संदीप दिवाकर                                                                                                                  [Hindi PDF, 663 kB]

गणित में भी गतिविधियाँ सम्भव हैं - यह तो कोई नई बात नहीं हुई। परन्तु यह पढ़कर आपको ज़रूर आश्चर्य हो सकता है कि केवल गणित की गतिविधियों पर आधारित मेला आयोजित करना भी सम्भव है।

मेले का नाम सुनते ही हमारे सामने एक दृश्य उभरता है जिसमें दुकानें सजी हुई हैं, जिसमें खिलौने हैं, खाने-पीने की चीज़ें हैं, दैनिक जीवन में उपयोग की छोटी-मोटी वस्तुएँ हैं, झूले हैं, गुब्बारे व बाँसुरी वाले की दुकानें हैं। आँध्रप्रदेश के चित्तूर ज़िले के थेटू गाँव में आयोजित एक मेला हमने भी देखा जो बिलकुल निराला था। इस मेले को एक स्कूल में आयोजित किया गया था।
दोपहर को जब हम स्कूल पहुँचे तो दरवाज़े पर बच्चों ने सभी का स्वागत किया। एक बच्चा सभी आगन्तुकों से आदरपूर्वक उनका नाम व पता पूछ रहा था। एक बच्ची कॉपी में इन जानकारियों को दर्ज कर रही थी। एक बच्चा कुछ कार्ड लिए हुए था और आने वालों को उनका नाम आदि लिखकर कार्ड दे रहा था।

शाला को सजाने में बच्चों और शिक्षकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। बच्चों के चेहरे पर खुशी और मेले के प्रति अपनापन स्पष्ट देखा जा सकता था। बच्चों ने छोटी-मोटी दुकानें भी लगाई थीं। चने की दुकान, नारियल पानी की दुकान तो किसी ने खिलौने या गुब्बारे की दुकान लगाई थी। कुछ बच्चे छोटे-छोटे समूहों में गतिविधियों में व्यस्त थे और वे मेले में आने वाले लोगों को भी उन गतिविधियों में शामिल कर रहे थे। इन सब गतिविधियों में हमने भी भाग लिया।

बच्चों ने नापी ऊँचाई
बाईं ओर जब मेरी नज़र पड़ी तो देखा कि कुछ बच्चे एक-दो व्यक्तियों को घेरे खड़े थे। मैं वहाँ पहुँचा तो एक बच्चे ने मुझे आदरपूर्वक अपने समूह में आने के लिए आमंत्रित किया। दूसरे बच्चे ने मुझसे मेरा कार्ड माँगा और मुझे उस दीवार से सटकर खड़े होने को कहा जिस पर मीटर स्केल अंकित था। मैं जैसे ही दीवार के पास खड़ा हुआ एक अन्य बच्ची पास में रखी कुर्सी पर खड़ी हो गई। उसने अपने हाथ में लिए हुए गत्ते को मेरे सिर पर रखकर दीवार पर टिकाया और बोली, 5 फुट 3 इंच। एक बच्ची जो कॉपी लिए हुए थी उसने कार्ड से मेरा प्रवेश क्रमांक, नाम व बोली गई ऊँचाई नोट कर ली। मेरे कार्ड में ऊँचाई के सामने 5 फुट 3 इंच लिख कर कार्ड मुझे वापस दे दिया।

कितना है आपका वज़न?
पास में ही तीन-चार बच्चों का एक अन्य समूह अपने काम में पूरी तरह मशगूल था। एक बड़ा बच्चा आगन्तुक से कार्ड लेता और कॉपी पर कुछ नोट करना शु डिग्री कर देता। दूसरा बच्चा वज़न मापने की मशीन पर खड़े होने को कहता। एक बच्ची मशीन में से वज़न पढ़कर बोलती जिसे बच्चे क्रमश: कार्ड तथा कॉपी पर अंकित करते। दीवार पर एक चार्ट टँगा था। एक बच्ची प्रत्येक व्यक्ति से कार्ड लेती और चार्ट देखकर बताती कि आपका वज़न आपकी आयु के अनुसार इतने कि.ग्रा. होना चाहिए।

मापन मेला (मैट्रिक मेला)
आयोजन स्थल - प्राथमिक शाला थेटू, ज़िला - चित्तूर


दिनांक.............................., प्रवेश क्र. .............................................
नाम................................., शाला/संस्था का नाम..................................
गाँव.................................
ऊँचाई...........................फुट..........................इंच,
उम्र..........................वर्ष,
वज़न...............................कि.ग्रा.,
आपका वज़न होना चाहिए ......................................कि.ग्रा.
एक मिनट में कितने बीज/कंकड़ गिने..................................
एक मिनट में कितने रु.-पै. गिने .....................रु. ................पैसे
पैर के पंजे की लम्बाई ..............................से.मी.
1 फुट = पैर के पंजे की लम्बाई +........................................अंगुलियाँ


कौन गिनेगा सबसे ज़्यादा बीज?

एक अन्य समूह में कुछ बच्चियाँ बैठी थीं। उनके पास डिब्बे में बहुत-से इमली के बीज थे। एक बच्ची बोली कि आइए आप यह खेल खेलिए। उसने बताया कि डिब्बे से एक-एक करके बीज निकालकर खाली डिब्बे में डालना है और ये लड़की (जो स्टॉप वॉच लिए हुए थी) समय गिनेगी। देखना है कि एक मिनट में सबसे ज़्यादा बीज कौन गिनता है। मैं एक मिनिट में 45 बीज गिन पाया। एक बच्ची ने मेरे कार्ड पर गिने गए बीजों की संख्या दर्ज कर दी। दूसरी बच्ची ने अपने रजिस्टर में मेरा नाम व गिने गए बीजों की संख्या लिख ली।

एक मिनट में रुपए-पैसे गिनना
पास के एक अन्य समूह में बीज नहीं बल्कि सिक्के गिने जा रहे थे। एक डिब्बे में 10, 20, 25, 50 पैसे एवं 1 व 2 रुपए के बहुत-से सिक्के रखे हुए थे। एक खाली डिब्बा रखा हुआ था। इस गतिविधि में सिक्कों के डिब्बे में से एक बार में एक सिक्का निकालकर खाली डिब्बे में डालना था और कुल रुपए-पैसे जोड़ने थे। जैसे 10 का सिक्का निकलने पर बोलना पड़ता 10 पैसे, फिर यदि 25 का सिक्का निकलता तो बोलना पड़ता 10 पैसे और 25 पैसे - 35 पैसे, इस प्रकार 1 मिनट में गिने गए कुल रुपए-पैसे प्रत्येक व्यक्ति के कार्ड तथा रजिस्टर में अंकित कर दिए जाते।

ऐसे लगवाया ऊँचाई का अनुमान
थोड़ा आगे एक स्थान पर चार लकड़ी की छड़ें गड़ी हुईं थीं, छोटी-बड़ी। उन पर ‘A’, B’, ‘C’ व ‘D’ की पर्ची चिपकी हुई थी। थोड़ी दूर पर एक लाइन खिंची थी। एक बच्ची बोली कि आपको यहाँ से (खिंची हुई लाइन की ओर इशारा करते हुए) ये अनुमान लगाना है कि ज़मीन में गड़ी हुई इन चारों छड़ों की ऊँचाई कितनी है। मैंने अनुमान लगाया और चारों छड़ों की ऊँचाइयाँ बता दीं। एक दूसरी बच्ची ने मेरा कार्ड लेकर अपनी कॉपी में मेरे नाम और प्रवेश क्रमांक के साथ-साथ चारों छड़ों की ऊँचाइयाँ भी लिख लीं।

उस बच्ची से मैंने कहा कि “आप हमें छड़ों की सही-सही ऊँचाई बताइए।” तो उसका उत्तर था, “हम आज सभी लोगों से पूछेंगे और कल स्कूल में देखेंगे कि सबसे सही उत्तर कितने लोगों ने दिया। आपको सही उत्तर कल हमारी शाला में मिल सकते हैं।”

वहाँ से आगे बढ़ने पर मैंने देखा कि तीन-चार बच्चे बैठे थे और उनके सामने एक लौकी, एक नारियल तथा एक पत्थर रखा था। वहाँ पहुँचते ही उनमें से एक बच्चा लौकी की तरफ इशारा करते हुए बोला, “आप इसे उठाएँ और अनुमान लगाकर उसका वज़न बताएँ।” इसी प्रकार नारियल व पत्थर के वज़न भी पूछकर नोट कर लिए गए।

कितना-कितना पानी?
एक बैंच पर एक बाल्टी तथा एक स्टील की टंकी रखी थी, पास ही कुछ बच्चे खड़े थे। वे पूछ रहे थे कि बताइए इस बाल्टी व टंकी में कितने-कितने लीटर पानी आ सकता है। बताए गए अनुमानों को बच्चे अपनी कॉपी में नोट कर लेते और उनका अगला प्रश्न होता कि इस मग से बाल्टी में कितने मग पानी आएगा? उत्तर की पुष्टि के लिए टंकी में भरे पानी को मग से उस बाल्टी में भरने को कहा जाता और अनुमान की जाँच हो जाती।

जितने लम्बे उतने ही चौड़े हैं आप
एक दीवार पर एक आड़ा मीटर स्केल बना हुआ था। वहाँ जमे एक बच्चे ने पूछा, “आपकी ऊँचाई कितनी है?” मैंने कहा, “पाँच फुट तीन इंच।” दूसरा बच्चा बीच में ही बोला, “आपकी चौड़ाई भी उतनी ही है। आप खुद नापकर देख लें।” मुझे कुछ भी समझ नहीं आया, तभी वह बच्चा बोला, “आप अपने दोनों हाथों को फैलाएँ और इस दीवार से सटकर खड़े हो जाएँ।” मेरे एक हाथ की मध्यमा (बीच की अंगुली) को उन्होंने दीवार पर स्केल के 0 तक लाने को कहा और दूसरा हाथ जहाँ तक पहुँचा वह दूरी वास्तव में 5 फुट 3 इंच ही थी।
हम बच्चों द्वारा लगाई गई छोटी-छोटी दुकानों पर भी गए। किसी ने चने खरीदे तो कोई नारियल पानी पी रहा था और किसी को बिस्किट लेने थे। बच्चे अपने माता-पिता के साथ खिलौने और गुब्बारों की खरीददारी कर रहे थे। इन सभी दुकानों के सामान अलग-अलग थे, पर सभी दुकानदार बच्चे पूरे आत्मविश्वास से रुपए-पैसे का सही-सही लेन-देन कर पा रहे थे और उनसे हिसाब लगाने, पैसे लेने और देने में कहीं कोई चूक नहीं हो रही थी।

इस अनोखे मेले को देखकर हम सभी काफी उत्साहित थे। हर व्यक्ति उन शिक्षक-शिक्षिकाओं से बात करना चाहता था जिनके निर्देशन में बच्चे इतना अच्छा आयोजन कर पाए थे। एक शिक्षिका से हमारी बात भी हुई। उन्होंने बताया, “समुदाय को शाला से जोड़ने का यह हमारा सबसे अच्छा तरीका है। इस मेले में हम पालकों से बातचीत भी कर लेते हैं, विशेषकर उन पालकों से जिनके बच्चे शाला में नहीं आते अथवा कम आते हैं। पालक भी अपने बच्चों द्वारा की गई गति-विधियों को देखकर काफी खुश होते हैं।”

कुछ जवाब पता करने हैं

1. सबसे अधिक और कम ऊँचाई किसकी है?
2. सबसे अधिक और कम वज़न किसका है?
3. कितने लोगों ने ऊँचाई, वज़न और आयतन का सही अनुमान लगाया?
4. एक मिनट में सबसे अधिक बीज/कंकड़ व रुपए किसने गिने?

बच्चों के समूह बनाते समय यह ध्यान रखा जाता है कि प्रत्येक समूह में छोटी कक्षाओं के बच्चे भी हों तथा बड़ी कक्षाओं के बच्चे भी। छोटे बच्चों को आसान काम दिया जाता है, जैसे आगन्तुकों को अपने समूह की ओर बुलाना और उनसे थोड़ी बातचीत करना। बड़े बच्चे मापन करते हैं और माप नोट करते हैं। मेले में इकट्ठा की गई इन जानकारियों से उन सब प्रश्नों के जवाब बच्चे ही पता करते हैं।
मेले से बाहर निकलते समय मेरे हाथ में कार्ड था जिसमें मेरे बारे में ढेर सारी जानकारियाँ अंकित थीं। मुझे तो मेले में बहुत मज़ा आया। आपको कैसा लगा ‘मापन मेला?’


संदीप दिवाकर: व्याख्याता, राज्य शिक्षा केन्द्र, म.प्र.। भोपाल में निवास।
सभी चित्र: ऋचा टेम्बे: एन.आई.डी, अहमदाबाद से 2007 में स्नातक।
सम्पादन सहयोग: राजेश उत्साही।
मूल लेख मध्यप्रदेश राज्य शिक्षा केन्द्र द्वारा प्रकाशित पत्रिका शैक्षिक पलाश के अंक दिसम्बर-जनवरी 2007 में भी प्रकाशित हुआ था। यह उसका सम्पादित स्वरूप है।