र बनाने लग जाते। कॉपी में चित्र बन जाने के बाद चित्रों पर बातचीत शु डिग्री होती। “क्या सभी ने अपनी कॉपी में एक जैसा चित्र बनाया है?” बच्चों का जवाब ‘ना’ में होता है क्योंकि बच्चों द्वारा बनाए हुए चित्र बहुत अलग-अलग होते हैं। कुछ बच्चों के चित्र किताब में बने हुए चित्र जैसे ही होते हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम होती है। हम बच्चों की कॉपियाँ लेकर उनसे चर्चा करते। चर्चा किताब में दिए हुए प्याज़ की कोशिका के चित्र से शु डिग्री होती है। “क्या किताब में जैसा बना हुआ है हूबहू वैसा ही दिख रहा है?” तो बच्चे मना कर देते, “किताब जैसा नहीं दिख रहा है।” इसके बाद उनके द्वारा बनाए हुए चित्र में अन्तर के कारणों पर चर्चा होती है। जवाब में बच्चे कहते, “सबके दिमाग में फोटो अलग-अलग छपती है, इसकी वजह से अलग बनी है।” कुछ कहते हैं, “देखने में गलती हो गई है।” कुछ कहते हैं, “इन्होंने दो बार देखा है और हमने एक बार इसलिए चित्र अलग-अलग हैं।” कुल मिलाकर वे इस चर्चा के माध्यम से सूक्ष्मदर्शी में उनके द्वारा किए गए अवलोकन के अन्तर को पकड़ पा रहे थे। हम भी इस पर बात करते हैं कि हम जितने ध्यान और गौर से देखेंगे, चित्र को वैसा ही बना पाएँगे जैसा वह दिख रहा है।
हमने स्लाइड पर पानी क्यों डाला?

इसके बाद स्लाइड पर पानी डालने पर चर्चा होती है। “हमने स्लाइड पर पानी क्यों डाला?” इसके जवाब में ज़्यादातर बच्चों का जवाब था, “इस स्लाइड पर झिल्ली को चिपकाने के लिए हमने पानी डाला है।” कुछ बच्चे कहते हैं, “गीली करने के लिए।” “अगर पानी नहीं डालते तो क्या होता?” सब्ज़ी बेचने वाले का उदाहरण लिया कि वे अपनी सब्ज़ियों पर पानी क्यों छिड़कते रहते हैं या हम सब्ज़ियों को गीले कपड़े में क्यों रखते हैं। इससे वे स्लाइड पर पानी डालने के कारण को समझ पाए।
तत्पश्चात् बोर्ड पर बने पादप कोशिका के षटकोणीय आकार पर चर्चा शु डिग्री हुई। “प्याज़ की झिल्ली में हमने जो कोशिकाएँ देखीं उनका आकार तो षटकोणीय नहीं है, वे तो कुछ आयताकार या चौकोर जैसी दिख रही थीं। किताब में पादप कोशिका का चित्र षटकोणीय आकार का है और प्याज़ की कोशिका भी एक पादप कोशिका है, तो यह अन्तर क्यों?”
लेकिन मुझे भी नहीं पता था कि किताब में हमेशा षटकोणीय आकार की पादप कोशिका ही क्यों दी जाती है। इस चर्चा के बाद हमने उन्हें ग्वारपाठे की एक झिल्ली सूक्ष्मदर्शी में लगाकर दिखाई। ग्वारपाठे की झिल्ली लगाने के दो मकसद थे। एक तो इसमें कोशिकाएँ व्यवस्थित दिखाई देती हैं व केन्द्रक भी काफी स्पष्ट होता है, और दूसरा इसमें स्टोमेटा भी देखे जा सकते हैं। कोशिकाओं की आकृति भी कुछ-कुछ किताब में दी हुई षटकोणीय आकृति जैसी दिखाई देती है।
ग्वारपाठे की झिल्ली की कोशिका के अवलोकन के बाद हमने चित्र बनवाया और ज़्यादातर बच्चों ने अपने अवलोकन में षटकोणीय आकृति न बनाकर गोलाकार कोशिकाएँ बनाईं। हालाँकि जिन स्कूलों में थोड़ा बेहतर सूक्ष्मदर्शी था, वहाँ बच्चे गोलाकार आकृति नहीं बना रहे थे। लेकिन जहाँ सूक्ष्मदर्शी अच्छा नहीं था, वहाँ बच्चों को गोलाकार से षटकोणीय समझाने में दिक्कत हुई। इसके लिए हमने मोबाइल का प्रयोग किया और मोबाइल की सहायता से सूक्ष्मदर्शी में लगी स्लाइड की फोटो ली और बच्चों को दिखाई। इससे उन्हें गोलाकार और षटकोणीय में कुछ अन्तर समझ में आया।
बच्चों ने ग्वारपाठा-स्लाइड के अवलोकन के दौरान अपने चित्र में स्टोमेटा भी बनाए थे, तो झिल्ली में स्टोमेटा की स्थिति को लेकर बातचीत भी की गई।

संशय बरकरार
जब चर्चा का समापन कर रहे थे तो हमने पूछा, “हमने कोशिकाएँ देखीं?” तो बच्चों का जवाब था, “जो गोल-गोल दिख रहा है।” गोल से यहाँ उनका मतलब सूक्ष्मदर्शी से स्लाइड देखने पर जो गोला दिखता है और उसमें बहुत सारी कोशिकाएँ दिखाई देती हैं - वे इस पूरे गोले को एक कोशिका मान रहे थे।
हमने  इस  पर  सवाल  पूछा, “सूक्ष्मदर्शी के गोले में जो दिख रहा है उसमें से एक कोशिका कौन-सी  है?” बच्चों का जवाब था, “पूरा गोला एक कोशिका है।” हमने बोर्ड पर एक कोशिका का चित्र बनाया और मोबाइल से सूक्ष्मदर्शी में लगी स्लाइड की फोटो लेकर यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि पूरे गोले में जो दिख रहा है, वे बहुत सारी कोशिकाएँ हैं। इनमें जो कुछ-कुछ चौकोर या आयताकार जैसी दिख रही है, वह एक कोशिका है। हमने मोबाइल से ली फोटो को ज़ूम करके एक कोशिका की आकृति उनको दिखाई। इसके बाद मोबाइल में लगे कैमरे को सूक्ष्मदर्शी के आई-पीस पर रखकर उसको ज़ूम करके भी हमने बच्चों को एक कोशिका दिखाई  (शिक्षकों के पास उपलब्ध मोबाइल के कैमरे की गुणवत्ता काफी ठीक थी इसलिए उसमें आकृति को बड़ा करके हम केन्द्रक और कोशिका भित्ति, दोनों देख पा रहे थे)।

इस तरह शायद हम एक कोशिका की समझ बच्चों को स्पष्ट कर पाए होंगे। सूक्ष्मदर्शी की सहायता से प्याज़ की झिल्ली के अवलोकन में हमारे लिए सीखने को बहुत कुछ रहा। अक्सर हम कई बातों को बहुत आसान मान लेते थे, जैसे कि यह बात तो बच्चों को समझाई ही गई होगी, लेकिन कक्षा में कार्य के दौरान बच्चों की उलझनें और सवाल कुछ और ही होते हैं। कुछ सवाल ऐसे थे जिनके जवाब हमारे पास भी नहीं थे। कक्षा में जब हम कार्य कर रहे थे तो इस पूरी प्रक्रिया में शिक्षिका भी हमारे साथ थीं। उन्होंने कक्षा में ही बच्चों से कहा, “देखो पादप कोशिका का आकार षटकोणीय होता है न, किताब में पढ़ाया था न!” बच्चों ने भी एक स्वर में ‘हाँ’ कहा। लेकिन हमारी और बच्चों की समस्या तो यह थी कि आज हमने सूक्ष्मदर्शी में प्याज़ की जो झिल्ली देखी, उसकी कोशिकाओं का आकार तो कुछ-कुछ चौकोर या आयताकार जैसा था। और प्याज़ भी एक पादप ही है। अब हम और बच्चे इसे कैसे समझें कि सभी पादप कोशिकाएँ षटकोणीय होती हैं?


राकेश कारपेंटर: अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, खरगोन में कार्यरत।
सभी चित्र: अंकिता ठाकुर: राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान, अहमदाबाद से ग्राफिक डिज़ाइन में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही हैं। बाल साहित्य और चित्रों में दिलचस्पी रखती हैं।