शिकारियों से बचने या शिकार करने के लिए कई सारे जीव तरह-तरह से रूप बदलते हैं। इसी क्रम में शोधकर्ताओं ने रोव बीटल की एक नई प्रजाति की खोज की है जो वास्तविक दीमकों को मूर्ख बनाने के लिए अपनी पीठ पर दीमक की प्रतिकृति विकसित कर लेती है। यह प्रतिकृति इतनी सटीक होती है कि इसमें दीमकों के शरीर के विभिन्न हिस्से भी दिखाई देते हैं: इसमें तीन जोड़ी छद्म उपांग भी होते हैं जो वास्तविक दीमकों के स्पर्शक और टांगों जैसे लगते हैं।
जीव जगत में स्टेफायलिनिडे कुल की रोव बीटल्स वेष बदल कर छलने के लिए मशहूर हैं। मसलन, उनकी कुछ प्रजातियां सैनिक चींटियों की तरह वेश बदलकर उनके साथ-साथ चलती हैं और उनके अंडे और बच्चों को खा जाती हैं।
ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी क्षेत्र में मिट्टी के नीचे पाई जाने वाली रोव बीटल की नई प्रजाति, ऑस्ट्रोस्पाइरेक्टा कैरिजोई, अपने उदर को बड़ा करके दीमक की नकल करती है। इसे फिज़ियोगैस्ट्री कहा जाता है। ज़ुओटैक्सा नामक पत्रिका में शोधकर्ता बताते हैं कि विकास ने इन बीटल्स के शरीर के ऊपरी हिस्से पर दीमक के समान सिर व बाकी सभी अंग, विकसित कर दिए हैं। बीटल का असली, बहुत छोटा सिर उसके छद्म वेश के नीचे छिपा रहता है।
इस छलावरण से बीटल दीमकों के समूह में पहचाने जाने से बच जाती हैं - हालांकि दीमक अंधी होती हैं, वे एक-दूसरे को स्पर्श से पहचानती हैं। दीमकों जैसी आकृति दीमक होने का ही एहसास देती है। दीमकों के समूह में जाकर ये बीटल उनका अद्वितीय उपचर्मीय हाइड्रोकार्बन मिश्रण भी सोख लेते हैं या इसी तरह के यौगिक स्वयं बनाने लगते हैं ताकि ऐसा पक्के में लगने लगे कि वे दीमक ही हैं।
चूंकि ए. कैरिजोई का मुंह छोटा होता है, इसलिए शोधकर्ताओं को लगता है कि वे दीमकों के अंडे या लार्वा खाने की बजाय उनसे भोजन मांगते हैं। श्रमिक दीमक भोजन के आदान-प्रदान (ट्रोफालैक्सिस) द्वारा भोजन या अन्य तरल अपने साथियों को खिलाते हैं। बीटल के इस छलावरण का मंतव्य साफ है, बस दीमक बनकर उनके समूह में बस जाओ और आराम से भोजन पाओ। (स्रोत फीचर्स)