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Sandarbh - Issue 129 (July-Aug 2020)
- विषाणु: उधार की ज़िन्दगी या फिर जैव-विकास के अनोखे खिलाड़ी
- हाथ धोने को लेकर
- प्लेग का टीका, हाफकिन और बोतल नम्बर 53 N
- QED: सत्य की तलाश
- प्रकाश की गति, ईथर और सटीक मापन
- होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम में कमलनयन चांदनीवाला के विज्ञान किट में योगदान को नहीं भुलाया जा सकेगा
- एक दिन मन्ना डे
- सवालीराम-129
Sandarbh - Issue 129 (July-Aug 2020)
1 विषाणु: उधार की ज़िन्दगी या फिर जैव-विकास के अनोखे खिलाड़ी – चेतना खांबेटे
आम तौर पर हम वायरस के बारे में ज़्यादा सोच-विचार नहीं करते। लेकिन इस बार कोविड-19 जो कोरोना नाम से ज़्यादा जाना जाता है – ने वायरस के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है। कहने को वायरस अपने आप प्रजनन नहीं कर सकता किन्तु जब यह एक अतिसंवेदनशील कोशिका को संक्रमित करता है तो उस कोशिका की यंत्रावली को अधिक वायरस उत्पन्न करने के लिए निर्देशित कर सकता है। मुख्य रूप से, वायरस संसर्ग प्रभाव के कारण प्रतिष्ठित है। बीमारी और मृत्यु की व्यापक घटनाओं में इस तरह की प्रतिष्ठा पर कोई सन्देह नहीं है।
हालाँकि, वायरस निश्चित रूप से वैज्ञानिकों और चिकित्सा पेशेवरों के लिए शत्रु हैं, परन्तु ये कई शोधकार्य में महत्वपूर्ण रहे हैं जैसे प्रोटीन संश्लेषण की यांत्रिकी, बुनियादी सेल्युलर प्रक्रियाओं की समझ इत्यादि को समझने में। आइए, करते हैं वायरस की अद्भुत दुनिया की सैर।
2 हाथ धोने को लेकर – अतुल गवांडे
हाल के कोरोना वायरस प्रकोप के प्रकाश में, सार्वजनिक स्वास्थ्य दिशा-निर्देश लगातार इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि उचित तरीके से हाथ धोना ही हमारे हाथों से कीटाणुओं और हानिकारक जीवाणुओं को हटाने का सबसे प्रभावी तरीका है। अक्सर वायरल संक्रमण को रोकने के लिए, डॉक्टर हाथ की स्वच्छता का अभ्यास करने का सुझाव देते हैं। वायरस संक्रमण के डर से ही सही, काफी लोग हाथों की सफाई को महत्व दे रहे हैं।
चिकित्सा सेवाओं में काम करने वाले लोगों के हाथ धोने को लेकर क्या अनुभव रहे हैं -- क्या चिकित्सालयों में सभी लोग आसानी-से हाथों को सेनेटाइज़र से बार-बार साफ करने के लिए तैयार हो गए थे या वे पानी से हाथों को धोना ही पर्याप्त मानते थे? ऐसे ही कुछ अनुभव हैं इस लेख में। तो आइए, हाथ धोने की अवधारणा को इस विस्तृत लेख में समझने की कोशिश करते हैं।
3 प्लेग का टीका, हाफकिन और बोतल नम्बर 53 N – माधव केलकर
भारत में सौ-डेढ़ सौ साल पहले प्लेग नामक महामारी फैली थी जिसकी रोकथाम के लिए टीका बनाने और प्लेग से सुरक्षा दिलवाने की पहल यूक्रेनियाई मूल के वैज्ञानिक व्लादिमीर हाफकिन ने की थी। इस लेख के माध्यम से पढ़ते हैं इस टीके के पीछे गठित कहानी को।
4 QED: सत्य की तलाश: भाग 3 – शेषागिरी केएम राव
शिक्षा वास्तव में एक दूसरी दुनिया को मुमकिन बनाने का शुरुआती बिन्दु है और शिक्षण खुद को शिक्षित करने का बढ़िया तरीका है। उक्त लेख के माध्यम से पढ़ते- समझते हैं कि कैसे एक अच्छा गणित शिक्षक (उनके गुरू) लेखक की शिक्षण शैली में परिवर्तन ला पाया और गणित की समझ को विद्यार्थियों तक पहुँचाने में सहायक बना। पढ़ते हैं इस श्रृखंला के दूसरे लेख को।
5 प्रकाश की गति, ईथर और सटीक मापन: भाग 3 – अंजु दास मानिकपुरी
प्रस्तुत लेख प्रकाश की चाल ज्ञात करने हेतु हुए विभिन्न शोध और उसकी प्रकृति पर चर्चा करता है। यह लेख इस श्रृंखला का तीसरा और आखिरी भाग है। पिछले दो भागों में हमने पढ़ा कि प्रकाश की चाल अनन्त नहीं है और भिन्न-भिन्न माध्यम में प्रकाश की चाल कैसी होती है। फिर सवाल उठा कि प्रकाश की चाल ईथर माध्यम में क्या होगी और क्या ऐसा कोई माध्यम है भी कि नहीं? तो पढ़ते हैं इस भाग में कि इस सवाल का जवाब ज्ञात करने के लिए क्या प्रयास हुए थे और ये किस तरह के थे जिससे हमें प्रकाश की प्रकृति को समझते हुए ब्रम्हाण्ड को समझने का नया नज़रिया मिला।
6 होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम में कमल-नयन चांदनीवाला... - कालू राम शर्मा
होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम (होविशिका) का अहम हिस्सा रहे चांदनीवालाजी का निधन 15 मई 2020 हुआ है। वे एक सरकारी स्कूल के शिक्षक थे व होविशिका में पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में जुड़कर किट व्यवस्था को बखूबी सम्भाला। वे हमारे बीच मिसाल प्रस्तुत करते हैं कि शिक्षा जगत में ऐसे शिक्षक हैं जो शान्त व मौनभाव से अपने काम को शिद्दत से करने की चाहत रखते हैं। इस लेख के ज़रिए हम उन्हें श्रद्धांजली प्रस्तुत करते हैं।
7 एक दिन मन्ना डे – कुमार अंबुज
इन्सान कैसे भविष्य और वर्तमान के बीच झूलता रहता है, इसी तथ्य के साथ और मन्ना डे के स्मरणीय गीतों को याद करती हुई एक अत्यन्त रोचक और आनन्दमय कहानी जिसे पढ़ते वक्त आप प्रसन्नचित हुए बिना नहीं रह पाएँगे। तो पढ़ते हैं, आखिर क्या हुआ जब सुप्रसिद्ध मन्ना डे अपनी प्रस्तुति के साथ आए।
8 पानी के बिना जीवित क्यों नहीं रह सकते हैं? - सवालीराम
हमारा शरीर 60-75 प्रतिशत पानी से बना है। जैसे ही शरीर में पानी की 1 प्रतिशत कमी होती है, आपको प्यास लगने लगती है। और यदि पानी की क्षति 10 प्रतिशत हो जाए, तो यह जानलेवा बन जाती है। तो सवाल उठता है कि पानी में ऐसा क्या है या शरीर की ऐसी कौन-सी ज़रूरत है जिसको पानी पूरी करता है कि हम उसके बिना जीवित नहीं रह सकते। समझते हैं इस बार के सवालीराम के माध्यम से।