लेखक: सुपुर्णा सिन्हा
अनुवाद: अर्पिता पाण्डे [Hindi PDF, 224 kB]
अगर आपने सूखी घास से बनी किसी छत को देखा हो तो उन सभी रचनाओं को भी देखा होगा जो छत को सहारा देने के लिए लगाई जाती हैं। लकड़ी या बाँस के खम्भों को रस्सियों से बँधे देखा होगा। यह सभी संरचनाएँ जो छत को सहारा देने के लिए लगाई जाती हैं, उन्हें हम स्कैफोल्डिंग कहते हैं। इसमें लगी रस्सियों और खम्भों के गुणधर्म बहुत ही अलग होते हैं - एक रस्सी बाँस के डण्डे से कहीं ज़्यादा लोचदार होती है।
यही सिद्धान्त सजीवों में भी काम करता है। हमारे शरीर के ढाँचे में विभिन्न किस्म के लचीलेपन की कई परतें हैं। हमारा कंकाल ठोस हड्डियों से बना है, इसलिए वह लचीला नहीं है, लेकिन मांसपेशियों के अन्दर एक्टिन तन्तुओं (फिलामेंट) की नरम और लचीली परतें हैं, जो मुड़ सकती हैं। उदाहरण के लिए, किसी चीज़ को उठाना हो तो एक्टिन तन्तुओं की परतों की वजह से ही मांसपेशियाँ मुड़ पाती हैं, आदि।
जैसे-जैसे और छोटे स्तर पर जाते हैं हम पाते हैं कि शरीर के ये भाग अलग-अलग बहुलकों (पोलीमर्स) के बने हैं और इनका लचीलापन भी अलग-अलग है।
बहुलक दोहराई गई इकाइयों, एकलक की एक शृंखला से बने हुए बड़े अणु होते हैं। कई बहुलक सुई की तरह कड़े होते हैं तो कई धागे की तरह लचीले और अन्य कुछ रस्सी की तरह, न तो बहुत कठोर और न ही बहुत लचीले। ये सारे अलग-अलग तरह के बहुलक हमारे जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं।
डी.एन.ए. - एक लचीला बहुलक
बहुलक जो जीवों में पाए जाते हैं, जैविक बहुलक कहलाते हैं। डी.एन.ए. वे बायोपॉलिमर्स (जैव-बहुलक) हैं, जो आनुवांशिक कोड के संवाहक हैं। डी.एन.ए. एक अर्ध-लचीला बहुलक है जो जीवों की कोशिका के नाभिक में पाया जाता है।
नाभिक बहुत ही छोटा कोशिकांग है, जिसका आकार कुछ माइक्रॉन ही होता है (एक माइक्रॉन बराबर 1/10,00,000 मीटर)। इतने छोटे आकार को देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी की ज़रूरत होती है। मनुष्य का एक डी.एन.ए. जैव-बहुलक एक मीटर लम्बा होता है। क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इतना लम्बा अणु एक इतने छोटे नाभिक में समा जाता है?
डी.एन.ए. की पैकिंग: कोशिका केन्द्रक के व्यास से कई गुना लम्बे डी.एन.ए. की केन्द्रक के भीतर पैकिंग काफी रोचक है। डी.एन.ए. की सीढ़ीनुमा शृंखला हिस्टोन प्रोटीन पर लिपटी होती है। ऐसे आठ प्रोटीन मिलकर न्यूक्लियोसोम बनाते हैं। आगे ये क्रोमोसोम के साथ पैक होते हैं। पैकिंग के अगले स्तर पर क्रोमोसोम पैक होते हैं। पैकिंग की अहमियत को आप इस बात से समझ सकेंगे कि मानव की एक कोशिका में 23 जोड़े क्रोमोसोम होते हैं, जिन पर मानव शरीर की सारी जेनेटिक जानकारी होती है। ऊपर के रेखाचित्र में न्यूक्लियोसोम और क्रोमोसोम पैकिंग को दिखाने की एक कोशिश की गई है।
यह प्रभावी पैकेजिंग कुछ-कुछ उसी तरह है, जिस तरह हम सफर में जाने से पहले अपने बहुत सारे कपड़े एक छोटे-से सूटकेस में जमाते हैं! कोशिका के अन्दर यह प्रक्रिया और अधिक कठिन हो जाती है, क्योंकि एक निश्चित तापमान पर नाभिक के अन्दर डी.एन.ए. हिलता-डुलता रहता है। कुछ वैसे ही जैसे कि रस्सी पर सूख रहे कपड़े तेज़ हवा के कारण फड़फड़ाते हैं। कोशिकीय क्रियाओं के लिए एक निश्चित तापमान ज़रूरी होता है। ठीक उसी तरह जैसा कि जब आटे में यीस्ट मिलाते हैं, तो यीस्ट को प्रभावी बनाने के लिए उसे गर्म रखना ज़रूरी है।
डी.एन.ए. तथा अन्य बहुलकों (जैसे प्रोटीन और सैल्युलोज़) का लचीलापन कार्यात्मक रूप से महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यानी कि अणुओं के लचीलेपन से तय होता है कि वे क्या कार्य करेंगे। यह उसी तरह है, जिस तरह कोई शिल्पकार रस्सियों से कई तरह की कलाकृतियाँ जैसे चटाई, लेम्पशेड, झोले आदि बनाता है, जो विभिन्न भूमिकाएँ अदा करते हैं।
डी.एन.ए. कार्य के आधार पर कई रूप ले लेता है, जिन्हें हम समनुरूपण या समनुरूपित संरचनाएँ (conformational structures) कहते हैं। इन समनुरूपित संरचनाओं तथा इनकी कार्यात्मक भूमिकाओं के बीच अन्तर-सम्बन्ध को जानना आवश्यक है। उदाहरण के लिए डी.एन.ए. अणु जीन की अभिव्यक्ति (जीन एक्सप्रेशन) के समय छल्लों जैसी संरचनाएँ बनाते हैं। ये छल्ले डी.एन.ए. संरचनाओं के अलग-अलग भागों पर प्रोटीन चिपक जाने से बनते हैं। जीन अभिव्यक्ति के लिए ये प्रोटीन ज़रूरी होते हैं।
इस तरह का रूप डी.एन.ए. के उस रूप से अलग है जो आम तौर पर हम कोशिका के नाभिक में पाते हैं। इस स्थिति में अत्यन्त कसी हुई यह कुण्डलीनुमा रचना टेलीफोन के चोंगे से जुड़े तार जैसी दिखती है। यह आकार डी.एन.ए. के आनुवांशिक कोड को सुरक्षित बनाए रखता है। प्रतिरूपण के समय डी.एन.ए. खुलता है जिससे आनुवांशिक कोड को पढ़ा जा सकता है तथा उसका प्रतिरूप बनाया जा सकता है।
इस तरह के अलग-अलग आकार डी.एन.ए. तथा अन्य बायोपॉलिमर्स के लचीलेपन की वजह से सम्भव हैं।
कड़ेपन की परख
आप किसी रस्सी या डी.एन.ए. तन्तु की कड़ेपन की विशेषता कैसे बताएँगे? अनुभव से आपको यह पता है कि एक रस्सी, स्टील की छड़ से ज़्यादा लचीली होती है। आप इस गुण को पर्सिस्टेंस-लेंथ से पता कर सकते हैं। यह वह लम्बाई है, जिस तक किसी रस्सी या डी.एन.ए. या अन्य पॉलिमर को सीधा यानी सरल-रेखिक माना जा सकता है। आप देख सकते हैं कि एक नए पौधे के तने की पर्सिस्टेंस-लेंथ, एक सीधे खड़े पेड़ की टहनी से बहुत कम होती है।
एक कड़क बहुलक या रस्सी (ऊपरी ख्र्) के सीधे भाग की लम्बाई लचीले बहुलक या रस्सी (निचला ख्र्) की तुलना में ज़्यादा होती है। इसे पर्सिस्टेंस-लेंथ कहते हैं।
कोशिकीय स्तर पर एक्टिन तन्तु जो कि मांसपेशियों के कोशिकीय कंकाल में पाए जाते हैं (किसी कोशिका का ढाँचा अलग-अलग तन्यता वाले तन्तुओं का बना होता है), उनकी पर्सिस्टेंस-लेंथ लगभग 16 माइक्रॉन होती है। ये डी.एन.ए. जैसे बायोपॉलिमर्स की तुलना में कहीं ज़्यादा कड़े होते हैं जिनकी पर्सिस्टेंस-लेंथ 1/20 माइक्रॉन होती है।
पर्सिस्टेंस-लेंथ का मापन बायो-पॉलिमर्स के अध्ययन का मुख्य केन्द्र है। जब बायोपॉलिमर्स कोशिका में होने वाले तापमान परिवर्तन की वजह से अन्य संघटकों से टकराते हैं तब यही लम्बाई निर्धारित करती है कि ये तन्तु इन टकराहटों की वजह से कितना मुड़ेंगे।
एकल आणविक प्रयोग
आम तौर पर डी.एन.ए. जैसे बायोपॉलिमर्स का प्रायोगिक अध्ययन ऐसे नमूनों के साथ किया जाता है जिनमें बहुत बड़ी संख्या में अणु होते हैं। इनसे विशिष्ट अकेले बायोपॉलिमर की लोच पता नहीं चल पाती। किन्तु लोच वह गुण है, जो जैविक प्रक्रियाओं के लिए अत्यन्त आवश्यक है, जैसे प्रोटीन के प्रभाव से डी.एन.ए. का मुड़ना।
पिछले कुछ सालों में, नई तकनीकों की वजह से एक अकेले बायोपॉलीमर (एक अकेले अणु) को खींचकर व मरोड़कर उसके लचीलेपन की जाँच करना सम्भव हो पाया है।
छोटी-छोटी बायो-बीम्स
एक स्पिं्रग की तन्यता, उसके लचीलेपन की जाँच करने के लिए उस पर वज़न लटकाकर उसकी बढ़ी हुई लम्बाई् को नापना होता है। उसी प्रकार डी.एन.ए. के अणुओं या जैव-बहुलकों के लचीलेपन को नापने के लिए हम उस पर सूक्ष्म बल लगा सकते हैं।
ऐसे प्रयोग व अध्ययन हम एटॉमिक फोर्स माइक्रोस्कोप के ज़रिए करते हैं जिनमें लगीं प्रायोगिक सुइयाँ, केंटी-लीवर बीम्स के समान होती हैं जो एक तरफ से स्थिर होती हैं तथा दूसरी ओर एक अत्यन्त नुकीली नोक होती है जो अणुओं की सतह को बारीकी से जाँचती है (इसे ‘प्रोब’ कहते हैं)।
ऐसे विशिष्ट प्रयोग में एक पॉलिमर अणु एक स्थिर सतह तथा एक बल-संवेदी के बीच लटका रहता है। बल-संवेदी जो कि इतने छोटे पॉलिमर के सम्पर्क में रह सकता है अपने आप में एक आश्चर्य की बात है। आदर्श संवेदी लेज़र ट्रेप के अन्दर एक अति-सूक्ष्म मोती या फिर परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी की लोचदार केंटीलीवर सुई हो सकती है।
सूक्ष्मदर्शी में देखने पर बहुलकों की लम्बाई 0.2 माइक्रॉन पाई गई। प्रत्येक बहुलक अलग-अलग तरीके से मुड़ता है। इसलिए इनके सिरों के बीच की दूरियाँ भिन्न होती हैं, जो हमें उनके लचीलेपन और यांत्रिकीय गुणों के बारे में बहुत कुछ बताती हैं।
अणु को स्थिर सतह और नोक के बीच में फैलाया यानी खींचा जाता है। यह नापा जाता है कि लगाए गए बल से अणु कितना खिंचता है। इससे अणु के लचीलेपन की जाँच की जाती है। इस तरह एक सरल कुण्डलित डी.एन.ए. या फिर एक जटिल, विशिष्ट प्रोटीन के आकार तथा लचीलेपन का अध्ययन किया जा सकता है।
चित्र-2 में 0.2 माइक्रॉन लम्बाई के बहुलकों की ाृंखला दिखाई गई है। ये कई आकार के तथा कई तरह से मुड़े हुए होते हैं। इन बहुलकों की मोटाई 0.0004 माइक्रॉन होती है जो कि उनकी लम्बाई से कई गुना छोटी है। चित्र में ‘25 दथ्र्’ लेबल, नीचे दिया गया स्केल दर्शाता है; 25 दथ्र् उ 0.025 माइक्रॉन। बहुलक का सिरा किसी प्रकाशदीप्त रंजक की चिप्पी लगाकर दर्शाया जा सकता है। कभी-कभी बहुलक उसके मुड़े हुए स्वरूप से सीधे खिंचे हुए रूप में आ जाता है। उसके सिरों पर चिप्पी लगाने से हमें दो सिरों की दूरी में, पहले और बाद में आए अन्तर का पता लगाना सम्भव हो पाता है।
इस तरह के प्रायोगिक अध्ययन हमें सम्बन्धित बहुलकों के जैविक क्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण यांत्रिकीय गुणों को समझने में मदद करते हैं। ये अध्ययन जैव वैज्ञानिकों तथा रसायन व भौतिक शास्त्रियों के लिए अपने विचारों के आदान-प्रदान की बहुत-सी सम्भावनाएँ मुहैया करवाते हैं। साथ ही हमें समझ में आता है कि जैव अणु काम कैसे करते हैं।
रस्सी से प्रयोग
नीचे वर्णित किया गया प्रयोग डी.एन.ए. जैसे छोटे बहुलक के लचीले-पन को समझने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया है। इस प्रयोग को आप किसी रस्सी के साथ कर सकते हैं। इस रस्सी को हम डी.एन.ए. का विशाल रूप मान सकते हैं।
एक मोटी तथा लम्बी रस्सी लीजिए। आप इसे छोटे तथा लम्बे हिस्सों में काटें। लम्बे टुकड़े ज़्यादा लचीले होते हैं, जबकि छोटे टुकड़े उतने नहीं। इस तरह ये कड़े तथा लचीले बहुलकों को दर्शाते हैं।
रस्सी से प्रयोग: हर बार जब रस्सी गिराई गई, तो 0 से.मी. और रस्सी पर चिन्हित दूरियों के बीच की दूरी को नापा गया। ये दूरियाँ उस दूरी से कम होती हैं जब रस्सी को सीधा पकड़ा जाता है। उदाहरण के लिए, ऊपर, 0 से.मी. से 10 से.मी. की दूरी 7 से.मी. है, 0 से.मी. और 40 से.मी. के बीच की दूरी 20 से.मी. है।
उस छोर को जिसे आप पकड़ने वाले हैं, 0 से.मी. के निशान वाला सिरा मान सकते हैं। प्रत्येक रस्सी के टुकड़े पर 0 से.मी. के निशान से शु डिग्री करते हुए, बराबर लम्बाई पर निशान लगाइए जैसे 10 से.मी., 20 से.मी. पर आदि।
अब लगभग 2 मी. की ऊँचाई से इन टुकड़ों को फर्श पर गिराइए। इस बात का ध्यान रखना होगा कि गिराने से पहले ये टुकड़े फर्श को न छुएँ।
अब 0 से.मी. से इन चिन्हों के बीच की दूरी नापिए। उदाहरण के लिए अगर आप चित्र-3 को देखें तो 0 से.मी. से 10 से.मी. के चिन्ह को नापने पर 7 से.मी. मिला, 0 से 20 से.मी. नापा तो 10 से.मी. मिला, 0 से 30 से.मी. नापा तो 14 से.मी. मिला, 0 से 40 से.मी. नापा तो 20 से.मी. मिला इत्यादि। आप देख सकते हैं कि मुड़ने की वजह से चिन्हों के बीच की लम्बाई उसकी सीधी और सरल अवस्था से कम हो गई है। खास तौर पर, रस्सी के दोनों छोर के बीच की दूरी की तुलना, उसकी लम्बाई से करें तो हमें रस्सी के कड़कपन के बारे में पता चलता है।
आपका ध्यान इस ओर गया होगा कि अगर रस्सी ज़्यादा कड़क हो तो, उसके छोरों के बीच की दूरी ज़्यादा होगी। इसके विपरीत एक नरम व ढुलमुल रस्सी के सिरों के बीच अन्तर कम होगा। इसलिए विभिन्न रस्सियों के छोरों के बीच की दूरियों के आँकड़ों से उनके लचीलेपन के बारे में पता चल सकता है।
आपकी पसन्द का कोई भी निशान लीजिए, उदाहरण के लिए, 30 से.मी.। मान लीजिए प्रयोग करने पर 0 से.मी. से 30 से.मी. के चिन्ह के बीच की दूरी 14 से.मी. मिली। इस रस्सी को दोबारा गिराइए। इस बार आपको 14 से.मी. से थोड़ी अलग लम्बाई मिलती है। प्रयोग को करीब 40 बार दोहराइए।
इन सभी लम्बाइयों के वर्गों का योग कीजिए (142 अ ...) तथा इस योग को 40 से विभाजित कीजिए।
इस प्रयोग को अलग-अलग लम्बाई की रस्सियों के साथ करें। क्या आपको गणना की गई संख्या (ङ2) के अलग-अलग मान रस्सियों की लम्बाई ख्र् के अनुसार मिले?
गणना करने के बाद ग्राफ में ङ2 को य-अक्ष पर दर्शाएँ तथा रस्सी की लम्बाई को क्ष-अक्ष पर प्रदर्शित करें। क्या कड़ी और लचीली रस्सियों के व्यवहार में अन्तर है?
यदि आप डी.एन.ए. पर वापस जाएँ, तो इस बारे में सोचिए कि डी.एन.ए. बहुलक का लचीलापन उसके आकार को कैसे प्रभावित करता है।
सुपुर्णा सिन्हा: रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट, बैंगलूरु में थियोरेटिकल कंडेंस्ड मैटर फिज़िसिस्ट हैं। चित्रकारी और बच्चों के लिए चित्र-पुस्तकें बनाने में रुचि। विज्ञान के प्रचार-प्रसार में भी दिलचस्पी रखती हैं।
अँग्रेज़ी से प्राथमिक अनुवाद: अर्पिता पाण्डे: एकलव्य के विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से जुड़ी हैं। इन्दौर में निवास।
यह लेख जंतर-मंतर (सितम्बर-अक्टूबर 2010) अंक में प्रकाशित लेख का संवर्धित रूप है।
चित्र: डी.एन.ए. पेकिंगaccessrevision/biology/cell-form-and-function/dna-and-chromosomes लिंक से साभार।
इस लेख में रस्सी से प्रयोग “The shape of a randomly lying cord”, by Don S. Lemons and T. C. Lipscombe, American Journal of Physics, Vol. 70, page 570 (2002) से साभार।