आर.के. नारायण

स्वामीनाथन अपने पिताजी के कमरे में, हाथ में स्लेट और पिन्सिल लिए कुर्सी पर तैयार बैठा था। पिताजी ने गणित की किताब खोली और एक सवाल लिखवाया, “राम के  पास दस आम हैं जिनसे वो पन्द्रह आने कमाना चाहता है। किशन को केवल चार आम चाहिए। किशन को कितने पैसे देने पड़ेंगे?

स्वामीनाथन सवाल की तरफ घूरने लगा। वो उसे जितनी बार भी पढ़ता, सवाल उसके लिए एक नया ही मतलब ले लेता। उसे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे वो एक डरावनी भूल-भुलैयां में फंसता जा रहा हो।

आमों के बारे में सोचकर उसके मुंह में पानी आने लगा। स्वामी सोचने लगा कि राम ने आखिर दस आमों का दाम पन्द्रह आने क्यों तय किया होगा? किस तरह का आदमी था राम? शायद वो उसके दोस्त शंकर जैसा ही लगता है कि वो शंकर जैसा ही रहा होगा, अपने दस आम और उनसे पन्द्रह आने कमाने के दृढ संकल्प के साथ। अगर राम, शंकर की तरह था तो किशन बेचारा उसके दोस्त की तरह होगा जिसे सब ‘मटर’ कहकर पुकारते थे। यह सोच स्वामीनाथन में किशन के प्रति जाने क्यों एक दया की भावना उमड़ पड़ी।

“क्या तुमने सवाल हल कर लिया?” पिताजी ने अखबार के ऊपर से झांकते हुए पूछा।

“पिताजी, यह बताइए क्या वे आम पके हुए थे?

पिताजी ने थोड़ी देर उसको गौर से देखा और अपनी मुस्कान दबाते हुए बोले, “पहले सवाल कर लो। यह मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा कि फल पके थे या नहीं।”

स्वामीनाथन अब बहुत ही असहाय महसूस कर रहा था। पिताजी केवल यही बता देते कि राम पके हुए फल बेचने की कोशिश कर रहा था या कच्चे वाले। बाद में पता चलने से उसको इस जानकारी से क्या हासिल होगा, भला? उसको पक्का विश्वास हो गया था कि इस मुद्दे में ही सारे फसाद का हल था। दस कच्चे आमों के लिए पन्द्रह आनों की अपेक्षा करना ही सरासर अन्याय था। पर अगर वो ऐसा कर भी रहा था तो यह राम के व्यक्तित्व के काफी अनुकूल लग रहा था, जिसे स्वामीनाथन अब काफी नफरत की दृष्टि से देखने लगा था और दुनिया की सारी बुराईयों से भरा हुआ पा रहा था।

“पिताजी, मैं यह सवाल नहीं कर सकता।” स्वामीनाथन स्लेट को दूर सरकाते हुए बोला।

“आखिर तुम्हारी समस्या क्या है? क्या तुम सरल अनुपात का एक आसान-सा सवाल भी हल नहीं कर सकते?”

“हमें स्कूल में इस तरह की चीज़ नहीं सिखाई जाती।”

“चलो स्लेट इधर लाओ। मैं अब तुमसे ही जवाब निकलवाऊंगा।”

स्वामीनाथन उत्सुकता के साथ इस चमत्कार की प्रतीक्षा करने लगा। पिताजी ने सवाल को क्षण भर के लिए निहारा और स्वामीनाथन से पूछा, “दस आमों का दाम क्या होगा?”

“मुझे नहीं मालूम।”

“तुम अव्वल नंबर के मूर्ख मालूम होते हो। सवाल को ध्यान से पढ़ो। चलो, बताओ राम दस आमों के लिए कितने पैसे मांग रहा है।”

‘ज़ाहिर है, पन्द्रह आने’ स्वामीनाथन ने सोचा, परन्तु इतना दाम उचित दाम कैसे हो सकता था? राम के लिए तो लालच में आकर इतने की अपेक्षा करना ठीक था। पर क्या यह सही दाम था? और ऊपर से यह बात भी तो अस्पष्ट थी कि आम पके थे। या कच्चे। अगर वो पके हुए थे तो पन्द्रह आने अनुचित मूल्य नहीं था। काश, केवल इस विषय पर थोड़ा और प्रकाश पड़ जाता!

“कितने पैसे चाहिए राम को अपने आमों के लिए? ”

“पन्द्रह आने। स्वामीनाथन ने बिना आत्मविश् वास धीरे-से जवाब दिया। ”

“शाबाश! अब बताओ किशन को कितने आम चाहिए? ”

“चार। ”

“चार आमों का दाम क्या होगा? ”

लग रहा था कि पिताजी को उसे सताने में काफी मज़ा आ रहा था1 पर वह कैसे पता के कि वो बेवकूफ किशन कितने पैसे देगा?

“देखो लड़के, मेरा मन तो कह रहा है कि तुम्हें पीट दूं। क्या भूसा भरा है तुम्हारे दिमग में? दस आमों का दाम अगर पन्द्रह आने है तो एक का दाम क्या होगा? चलो, जल्दी बताओ। अगर नहीं बताओगे तो..... ”  उन्होंने स्वामीनाथन का कान पकड़ा और उसे हल्के से मरोड़ा। स्वामीनाथन बेचारा तो अपना मुंह इसलिए नहीं खोल पा रहा था क्योंकि उसे इस बात का कतई भी इल्म न था कि सवाल का जवाब आखिर है कहां - जोड़ में, घटा में, गुणा में या फिर भाग में। जितना समय वो हिचकने में लगा रहा था उतना ही उसके कान पर ज़ोर बढ़ता चला जा रहा था। अंत में भौहें ताने हुए पिताजी को जवाब में अपने लड़के से एक सिसकी की सुनाई दी।

“मैं तुम्हें तब तक नहीं छोडूंगा जब तक तुम मुझे यह नहीं बताओगे कि एक आम का दाम क्या होगा, अगर दस का दाम पन्द्रह आने है।

क्या हुआ है पिताजी को? स्वामीनाथन अपने आंखें झपकता रहा। आखिर ऐसी जल्दी भी क्या भी थी दाम पता लगाने की। खैर फिर भी अगर उन्हें इतना ही उतावलापन था तो उसे परेशान करने के बजाय जाकर पता लगा लेते। दुनिया के सारे राम और किशनों का, आम की बेतुकी संख्याओं और पैसों के भाग के साथ अंतहीन लेन-देन अब काफी वीभत्स हो चला था।

पिताजी ने अपनी हार स्वीकार करते हुए ऐलान किया, “एक आम का दाम है पन्द्रह बटे दस आने। अब इसे हल करो।”

यहां स्वामीनाथन गणित के सबसे पेचीदा खाइयों की तरफ ले जाया जा रहा था - यानी भिन्न संख्याओं के आधार पर सोचने के लिए उसे मजबूर किया जा रहा था।

“पिताजी, लाओ मुझे स्लेट दो। मैं अभी पता लगाता हूं।” उसने दिमाग लगाया और पन्द्रह मिनट पश्चात यह पतालगाया: “एक आम का दाम है तीन बटा दो आने।” उसे किसी भी क्षण गलत साबित होने की पूरी संभावना लग रही थी। परन्तु पिताजी बोले, “बहुत अच्छे। अब इसे और आगे हल करो।” उसके बाद तो सब कुछ बहुत सहज हो गया। स्वामीनाथन ने एक और कष्टदायक आधा घंटा बिताने के बाद जवाब दिया: “किशन को छह आने देने पडेंगे।” यह कहते हीवो फूट-फूट के रोने लगा।


आर.के.नारायण की किताब स्वामी एण्ड हिज़ फ्रेड्स के ग्यारहवें अध्याय के एक अंश का अनुवाद। मूल किताब अंग्रेज़ी में। अनुवाद - पल्लवी कुमार।

सूर्य ग्रहण के समय

कुछ देखने लायक नज़ारे

  1. संपर्क बिन्दु: सूर्य ग्रहण की शुरूआत के समय और खत्म होने पर जहां सूर्य और चंन्द्रमा हमें एक-दूसरे को छूते हुए नज़र आते हैं, वे बिन्दु। ग्रहण की ठीक-ठीक अवधि का पता तो चलता ही है इनसे, पर उसके अलावा भी और बहुत-से अवलोकनों के लिए इनका महत्व होता है।
  2. परछाई की पट्टियां: पूर्ण सूर्य ग्रहण के थोड़ा पहले और बाद में पृथ्वी की सतह पर परछाई और रोशनी की पट्टियां नज़र आती हैं। पृथ्वी के वायुमंडल की विभिन्न परतों के घनत्व में अतंर की वजह से ये पट्टियां दिखाई देती हैं।
  3. मोती जैसी रचनाएं: पूर्ण सूर्य ग्रहण से ठीक पहले या ग्रहण के दौरान या फिर ग्रहण के दौरान या फिर ग्रहण के खत्म होते वक्त अगर सूर्य की किरणें चंद्रमा की किन्हीं खाइयों-घाटियों में से निकलकर हम तक पहुंच रही हों