रघुनन्दन त्रिवेदी

गाँव है। स्कूल के सामने काफी बड़ा चौगान है। चौगान में कतारें हैं। कतारों में लड़के हैं। लड़के दुबले, मोटे, नाटे, लम्बे, गोरे, काले, गेरुए - सब तरह के लड़के हैं। लड़कों में फुसफुसाहट है। फुसफुसाहट में उत्सुकता है। लड़कों की उत्सुक नज़रें सामने चबूतरे पर गड़ी हैं।  चबूतरे पर स्कूल के मास्टर हैं। मास्टर, अँग्रेज़ी पढ़ाने वाला। मास्टर, हिन्दी पढ़ाने वाला। मास्टर, गणित पढ़ाने वाला। मास्टर, सामाजिक ज्ञान पढ़ाने वाला मास्टर, संस्कृत पढ़ाने वाला। मास्टर, सूत कातने वाला। मास्टर, विज्ञान पढ़ाने वाला। मास्टर, ड्रिल कराने वाला। मास्टर, ऊँघने वाला। मास्टर, बतियाने वाला। मास्टर, मारने वाला। मास्टर धोती वाला। मास्टर, बैलबॉटम वाला। और इन सबके ऊपर हेडमास्टर, हुक्म चलाने वाला, छुट्टी मंज़ूर करने वाला। स्कूल से नाम काटने वाला और हर शनिवार को अपने घर (शहर) जाने वाला।

प्रार्थना के बाद पूरी स्कल को चौगान में रोक दिया गया है। चौगान में रोकने का कोई खास मतलब होता है। हो सकता है, स्कूल में सिनेमा दिखाने वाली मोटर आए। हो सकता है, स्कूल से भागने वाले लड़कों पर कड़ी नज़र रखने का कोई हुक्म सुनाया जाए। हो सकता है, कोई लड़का रास्ते में बीड़ी पीता हुआ पाया गया हो। हो सकता है, किसी लड़के ने स्कूल के बोर्ड पर गालियाँ लिख दी हों या फिर विज्ञान पढ़ाने वाले मास्टर की हरदम खिल-खिल करने वाली लड़की को ही छेड़ लिया हो, हो सकता है...कुछ भी हो सकता है। लड़के जानने को उत्सुक हैं कि क्या हो सकता है।

हेडमास्टर ड्रिल मास्टर को हाथ के इशारे से पास बुलाता है। ड्रिल मास्टर बेंत हिलाता, अदब से हेडमास्टर के पास आता है, हेडमास्टर उसके कान में कुछ कहता है, और कान में कहने का कोई खास मतलब होता है। लड़के जानने को उत्सुक हैं।

हेडमास्टर की बात सुनकर ड्रिल मास्टर हाथ पीछे बाँधे, चबूतरे पर खड़ा होकर गला खँखारते हुए लड़कों को सम्बोधित करता है। लड़कों में चुप्पी है। चुप्पी में ड्रिल मास्टर की साफ, रौबदार आवाज़ गूँजती है, “आज ही गाँव में नौटंकी वाली पार्टी आई है। यह पार्टी यहाँ आकर कई दिन ठहरती है और गाँव का वातावरण खराब करती है। नौटंकी कोई अच्छी चीज़ नहीं होती। इसलिए हमारे हेडमास्साब का हुक्म है कि अपनी स्कूल का कोई लड़का उधर नहीं जावे।”  

एक क्षण के लिए ड्रिल मास्टर चुप होता है। बेंत से अपनी टाँग खुजाता है और फिर आगे कहता है, “अगर कोई लड़का नौटंकी में जाते देखा या सुना गया तो उसे सख्त सजा दी जाएगी। सब कान खोल कर सुन लो।”
हेडमास्टर का आदेश सुनाकर ड्रिल मास्टर उनकी तरफ देखता है। हेडमास्टर के चेहरे पर सन्तोष है। सभा बर्खास्त हो जाती है। कतारें अपनी-अपनी कक्षाओं की तरफ बढ़ती हैं। कतारों में लड़के हैं। लड़कों में फुसफुसहाटें हैं। फुसफुसाहटों में नौटंकी के प्रति जिज्ञासा है। जिज्ञासा में नौटंकी देखने के इरादे हैं।

आठवीं क्लास हैं। रूम में जगह-जगह से टूटा सीमेन्ट का फर्श है। फर्श पर डेस्कें और टाटपट्टियों पर लड़के हैं। सामने लकड़ी का काला तख्ता है। तख्ते पर तारीख और पहला कालांश लिखा है। पहला कालांश अँग्रेज़ी का होता है। अँग्रेज़ी का मास्टर कुर्सी पर बैठा है। हेडमास्टर का हुक्म दोहरा कर वह लड़कों को देखता है। लड़कों का ध्यान नौटंकी में है। मास्टर किताबें निकालने को कहता है। पहली लाइन से एक लड़का उठकर किताब पढ़ने लगता है। बाकी लड़के अपनी-अपनी किताब खोले उसे सुन रहे हैं। हरेक लाइन में चार-चार, पाँच-पाँच लड़के फँसे बैठे हैं। आखिरी लाइन में सिर्फ दो ही लड़के हैं। किसना और तेजू। दोनों कक्षा में सबसे बड़े। दोनों का आठवीं में चौथा साल है। अगली बार पाँचवाँ साल होगा। यह पाठ वे चार दफा पढ़ चुके हैं, इसलिए बार-बार पढ़ने का मन नहीं होता। दोनों की आँखें किताब पर हैं। दोनों का ध्यान नौटंकी में है। किसना पाटी निकालता है। तेजू की आँखें तिरछी होती हैं।

किसना पाटी पर लिखता हैं, “रात को चलेगा?”  
तेजू अपनी पाटी पर लिखता है, “ज़रूर।”  
दोनों मुस्कराते हैं। मास्टर देख लेता है। मास्टर पूछता है, “क्या कर रहे हो तुम दोनों?”

“कुछ नहीं मास्साब, मुश्किल शब्दों के मीनिंग लिख रहे हैं।” किसना जवाब देता है। मास्टर मुस्कराता है। मास्टर सन्तुष्ट हो जाता है। पाठ आधा हो जाता है। पहला लड़का बैठ गया है। दूसरा खड़ा होकर आगे पढ़ने लगता है। मास्टर अपने घर की टूटी हुई किवाड़ के बारे में सोचता है। मास्टर को पैसे की तंगी है, मास्टर उदास बैठा है। घण्टी बजती है, मास्टर उठ कर चला जाता है, फिर घण्टियाँ बजती रहती हैं। मास्टर आते-जाते रहते हैं और पाँच बजे स्कूल का वक्त खतम हो जाता है।

स्कूल के बाहर रास्ता है, रास्ते पर लड़कों के झुण्ड हैं। झुण्ड में आज़ादी है। आज़ादी में चुहल है। चुहल में शोर है। शोर में माँ-बहन की गालियाँ हैं। गालियों में क्या हैं यह लड़के नहीं जानते। सबसे पीछे, किसना और तेजू हैं। दोनों के बीच गहरी दोस्ती है। दोस्ती में बाते हैं। बातों में नौटंकी है। नौटंकी में क्या हैं, यही तो रात को देखना है। किसना की जेब में पैसे हैं। तेजू की जेब में बीड़ियाँ हैं, पास ही सूखी हुई बावड़ी है। बावड़ी की सीढ़ियाँ उतर कर दोनों बीड़ी पीते हैं, बीड़ी में ज़र्दा हैं। ज़र्दा जलने पर धुआँ निकालता है। धुआँ क्या हैं यह वे दोनों नहीं जानते। लेकिन दोनों जानते हैं कि स्कूल का बाबू चपरासन से खाता-पीता है। दोनों जानते हैं कि हेडमास्टर हर शनिवार को अपने शहर चला जाता है। दोनों जानते हैं कि सारे मास्टर बेइमान होते हैं और जान बूझकर उन दोनों को फेल करते रहे हैं, जबकि सरपंच के लड़के दीनिये को पूरी बारह खड़ी भी नहीं आती, फिर भी वह सालों साल पास हो रहा है।

रात है, ठण्ड है। ठिठुरी हुई कच्ची राहें हैं। राहों पर लोगों के पाँव हैं। पाँव तेज़ी से दड़े की तरफ बढ़ते हैं। बड़े तम्बू हैं, तम्बू में नौटंकी है। नौटंकी में शहर की लुगाइयाँ हैं, लुगाइयों में अदा है। अदा में लोच है। लोच में नशा है। नशे में मस्ती है। मस्ती में सिसकारियाँ हैं। सिसकारियों में मज़ा है, मज़ा क्या है, लोग नहीं जानते। लेकिन लोग कम्बल ओढ़े बैठे हैं। सामने पाट पर मंच है, मंच पर नाच है। नाच में थिरकन है, थिरकन में फिसलन है, फिसलन में गुदगुदी है। गुदगुदी में मज़ा है। मज़ा ही ज़िन्दगी है। पर ज़िन्दगी क्या है इस बात से कतई अनजान किसना और तेजू ठेठ पीछे दुबके बैठे हैं। उनके इर्द-गिर्द लोग हैं, लोगों में स्कूल का ड्रिल मास्टर है। ड्रिल मास्टर की जेब में अद्धा है, अद्धे में दा डिग्री है। दा डिग्री में क्या है, ड्रिल मास्टर नहीं जानता, लेकिन ड्रिल मास्टर जानता है कि नौटंकी में किसना और तेजू भी हैं, और दोनों मस्त हो रहे हैं। मस्त तो खुद वह भी है, पर वह मास्टर है, मास्टर को मस्त होने का अधिकार है। वे दोनों बच्चे हैं, बच्चों को सज़ा मिलनी चाहिए।

फिर स्कूल का चौगान। चौगान में कतारें। कतारों में लड़के। लड़कों में फुसफुसाहटें। फुसफुसाहटों में उत्सुकता। हो सकता है, आज हेडमास्टर कोई और ऐलान करे। ड्रिल मास्टर हाथ बाँधे खड़ा है। ड्रिल मास्टर गला खँखारता है। चौगान में चुप्पी है। चुप्पी में ड्रिल मास्टर की रौबदार आवाज गूँजती है- “आठवीं क्लास के किसना और तेजू इधर चबूतरे पर पहुँचें।”

आठवीं क्लास की कतार में हलचल है। हलचल में किसना और तेजू हैं। दोनों कतार से निकल कर चबूतरे पर चढ़ जाते हैं। चबूतरे पर मास्टर हैं, मास्टरों में ड्रिल मास्टर है। ड्रिल मास्टर के हाथ में बेंत है फिर किसना और तेजू के हाथ हैं, किसना और तेजू की टाँगें हैं, किसना और तेजू की कमर हैं, किसना और तेजू की रुलाई हैं। रुलाई में पीड़ा है, पीड़ा में करुणा है। करुणा क्या है इससे बेखबर हाँफते हुए हुए ड्रिल मास्टर की आवाज़ है, “ये दोनों कल नौटंकी देखने गए, इसलिए इनको यह सज़ा दी गई है। अब अगर कोई भी लड़का वहाँ गया तो इनसे भी कड़ी सज़ा दी जाएगी।”

कक्षाओं की तरफ बढ़ती हुई कतारें हैं, कतारों में लड़के हैं। लड़कों में फुसफुसहाटें हैं। फुसफुसाहटों में नौटंकी है।
गाँव है, रातें हैं। नौटंकी है। नौटंकी में भीड़ है। भीड़ में हर रोज़ स्कूल के लड़के और लड़कों के पीछे या आगे कोई-न-कोई मास्टर है। मास्टर मस्त है। मस्त होने का अधिकार सबको है। मास्टर सबसे अलग तो नहीं। लेकिन लड़के अभी बच्चे हैं। बच्चों को सज़ा मिलनी चाहिए।

गाँव है। स्कूल है। स्कूल का चौगान है। चौगान में कतारें हैं। कतारों में लड़के हैं। लड़कों में फुसफुसाहटें हैं। फुसफुसाहटों में आतंक और उत्सुकता है। उत्सुकता इस बात की कि आज किन लड़कों की बारी है। फिर चबूतरा है। चबूतरे पर मास्टर हैं, मास्टरों में ड्रिल मास्टर है। ड्रिल मास्टर के हाथ में बेत है। दूसरी तरफ लड़कों के हाथ हैं। लड़कों की टाँगें हैं। लड़कों की कमर हैं। लड़कों की रुलाई हैं। रुलाई में पीड़ा है। पीड़ा में करुणा है। करुणा का क्या कारण है, ड्रिल मास्टर नहीं जानता। वह कहता है, “ये लड़के कल नौटंकी में गए थे, इसलिए इनको सज़ा दी गई है। बार-बार कहने पर भी आप लोग नहीं सुधरते, अब अगर कोई भी लड़का वहाँ गया तो इससे भी कड़ी सज़ा दी जाएगी।”

फिर कक्षाओं की तरफ बढ़ती हुई कतारें हैं, कतारों में लड़के हैं। लड़कों में फुसफुसाहटें हैं। फुसफुसाहटों में नौटंकी है।

गाँव है, शनिवार है। स्कूल है। स्टाफ रूम है, स्टाफ रूम में कुर्सियाँ हैं। कुर्सियों पर मास्टर हैं। अँग्रेज़ी का मास्टर, विज्ञान का मास्टर, सामाजिक विज्ञान का मास्टर, हिन्दी का मास्टर, गणित का मास्टर, संस्कृत का मास्टर, सूत कातने वाला मास्टर, ड्रिल कराने वाला मास्टर, ऊँघने वाला मास्टर, बतियाने वाला मास्टर, धोती वाला मास्टर, बैलबॉटम वाला मास्टर। हुक्म चलाने वाला मास्टर नहीं है क्योंकि शनिवार है। और शनिवार को वह घर पर होता है। इसलिए स्टाफ रूम में सिर्फ मास्टर हैं। मास्टरों में बातें हैं, बातों में नौटंकी है। नौटंकी में शहर की लुगाइयाँ हैं, लुगाइयों में अदा है। अदा में लोच है। लोच में नशा है। नशे में मस्ती है। मस्ती ही ज़िन्दगी है। ज़िन्दगी जीने का अधिकार सबको है। मास्टर सबसे अलग तो नहीं।

पाँच बजे हैं, स्कूल का वक्त खतम हो गया है। रास्ता है, रास्ते में झुण्ड है, झुण्ड में लड़के हैं। लड़कों में बातें हैं। बातों में रोष है। रोष की वजह हैं-मास्टर। मास्टर खुद तो मज़े करते हैं और लड़कों को सज़ा देते हैं। सज़ा में तकलीफ है, तकलीफ में गालियाँ हैं। गालियों में मास्टरों की माँ-बहनें हैं, मास्टर सब जानते हैं। पर मास्टर मस्त हैं।


कहानी संग्रह,  ‘यह ट्रेजेडी क्यों हुई?’ से साभार। यह कहानी सन् 1982 में‘सारिका’ पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है।
रघुनन्दन त्रिवेदी: अपनी खास तरह की हिन्दी कहानियों के लिए सदा जाने जाते रहेंगे। न विचारधारा का अतिरेक और न गहरी तरलता-पारदर्शिता से अलगाव, उनकी कहानियाँ अपूर्व संवेदना से भरी होती थीं। अल्पायु में ही उनका निधन हो गया था जिससे पहले उनके तीन कहानी संग्रह ‘स्कूलगाथा’, ‘वह लड़की अभी ज़िन्दा है’ और ‘हमारे शहर की भावी लोककथा’ प्रकाशित हुए थे।
चित्र: जितेन्द्र ठाकुर: एकलव्य के भोपाल केन्द्र पर डिज़ाइन टीम में काम करते हैं। 

यह कहानी संदर्भ में छापने से पहले इसे लेकर सम्पादकीय समूह के बीच लम्बी कशमकश और बहस चली कि यह कहानी छापें या न छापें। एक मत था कि कहानी की कहन अच्छी है जो थोड़ा पढ़ लेने भर से आपको खींचकर समाप्ति तक खुद-ब-खुद ले जाती है। वहीं यह दुविधा भी थी कि कहीं यह कहानी सरकारी शिक्षक की बहुत ही एकतरफा नकारात्मक छवि प्रस्तुत करके कहीं स्टीरियोटाइपिंग को और सशक्त तो नहीं बना देती। अन्तत: हमने इसे पत्रिका में छाप इस पर विचार करने की ज़िम्मेदारी आप पर छोड़ दी है। हम चाहते हैं कि आप स्वयं ही कहानी पढ़ें और विचार कर हमें बताएँ कि कहानी आपको कैसी लगी। कहानी के किन हिस्सों ने आपको छुआ और किन हिस्सों ने आपको परेशान किया। सत्तर के दशक में लिखी गई इस कहानी जैसी घटनाएँ क्या अभी भी कहीं-कहीं दिख जाती हैं? आपके विचार हमें आगे भी कहानियाँ चुनने में मदद करते रहेंगे।

हमें आपकी प्रतिक्रियाओं का इन्तज़ार रहेगा।

—सम्पादकीय समूह