बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) का उपयोग यह पता करने के लिए किया जाता है कि किसी व्यक्ति का वज़न स्वस्थ सीमा के भीतर है या नहीं। बीएमआई की गणना वज़न (कि.ग्रा.) को ऊंचाई (मीटर) के वर्ग से विभाजित करके की जाती है। लेकिन इस सरलता के साथ कई खामियां भी हैं। 
पिछले कुछ वर्षों में मोटापे को लेकर चल रही चर्चा से पता चलता है कि यह माप किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य के सम्बंध में अक्सर पूरी तस्वीर प्रदान नहीं करता है। विशेषज्ञ इस संदर्भ में अधिक व्यापक दृष्टिकोण खोजने का प्रयास कर रहे हैं।
कई दशकों से बीएमआई स्वास्थ्य के आकलन के एक वैश्विक मानक के रूप में उपयोग किया जाता रहा है। यह शरीर में वसा के द्योतक के रूप में कार्य करता है; वसा की उच्च मात्रा से चयापचय सम्बंधी रोगों में वृद्धि होती है और यहां तक कि मृत्यु का खतरा भी बढ़ जाता है। 
स्वास्थ्य सूचकांक के रूप में बीएमआई का उपयोग करते हुए उम्र, लिंग और नस्ल जैसे कारकों को ध्यान में नहीं रखा जाता है जबकि ये वज़न के साथ-साथ किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य के आकलन के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। बीएमआई सदैव अस्वस्थता का सूचक नहीं होता। देखा गया है कि बराबर बीएमआई वाले लोगों की स्वास्थ्य सम्बंधी स्थिति काफी अलग-अलग हो सकती है।
इन कमियों को ध्यान में रखते हुए विशेषज्ञों द्वारा मोटापे के आकलन हेतु अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (एएमए) ने बीएमआई की खामियों को स्वीकार करते हुए पूरक के तौर पर वजन-सम्बंधी अन्य मापों का सुझाव दिया है। 
बीएमआई की धारणा लगभग दो शताब्दी पूर्व एडोल्फ क्वेटलेट द्वारा ‘औसत आदमी' को परिभाषित करने के प्रयासों से उभरी थी। प्रारंभ में, इसका स्वास्थ्य से बहुत कम और मानक तय करने से अधिक लेना-देना रहा था। एन्सेल कीज़ ने बाद में इसे बॉडी-मास इंडेक्स के रूप में पुनर्निर्मित किया। कीज़ के अनुसार यह उस समय की ऊंचाई-वज़न तालिकाओं की तुलना में स्वस्थ शरीर के आकार का एक बेहतर संकेतक था।
बीएमआई जनसंख्या-स्तर पर मृत्यु के जोखिम से सम्बंधित है - बहुत कम बीएमआई भी मृत्यु का जोखिम बढ़ाता है और बहुत अधिक बीएमआई भी। लेकिन जब इसका उपयोग व्यक्तिगत स्वास्थ्य जोखिमों का आकलन करने के लिए किया जाता है तो यह असफल रहता है। 
एक अध्ययन से पता चला है कि अधिक वजन वाले व्यक्तियों में मृत्यु का जोखिम ‘स्वस्थ' वज़न वाले लोगों के समान होता है। इसके अतिरिक्त, बीएमआई के पैमाने पर मोटापे से ग्रस्त कुछ व्यक्तियों का हृदय-सम्बंधी स्वास्थ्य सामान्य लोगों के समान ही होता है, जो बीएमआई की धारणा को चुनौती देता है।
दरअसल, बीएमआई का मुख्य आकर्षण इसकी आसानी में निहित है, जो इसे एक सुविधाजनक स्क्रीनिंग टूल बनाता है। विशेषज्ञों का तर्क है कि यह स्वास्थ्य का सटीक आकलन करने में नाकाम है। इसकी मुख्य समस्या है कि यह शरीर में वसा या मांसपेशियों के द्रव्यमान और वितरण जैसे कई महत्वपूर्ण कारकों को ध्यान में नहीं रखता है, जो लोगों के बीच काफी भिन्न हो सकते हैं। 
इससे भी बड़ी समस्या यह है कि बीएमआई को श्वेत आबादी के डैटा का उपयोग करके विकसित किया गया है जिसका सीधा मतलब है कि इसका निर्धारण नस्लीय और जातीय समूहों के बीच शरीर की संरचना और वसा वितरण को ध्यान में रखते हुए नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए, शरीर में वसा की मात्रा और वितरण में भिन्नता के कारण कम बीएमआई के बावजूद एशियाई आबादी में हृदय रोग का खतरा अधिक हो सकता है। यह बात बीएमआई के अत्यधिक उपयोग के विरुद्ध एक चेतावनी है।
बीएमआई के नैदानिक उपयोग को कम करने के लिए एएमए की हालिया नीति को एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इसके तहत केवल बीएमआई के आधार पर निदान करने की बजाय, चिकित्सकों को सलाह दी जा रही है कि वे इसका उपयोग मात्र एक स्क्रीनिंग टूल के रूप में करें, ताकि उन लोगों को पहचाना जा सके जिनका आगे आकलन करने की ज़रूरत है। इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि चिकित्सक कोलेस्ट्रॉल, रक्त शर्करा, पारिवारिक इतिहास और आनुवंशिकी जैसे अतिरिक्त कारकों पर भी ध्यान दें जो मोटापे और इससे सम्बंधित स्थितियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
इस बदलाव में एक बड़ी चुनौती यह है कि प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में चिकित्सकों को कम समय में रोगी के स्वास्थ्य के कई पहलुओं पर ध्यान देना होता है। मात्र बीएमआई के आधार पर मोटापा-रोधी दवाइयां लिखना चिंता का विषय है। 
बहरहाल, बीएमआई से परे मोटापे को फिर से परिभाषित करने के प्रयास चल रहे हैं। एक अंतर्राष्ट्रीय आयोग विभिन्न अंग तंत्रों पर वज़न के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए नए नैदानिक मानदंडों पर काम कर रहा है। इसके अतिरिक्त, शारीरिक, मानसिक और कामकाजी स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए बीएमआई के साथ-साथ एडमोंटन ओबेसिटी स्टेजिंग सिस्टम (ईओएसएस) विकसित की गई है, जो मोटापा नियंत्रण के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है।
बहरहाल, मुद्दा यह है कि इन परिवर्तनों को अमली जामा पहनाना एक बड़ी चुनौती है। फिर भी, यह स्पष्ट है कि स्वास्थ्य की जटिलताओं और मोटापे की विविध प्रकृति को ध्यान में रखते हुए बीएमआई से आगे बढ़ने का समय आ गया है। (स्रोत फीचर्स)