पिछले कुछ सालों में मायोपिया या निकट-दृष्टिता के मामले काफी बढ़ गए हैं। इस स्थिति में व्यक्ति को दूर का देखने में कठिनाई होती है। ऐसा अनुमान है कि 2050 तक दुनिया की आधी आबादी मायोपिया का शिकार होगी। मायोपिया से न सिर्फ दृष्टि धुंधली पड़ती है, वरन आगे चलकर यह अन्य गंभीर समस्याओं का कारण भी बनता है। इन जटिलताओं से बचने के लिए वैज्ञानिक इसके मामले बढ़ने के कारणों का पता लगाने और इसे थामने के लिए प्रयासरत हैं। मुख्य कारण है कमरे के अंदर सीमित होती दिनचर्या, हालांकि जेनेटिक कारण भी मायोपिया की स्थिति पैदा करते हैं।
मायोपिया मतलब क्या? अक्सर मायोपिया बचपन में शुरू होता है। मायोपिया की स्थिति तब बनती है जब नेत्रगोलक अपेक्षा से अधिक बड़ा हो जाता है। इसकी वजह से लेंस प्रकाश को रेटिना पर नहीं बल्कि रेटिना के आगे ही फोकस कर देता है, जिससे दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई देती हैं।
एक तथ्य यह भी है कि जितनी कम उम्र में, जितना गंभीर मायोपिया होगा बड़ी उम्र में रेटिना डिटेचमेंट, ग्लूकोमा, मैक्यूलर डीजनरेशन और मोतियाबिंद जैसी स्थितियां होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। कारण यह है कि अधिकांश बच्चों की दृष्टि किशोरावस्था के अंत तक स्थायित्व प्राप्त करती है, जबकि कुछ बच्चों में 20 वर्ष की आयु के मध्य तक। मायोपिया जितनी जल्दी होगा नेत्रगोलक को वृद्धि करने के लिए उतना लंबा समय मिलेगा। नेत्रगोलक जितना अधिक बड़ा होगा उतना अधिक यह रेटिना की नाज़ुक तंत्रिकाओं और रक्त वाहिकाओं पर दबाव डालेगा। नतीजतन ग्लूकोमा, रेटिनल डिटेचमेंट जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
वैसे तो मायोपिया की स्थिति कई कारणों से पैदा हो सकती है लेकिन कई अध्ययनों का कहना है कि बाहर खुले में बिताया गया समय लगातार कम होते जाना मायोपिया के प्रमुख कारणों में से एक है। दरअसल सूर्य का प्रकाश (धूप) डोपामाइन के स्राव को बढ़ाता है, और डोपामाइन नेत्रगोलक के विकास को धीमा रखता है।
स्क्रीन टाइम बढ़ना और पास से देखने वाले काम करना जैसे पढ़ना, कढ़ाई करना वगैरह भी मायोपिया की बढ़ती संख्या के कारण बताए जा रहे हैं, लेकिन इसके कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं क्योंकि मायोपिया के मामलों में वृद्धि पहला आईफोन आने के पहले ही शुरू हो गई थी।
बहरहाल कारण जो भी हो मायोपिया के मामले बढ़ रहे हैं। और जब तक कारण पूर्णत: स्पष्ट नहीं हो जाते तब तक इसे टालने और इसकी गंभीरता कम करने के प्रयास ही किए जा सकते हैं।
बायफोकल लेंसेस इन नियरसाइटेड किड्स (ब्लिंक - BLINK) अध्ययन का यही उद्देश्य है - क्या किसी बाहरी हस्तक्षेप से नेत्रगोलक की वृद्धि या चश्मे का पॉवर बढ़ने को धीमा किया जा सकता है। इसकी पड़ताल के लिए शोधकर्ताओं ने 7 से 11 साल के 294 बच्चों को कॉन्टैक्ट लेंस दिए: कुछ कॉन्टैक्ट लेंस नियमित, एकल फोकस वाले थे जबकि कुछ बाइफोकल थे। आम तौर पर ये विशेष बाइफोकल कॉन्टैक्ट लेंस वृद्धजनों को दिए जाते हैं जिन्हें बाइफोकल चश्मे की आवश्यकता पड़ती है। ये लेंस अधिकांश प्रकाश को तो रेटिना पर डालते हैं जिससे स्पष्ट केंद्रीय दृष्टि मिलती है, लेकिन साथ ही थोड़े प्रकाश को फैला देते हैं। जिससे परिधीय दृष्टि हल्की सी धुंधली हो जाती है। परिधीय दृष्टि का यह धुंधलापन संभवत: आंख के विकास को धीमा करता है। एक प्रतिभागी का अनुभव है कि इन विशिष्ट कॉन्टैक्ट लेंस को पहनने से नज़र बहुत ज़्यादा प्रभावित नहीं हुई। हालांकि आगे चलकर नज़र थोड़ी कमज़ोर ज़रूर हो गई थी लेकिन अंतत: वह स्थिर हो गई।
अन्य प्रयासों में, रोज़ाना एट्रोपिन नामक एक विशेष आई ड्रॉप आंखों में डाला गया, जो प्रभावी नज़र आया है। एक अध्ययन में पाया गया है कि सोने से ठीक पहले एट्रोपिन की बूंदें डालने पर नेत्रगोलक का विकास धीमा हो जाता है। अलबत्ता, यह सवाल बना हुआ है कि कितनी मात्रा सबसे अधिक प्रभावी है, और क्या अलग-अलग बच्चों के लिए अलग-अलग है।
ऐसे ही एक प्रयास में जिन बच्चों को मायोपिया होने की संभावना है उन्हें एट्रोपिन आई ड्रॉप्स दी जाएंगी ताकि मायोपिया की शुरुआत को थामा या टाला जा सके।
बहरहाल इन शोध के जारी रहते मायोपिया थामने के अन्य उपाय भी आज़माने की ज़रूरत है। जैसे बाहर बिताया समय बढ़ाना। क्योंकि मुख्य कारण के रूप में तो यही उभरा है और बाहर बिताया समय बढ़ाने से आंखों पर कोई अन्य दुष्प्रभाव होने की संभावना भी नहीं होगी, जबकि एट्रोपिन ड्रॉप्स रोज़ाना लेने के दुष्प्रभाव अभी स्पष्ट नहीं हैं। (स्रोत फीचर्स)
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