कई देशों में आजकल सरकारें रैंडम संख्याएं बनाने के लिए आधुनिक तकनीकों का सहारा ले रही हैं और वह भी सार्वजनिक स्तर पर। ऐसा क्या है इन रैंडम संख्याओं में कि अचानक इनका इतना महत्व हो गया है।
रैंडम यानी बेतरतीब संख्याओं से आशय ऐसी संख्याओं से है जो किसी क्रम का पालन नहीं करतीं। यानी यदि आपको 10 लाख बेतरतीब संख्याओं की एक श्रृंखला बताई जाए तो भी आप अगली संख्या का अंदाज़ नहीं लगा पाएंगे। यानी इन संख्याओं के क्रम में कोई नियम नहीं होता। इनके महत्व को एक उदाहरण से समझिए।
भारत सहित कई देशों में आयकर विभाग बेतरतीब ढंग से कुछ करदाताओं के रिटर्न्स की जांच करता है। मगर करदाता आरोप लगाते हैं कि उनका नाम एकदम बेतरतीब ढंग से नहीं निकला था बल्कि किसी तरह से चुनकर उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। इस तरह के काम में जो भी नाम जांच के लिए निकलें, उन्हें लेकर यह भरोसा होना चाहिए कि वह सचमुच किसी बेतरतीब प्रक्रिया से निकले हैं। इस तरह के कई अनुप्रयोगों में बेतरतीब संख्याओं का महत्व है। जैसे, चिली में छात्रों को स्कूल आवंटित करने में बेतरतीब संख्याओं का सहारा लेने का प्रस्ताव है।
इसी प्रकार से यूएस में एक प्रस्ताव यह है कि वीसा देने में बेतरतीब संख्याओं को आधार बनाया जाए। हाल ही में इस बात को लेकर काफी विवाद हुआ था कि अदालत में कौन-सा प्रकरण किस न्यायाधीश के पास जाएगा, इसका फैसला मुख्य न्यायाधीश अपने विवेक से करते हैं और आरोप था कि वे इसमें भेदभाव करते हैं। ब्राज़ील में यह प्रस्ताव दिया गया है कि प्रकरणों का आवंटन बेतरतीब संख्याओं के अनुसार किया जाए। बेतरतीब संख्याओं का उपयोग डिजिटल दस्तावेज़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी किया जा सकता है।
मगर पूरे मामले में एक पेंच है। यदि बेतरतीब संख्याओं का उपयोग इन सारे मामलों में करना है, तो इनकी बेतरतीबी की विश्वसनीयता बहुत अहमियत रखती है। और कई विशेषज्ञों का मत है कि बेतरतीब संख्या उत्पन्न करने की वर्तमान तकनीकें विश्वसनीयता की कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं। खास तौर से, दिक्कत यह है कि बेतरतीब संख्याओं के निर्माण के लिए अधिकांश सुविधाओं में एक एल्गोरिदम (यानी किसी सूत्रविधि) का उपयोग किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति वह एल्गोरिदम तोड़ ले तो बंटाढार हो सकता है। इसलिए सरकारें अपनी व्यवस्थाएं बनाने पर ज़ोर दे रही हैं। (स्रोत फीचर्स)