प्रस्तुति- माधव केलकर

संचार साधनों में नित नए बदलावों की वजह से शिक्षकों के बीच संवाद में भी परिवर्तन आया है। सहकर्मियों के साथ स्टाफ रूम में चाय की चुस्कियों या फ्री-पीरियड के दौरान बातचीत न हो पाए तब भी फेसबुक, ई-मेल, वॉट्सएप जैसे कई संवाद के सेतु इन दिनों उपलब्ध हैं जिनकी मदद से एक-दूसरे से दूरी के बावजूद भी संवाद सध जाता है। बस्तर में एक उदाहरण देखने को मिला जहाँ शिक्षक साथी इन नई विधाओं का इस्तेमाल अकादमिक चर्चाओं के लिए कर रहे थे।
बस्तर (छत्तीसगढ़) के विज्ञान पढ़ाने वाले, कक्षा में प्रयोगों को करवाकर विज्ञान पढ़वाने में यकीं रखने वाले इन शिक्षकों के वॉट्सएप मैसेज के कुछ रोचक संवाद इस कॉलम के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ। शिक्षकों का यह समूह हर महीने एक बैठक करके तय करता है कि अगले एक महीने में कक्षा में कौन-कौन से प्रयोग करवाए जाएँगे। प्रयोग करवाने और नया कुछ खोजने पर वे तुरन्त अपने अनुभव अन्य साथियों के साथ वॉट्सएप के ज़रिए बाँटते भी हैं।
वॉट्सएप पर इस किस्म के संवाद में बातचीत वन-टू-वन न होकर इसमें समूह के अन्य साथी भी अपनी बात रख सकते हैं। वॉट्सएप समूह के संवाद में कई साथियों की भागीदारी की वजह से बातचीत का मूल मुद्दे से भटकने का खतरा भी बना रहता है। फिर भी, संवाद की इस नई विधा में भाषा का अपना आनन्द है। पढ़ते हुए आप भी इसे महसूस करेंगे।
इस संवाद को पेश करते हुए मैंने हर मुद्दे के पहले कुछ भूमिका बाँधते हुए चर्चा को शुरु किया है, ताकि मुद्दा समझने में आसानी हो। इसके अलावा संवाद को यथावत रखा है।

मच्छर और मलेरिया
आम तौर पर हम पाठ्यपुस्तकों में यही पढ़ते-पढ़ाते हैं कि मलेरिया मादा मच्छर के काटने से होता है। शिक्षकों की शंका-समाधान बैठक में यह सवाल रखा गया था कि क्या सिर्फ मादा मच्छर ही काटती है? बाद में इस पर विचार के लिए यह सवाल वॉट्सएप के ज़रिए सभी शिक्षक साथियों के बीच लाया गया। यहाँ कुछ शिक्षक साथियों की बातचीत इसी मुद्दे के आसपास है। देखिए।
- क्या नर मच्छर खून नहीं चूसते?
- नहीं।
- खून चूसने का काम फीमेल मच्छर ही करते हैं।
- यानी जो घर में होती हैं वो सारी मादा मच्छर ही होती हैं क्या?
- मादा मच्छर अपने एग की वृद्धि के लिए खून चूसती हैं, क्योंकि उनको खून में उपस्थित प्रोटीन की आवश्यकता होती है।
- हाँ, पर क्या नर मच्छर हमें नहीं काटते हैं?
- नॉट एक्ज़ेक्टली, वो प्लांट से प्रोटीन सक करते (चूसते) हैं।
- थैंक गॉड, अभी तक नर मच्छर आदमखोर नहीं हुए हैं। वरना हमारा जीना मुश्किल हो जाता।

बीजों द्वारा श्वसन
बीज श्वसन करते हैं इसे दिखाने वाला प्रयोग अक्सर पाठ्यपुस्तकों में दिया जाता है। इसमें सूखे बीजों, अंकुरित बीजों व फिनॉफ्थलीन घोल आदि को लेकर एक सेटअप बनाया जाता है। बीजों से श्वसन के दौरान निकलने वाली कार्बन डायऑक्साइड गैस फिनॉफ्थलीन के गुलाबी रंग को धीरे-धीरे कम करती जाती है। चूँकि कार्बन डायऑक्साइड की प्रकृति अम्लीय है इसलिए सूचक फिनॉफ्थलीन अम्लीय माध्यम में रंगहीन होने लगता है।
शिक्षकों के एक समूह ने सूचक फिनॉफ्थलीन के स्थान पर हल्दी का उपयोग करने का विचार बनाया। शायद फिनॉफ्थलीन की बजाय आसानी से उपलब्ध होने वाला पदार्थ है यह सोचकर। कई बार, अम्ल-क्षार के प्रयोगों में लिटमस पेपर के साथ-साथ हल्दी पेपर का उपयोग भी किया जाता है। शायद यह देखते हुए भी हल्दी का ख्याल आया होगा। एक शिक्षक समूह ने कपड़े धोने वाले पाउडर की बहुत थोड़ी मात्रा को पानी में घोलकर और इसमें थोड़ी हल्दी मिलाकर घोल बनाया। अब इसमें कपास के फाहों को डुबोकर, दो-तीन धागों के दोनों छोर पर फाहे बाँधे गए। इन धागों को तीन प्लास्टिक बरनियों में इस तरह लटकाया गया कि धागे का एक छोर बरनी के भीतर और एक छोर बरनी के बाहर लटका रहे। पहली बरनी खाली थी। दूसरी बरनी में सूखे बीज थे और तीसरी बरनी में अंकुरित हो रहे बीज रखे गए थे।
आइए अब उन शिक्षक साथियों का वार्तालाप देखें जिन्होंने हल्दी का उपयोग किया था।
- एसिड-बेस रिएक्शन नहीं हुआ?
- रिज़ल्ट क्या आया?
- कार्बन डायऑक्साइड ने किसका रंग उड़ाया?
- मैम बताइए।
- सेम रिज़ल्ट। रिएक्शन नहीं हुआ।
- बीज ज़्यादा अंकुरित नहीं होना चाहिए।
- एसिड-बेस क्रिया का परिणाम रंग परिवर्तन के रूप में है। कार्बन डायऑक्साइड की प्रकृति अम्लीय है और साबुन की क्षारीय है।
- सर, हल्दी पर भी काम कर गया। हल्दी का रंग फीका पड़ा है।

पृथ्वी का चुम्बकत्व
माध्यमिक स्तर की पाठ्यपुस्तकों में अक्सर बताया जाता है कि हमारी धरती भी एक चुम्बक है। अक्सर हम सभी पाठ्य पुस्तकों में लिखी बातों को यथावत मानकर उस पर कोई शंका या सवाल नहीं पूछते, कई दफा सुझाए गए प्रयोग भी करके नहीं देखते। दिया है तो ठीक ही होगा, इस भाव के साथ।
लेकिन यहाँ तो शिक्षकों ने कुछ और ही ठान लिया है। कुछ शिक्षकों और विद्यार्थियों ने तय किया कि पार्थिव चुम्बकत्व की जाँच करके देखेंगे।
इस प्रयोग के तहत दो-तीन फीट गहरा गड्ढा खोदकर उसमें एक लोहे का सरिया उत्तर-दक्षिण दिशा में रखकर गड्ढे को मिट्टी से ढक दिया गया। कम-से-कम एक महीने के बाद सरिये को बाहर निकालकर यह जाँचा जाएगा कि सरिये में चुम्बकीय गुण आए हैं या नहीं। देखिए कुछ संवाद-
- पृथ्वी एक चुम्बक के रूप में काम करती है आज इस प्रयोग को किया गया। इसे एक माह बाद निकाला जाएगा।
- गुड।
- रिज़ल्ट का इन्तज़ार रहेगा।
- आप भी। मैं तो कहता हूँ कि सभी को करके देखना चाहिए।
- बहुत अच्छा कर रहे हैं सरजी।
- सर नॉर्थ-साउथ ही डाले हैं न?
- हाँ मैम, नॉर्थ ही डाला हूँ।
- बढ़िया।

देखते हैं एक महीने के बाद क्या परिणाम मिलते हैं। लोहे का सरिया चुम्बकीय गुण दिखा रहा होगा या नहीं? क्या एक या दो महीने बाद लोहे के सरिये में चुम्बकीय गुण आ गए होंगे, क्या सरिया चुम्बकीय सुई को विचलित कर पाएगा? क्या सरिया स्वतंत्र रूप से लटकाए जाने पर उत्तर-दक्षिण दिशा में ही रुकेगा? वैसे इन सब सवालों के बारे में आप क्या सोचते हैं?

विद्युत सुचालकता
कक्षा में बच्चों को शुष्क सेल को खोलकर उसके बारे में जानकारी दी जा चुकी थी। सेल से बल्ब जलाकर देखना जैसी गतिविधि भी करवाई गई। सुचालक-कुचालक के बारे में चर्चा हुई।
कुछ उत्साही बच्चों ने मोबाइल फोन की बैटरी से भी एल.ई.डी. बल्ब जलाकर देखे। बल्ब जलाकर देखने के दौरान बच्चों के एक समूह ने बैटरी, बल्ब के साथ कुछ खेल-खिलवाड़ करते हुए तार का एक-एक छोर गीले गोबर में रखकर बल्ब जलाने की कोशिश की। बल्ब जला भी। शिक्षक ने इस फोटो को अन्य साथियों के साथ शेयर किया। वार्तालाप देखिए।
- गोबर से इलेक्ट्रिसिटी। (फोटो)
- हाऊ?
- गोबर से इलेक्ट्रिसिटी पास हो रही है।
- सुचालक है।
- नॉट जनरेशन।
- प्लीज़ डिटेल।
- यू केन सी द कनेक्शन बाइ ज़ूमिंग पिक्स एन ट्राई।
- सर, काऊ ने क्या खाया था?
- इलेक्ट्रिक पॉवर।
- मतलब!!

शायद आप भी समझ गए होंगे कि कुछ शिक्षक साथियों ने इस बात को पकड़ लिया है कि गोबर से बिजली नहीं मिल रही है, बल्कि गीला गोबर सुचालक की भाँति काम कर रहा है और सर्किट पूरा होने की वजह से बल्ब जल रहा है।
वॉट्सएप शिक्षक समूह की बातचीत का यह एक नमूना मात्र है। हो सकता है आप में से कई शिक्षक साथी भी अपने वॉट्सएप समूह से जुड़े हों और कई तरह की अकादमिक चर्चाओं में शामिल होते हों। यदि आप चाहें तो अपने अनुभव हमें भेज सकते हैं।


प्रस्तुति: माधव केलकर: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।
डाइट बस्तर के सभी फेकल्टी सदस्यों, बाल वैज्ञानिक व फ्युचर ऑफ साइंस वॉट्सएप समूह के सभी शिक्षक-शिक्षिकाओं का आभार।
सभी फोटो: बाल वैज्ञानिक वॉट्सएप समूह से साभार।