कहानी
इयान मेक इवान

दिन में सपने देखने वाले पीटर ने इस बार बिल्ले के शरीर में घुसकर जाना बिल्ला होने का मतलब।
 
पीटर के माता-पिता दोनों नौकरीपेशा थे। घर में खाने की मेज़ के इर्द-गिर्द भगदड़ मची रहती - कभी गुम कागज़ की तलाश होती तो कभी मिलने वालों के पते-ठिकाने का हिसाब रखने वाली डायरी की, कभी जूते नहीं मिल रहे होते तो कभी कुछ और। जो कुछ भी पक रहा हो उसे गड़प जाना और अपने लिए बैठने की जगह खोजना ही आपकी नियति होती।

यहां हर समय गर्माहट बनी रहती, कुछ-कुछ बिस्तर जैसी - लेकिन वैसा सुकून न होता। चारों और सवालों का भेष ओढे ढेरों आरोप बिखरे रहते। बिल्ले को किसने खाना दिया? तुम कितने बजे घर आओगे? क्या तुमने स्कुल का काम खत्म कर लिया? मेरा ब्रीफकेस किसके पास है? हर बीतते पल के साथ बदहवासी और हड़बड़ाहट बढ़ती जाती। परिवार का नियम था, घर छोड़ने से पहले रसोई को साफ सुथरा छोड़ना। कभी-कभी तो आपको अपना खाना तवे से सीधा झपटना पड़ता, इससे पहले कि वह बिल्ले के कटोरे की नज़र हो जाए और फिर तवा सू-सू करता हुआ पानी में जा डुबे। परिवार के चारों सदस्य जुठी प्लेटों और खाने के पैकिट थामे लगातार टहल रहे होते, एक-दूसरे से टकराते और बड़बड़ाते 'आज फिर देर हो ही गई', 'फिर से देर हो ही गई’, ‘इस हफ्ते में तीसरी बार'।

लेकिन उस परिवार में एक पांचवां सदस्य भी था। उसे कभी भी जल्दबाज़ी न होती; और जो इस भगदड़ की अनदेखी करता। वह रेडिएटर के ऊपर वाले माले पर लेटा रहता, आंखें मूंदे। उसके जिंदा होने का एकमात्र प्रमाण कभी-कभार की जम्हाई होती। खुले मुंह से गुलाबी जीभ झांकती और जब वह वापस आंख बंद करता तो एक आरामदेह सिहरन उसकी गर्दन से पैरों तक दौड़ जाती। विलियम बिल्ने का दिन शुरू हो रहा था।
अपना थैला झपटकर भागने से पहले जब पीटर मुड़कर घर पर आखरी नज़र डालता तो उसकी निगाह हमेशा विलियम पर जा ठहरती। एक पांव पर टिका सिर, दूसरा पांव बेपरवाहसा आले के किनारे झूलता रहता - बढ़ती गर्माहट के मजे लेता। यह इन विचित्र इंसानों के जाने का वक्त है, अब बिल्ला कुछ सुकून से सोएगा। बाहर उत्तरी बर्फीली हवाओं के थपेड़े पड़ते ही पीटर को सुकून से ऊंघते बिल्ले की याद बहुत विचलित करती।

अगर आपको परिवार के सदस्यों में एक बिल्ले का शुमार होना अजीब लगता है तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि विलियम की उम्र पीटर और उसकी बहन केट दोनों की उम्र से ज्यादा हैं। वह उनकी मां को स्कुल के ज़माने से जानता था। इसके बाद वह उनके साथ विश्वविद्यालय जाता था और पांच साल बाद वह उसकी शादी में भी मौजूद था। पहले बच्चे के समय जब वायोला फॉर्म्युन कभी-कभी दोपहर के समय बिस्तर पर आराम कर रही होती तो विलियम उसके उभरे हुए पेट (यानी पीटर) पर पसर जाता। पीटर और केट दोनों के जन्म के समय कई दिनों तक वह घर से गायब हो गया था। कहां और क्यों - कोई नहीं जानता। उसने परिवार की खुशियों और गमों को चुपके-चुपके देखा है। उसने नवजात शिशुओं को घुटनों के बल रेंगते बच्चों में बदलते देखा है, जो फिर उसे कानों से पकड़कर उठाने की कोशिश करते हैं; और बाद में वहीं बच्चे बड़े होकर स्कूल जाने लगे हैं। वह पीटर के माता-पिता को तब से जानती है जब वे एक कमरे में रहने वाले युवा दम्पति थे। अब वे तीन कमरों के घर में रहते हैं और पहले जैसे स्वच्छंद नहीं रहे। विलियम भी अब वैसा युवा जंगली नहीं रहा। वह अब चूहों और चिड़ियों को अकृतज्ञ इंसानों के चरणों में नहीं ला पटकता। अपने चौदहवें जन्मदिन के तत्काल बाद उसने लड़ना-झगड़ना भी छोड़ दिया, और न ही वह अब अपने इलाके की सुरक्षा करता है। पीटर को यह बहुत ही बुरा लगता कि पड़ोसी का जवान बिल्ला टॉम बगीचे पर अपना अधिकार जमाए जा रहा है। वह जानता है कि बुढा विलियम कुछ नहीं कर पाएगा। कभी-कभी टॉम रसोई में रखा विलियम का खाना तक आकर खा जाता है और विलियम असहाय-सा देखता रहता है। कुछ साल पहले तक किसी बिल्ली की लॉन पर पांव धरने की हिम्मत तक न होती थी।

अपनी सत्ता खोने का विलियम को ज़रूर दुख हुआ होगा। उसने दूसरी बिल्लियों का साथ छोड़ दिया और अपनी यादों, स्मृतियों के साथ अकेला घर पर बैठा रहता। लेकिन सत्रह साल का होने के बावजूद उसने अपने आप को छरहरा बनाए रखा था। वह था तो काला लेकिन पांव, छाती और पूंछ की नोक पर सफेद रंग के छींटे थे। कभी-कभी वह क्षण भर सोचने । के बाद आपकी गोद में छलांग लगा देता। पैरों को फैला कर वह वहां खड़ा हो जाता, और बिना पलकें झपकाए आपकी आंखों की गहराइयों में झांकता। इसके बाद घूरना बरकार रखते हुए वह अपना सिर थोड़ा तानते हुए बोलता - म्याऊं। और आप समझ जाते कि वो आपको कुछ जरूरी और अच्छी बात बता रहा है - कुछ ऐसी बात जिसे आप कभी नहीं समझ पाएंगे।

सर्दियों की दोपहर स्कूल से आने के बाद, अपने जूते फेंक जलती सिगड़ी के पास, विलियम से सटकर लेटने से ज्यादा सुखकर पीटर के लिए और कुछ न था। उसको विलियम के एकदम करीब जाकर उसे निहारना, उस असाधारण सुंदरता को देखना बहुत भाता। झबरे बालों के पीछे के उस नन्हें-से चेहरे की गोलाई पर उग आए काले बाल, हल्की-सी गोलाई में नीचे की ओर घुसी सफेद मूंछे, रेडियो के एंटीना सरीखे भौहों के खड़े बाल और पीली-हरी सी आंखें - मानों यह अधखुला दरवाज़ा उस दुनिया में खुलता हो जहां पीटर कभी न जा पाएगा। बिल्ले के करीब जाते ही घुरघुराहट शुरू हो जाती, धीमी परन्तु सशक्त इतनी कि जमीन तक कांप जाती। पीटर का स्वागत करने का उसका तरीका था यह।

ऐसी ही एक शाम थी - मंगलवार, सायं के चार बजे। रोशनी कुछ मंद सी पड़ गई थी। परदे खिंच गए थे और बत्ती जल चुकी थी। पीटर कालीन पर पसर गया। विलियम लपलपाती आग के सामने पहले से लेटा हुआ था। आग लकड़ी के मोटे गट्ठर की गोलाइयों को अपनी लपटों में समेटने की कोशिश में लगी थी। छत को बुहारती बर्फीली हवाओं की सिसकारी चिमनी से नीचे तक आ रही थी। खुद को गर्म रखने के लिए पीटर केट के साथ, बस स्टॉप से भागता आया था। अब वह अपने उस पुराने दोस्त के साथ घर में सुरक्षित था, जो अपने आप को जवां साबित करने की कोशिश में अपनी पीठ के बल लोट लगा रहा था। और अपने अगले पांवों को बेचारगी में हिला रहा था। मतलब साफ था। जनाब सीने पर हाथ फिराना चाहते थे। पीटर ने जैसे ही उसके बालों पर उंगलियां फिराना शुरू किया, घुरघुराहट बढ़ती गई। इतनी...इतनी बढ़ी कि उस बूढ़े जिस्म की एक-एक कपकंपाने लगी। और फिर विलियम अपना एक पैर पीटर की उंगलियों तक ले गया और उसे ऊपर उठाने की कोशिश की। पीटर ने अपने हाथ को बिल्ले के भरोसे छोड़ दिया। "क्या तुम चाहोगे कि मैं तुम्हारी ठुड्डी को सहलाऊं?'' वह बुदबुदाया। लेकिन नहीं। बिल्ली की मंशा ठुड्डी नहीं बल्कि गले के निचले हिस्से को सहलवाने की थी। पीटर को वहां कुछ सख्त-सी चीज़ महसूस हुई। छूने पर वह हिलने लगी। कोई चीज जो इसके झबरे बालों में कैद हो गई है। पीटर अपनी कोहनियों के सहारे उठ बैठा - माजरा क्या है। पता लगाया जाए। रोएं अलग करने पर पहली नजर में उसे लगा ज्यों गहने का कोई हिस्सा हो, एक छोटा-सा चांदी का छल्ला हो; परन्तु जैसे ही उसने ध्यान से भीतर झांका तो पाया कि वो धातु न थीं बल्कि एक चमकता हुआ अंडाकार व बीच से चपटा हड्डी का टुकड़ा था। और सबसे आश्चर्यजनक बात यह कि वह विलियम की चमड़ी से चिपका हुआ था। पीटर ने इस टुकड़े पर अपनी पकड़ मजबूत की और उसे एक झटके से खींच दिया। बिल्ले विलियम की घुरघुराहट और तेज़ हो गई। पीटर ने एक बार फिर नीचे की ओर खींचा... हां, इस बार कुछ हुआ-सा महसूस हुआ।

उंगलियों के पोरो से उसने बिल्ले के फर को हटाने पर देखा कि वहां उसकी चमड़ी पर एक बारीक-सी दरार थी। उसे ऐसा लगा ज्यों वह कोई चेन खोल रहा हो। उसने फिर से खींचा तो अब वहां कोई दो इंच लम्बी काली दरार बन गई। विलियम की घुरघुराहट का यही स्रोत था। पीटर को लगा कि शायद वह उसके दिल की धड़कनों को देख पाएगा। बिल्ला फिर से अपने पांव से उसकी उंगलियों को धीरे-धीरे सहलाने लगा। यानी वह चाहता था कि उंगलियां चलती रहें।
और उसने ऐसा ही किया। उसने बिल्ली को गले से पूंछ तक पूरी तरह से खोल दिया। वह चमड़ी को अलग कर उसमें झांकना चाहता था, लेकिन वह ज्यादा ताक-झांक भी नहीं करना चाहता था। ..... वह केट को बुलाने ही वाला था कि एक हरकत हुई। बिल्ले के बदन में सरसराहट हुई और उसके झबरे बालों में छिपी दरार से हल्की गुलाबी रोशनी-सी निकली जो तेज़, और तेज़ होती गई।

और अचानक विलियम बिल्ले में से कोई शै, कोई जीव-सा निकला। पीटर निश्चित नहीं कर पा रहा था कि उसे छुआ जा सकता है या नहीं क्योंकि वह पूरी-की-पूरी शै रोशनी की सी बनी हुई थी। और मजेदार यह कि वहां न मूछे थीं न पूंछ, न घुरघुराहट और न ही झबरी खाल, न चारे टांगें ही थी; फिर भी उसका रोम-रोम यही कह रहा था कि वह बिल्ला ही है। उस बिल्ले में से निकल रही थीं एक गुलाबी और जामुनी से रंग की फीकी मोहक-सी रोशनी।
'तुम विलियम की आत्मा हो या फिर कोई भूत हो' पीटर ज़ोर से बोला। रोशनी में से कोई आवाज़ तो न आई लेकिन वह सवाल के आशय को समझ ज़रूर गई। बिना कोई शब्द बोले लगा मानो वह बोल रही हो कि वह दोनों ही है। और शायद उससे भी कहीं ज्यादा।
अंगार के आगे कालीन पर पीठ के बल लेटे बिल्ले से मुक्त होते ही, बिल्ले की आत्मा हवा में लहराती पीटर के कंधों तक पहुंची और वहां आकर टिक गई। पीटर डरा नहीं। उसे उसकी चमक अपने गालों पर महसुस हुई और फिर उसके सिर के पीछे से होती हुई वह नज़र से ओझल हो गई। उसे महसूस हुआ ज्यों उसने पीटर की गर्दन को छुआ और उसकी रीढ़ में एक कंपकंपी-सी दौड़ गई। बिल्ले की आत्मा ने उसकी रीढ़ की हड्डी के ऊपरी सिरे पर कुछ घंडीदार चीज़ को पकड़ा और उसे नीचे की ओर खींच दिया, एक दम नीचे तक। और जैसे ही पीटर का खुद का शरीर खुला तो उसे बाहर की ठंडी हवा अंदर की गर्माहट को गुदगुदाती हुई-सी महसूस हुई।

बहुत ही विचित्र अहसास था। अपने खुद के शरीर से बाहर निकल जाना और उतरी हुई कमीज़ की तरह उसे कालीन पर पड़े रहने देना। पीटर ने अपने में से निकली चमक को देखा, जामुनी और सफेद रोशनी। दोनों आत्माएं एक दूसरे के आमने-सामने कुछ देर हवा में डोलती रहीं। और फिर अचानक पीटर जान गया कि वह क्या करना चाहता है, क्या करना चाहिए। वह विलियम की तरफ तैरता हुआ पहुंचा और वहां जाकर उस पर मंडराने लगा। विलियम का शरीर दरवाजे की तरह खुला था, निमंत्रित करता, स्वागत करता। वह नीचे झुका और भीतर चला गया। कितना बढ़िया था बिल्ले के तरह के कपड़े पहनना। अंदर की हालत बिल्कुल भी वैसी लिजलिजी नहीं थी जैसा कि उसे अंदेशा था। अंदर सूखा और गर्म माहौल था। वह पीठ के बल लेटा और अपने हाथ बिल्ले की अगली टांगों में घुसा दिए, और अपनी टांगें बिल्ले की पिछली ट्रांगों में डाल दी। उसका सिर पूरी तरह से बिल्ले के सिर में फिट हो गया था। उसने मुड़कर देखा और अपने शरीर में बिल्ले की आत्मा को गुम होते पाया। पंजों से पीटर ने अपनी चेन बंद की। फिर वह खड़ा हुआ और कुछ कदम चलकर देखा। सफेद, मुलायम से चार पैरों पर चलने का क्या आनंद है! उसे अपने चेहरे के दोनों ओर तनी मूंछे और पीछे घुमी हुई पूंछ का भी अहसास हो रहा था। उसके कदम एकदम हल्के-फुल्के लग रहे थे, और उसके रोएं पुराने गर्म स्वेटरों में से सबसे आरामदायक स्वेटरसा अहसास दे रहे थे। बिल्ला बन जाने की वजह से उसकी खुशी इतनी बढ़ी कि उसका दिल फुलकर कुप्पा हो गया, और उसके गले के अंदर झुनझुनी-सी इतनी तेज़ हो गई कि वह खुद उसे सुन पा रहा था। पीटर बिल्ला घुर्रा रहा था और विलियम लड़का वहां बैठा था। वह लड़का उठा, उसने अंगड़ाई ली और फिर अपने पांव के पास बैठे बिल्ले से एक शब्द भी कहे बगैर कमरे से बाहर चला गया।

पीटर ने अपने पुराने शरीर को रसोई से कहते सुना, “मां, भूख लगी है, रात खाने में क्या है?"
उस रात पीटर बहुत बेचैन और उत्तेजित रहा। 10 बजे के करीब वह घर से बाहर निकल गया। बाहर की बर्फीली हवा भी उसकी मोटी रोएंदार चमड़ी को पार नहीं कर सकती थी। वह बगीचे की दीवार की तरफ बेआवाज़ बड़ा।
दीवार ऊंचीं थीं लेकिन एक आसान, नज़ाकत भरी छलांग ने उसे ऊपर पहुंचा दिया और वह अपने इलाके का सर्वे करने लगा। अंधेरे कोनों
को देख पाना, अंधेरी रातों की हवाओं की हर सिरहन को अपनी मूंछों पर अनुभव करना कितना अद्भुत है। इतना ही नहीं जब एक लोमड़ी बगीचे के रास्ते कचरे के डिब्बों को खंगालने आई तो ऐसे में खुद को अदृश्य कर लेना भी कम मजेदार नहीं था। उसे आसपास की दूसरी बिल्लियों की भी अनुभूति हो रही थी - कुछ उसी इलाके की थीं और कुछ दूर-दराज से आई थीं। वे सब अपने-अपने इलाकों में अपने जाने-पहचाने रास्तों पर विचरती हुई, अपने-अपने रात्रिकालीन काम निपटा रही थीं। लोमड़ी के बाद एक छोटे-से धारीदार भूरे बिल्ले ने बगीचे में घुसने की कोशिश की। पीटर ने अपनी घुरघुराहट और पूंछ के झटके से उसे धमका दिया। शिशु बिल्ले को अचरज में चिल्लाते और भागते देख वह संतोष से घुरघुराने लगा।

उसके तुरंत बाद ग्रीन हाऊस की ऊंची दीवार पर गश्त के दौरान उसका एक दूसरे बिल्ले से आमना-सामना हुआ। एक ज्यादा खतरनाक घुसपैठिया - इतना काला था कि पीटर को पहले तो वह नज़र न आया। वह पड़ोसी टॉम था - हट्टा-कट्टा। पीटर से लगभग दोगुना आकार, मोटी गर्दन और मजबूत टांगें। बिना सोचे पीटर ने अपनी पीठ को ऊपर की ओर धनुष की तरह तान लिया और अपने रोओं को खड़ा कर दिया ताकि वह कुछ और बड़ा दिखने लगे।
"ऐ बिल्ले, यह मेरी दीवार है जिस पर तुम सवार हो" पीटर फुफकारा। काला बिल्ला कुछ चकराया फिर मुस्कुरा कर बोला, "दादाजी यह कभी तुम्हारी दीवार रही होगी। अब तुम इसका क्या करने वाले हो?"
"भाग जाओ, उससे पहले कि मैं तुम्हें उठाकर फेंक दें" पीटर अचंभित था कि उसे बिल्ले का यह अतिक्रमण कितना चुभ गया था। यह उसकी दीवार थी, उसका बगीचा और दुश्मन बिल्लियों को दूर रखना उसका काम।

काला बिल्ला फिर से मुस्कुरा कर बोला, "देखिए दादाजी, लम्बे समय से यह तुम्हारी दीवार नहीं रही है। मैं ही इस पर आता-जाता रहा हूँ। अब रस्ता साफ करो वरना चीरकर रख दूंगा।''
"भाग, पिस्सु कहीं के। एक कदम तो और बढ़ा, मैं तेरी मूछों को तेरी गर्दन पर लपेट न दें तो कहना।''
काले बिल्ले ने तिरस्कार भरा एक अट्टहास लगाया लेकिन आगे कदम नहीं बढ़ाया। चारों ओर आसपास की बिल्लियां अंधेरे में झांकने लगी थीं। पीटर को ‘लड़ाई, लड़ाई' की आवाजें सुनाई दी। “बुढ्ढा सरक गया लगता है। और ज्यादा नहीं तो सत्रह साल का तो होगा ही।''
काले बिल्ले ने अपनी मजबुत रीढ़ की हड्डी को ऊपर की ओर घुमाया और फिर जोर से हुंकारा।
पीटर ने अपनी आवाज़ को शांत बनाए रखने की कोशिश की लेकिन फुफकारते से शब्द निकले, "तुम मुझसे पुछे बगैर उस रास्ते का इस्तेमाल नहीं करोगे।'' काले बिल्ले ने पलकें झपकाईं। चीत्कार भरी हंसी से उसकी मोटी गर्दन की मांसपेशियों में लहर-सी दौड़ गई - यह युद्ध उद्घोष भी था।

सामने वाली दीवार पर जमा होते हुजूम में उत्तेजना दौड़ गई।
"बूढ़ा बिल्ला सरक गया है।''
“उसने लड़ाई के लिए गलत बिल्ला चुन लिया है।''
"ओह बिना दांत के बुढे भेड़, मैं यहां का बिल्ला नं.1 हूं। क्या यह सही नहीं है।' काले बिल्ले की फुफकार पीटर से ज्यादा पैनी थी।
काले बिल्ले ने अपनी बात को जारी रखा, "मेरी सलाह है पीछे हट जाओ। वरना तुम्हारी अंतड़ियों को पूरे बगीचे में बिखरा दूंगा।"
पीटर जानता था कि अब वापसी का कोई रास्ता नहीं है। उसने अपना पंजा आगे बढ़ाया ताकि वह दीवार को मजबूती से पकड़ सके और फिर बोला, “ए सूजे हुए चूहे! तुम्हें सुनाई दे रहा है....यह मेरी दीवार है और तुम एक बीमार कुत्ते की लेंडी से ज्यादा कुछ नहीं हो।' काले बिल्ले को झटकासा लगा। भीड़ में दबी-दबी सी हंसी फैल गई। पीटर तो कितना मृदुभाषी लड़का था। परन्तु अब इस तरह की गाली-गलौच में उसे कितना मज़ा आ रहा था।

काले बिल्ले ने चेताया और एक कदम आगे बढ़ाया, "बच्चू तुम चिड़ियों का नाश्ता बन जाओगे।'' पीटर ने एक गहरी सांस ली। बूढ़े विलियम की खातिर उसे जीतना ही है। वह सोच ही रहा था कि काले बिल्ले का पंजा सटाक से उसके चेहरे की तरफ उछला। पीटर के पास एक बूढ़ी बिल्ली का शरीर ज़रूर था लेकिन साथ ही एक युवा लड़के का दिमाग भी था। पीटर एकदम से झुका और उस झपट्टे की आवाज़ को उसने कान के बिल्कुल करीब से गुजरते हुए सुना। वह एकदम से मुड़ा और उसने कल्लू को एक पल के लिए तीन टांगों पर खड़े देखा। बिना देर किए वह कुदा और अपने अगले दोनों पांवों से उस के सीने पर धक्का दिया। अक्सर बिल्लियां ऐसा नहीं करती हैं। बिल्ला नं.1 हैरान था। अचरज में चीखता हुआ वह फिसला और पीछे की ओर लड़खड़ाते हुए ग्रीनहाऊस की छत से नीचे जा गिरा। उसका सिर पहले नीचे टकराया। टूटे कांच की संगीतमय खनखनाहट और टूटे गुलदानों की खड़खड़ाहट ने बर्फीली रात की चुप्पी को अंग-भंग कर दिया। फिर शांति, चुप्पी। निस्तब्ध हुजूम ने नीचे ताकना-झांकना शुरू कर दिया। सरसराहट और फिर एक कराह सुनाई दी। और फिर रात के अंधेरे में एक काले बिल्ले का लड़खड़ाता साया लॉन पार करता दिखाई दिया। उसकी बुदबुदाहट भी सुनाई दी, "यह ठीक नहीं है। पंजे और दांत तक तो ठीक है पर इस तरह धक्का देना कतई उचित नहीं।''

पीटर चिल्लाया, “अगली बार इजाज़त लेकर आना समझे।''
काला बिल्ला कुछ बोला नहीं लेकिन उसके पीछे हटते कदम और लंगड़ाती छवि ने साफ कर दिया कि सब समझ आ गया है।
अगली सुबह पीटर रेडिएटर के ऊपर के आले में लेटा था। एक पांव को सिरहाना बनाए और दुसरा हवा में झूलता हुआ। उसके आसपास भगदड़ थी, अस्तव्यस्तता थी। केट को अपना झोला नहीं मिल रहा था। दलिया जल चुका था। मिस्टर फॉच्र्युन का माथा चकरा गया था क्योंकि कॉफी पाउडर खत्म हो चुका था और दिन शुरू करने के लिए उसे कम-से-कम स्ट्रांग काफी के तीन कप तो चाहिए ही थे। रसोई में सब गड़बड़-सड़बड़ था और इस सब पर जले दलिये की गंध फैली हुई थी। देर बहुत देर हो चुकी थी। पीटर ने अपनी पूंछ को पिछली टांगों पर लपेटा और अपनी घुरघुराहट को धीमा रखने की कोशिश की। कमरे में दूसरी ओर उसका पुराना शरीर था, जिसमें था विलियम बिल्ला। और उस शरीर को स्कुल जाना था। विलियम चकरायासा लग रहा था। कोट पहन वह स्कूल जाने को तैयार था लेकिन उसने केवल एक जूता पहना था। दूसरा कहीं गुमशुदा था। वह कमज़ोर कांपती आवाज़ में बोलता जा रहा था, "मेरा जूता कहां है? लेकिन श्रीमती फॉर्म्युन तो किसी से फोन पर बहस करने में मशगूल थी।

पीटर बिल्ले की आंखें अधखुली थीं। जीत ने उसे बेहद थका दिया था। जल्द ही पूरा कुनबा गायब हो जाएगा और शांति कायम हो जाएगी। रेडिएटर के ठण्डा हो जाने पर वह ऊपर जाकर सबसे सुविधाजनक बिस्तर ढूंढेगा। पुराने दिनों की खातिर वह अपना खुद का बिस्तर चुनेगा।
दिन उसकी उम्मीद के मुताबिक बीता। ऊंघते, कटोरे के दूध का चटखारा लेते, फिर से ऊंधते, बिल्ली का डिब्बा बंद खाना खाते। खाने की गंध जैसी थी उसके मुकाबिले उसका स्वाद कहीं बेहतर था।
उसके बाद फिर नींद। उसे पता ही न चला कब अंधेरा होने लगा और कब बच्चे स्कूल से वापस आ गए। विलियम स्कुल और खेल के मैदान की जद्दोजहद से थका हारा घर पहुंचा। 'बिल्ला-लड़का और लड़का-बिल्ला' दोनों जलते अंगारों के पास लेट गए। अजीब नज़ारा था। वो सोचने लगा कि क्या विलियम-लड़का स्कूल, बस, मां, पिता, बहन वाली इस नई ज़िन्दगी में खुश है? लड़के के चेहरे से पीटर बिल्ले को कुछ न पता चला। वह चेहरा इतना बाल-रहित, मूंछों-रहित व गुलाबी था और आंखें इतनी गोल थीं कि यह जानना असंभव था कि वे क्या कह रही हैं।

देर शाम पीटर टहलता हुआ केट के कमरे तक पहुंचा। हर बार की तरह वह गुड़ियों से बात कर रहीं थीं और उन्हें भूगोल का पाठ पढ़ा रही थी। गुड्डियों के चेहरे से यह साफ था कि विश्व की सबसे लम्बी नदी में उनकी कोई रुचि नहीं है। पीटर के उसकी गोद में कूदते ही वह अनजाने ही उस पर हाथ फेरने लगी - बातें करना जारी रहा। काश, उसे पता होता कि उसकी गोद में बैठा जीव दरअसल उसका भाई ही है। पीटर बैठा-बैठा घुरघुराता रहा। केट उन राजधानियों के नामों की सूची बनाना शुरू करने ही वाली थी जिन्हें वह जानती है। यह इतना बोझिल था कि उसकी आंखें बूंदी ही थीं कि तभी ज़ोर से दरवाजा खुला और विलियम-लड़का वहां अवतरित हुआ।
“हेलो पीटर, तुमने दरवाजे पर दस्तक नहीं दी।' केट बोली।
लेकिन उसके भाई ने कोई ध्यान न दिया। उसने कमरा पार किया, केट के पास लेटे बिल्ले को उजड्ड ढंग से उठाया और जल्दी से बाहर निकल आया। बिल्ले पीटर को यह नागवार गुजरा। इस उम्र के बिल्ले को इस तरह से उठाया जाना अशोभनीय था। उसने छूटने की कोशिश की लेकिन लड़के ने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली और जल्दी से सीढ़ियां उतरने लगा। "श्शशश। हमारे पास वक्त नहीं है।" वह बोला।

विलियम ‘पीटर बिल्ले' को लेकर नीचे के कमरे में गया और वहां उसे छोड़ दिया।
"हिलो मत। वही करो जो मैं कहता हूं। अपनी पीठ के बल लेट जाओ।"
पीटर बिल्ले के पास चुनाव की गुंजाइश न थी क्योंकि लड़के ने उसे एक हाथ से जकड़ रखा था तथा दूसरे हाथ से उसके बालों में कुछ ढूंढ रहा था। उसके हाथ चमकीली हड्डी को एक टुकड़ा लगा और उसने उसे नीचे की ओर खींच लिया। पीटर ने अपने भीतर ठंडी हवा के झोंके को महसूस किया, और वह बिल्ले के शरीर से निकल आया। लड़का भी अपनी ही गर्दन के पीछे ऐसी हड्डी ढूंढकर अपनी चेन खोल रहा था। इसके बाद लड़के के शरीर से असली बिल्ले की गुलाबीजामुनी रोशनी निकली। एक पल के लिए दोनों आत्माएं - बिल्ले और इंसान की आत्माएं, एक-दूसरे के आमने-सामने तैरती रहीं। नीचे कालीन पर उन के शरीर लेटे थे - इंतज़ार में वैसे ही जैसे टैक्सी अपनी सवारी को ले जाने के इंतजार में खड़ी रहती है। हवा में एक उदासी का अहसास था।

हालांकि बिल्ले की आत्मा बोली नहीं लेकिन पीटर ने भांप लिया कि वह कह रही थी कि “मुझे लौटना चाहिए। मुझे अभी एक और रोमांचक काम करना है। मुझे लड़की बनने का मौका देने के लिए धन्यवाद। मैंने बहुत कुछ सीखा जो आने वाले समय में मेरे लिए उपयोगी होगा। और मेरे लिए आखरी लड़ाई लड़ने के लिए धन्यवाद।"
पीटर कुछ कहने ही जा रहा था लेकिन बिल्ले की आत्मा अपने जिस्म में वापस जा रही थी।
बिल्ले में घुसती गुलाबी-जामुनी रोशनी बोलती-सी महसूस हुई ''वक्त बहुत कम है।''
पीटर अपने शरीर की ओर बढ़ा और रीढ़ की हड्डी के ऊपरी हिस्से से अंदर की ओर खिसक गया।
शुरू-शुरू में उसे कुछ अजीब-सा लगा। इस शरीर में वह फिट नहीं हो पा रहा था। जब वह खड़ा हुआ तो वह लड़खड़ा रहा था। यह चार साइज़ बड़े रबर के जूते पहनने जैसा था। शायद इस्तेमाल न होने के दौरान उसका शरीर पहले से बड़ा हो गया हो। उसे पल भर के लिए लेट जाना ज्यादा ठीक लगा। उसके ऐसा करते ही विलियम बिल्ला मुड़ा और धीमे-धीमें, और अकड़ता हुआ कमरे से निकल गया। उसकी ओर एक नज़र डाले बगैर।

लेटे-लेटे अपने पुराने शरीर से तालमेल बैठाते वक्त पीटर ने एक अजीब चीज़ देखी। आग अब तक उस लकड़ी के लट्ठे को लपेटे थी। उसने बाहर देखा। अंधेरा बढ़ रहा था। शाम होने को थी, पास पड़ा अखबार बता रहा था कि अभी भी मंगलवार है। एक और अजीब चीज़। उसकी बहन केट रोते-रोते कमरे में घुसी आ रही थी। पीछे-पीछे उसके माता-पिता थे। उनके चेहरे भी लटके हुए थे।
"भाई, बहुत ही बुरा हुआ।' केट रोते-रोते बोली।
"मुझे अफसोस है विलियम बिल्ला..." मां बोली।
“हाय! विलियम" केट ने बिलखते हुए मां के शब्दों को काट दिया।

"वह रसोई में घुसा, रेडिएटर के ऊपर अपनी पसंदीदा आले पर चढ़ा, आंखे मूंदी और चल बसा।'' उसके पिता ने जोड़ा
केट का रोना जारी था। पीटर ने देखा कि सभी उसकी प्रतिक्रिया जानने को उत्सुक थे। परिवार में वही बिल्ले के सबसे करीब था।
"वह सत्रह बरस का था। अच्छी पारी खेली।'' थॉमस फॉच्र्युन बोले।
"उसने अच्छा जीवन जिया।'' मां बोली। पीटर धीरे से खड़ा हुआ। दो टांगें अपर्याप्त-सी लगीं।।
"हां, अब वह एक दूसरे रोमांच में लगा है।'' अंततः पीटर बोला।

अगली सुबह बगीचे में विलियम को दफना दिया गया। पीटर ने लकड़ियों से क्रॉस बनाया और केट ने जयपत्र की पत्तियों और टहनियों से माला बनाई। हालांकि स्कूल और काम पर जाने में देरी हो रही थी लेकिन पूरा परिवार एक साथ उसकी कब्र तक गया। बच्चों ने मिट्टी का आखरी बेलचा डाला। तभी अंदर से गुलाबी-जामुनी रोशनी की एक चमकती गेंद हवा में तैर गई।
"देखो।'' पीटर ने इशारा किया।
"क्या?"
"वह ठीक तुम्हारे सामने।"
“पीटर तुम किसके बारे में बोल रहे हो?"
"वह फिर सपने देखने लगा है।''
रोशनी ऊपर, और ऊपर उठती गई जब तक कि वह पीटर के सिर तक न पहुंच गई। वह कुछ बोली नहीं। बोलना असंभव भी होता, लेकिन पीटर ने सब कुछ सुन लिया।
“अलविदा पीटर" गुम होती रोशनी ने कहा, "अलविदा, और एक बार फिर शुक्रिया।"


मूल लेखकः इयान मेक इवान: अंग्रेज़ी साहित्य में अपनी कहानियों के लिए जाने जाते हैं। कुछ उपन्यास भी लिखे हैं।
अनुवादः शशि सबलोक: एकलव्य के प्रकाशन कार्यक्रम में संबद्ध। अनुवाद में रुचि। यह कहानी 'हे ड्रीमर' किताब से साभार प्रकाशकः बिन्टेज पब्लिशर्स, लंदन।
चित्र: उदय प्रकाशः स्वतंत्र रूप में चित्रकारी करते हैं। भोपाल में रहते हैं।