रे ब्रेडबरी

उसने पूछा, “फर्ज करो तुम्हें यह पता चले कि आज की रात दुनिया की  आखिरी रात है, तो क्या करोगी?"
"मैं क्या करुंगी? आप सचमुच जानना चाहते हैं?"
“हां, मैं गंभीरता से पूछ रहा हूं।''
"पता नहीं, कभी सोचा नहीं।''
पुरुष ने कार में थोड़ी कॉफी ली। बैठक में दरी पर हरी लालटेनों की रोशनी में दो लड़कियां खेल रही थीं। शाम की हवा में कॉफी की महक घुली हुई थी।
तो अब इसके बारे में सोचना शुरू करना होगा,'' उसने कहा।
"सचमुच!''
"उसने स्वीकृति में सिर हिलाया।
"युद्ध?''
“ना।''
‘‘हाइड्रोजन या एटम बम तो नहीं?''
''नहीं।''
‘जीवाणु युद्ध?''
‘‘इनमें से कोई भी नहीं," उसने धीरे-धीरे अपनी कॉफी हिलाते हुए कहा। ‘‘मान लो कि यह एक किताब का
अंत है।''
"मैं समझी नहीं।''
"मैं भी नहीं समझ पाया। यह तो एक अनुभूति भर है जो कभी-कभी मुझे डराती है और कभी-कभी बिल्कुल डर नहीं लगता, एकदम शांत रहता हूं।'' पुरुष ने लड़कियों को और उनके सुनहरे बालों को देखा जो रोशनी में चमक रहे थे। ''मैंने तुम्हें बताया नहीं, पहली बार ऐसा चार रात पहले हुआ।''
“क्या?"
‘‘एक सपना देखा था। मैंने देखा कि सब कुछ खत्म होने वाला है। और मानों एक आवाज़ यह कह रही हो। मैंने ऐसी आवाज़ कभी नहीं सुनी, लेकिन पूरे यकीन से कह सकता हूं कि वह एक आवाज़ ही थी। कहा जा रहा था कि धरती की सभी चीजें थम जाएंगी। सुबह उठकर मैंने उसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं सोचा। पर जब ऑफिस में मैंने पाया कि स्टेन विलिस दोपहर में खिड़की से बाहर एकटक ताक रहा है तो मैंने उससे पूछा, “क्या सोच रहे हो?' तब उसने कहा कि रात को उसने एक सपना देखा .....। इसके पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाता मैं समझ गया कि वह क्या कहेगा। मैं उसे बता सकता था। फिर भी उसने बताया और मैंने सुना।''
"क्या यह वही सपना था?"
‘‘बिल्कुल वही। मैंने स्टेन को बताया कि मैंने भी यही सपना देखा। उसे बिल्कुल आश्चर्य नहीं हुआ। बल्कि वह राहत महसूस कर रहा था। उसके बाद हम लोग ऑफिस में टहलने लगे। कोई योजना बनाकर टहल रहे हों ऐसा बिल्कुल भी नहीं था, अनायास ही चल दिए। पूरे ऑफिस में वही नज़ारा था - कोई डेस्क की ओर देख रहा था, कोई अपने हाथ निहार रहा था, तो कोई खिड़की के बाहर टकटकी लगाए हुए था। मैंने और स्टेन ने कुछ लोगों से बात भी की।''
“सबने सपना देखा था?" ।
"सबके सब, और बिल्कुल वही सपना। रत्ती भर भी इधर-उधर नहीं।''
"क्या तुम ऐसी बातों में यकीन रखते हो?''
"हां, अब तो मुझे पक्का विश्वास हो गया है।''
‘‘और यह सब कब रुकेगा? मेरा मतलब दुनिया से है।''
 
हमारे लिए रात में कभी। और दुनिया के अन्य हिस्सों में जैसे-जैसे रात फैलेगी, वहां भी ऐसा ही होगा। सब कुछ खत्म होने में चौबीस घंटे लग जाएंगे।''
कुछ देर तक दोनों कॉफी को छुए बिना बैठे रहे। फिर उन्होंने धीरे-धीरे कप उठाए और एक-दूसरे को देखते हुए चुस्कियां लेने लगे।
"क्या हम इसी के पात्र हैं?'' उसने पूछा।
"यह पात्रता से जुड़ा मामला नहीं है। बस इतनी-सी बात है कि कुल मिलाकर चीजें काम नहीं कर पाईं। मैंने गौर किया कि तुमने इसके बारे में कोई सवाल-जवाब नहीं किया। आखिर क्यों?"
"मेरे पास भी इसका एक कारण है,"
महिला ने कहा।
"वही जो ऑफिस के हरेक आदमी के पास था?'' उसने सहमति में सिर हिलाया, “मैं कुछ भी कहना नहीं चाहती थी। यह कल रात ही हुआ। और आज मोहल्ले की औरतें आपस में इसके बारे में चर्चा कर रही थीं। उन्होंने भी सपना देखा था। मैंने सोचा यह महज संयोग है,'' उसने शाम के अखबार पर नजर डालते हुए कहा, “अखबार में इसके बारे में कोई खबर नहीं है।''
“इसकी कोई जरूरत ही नहीं है क्योंकि सभी जानते हैं।'
उसकी तरफ देखते हुए वह कुर्सी पर बैठ गया। ‘‘क्या तुम्हें डर लग रहा है?''
"मैं सदैव सोचती थी कि मैं डर जाऊंगी परन्तु ऐसा हुआ नहीं।''
‘‘खुद को बचाने का मानवीय स्वभाव कहां चला गया? जिसके बारे में सब लोग इतनी बातें करते रहते हैं?''
''मुझे नहीं पता। परन्तु जब चीजें तार्किक हों तो आप इतने उत्तेजित नहीं होते। जिस तरह से हम रह रहे थे, इसके अलावा कुछ हो ही नहीं सकता था।''
"हम इतने बुरे भी तो नहीं थे?"
"नहीं, न ही बहुत अच्छे। मेरी समझ से शायद यही समस्या रही है - हम अपने सीमित दायरे के बाहर निकल नहीं पाए, जबकि विश्व का ज्यादातर हिस्सा कई बदतर चीजों में उलझा हुआ था।''
लड़कियां बैठक में खेलते हुए हंस रही थीं।
“मैंने हमेशा सोचा था कि ऐसी स्थिति में लोग गलियों में निकलकर चीखेंगे।''
“बिल्कुल नहीं, आप यथार्थ के बारे में नहीं चीखते चिल्लाते।''
"तुम्हें मालूम है मुझे और किसी चीज़ की नहीं बल्कि तुम्हारी और लड़कियों की कमी महसूस होगी। तुम तीनों के बिना मुझे कोई शहर, अपना काम या कोई और चीज अच्छी ही नहीं लगी। मैं बदलते मौसम, गर्मी में एक गिलास बर्फीला पानी और संभवतः सोने के अलावा किसी चीज़ का अभाव महसूस नहीं करूंगा। हम आराम से बैठे हुए इस तरह की बातें कैसे कर सकते हैं? क्या इसलिए क्योंकि हम और कुछ नहीं कर सकते?''
"ठीक कहा, अगर हमारे पास और कुछ करने को होता तो हम वह कर रहे होते। शायद दुनिया के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि सबको मालूम है कि रात में उनके साथ क्या होने वाला है।''
‘‘क्या पता सब लोग शाम के इन चंद घंटों में क्या करेंगे।"
"किसी शो में जाएंगे, रेडियो सुनेंगे, टेलीविजन देखेंगे, ताश खेलेंगे, बच्चों को सुलाएंगे और फिर खुद सो जाएंगे। जैसा कि वे हमेशा करते रहे हैं।''
"एक तरह से यह गर्व करने वाली बात है - हमेशा की तरह!''
"वे कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे, फिर पुरुष ने कॉफी का एक और कप उड़ेला। तुम्हें क्या लगता है, आज की रात ही क्यों चुनी गई?''
"क्योंकि...."
"अगली सदी, या पांच या दस सदी पहले की कोई रात क्यों नहीं हो सकती थी?''
"संभवतः इसलिए कि 19 अक्टूबर ४७, इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। और वह आज है, बस इतना ही। क्योंकि यह तारीख किसी भी और तारीख से ज्यादा मायने रखती है। क्योंकि यह वह साल है जब विश्व भर में चीजें वर्तमान स्थिति में हैं। इसीलिए यह अंत है।''
‘‘इस वक्त समुद्र के ऊपर ऐसे बहुत से बमवर्षक विमान उड़ रहे होंगे जो कभी भी जमीन पर नहीं उतरेंगे।''
‘‘शायद वे भी कारण का एक हिस्सा हैं।''
"ठीक है।'' उसने उठते हुए कहा, “जो भी हो, बर्तन धो लेते हैं?''
उन्होंने बर्तन धोकर उन्हें करीने से जमाया। साढ़े आठ बजे लड़कियों को सुला दिया गया। उनके बिस्तर के बगल की मद्धिम रोशनी जला दी गई। हल्की-सी झिर्टी छोड़कर दरवाजा भिड़ा दिया गया।
शयन कक्ष से बाहर निकल कर अपनी पाइप के साथ कुछ देर तक वह खड़ा रहा और पीछे की ओर देखते हुए पति ने कहा, “मैं सोचता हूं ..."
‘‘क्या?''
"दरवाज़ा पूरा बंद कर दिया जाए या थोड़ा खुला छोड़ दें ताकि कुछ रोशनी
 अंदर आ सके?''
"बच्चों को मालूम है क्या?''
"नहीं, बिल्कुल भी नहीं।''
वे कुछ देर तक बैठे अखबार पढ़ते रहे, कुछ और बातें कीं। थोड़ी देर के लिए रेडियो पर संगीत सुना। बाद में सिगड़ी के पास बैठे-बैठे कोयले के अंगारों को देखते रहे। साढ़े दस, ग्यारह, फिर साढ़े ग्यारह के घंटे बजे। उन्होंने दुनिया के उन तमाम लोगों के बारे में सोचा जिन्होंने इस शाम को अपने अनोखे रूप से बिताया होगा।
"ठीक है," अंत में पति ने कहा। और देर तक पत्नी को चूमता रहा।
"हम एक-दूसरे के लिए तो हमेशा से अच्छे रहे हैं।''
"तुम रोना चाहती हो?'' उसने पूछा।
"नहीं।''
फिर उन्होंने घर की सभी बत्तियां बुझाई और अपने सोने के कमरे में आ गए। सर्द रात में कपड़े बदलते हुए कुछ देर तक वे खड़े रहे।
"चादरें बहुत साफ और सुंदर हैं।”
“मैं थक गया हूं।''
"हम सभी थके हुए हैं।''
दोनों बिस्तर पर लेट गए।
"एक मिनट।'' पत्नी ने कहा।
 
उसने आहट से अंदाज़ लगाया कि वह बिस्तर से उतरकर रसोई की ओर जा रही है। कुछ क्षण बाद वह लौट आई। ‘‘मैंने रसोई में नल खुला छोड़ दिया था,'' वह बोली।
उसके कहने में ऐसा कुछ था कि वह हंसने लगा।
यह सोचकर कि उसने जो कुछ किया था उसमें कुछ हंसने लायक बात थी, वह भी हंसने लगा।  कुछ देर बाद हंसी थमी और वे एक-दूसरे का हाथ पकड़े-पकड़े सो गए।
कुछ देर बाद पति ने कहा, “शुभरात्रि।"
‘‘शुभरात्रि'' पत्नी ने भी दोहराया।


रे ब्रेडवरी: बीसवीं सदी के प्रख्यात विज्ञान लेखकों में एक प्रमुख नाम।
यह कहानी 1952 में हाइनमैन द्वारा प्रकाशित उनके संकलन 'द इलस्ट्रेटेड मैन' से ली गई है।
हिन्दी अनुवादः लाल बहादुर ओझा: दिल्ली में रहते हैं, फ्रीलांस पत्रकारिता करते हैं।