सवालीराम

सवाल: रात के समय आसमान में दिखने वाले तारे अलग-अलग रंगों के दिखते हैं। तारों के रंगों में फर्क क्यों होता है?
जवाबः इस सवाल का एक संक्षिप्त जवाब तो यही होगा कि चूंकि तारों का तापमान भिन्न-भिन्न होता है इस लिए उनका रंग भी फर्क होता है। यानी तारों के तापमान और हमें दिखने वाले उनके रंगों में कुछ संबंध ज़रूर है।
यह हमारा काफी जाना पहचाना सा अनुभव है कि किसी धातु को अलग-अलग तापमान पर गर्म किया जाए तो वो अलग-अलग रंगों का प्रकाश पैदा करती है। संवेदनशील तापमापियों की मदद से धातुओं के तापमान और उनके द्वारा प्रदर्शित रंगों की तालिका बनाने पर पाया गया है कि किसी खास तापमान पर धातु एक खास रंग का प्रकाश उत्सर्जित करती है जैसेः 

मंद लाल        175° सेल्सियस
मटमैला लाल  600" सेल्सियस
सुर्ख लाल     700" सेल्सियस हल्का
तेज़ लाल     850° सेल्सियस
नारंगी   900" सेल्सियस
पीला       1000° सेल्सियस
नीला-सफेद 1150° सेल्सियस से ऊपर।

 इससे यह बात तो साफ हुई कि अलग-अलग तापमान पर एक ही धातु या विविध धातुएं कोई खास रंग दिखाती हैं।
जिस तरह अभी हमने धातुओं के रंगों को आधार मानकर उनके तापमान का अनुमान लगाया, उसी तरह तारों के रंगों के आधार पर उनके सतह के तापमान का अंदाज़ लगाया जाता है जैसे

पीला रंग   तापमान 580) केल्विन (सूर्य या ऐसे ही कुछ अन्य तारे)
लाल रंग तापमान 400) केल्विन (सूर्य से कम गरम।)
नीलापन लिए हुए सफेद रंग 8000 केल्विन (सूर्य से ज्यादा गरम।)

इन रंगों के आधार पर हम मोटेतौर पर कह सकते हैं कि वे तारे जो हमारी आंखों को लाल दिखाई देते हैं, वे अपेक्षाकृत रूप से ठंडे या कम गरम हैं।
वे तारे जो हमें पीले दिखाई देते हैं वे मध्यम गरम हैं और जो तारे नीलापन लिए हुए सफेद दिखाई देते हैं वे सबसे ज्यादा गरम हैं।
 
आप भी आसमान में नज़र दौड़ा कर देखिए क्या आपको ऐसे तारे दिखाई दे रहे हैं?
आंखों से दिखने वाले रंगों के साथ एक छोटी-सी दिक्कत सामने आती है, वह है - हमारी आंखों और तारे के बीच मौजूद वायुमंडल।
कई बार तो वायुमंडल से होकर आने वाले प्रकाश के रंगों में खासे बदलाव नज़र आते हैं। जैसे आपने गौर किया होगा कि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सुरज का रंग संतरे जैसा लाल होता है। उसी सूरज का रंग दोपहर के समय पीला होता है। यदि ऊपर दी गई रंगों की तालिका का उपयोग करें तो सुबह और शाम के समय सूरज की सतह का तापमान 4000 केल्विन है और दोपहर के समय 5800 केल्विन! क्या आपको लगता है ऐसा संभव है?
वायुमंडल की इन बाधाओं को ध्यान में रखते हुए या तो जगह व समय के अनुसार तारे का जो रंग दिख रहा है उसमें करेक्शन यानी सुधार करना पड़ता है, या फिर ऐसी जगह ढूंढनी पड़ती है जहां वायुमंडल का असर न्यूनतम हो।
इसलिए आमतौर पर खगोल विज्ञान के अध्ययन के लिए वेधशालाएं ऊंचे पहाड़ों पर बनाई जाती हैं जहां वायुमंडल अपेक्षाकृत रूप से विरल होता है। इस सबके बावजूद चाहे आप तारों को किसी टेलिस्कोप से देख रहे हों या तारे का अध्ययन इंफ्रारेड पायरोमीटर से कर रहे हों, वायुमंडल थोड़ी-बहुत बाधा तो डालता ही है। इसीलिए पृथ्वी से अच्छी खासी दूरी पर स्थापित हब्बल टेलिस्कोप का अपना ही महत्व है।