ज़्यादातर गिलहरियां ठंड के मौसम के लिए अपने घोसलों में पहले से भोजन की व्यवस्था करके रखती है और सर्दियां अपने घोसले में ही बिताती हैं। लेकिन यू.एस. मिडवेस्ट में पाई जाने वाली तेरह धारियों वाली एक गिलहरी (Ictidomys tridecemlineatus) ऐसा करने की बजाय ठंड बढ़ने पर शीतनिद्रा (हाइबरनेशन) में चली जाती है। इसकी शीतनिद्रा की अवधि लगभग आठ महीने की होती है जो प्राणि जगत में सबसे लंबी अवधि है। और वैज्ञानिकों ने अब यह पता लगा लिया है कि वह भोजन-पानी के बगैर इतनी लंबी शीतनिद्रा कैसे कर पाती है।
शीतनिद्रा करने वाले भालू जैसे अन्य जीवों की तरह हाइबरनेशन के दौरान गिलहरी के दिल की धड़कन, चयापचय प्रक्रिया और शरीर का तापमान नाटकीय रूप से बहुत कम हो जाते हैं। इस दौरान गिलहरी अपनी प्यास को दबाए रखती है, जिसका एहसास होने पर वे शीतनिद्रा की अवस्था से जाग सकती हैं। लेकिन वे अपनी प्यास पर काबू कैसे रख पाती हैं? इस बात का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने दर्जनों गिलहरियों के रक्त सीरम को जांचा। सीरम रक्त के तरल अंश को कहते हैं। उन्होंने गिलहरियों को तीन समूहों में बांटा। एक समूह में गिलहरियां सक्रिय अवस्था में थीं, दूसरे समूह की गिलहरियां मृतप्राय शीतनिद्रा की अवस्था थीं, जिसे तंद्रा कहते हैं और तीसरे समूह की गिलहरियां शीतनिद्रा और सक्रियता के बीच की अवस्था में थीं।
सामान्य तौर पर मनुष्यों सहित सभी जानवरों में प्यास का एहसास सीरम गाढ़ा होने पर होता है। येल विश्वविद्यालय की लीडिया हॉफस्टेटर और साथियों द्वारा किए गए इस अध्ययन में शीतनिद्रा अवस्था की गिलहरियों में सीरम कम गाढ़ा पाया गया जिसके उन्हें प्यास का एहसास नहीं हुआ और वे सोती रहीं। यहां तक कि शोधकर्ताओं द्वारा जगाए जाने पर भी इन गिलहरियों ने एक बूंद भी पानी नहीं पिया। लेकिन जब शोधकर्ताओं ने उनके सीरम की सांद्रता बढ़ाई तो उन्होंने पानी पिया।
इसके बाद शोधकर्ता यह जानना चाहते थे कि शीतनिद्रा के दौरान गिलहरियों का सीरम इतना पतला कैसे हो जाता है? उनका अनुमान था कि शीतनिद्रा में जाने के पहले गिलहरियां ढेर सारा पानी पीकर अपने खून को पतला रखती होंगी। लेकिन सर्दियों में गिलहरियों द्वारा शीतनिद्रा अवस्था में जाने की पूर्व-तैयारी के वक्त बनाए गए वीडियो में दिखा कि आश्चर्यजनक रूप से इस दौरान तो गिलहरियों ने सामान्य से भी कम पानी पिया।
रासायनिक जांच में पता चला कि वे अपने रक्त में सीरम की सांद्रता पर नियंत्रण सोडियम जैसे इलेक्ट्रोलाइट और ग्लूकोज़ और यूरिया जैसे अन्य रसायनों को हटाकर करती हैं। वे इन्हें शरीर में अन्यत्र कहीं (संभवत:) मूत्राशय में एकत्रित करती हैं। यह अध्ययन करंट बॉयोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - December 2019
- बैक्टीरिया की मदद से मच्छरों पर नियंत्रण
- पहले की तुलना में धरती तेज़ी से गर्म हो रही है
- एक जेनेटिक प्रयोग को लेकर असमंजस
- चांदनी रात में सफेद उल्लुओं को शिकार में फायदा
- पक्षी एवरेस्ट की ऊंचाई पर उड़ सकते हैं
- पदचिन्हों के जीवाश्म और चलने-फिरने का इतिहास
- कई ततैयों को काबू में करती है क्रिप्ट कीपर
- शीतनिद्रा में बिना पानी कैसे जीवित रहती है गिलहरी
- स्वास्थ्य सम्बंधी अध्ययन प्रकाशित करने पर सज़ा
- अमेज़न में लगी आग जंगल काटने का नतीजा है
- प्लास्टिक का प्रोटीन विकल्प
- स्थिर विद्युत का चौंकाने वाला रहस्य
- भारत में ऊर्जा का परिदृश्य
- गुणवत्ता की समस्या
- प्रकाश व्यवस्था: लोग एलईडी अपना रहे हैं
- वातानुकूलन: गर्मी से निपटने के उपाय
- अन्य घरेलू उपकरण
- खाना पकाने में ठोस र्इंधन बनाम एलपीजी
- पानी गर्म करने में खर्च ऊर्जा की अनदेखी
- सार-संक्षेप
- क्षयरोग पर नियंत्रण के लिए नया टीका
- हड्डियों से स्रावित हारमोन
- दृष्टिहीनों में दिमाग का अलग ढंग से उपयोग
- समस्याओं का समाधान विज्ञान के रास्ते
- क्या शिक्षा प्रणाली भारत को महाशक्ति बना पाएगी?
- व्याख्यान के दौरान झपकी क्यों आती है?
- नई खोजी गई ईल मछली का ज़ोरदार झटका
- क्या रंगों को सब एक नज़र से देखते हैं