विलियम हार्वे की भूमिका

विलियम हार्वे का जन्म इंग्लैंड के केंट शहर में 1 अप्रैल, 1578 को हुआ था। स्कूली व चिकित्सा शिक्षा पाने के पश्चात् वह सहायक चिकित्सक के पद पर सेंट बारथॉलोम्यू अस्पताल में नियुक्त हुआ। हार्वे ने यहां 34 वर्ष तक कार्य किया और इस बीच इंग्लैंड के राजा, जॉर्ज प्रथम, का विशिष्ट फिजिशियन नियुक्त हुआ। इसी दौरान उसने अपना महत्वपूर्ण शोधकार्य भी किया।

सबसे पहले हार्वे ने गेलन व यूनानी दर्शनशास्त्रियों के चार मूल तत्व वाली परिकल्पना का खंडन किया। उसके अनुसार शरीर का मूल तत्व खून था।
प्राचीन काल से ही लोगों ने प्रकृति के अलग-अलग चक्रों को देखा था दिन और रात, मौसम का चक्र, हवा और बारिश का चक्र इत्यादि। चक्र या वृत का महत्व न केवल प्रकृति में बल्कि धार्मिक विचारों में भी उभरता है। हार्वे इन विचारों से ज़रूर प्रभावित हुआ होगा। उसकी परिकल्पना थी कि खून भी एक चक्र में बहता है तथा खून एक बंद परिपथ में परिसंचारित होता है। शायद इसीलिए उसने शिराओं के वाल्व को गेलन की तरह नहीं नकारा, बल्कि उन एकतरफा वाल्व को खून के एक दिशा में बहने का प्रमाण माना।

इस बात को सिद्ध करने के लिए उसने एक बहुत ही सरल प्रयोग किया। उसने अपनी ही बांह पर, कंधे के पास, एक रस्सी कसकर ऐसे बांधी कि बांह की सतही शिरा बंद हो परंतु नीचे की धमनी खुली रही। उसने देखा कि रस्सी और उंगलियों के बीच शिरा फूलने लगी और रस्सी की दूसरी तरफ वह खाली हो गई। उसने फिर रस्सी के पास फूली शिरा को दबाया और उंगली सरकाकर शिरा को खाली कर दिया। उंगली उठाने पर खाली शिरा में खून उस बिंदु से भरने लगा जो हृदय से सबसे दूर था।

उसने यह प्रयोग जानवरों पर भी दोहराया। न केवल शिराओं के साथ, परंतु धमनियों पर भी। धमनी में विपरीत स्थिति पाई गई। मतलब, बंधी धमनी में खून, रुकावट के ऊपर, हृदय की तरफ भरने लगा और धमनी फूलने लगी। रुकावट के दूसरी तरफ धमनी खाली हो गई।
इन प्रयोगों के आधार पर हार्वे ने निष्कर्ष निकाला कि खून हृदय से धमनियों में बहकर शिराओं द्वारा वापस हृदय में लौटता है। खून एक बंद परिपथ, एक वृत्त, में बहता है।

हार्वे का एक प्रयोगः हार्वे ने खुद के शरीर पर प्रयोग करके यह समझाने की कोशिश की कि शरीर में खून एक बंद चक्र में बहता है। शिराओं में खून अंगों से हृदय की तरफ और धमनियों में इससे विपरीत दिशा में बहता है। इस चित्र में दिखाए प्रयोग द्वारा हार्वे ने शिराओं में खून के बहाव की दिशा के बारे में पता लगाया।

हृदय में खून का बहाव: हृदय में खून के बहाव के संबंध में हार्वे का मत था कि फैलाव की स्थिति में खून आलिंदों में भर जाता है। उसके बाद संकुचन आलिंदों से शुरू होकर निलय की तरफ बढ़ता है। आलिंदों में संकुचन की स्थिति में वाल्व खुल जाते हैं और आलिंदों से खून निलय में आ जाता है। तत्पश्चात निलय के संकुचन के समय आलिंद और निलय के बीच के वाल्व बंद हो जाते हैं और खुन धमनियों के जरिए शरीर में बह जाता है।

हृदय एक भट्टी है: गेलन के विचार 

प्राचीन यूनानवासी मनुष्य को प्रकृति का प्रतिबिंब मानते थे। उनके अनुसार मनुष्य हवा, पानी, मिट्टी और आग से मिलकर बना था। हिपोक्रेटम जिन्हें आधुनिक चिकित्सा शास्त्र का संस्थापक माना जाता है, ने बताया कि शरीर के चार मूल तत्व हैं - खून, श्लेषमा, काला पित्त और पीला पित्त। इन चार तत्वों के अनुपात में आए बदलाव के कारण व्यक्ति के स्वभाव में फर्क होता है। लेकिन यूनानियों ने सबसे ज्यादा महत्व दिया खून को क्योंकि यूनानी मान्यता थी - ज्यादा खून यानी ज्यादा जोशीला और ज्यादा खुशनुमा स्वभाव।
इन खून के बारे में यूनानी शल्य चिकित्सक गेलन ने सबसे अहम काम किया। गेलन मानता था कि हमारी आंतें खाद्य पदार्थों का रस सोखकर उमे जिगर तक पहुंचाती हैं। जिगर इस रस को खून में बदलता  है और उममें प्राकृतिक आत्मा मिलाता है। जिगर यह खून शिराओं के जरिए शरीर के बाकी भूखे ऊतकों (Tissue) तक पहुंचता है। ऊतक प्राकृतिक आत्मा को सोख लेते हैं जिसमें खून कमज़ोर पड़ जाता है। अब खून फिर शिराओं के रास्ते जिगर तक आता है और फिर से प्राकृतिक आत्मा को प्राप्त करता है।

इस परिकल्पना में यह साफ नहीं था कि खून ऊतकों तक पहुंच कर उनमें गर्मी, जोश आदि कैसे उभारता है? आखिर दिमाग को अपना काम करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की ज़रूरत पड़ती होगी और खून में ज़रूर कोई न कोई आवेश होता होगा। गेलन का मानना था कि यह आवेश हवा से मिलता है। हृदये ही खून और हवा का संयोग करता है। जब जिगर खून से लबालब हो जाता है तो थोड़ा खून हृदय में पहुंचता है। हृदय के एक वाल्व में फेफड़ों की हवा आती है और दूसरे वाल्व में जिगर से खून। इन दोनों वाल्व के

गेलन यह मानता था कि हृदय में एक ओर खून और दूसरी ओर हवा होती है। खून में। हवा मिलने के लिए निलय के बीच की दीवार में अदृश्य छिद्र होते हैं।

बीच महीन छेदों वाली एक दीवार है। इन महीन छेदों से खून तो दूसरी ओर नहीं जा पाता लेकिन उस तरफ की हवा ज़रूर आ जाती है। हवा और खून के इस संयोग से एक जैविक लौ उत्पन्न होती है जो खून को गरमाती है। यही लौ शरीर की उष्णता का स्रोत है।
गेलन आगे बताता है कि इस तरह हृदय एक भट्टी की तरह काम करता है। जैविक लौ की वजह से बनने वाला धुंआ फेफड़ों से होता हुआ निकल जाता है। ठंड के दिनों में हम इस धुंए को नाक से निकलते हुए भी देख सकते हैं।

गेलन के विचारों को चर्च ने भी मान्यता दे रखी थी इसलिए गेलन की। परिकल्पना को आगामी 1500 साल तक किसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा। कभी किसी ने गेलन की मान्यताओं से अलग मत व्यक्त करने की कोशिश की तो चर्च के विरोध का सामना करना पड़ता था। जैसे सन् 15.13 में वमेलियस ने बताया कि मनुष्य की जांघों की हड्डी मुड़ी नहीं होती, (जबकि गेलन ने जांघों की हड्डी को मुड़ा हुआ बताया था) तो वमेलियम के विचारों का घोर विरोध किया गया। गेलनवादियों ने यहां तक कहा कि गेलन के समय मनुष्य की जांघ की हड्डी मुड़ी होती थी; अव इतना समय बीतने के बाद मानव शरीर में परिवर्तन हो गए हैं। फलस्वरूप वमेलियस को अपने लेखों में संशोधन कर गेलन के पूर्वाग्रहों को भी स्थान देना पड़ा। लेकिन इस समय तक अन्य चिकित्सकों को भी गेलन की परिकल्पना में त्रुटियां नज़र आने लगी थीं। ऐसे चिकित्सकों में एक नाम था विलियम हार्वे का, जिसने गेलनवादियों को कड़ी शिकस्त दी।


पुरानी धारणाएं
प्राचीन काल में लोगों ने हृदय की धड़कनों को भी महसूस किया था परंतु उनकी मान्यता थी कि हृदय सीरिंज जैसे काम करता है, वह फैलकर जिगर मे खून खींचता है। जब वह लबालब भर जाता है तब खून उमड़कर शिराओं में चला जाता है। खून निकलने पर हृदय सिकुड़ता है; यह चक्र चलता। रहता है।
इस परिकल्पना में हृदय की मांसपेशियों का कोई स्थान नहीं है। लोग मांसपेशियों तथा उनके काम के बारे में कुछ नहीं जानते थे। इसलिए वे समझते थे कि हृदय फैलाव की अवस्था में क्रियाशील होता है।

हार्वे के अवलोकन    
जब हार्वे ने पहली बार जानवर के हृदय का अवलोकन किया तो वह हृदय की दो अवस्थाओं में भेद नहीं कर पाया क्योंकि हृदय तेज़ी से धड़क रहा था। उसने फिर मरते जानवरों का हृदय देखा तब वह आसानी से

खून और हवा का संबंध
रिचर्ड लोवर एक अंग्रेज़ डॉक्टर था जिसने अपने प्रयोगों द्वारा रक्त परिसंचारण में श्वसन की महत्वपूर्ण भूमिका को स्थापित किया। लोवर ने एक कुत्ते की छाती को चीरकर उस वाहिका को काटा जिसमें फेफड़ों का खून निकलता है। साधारणतः छाती खोलने पर श्वसन अपने आप बंद हो । जाता है इसलिए लोवर ने कृत्रिम श्वसन की व्यवस्था की। जब तक कृत्रिम श्वसन जारी रहा तब तक फेफड़ों से निकलने वाला खून लाल था। जैसे ही कृत्रिम श्वसन बंद हुआ तो खून का रंग बैंगनी हो गया।

अपनी शंकाएं दूर करने के लिए लोवर ने एक अन्य प्रयोग किया। उसने ग्लास में थोड़ा खून डाला। खून जम गया परंतु सतह का खून लाल रंग का था जबकि तली का खून बैंगनी था। उसने जमे खून को पलट दिया। लाल खून अब नीचे था और बैंगनी खून ऊपर, हवा के संपर्क में था। खून का रंग बदलने लगा। सतह का बैंगनी खून लाल हो गया और तली के पास का लाल खून बैंगनी।

लोवर का निष्कर्ष यह था कि खून और हवा के बीच रासायनिक क्रिया होती है। यह क्रिया जिंदा रहने के लिए जरूरी है। परंतु उसको यह मालूम नहीं था कि हवा में वह कौन-सा तत्व है जो जीवन के लिए जरूरी है। समस्या यह थी कि उस समय हवा को एकल तत्व माना जाता था। लोवर कल्पना ही नहीं कर पाया कि हवा का अंश मात्र, उसका एक घटक, जिंदगी के लिए जरूरी है। यह समझ जॉन मेयो के प्रयोग से विकसित हुई।

उसकी गतियों की जांच कर पाया क्योंकि मरते हुए जानवर का हृदय धीमी गति से चलता है।
अपने अवलोकनों के आधार पर हार्वे ने यह निष्कर्ष निकाला कि हृदय तभी क्रियाशील होता है जब वह संकुचित या सिकुड़ा हुआ हो, न कि जब वह शिथिल या फैला हुआ हो। दिल की धड़कन छाती में तब महसूस होती है जब हृदय संकुचित होता है। इस बात की पुष्टि के लिए उसने हृदय की धमनी को काटकर खून का बहाव देखा। जब हृदय की दीवारें मोटी होकर संकुचित हुई तब खून झटके से निकला। जब हृदय शिथिल स्थिति में था तो उसमें शिराओं का खून भरने लगा। हार्वे ने यह भी अवलोकन किया कि कलाई में स्थित धमनी की नब्ज़ हृदय के संकुचन से मेल खाती है।

हार्वे ने देखा कि संकुचन पूरे हृदय में एक साथ नहीं होता है; बल्कि ऊपरी भाग से शुरू होकर निचले भाग तक बढ़ता है। वह हृदय की आंतरिक संरचना से परिचित था। उसको मालूम था कि हृदय के दो भाग दो कोष्ठों में बंटे होते हैं और इन कोष्ठों के बीच एकतरफा वाल्व मौजूद होता है। उसका कहना था कि संकुचन दोनों भागों के ऊपरी कोष्ठों - आलिंद या ऑरिकल - में एक साथ होता है जिससे उनमें भरा खून एकतरफा वाल्व द्वारा निचले कोष्ठों निलय या वेंट्रिकल में जाता है। फिर दोनों निलय एक साथ संकुचित होते हैं जिससे खून धमनियों में धकेला जाता है।

प्रयोग करने के बाद हार्वे का यह विश्वास बढ़ा कि हृदय एक पंप है जो खून को धड़कनों से धकेलता है। हरेक धड़कन के दौरान हृदय संकुचित होकर फैलती है। उसके लिए हृदय की यह धड़कन उसकी बंद परिपथ परिकल्पना का एक और प्रमाण था। उसने एक संकुचन में निकले खून के आयतन का अनुमान भी लगाया; और हिसाब लगाया कि इस गति से 20 मिनिट में शरीर का सारा खुन हृदय से निकल जाएगा। क्या, कोशिकाएं इतना खून इतनी अल्प अवधि में सोख पाएंगी? नया खून कहां से आता है? उसका निष्कर्ष था कि वही खून बार-बार हृदय में लौटता है और शरीर में एक चक्र में बहता रहता है।

समर्थन जुटाना    
लेकिन हार्वे को यह अच्छी तरह मालूम था कि लीक से हट कर कोई भी नया विचार लोगों के बीच रखने का अर्थ होगा विरोध, क्योंकि वह गियोर्दानो ब्रूनो और गैलीलियो गैलिली का हश्र देख चुका था। इसलिए जैसे ही उसने रक्त परिसंचारण संबंधी अपने विचारों की पुष्टि की, तुरंत सार्वजनिक और व्यक्तिगत बातचीत में इसे अपने मित्रों, सहयोगियों व डॉक्टरों के साथ चर्चा का विषय बनाया; ताकि जब वह अपने विचारों को लिखित रूप में प्रकट करे तो उसके समर्थन में ज्यादा लोग जुट सकें। हार्वे ने अपनी पुस्तक के बारे में लिखा, “यह एकमात्र पुस्तक है जो परंपरा का विरोध करती है और इस बात पर जोर देती है कि रक्त शरीर में एक प्रणाली के द्वारा बहता है जिसे इसके पहले पहचाना नहीं गया था।'' उसने यह भी साफसाफ लिखा कि उसके विचार इतने विशिष्ट और अब तक अमान्य हैं, कि उसे केवल कुछ विशेष लोगों के द्वेष का शिकार ही नहीं होना पड़ेगा बल्कि प्रत्येक मनुष्य उसके विरुद्ध हो जाएगा।

प्रारंभिक विरोध के बावजूद हार्वे की परिकल्पना के प्रमाण जीव विच्छेदन, अवलोकन व प्रयोगों द्वारा काफी बड़े पैमाने पर मिले और बड़ी संख्या में डॉक्टरों व वैज्ञानिकों ने इसकी पुष्टि की। हार्वे ने खुद गर्व से कहा कि ‘उसने दो हजार साल से चली आ रही गलती को सुधारा है। उसकी खोज 80 से भी अधिक प्रजातियों के अध्ययन पर आधारित थी, जिनमें स्तनपायी, सांप, मछली, मेंढक, केंकड़े, छिपकली, कीड़े आदि शामिल थे।

ऐसा नहीं है कि अवलोकनों व परीक्षणों के आधार पर निष्कर्ष निकालने की शुरुआत जीव विज्ञान व चिकित्सा के क्षेत्र में हार्वे ने ही की। हार्वे का ही समकालीन फॉन हेल्मॉट्ज़ भी जीव विज्ञान में प्रयोग कर रहा था। ‘सेंटोरियस' ने द्रव व ठोस भोजन और मल-मूत्र के अंतर के अनेक प्रयोगों द्वारा पसीने की मात्रा ज्ञात की। लेकिन हार्वे ने अपने अवलोकन, परीक्षण और गणनाओं के आधार पर व्यापक निष्कर्ष निकाले जिनका दूरगामी प्रभाव पड़ा। उदाहरण के लिए हार्वे ने वास्तविक मापन द्वारा मनुष्यों, कुत्तों और भेड़ों के हृदय की क्षमता का पता लगाया। इसके बाद उसने इस संख्या को नाड़ी गति से गुणा किया ताकि हृदय से धमनियों को जाने वाले रक्त की मात्रा का अनुमान लगाया जा सके - एक सामान्य आदमी लगभग 85 पौंड (यानी लगभग 38 किलोग्राम) रक्त अपने हृदय से धमनियों में आधे घंटे में भेजता है। संक्षेप में हार्वे ने यह पाया कि वह शरीर में रक्त परिसंचारण को सिद्ध कर सकता है और रक्त की मात्रा भी ज्ञात कर सकता है। इस प्रकार उसने चिकित्सा व जीव विज्ञान में परीक्षणों की महत्ता पर जोर दिया और तब से यही प्रथा बनी हुई है।

विचारों का प्रभाव
हार्वे ने अपनी पुस्तक में गेलन की महानता को पूरा आदर देते हुए उल्लेख किया। उसे गेलन की गलतियों को ठीक करने का दुख भी था, लेकिन साथ ही वह अपने विचारों पर पूरी दृढ़ता से कायम था। हार्वे के प्रयोगों की लंबी फेहरिस्त थी जिसमें रक्त प्रवाह, हृदय की गति, श्वसन, मस्तिष्क की कार्यप्रणाली, प्लीहा (Spleen), जानवरों में गति और उनकी पीढ़ियां, तुलनात्मक शरीर संरचना, सभी कुछ शामिल था।

हार्वे के जीव विज्ञान व क्रिया विज्ञान के मूलभूत सुधारों ने चिकित्सा पर तीन महत्वपूर्ण प्रभाव डाले। उनमें सबसे प्रमुख था - इस तथ्य की स्थापना कि जीव विज्ञान का कोई भी निष्कर्ष सीधे अवलोकन व सावधानी से किए गए प्रयोगों पर आधारित होना चाहिए। दूसरा था - जीव विज्ञान में जीव प्रक्रियाओं के निष्कर्ष का गुणात्मक विवेचन। और तीसरा निस्संदेह, शरीर में रक्त परिसंचारण की धारणा, जो क्रांतिकारी विचार था।
हार्वे की इस खोज को वैज्ञानिक क्रांति का नाम सबसे पहले सर विलियम टेम्पल ने अपने लेख ‘ऑफ हेल्थ एंड लोंग लाइफ' में दिया। उसने कहा कि हार्वे की रक्त परिसंचारण धारणा चिकित्सा के क्षेत्र में अनेक सामान्य व विशिष्ट नवाचार लाएगी। लेकिन हार्वे की क्रांति का मूल्यांकन करते समय हमें तीन पहलुओं को ध्यान

हृदय की बनावटः हृदय की खड़ी काट। हार्वे ने देखा कि संकुचन पूरे हृदय में एक साथ नहीं होता है; बल्कि ऊपरी भाग से शुरू होकर निचले भाग तक बढ़ता है। हृदय के दोनों भाग यानी बायां व दायां, दो-दो कोष्ठों में बंटे होते हैं। इन कोष्ठों के बीच एकतरफा वाल्व मौजूद होता है। संकुचन दोनों भागों के ऊपरी कोष्ठों - आलिंद या ऑरिकल में एक साथ होता है जिससे उनमें भरा खून एकतरफा वाल्व द्वारा निचले कोष्ठों - निलय या वेंट्रिकल में जाता है। फिर दोनों निलय एक साथ संकुचित होते हैं जिससे खून धमनियों में धकेला जाता है। यानी कि हृदय एक पंप है जो खून को धड़कनों से धकेलता है। हरेक धड़कन के दौरान हृदय संकुचित होकर फैलता है।

में रखना होगा - जैविक विचारों व विधियों में क्रांति, चिकित्सा के वैज्ञानिक आधार में क्रांति और चिकित्सा प्रणाली में क्रांति। वास्तव में हार्वे ने खुद अपनी खोज के प्रायोगिक उपयोगों के चिकित्सा में योगदान पर एक पुस्तक लिखने के बारे में सोचा था जिसे कभी लिखा नहीं।

दूसरी ओर 17 वीं शताब्दी से ही इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि हार्वे की खोज एक महत्वपूर्ण बौद्धिक उपलब्धि थी। जीव विज्ञान व क्रिया विज्ञान के क्षेत्र में तो अंततः यह निर्विवाद रूप से माना जाता है कि हार्वे की क्रांति ने इन क्षेत्रों में आमूल चूल परिवर्तन किए और नई दिशाएं दिखाईं।

किंतु इसके बाद वह दूसरी झंझटों में फंस गया। इंग्लैंड में गृहयुद्ध छिड़ गया और वह राजा चार्ल्स के समर्थन में था। इस बीच उसने मरटिन कॉलेज में अंडों से चूजों के विकास पर विभिन्न प्रयोग किए। तभी राजा चार्ल्स युद्ध में हार गया और उसे मृत्युदंड दिया गया। इसके साथ ही हार्वे का पद व उसे दी गई सुविधाएं भी समाप्त हो गईं। उसका शेष जीवन काफी दुखदायी रहा। शारीरिक क्रिया विज्ञान में क्रांति के अग्रदूत हार्वे का 79 वर्ष की आयु में 3 जून 1657 को निधन हो गया।

हार्वे ने खून के परिसंचारण के बारे में हमारी समझ ज़रूर बढ़ाई परंतु उसकी मान्यताओं में कई खामियां थीं। उदाहरण के लिए उसने यह जरूर कहा था कि शरीर में चार नहीं बल्कि एक ही मूल तत्व है; परंतु उसने भी खून को एकल तत्व माना। हार्वे के अनुसार खून का परिसंचारण प्राकृतिक संपदा के समान वितरण जैसी एक प्रक्रिया है। आज हम जानते हैं कि खून एक तत्व नहीं, बल्कि कई सारे पदार्थों का मिश्रण है। यदि हार्वे के जीवनकाल में अच्छे माइक्रोस्कोप होते। तो शायद वह भी अपने विचारों को बदल लेता। माइक्रोस्कोप के अभाव में उसको यह भी मालूम नहीं हुआ कि खून धमनियों से शिराओं तक कैसे पहुंचता है। लोगों ने बाद में ही कोशिकाओं का पता लगाया।

हार्वे की परिकल्पना में एक और कमी थी कि उसने खून को एक संपूर्ण वस्तु के रूप में देखा इसलिए उसे हवा की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण नहीं लगी। दो सौ साल बाद ही रिचर्ड लोवर और जॉन मेयो ने अपने प्रयोगों द्वारा हवा के महत्व को स्थापित किया।


यह लेख स्रोत के जून 1989 के अंक से लिया गया है।
स्रोत एकलव्य द्वारा संचालित फीचर सर्विस है जो अखबारों को विज्ञान एवं टेक्नॉलॉजी संबंधी लेख उपलब्ध करवाती है।