इस वर्ष कोविड-19 टीकों को नोबेल पुरस्कार मिलने की अपेक्षा की जा रही थी। लेकिन नोबेल समिति ने विश्व भर में अनगिनत लोगों की जान बचाने वाले टीकों पर किए गए शोध कार्य पर विचार नहीं किया। हर बार की तरह इस बार भी विज्ञान में बुनियादी शोध को पुरस्कृत किया गया। इस निर्णय पर कई वैज्ञानिकों ने आश्चर्य और निराशा व्यक्त की है, खासकर mRNA तकनीक का उपयोग करते हुए एक नए प्रकार के टीके विकसित करने से सम्बंधित शोध को शामिल न करने पर।
इस विषय में सीएटल स्थित युनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के कोशिका जीव विज्ञानी एलेक्सी मर्ज़ ने कहा है कि इस वर्ष नोबेल पुरस्कार समितियों को इस महामारी के दौरान वैश्विक स्वास्थ्य प्रयासों को पुरस्कृत करना चाहिए था। मर्ज़ इसे समिति की लापरवाही के रूप में देखते हैं जो भविष्य में हानिकारक हो सकती है।
लेकिन नोबेल समितियों के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो वक्त, तकनीकी बारीकियों और राजनीति के लिहाज़ से कोविड टीकों को पुरस्कार मिलना संभव नहीं लग रहा था। अलबत्ता, इस योगदान के लिए जल्द ही सकारात्मक नोबेल संकेत प्राप्त हो सकते हैं।
मसलन, स्टॉकहोम स्थित रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज़ के महासचिव ग्योरान हैंसों mRNA आधारित टीकों के विकास को एक अद्भुत सफलता के रूप में देखते हैं जिसके मानव जाति पर बहुत सकारात्मक परिणाम हुए हैं और इसके लिए वे वैज्ञानिकों के बहुत आभारी हैं। वे भविष्य में इस खोज के लिए नामांकन की उम्मीद रखते हैं।
समस्या वक्त की है। इस वर्ष के नोबेल पुरस्कारों के लिए नामांकन 1 फरवरी तक जमा करना थे। लेकिन mRNA टीके इसके दो महीने से अधिक समय बाद उपयोग में लाए गए। कुछ अन्य टीकों ने नैदानिक परीक्षणों में अपनी प्रभाविता भी साबित की लेकिन तब तक महामारी पर इनका प्रभाव पूरी तरह स्पष्ट नहीं था।
नोबेल पुरस्कारों का इतिहास भी mRNA आधारित टीकों के पक्ष में नहीं रहा। पिछले कुछ वर्षों से किसी आविष्कार/खोज और पुरस्कार के बीच की अवधि बढ़ती गई है। वर्तमान में यह औसतन 30 वर्षों से अधिक हो गई है।
प्रायोगिक mRNA टीकों का सबसे पहला परीक्षण 1990 के दशक के मध्य में हुआ था जबकि 2000 के दशक तक टीकों पर खास प्रगति नहीं हुई थी। और इस वर्ष (2020-21) तक इस प्रौद्योगिकी के प्रभाव ठीक तरह से स्पष्ट नहीं हुए थे।
अलबत्ता, ब्लूमिंगटन स्थित इंडियाना युनिवर्सिटी नेटवर्क साइंस इंस्टिट्यूट के भौतिक विज्ञानी और निदेशक सैंटो फार्चूनेटो के अनुसार प्रमुख खोजों को अपेक्षाकृत जल्दी पुरस्कृत किया गया है। जैसे गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज को ही लें। अल्बर्ट आइंस्टाइन ने गुरुत्वाकर्षण तरंगों के अस्तिव की भविष्यवाणी 1915 में की थी लेकिन शोधकर्ताओं को इन तरंगों का पता लगाने में एक सदी का समय लग गया। शोधकर्ताओं ने इस खोज की घोषणा फरवरी 2016 में की थी और 2017 में इसे भौतिकी नोबेल पुरस्कार दे दिया गया था।
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि नोबेल पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जो ऐसा बुनियादी शोध कार्य करते हैं जिनकी मदद से एक नहीं, कई समस्याओं को हल किया जा सकता है। शायद भविष्य में जब mRNA टीका तकनीक अन्य संक्रमणों के विरुद्ध प्रभावी साबित हो और नोबेल समिति पुरस्कार देने पर विचार करे। वास्तव में नोबेल समिति नवीनतम प्रगतियों के बजाय उन शोध कार्यों को पुरस्कृत करने में रुचि रखती है जो समय की कसौटी पर खरे उतरते हैं।
बहरहाल, नोबेल पुरस्कार न सही, कोविड-19 टीकों को कई प्रमुख वैज्ञानिक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। हाल ही में 30 लाख अमेरिकी डॉलर के ब्रेकथ्रू पुरस्कार से दो वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया जिन्होंने mRNA अणु में ऐसे संशोधन किए जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को mRNA के विरुद्ध शांत करने में सक्षम थे। यह तकनीक टीकों के लिए काफी महत्वपूर्ण रही है। इन्हीं दोनों शोधकर्ताओं ने लास्कर पुरस्कार भी जीता है। इन पुरस्कार को कुछ लोग भविष्य के नोबेल पुरस्कार के तौर पर देखते हैं। फिर भी नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित होने से पहले अभी कोविड-19 टीकों के लिए कई अन्य पुरस्कार प्रतीक्षा कर रहे हैं।
वैज्ञानिकों का ऐसा भी मानना है कि यदि टीकों को नोबेल पुरस्कार देना है तो समिति को कई शोधकर्ताओं द्वारा किए गए कार्य के विषय में कुछ कठिन निर्णय लेने होंगे कि पुरस्कार के लिए किसे चुना जाए। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि इस पुरस्कार के हकदार कौन हैं। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - December 2021
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