अम्बरीष सोनी

अपने जन्म के समय ज़्यादातर स्तनधारी बड़े ही लाचार और असहाय होते हैं। उनके अंग पूरी तरह से सक्रिय नहीं हुए होते। उदाहरण के लिए कुत्ते के पिल्लों की आँखें जन्म के कुछ दिन बाद सिलसिलेवार अपना काम शुरू करती हैं। ऐसे हालात में अधिकांश स्तनधारियों को अपने शिशुओं की कई हफ्ते या महीने, यहाँ तक कि बरसों परवरिश करनी पड़ती है यानी आवास, भोजन और सुरक्षा उपलब्ध करानी पड़ती है। जब शिशु अपनी देखभाल में सक्षम हो जाते हैं तो यह साया भी खुद-ब-खुद हट जाता है।

अफ्रीका के मैदानी इलाकों में पाए जाने वाले ज़ेबरा और जिराफ जैसे कुछ स्तनधारियों के लिए परिपक्व होने की यह धीमी प्रक्रिया प्राण घातक सिद्ध हो सकती है क्योंकि यहाँ तो मांसाहारी जानवर ऐसे दुर्बल और असहाय शिशुओं पर घात लगाए होते हैं। ऐसी जगहों में स्वयं का अस्तित्व बचाए रखने के लिए ज़रूरी है कि शिशु जल्द ही सक्षम हो जाएँ। हिरण और ऐसे अन्य शाकाहारी जानवरों के नवजात को भी सावधान रहना होता है, इसीलिए इनके नवजात खुली आँखों वाले और पूरी तरह बालों से ढके हुए होते हैं जिनकी टाँगें लगभग दौड़ने के लिए तैयार होती हैं।

जन्म लेने के 20 मिनट पश्चात् ही शिशु जिराफ स्तनपान करने और चलने में सक्षम हो जाता है। करीब दो घण्टे के बाद ही वह 30 मील प्रति घण्टे की रफ्तार से चलकर झुण्ड में शामिल हो सकता है। दो से तीन हफ्तों के भीतर ही वह स्तनपान त्याग कर हरी पत्तियों और कम ऊँचाई वाली वनस्पतियों पर स्वयं को ज़िन्दा रखना सीख जाता है।

पर्यावरणविद् मॉर्मन मेयर्स ने ज़ेबरा के विषय में भी कुछ रोचक जानकारी दी है। वो एक नवजात ज़ेबरा के बारे में बताते हैं- “उसके जन्म को अभी सवा छह मिनट ही हुए होंगे, वह अपनी पूरी ऊँचाई से धम्म से गिरा, अब एक और समस्या - वह कैसे खड़ा हो पाएगा? उसकी पतली और कमज़ोर टाँगें जैसे यह फैसला लेने का प्रयास कर रही हों कि क्या वे खड़ी रह पाएँगी। अपने जीवन के आठ मिनट बाद ही वह अचानक अपने चारों पैरों पर चलने लगा। चन्द मिनटों में वह लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ अपनी माँ के साथ झुण्ड में शामिल होने के लिए बढ़ गया।”

लेकिन इतना सब होने के बाद भी शिकारी अपने इरादों में कामयाब हो ही जाते हैं। इन तेज़ दौड़ने वालों में भी कुछ धीमें जो साबित होते हैं।


संकलन: अम्बरीष सोनी: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।
‘लाइफ - द मैमल्स’ पुस्तक पर आधारित।