चारुदत्त नवरे
भाग-4 पुस्तक अंश
हमारा प्रतिरक्षा तंत्र बाहरी तत्वों को पहचानकर हमारे शरीर की रक्षा करता है। कुछ विकारों को छोड़कर, जिन्हें ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर कहा जाता है, हमारी प्रतिरक्षा पुलिस बल कोशिकाएँ, हमारी अपनी ही कोशिकाओं पर हमला नहीं करती हैं।
टी-कोशिकाएँ थाइमस नामक अंग में विकसित होती हैं, और इसी से उनको अपना नाम भी मिला।
थाइमस में, पूरे शरीर के प्रोटीन के छोटे-छोटे टुकड़े टी-कोशिकाओं के सम्मुख प्रस्तुत किए जाते हैं। ऐसी टी-कोशिकाएँ जो इनको टार्गेट करती हैं, उन्हें हटा दिया जाता है और केवल वही टी-कोशिकाएँ बचती हैं जो हमारे शरीर के प्रोटीन-अंशों को टार्गेट नहीं करती हैं।
इन कोशिकाओं में से एक टी-कोशिकाएँ होती हैं जो वायरस से संक्रमित कोशिकाओं और ट्यूमर कोशिकाओं को नष्ट करती हैं।
टी-कोशिकाओं के सम्मुख प्रस्तुत किए गए प्रोटीन अणु के टुकड़ों के रूप में होते हैं, जिनसे हमारे शरीर में टी-कोशिकाओं का कभी-न-कभी आमना-सामना होने ही वाला है। इसलिए टी-कोशिकाओं का प्रशिक्षण इस तरह हो जाता है कि जो भी परिचित नहीं है, वो बाहरी है और उसे टार्गेट किया जाना है।
दिलचस्प बात, जो हमें अभी पता चल रही है, वो यह है कि इन्हें हमारी आँतों के सूक्ष्मजीवों को बर्दाश्त करना भी सिखाया जाता है, और इन्हें हमारी अपनी ही कोशिकाओं की तरह माना जाए, यह भी सिखाया जाता है।
दोस्ताना सूक्ष्मजीवों को सहन करना हमारे पूर्वजों के लिए लाभकारी रहा होगा और इसलिए यह इस प्रकार क्रमिक विकास में चयनित हुआ होगा।
रोगाणु मुक्त वातावरण में पले चूहों के प्रतिरक्षा तंत्र को यह सीखने का मौका ही नहीं मिलता कि दोस्ताना सूक्ष्मजीव कौन-से हैं। इसलिए जब बाद में इन चूहों के अन्दर ये सूक्ष्मजीव प्रवेश करते हैं तो चूहों के प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा उन पर हमला बोल दिया जाता है।
अपेक्षा के विपरीत इस प्रतिरक्षा तंत्र में कोई स्थाई सहयोगी नहीं होते हैं। न कोई‘फरिश्ता’और न कोई दानव बैक्टीरिया होते हैं।
कभी-कभी कैंसर में, हमारी अपनी कोशिकाएँ ही हमारे खिलाफ हो जाती हैं।कभी-कभी, हमारे अपने माइक्रोबियल सहयोगी ही हमारे खिलाफ हो जाते हैं और बीमारी पैदा करने वाले हमारे‘दुश्मन सूक्ष्मजीवों के साथ हो जाते हैं।
जैसे हम इन्सान पता लगाने की कोशिश करतेे हैं कि क्या हम ब्रह्माण्ड में अकेले हैं, वैसे ही बैक्टीरिया भी पता लगा लेते हैं कि वे अकेले हैं या नहीं। हम वॉयेजर जैसे अन्तरिक्षयान, बाहरी अन्तरिक्ष में भेजते हैं, इस उम्मीद के साथ कि अन्तरिक्ष में मौजूद किन्हीं अन्य जीवों को वह मिल जाएगा।
हम यह भी उम्मीद करते हैं कि अन्तरिक्ष में मौजूद अन्य जीव भी इसी तरह से सोचेंगे और खुद भी ऐसे अन्तरिक्ष-खोजी यान बाहर भेज रहे होंगे। इसी तरह बैक्टीरिया ऑटोइंड्यूसर नामक अणुओं को निर्यात करते हैं।
ये अणु चारों तरफ बेतरतीब ढंग से यानी रेंडमली घूमते रहते हैं (जिसे वैज्ञानिक विसरण कहते हैं)।
अपने आसपास मौजूद बैक्टीरिया कोशिकाओं की संख्या के आधार पर, ऑटोइंड्यूसर की एक खास संख्या कोशिका में वापस प्रवेश करती है।
इससे बैक्टीरिया अपने आसपास मौजूद अन्य बैक्टीरिया की संख्या का अनुमान लगा सकते हैं, और उसी के अनुसार अपना व्यवहार तय करते हैं। इसी की वजह से बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्म-जीव आक्रमण करने का सही मौका तय करते हैं, जब उनकी संख्या काफी अधिक हो जाती है। जब आप अपने हाथ धोते हैं, तो आप इस गंदी राजनीति को भी धो डालते हैं!
माइक्रोबियल परिदृश्य हर किसी के लिए एक समान नहीं होता है। और न ही यह समय के साथ किसी व्यक्ति में स्थिर रहता है।
किसी व्यक्ति-विशेष के शरीर में रहने वाले सूक्ष्मजीवों का समुदाय हमेशा अपनी संरचना को बदलता रहता है।
वह एक ही व्यक्ति में अलग-अलग समय पर भी अत्यंत भिन्न होती है।
शरीर के अलग-अलग हिस्सों में से त्वचा के सूक्ष्मजीव हर व्यक्ति में सबसे भिन्न होते हैं।
आँत के सूक्ष्मजीव विभिन्न लोगों में अलग-अलग होते हैं, लेकिन आँतों का सूक्ष्मजीव समुदाय स्थिर ही रहता है। यह एक व्यक्ति में समय के साथ ज़्यादा नहीं बदलता।
मुँह के सूक्ष्मजीवों का समुदाय अलग-अलग व्यक्तियों में ज़्यादा नहीं बदलता है। एक व्यक्ति में भी समय के साथ-साथ वह काफी समान रहता है।
चमड़ी पर हर जगह एक समान सूक्ष्मजीव नहीं होते हैं। चमड़ी हमारा सबसे बड़ा अंग है, हर इन्सान के पास लगभग 22 वर्ग फुट। इसमें कुछ नम क्षेत्र होते हैं तो कुछ शुष्क क्षेत्र हैं। शरीर के अन्य स्थानों की ही तरह, त्वचा के विभिन्न क्षेत्रों पर भी सूक्ष्मजीवों का अपना समुदाय होता है।
यदि आप दो अलग-अलग व्यक्तियों की त्वचा के सूक्ष्मजीवों को जाँचेंगे तो आपको यह देखने को मिलेगा - व्यक्ति ‘ए’ के माथे पर मौजूद सूक्ष्मजीवों का समुदाय, उसके हाथ के सूक्ष्मजीवी समुदाय की तुलना में, व्यक्ति ‘बी’ के माथे के सूक्ष्मजीवी समुदाय के ज़्यादा समान है।
हालाँकि, यदि आप ‘ए’ और ‘बी’ की हथेली के सूक्ष्मजीवों की तुलना करेंगे तो आप देख सकते हैं कि वे व्यक्ति-दर-व्यक्ति काफी भिन्न हैं।
व्यक्ति-दर-व्यक्ति त्वचा के अलग-अलग हिस्सों में जो भिन्नता होती है, वह त्वचा स्थलों के हिसाब से भी बदलती रहती है। हमारे पैर की अंगुलियों के बीच के सूक्ष्मजीव, हाथों के सूक्ष्मजीव, बगल, नाभि के सूक्ष्मजीव अलग-अलग लोगों में बहुत अलग-अलग होते हैं, जबकि पीठ एवं नाक के छिद्रों के सूक्ष्मजीव एक समान बने रहते हैं।
कोलोरेडो बोल्डर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रॉब नाईट की प्रयोगशाला (अब कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सेन डीएगा में) ने सूक्ष्मजीव परिदृश्य पर तुलनात्मक शोध किया, उन परिवारों के बीच जिनके पास पालतू कुत्ता था, और जिनके पास कुत्ता नहीं था।
उन्हें जो ज्ञात हुआ वह दिलचस्प था। जो लोग एक ही घर में रहते हैं, वे अपने सूक्ष्मजीवों का एक बड़ा हिस्सा अजनबियों की तुलना में एक-दूसरे के साथ साझा करते हैं। विशेष रूप से त्वचा के सूक्ष्मजीवों के सम्बन्ध में।
यदि परिवार में एक कुत्ता है तो परिवार के सदस्य आपस में अधिकाधिक सूक्ष्मजीवों को साझा करते हैं। लोग एक अजनबी कुत्ते की तुलना में अपने कुत्ते के साथ ज़्यादा सूक्ष्मजीव साझा करते हैं, और आप कुत्ते को उसके सूक्ष्मजीवों के आधार पर परिवार के साथ जोड़ सकते हैं।
फोरेंसिक खोजी जल्दी ही भविष्य में अपराधों को सुलझाने के लिए इस सूक्ष्मजीवी-भिन्नता का इस्तेमाल करने में सक्षम हो सकते हैं। जिस तरह से अंगुली के निशानों का इस्तेमाल उस व्यक्ति की पहचान करने के लिए किया जाता है जो अपराध स्थल पर मौजूद था, उसी तरह से इस कार्य के लिए किसी व्यक्ति द्वारा छोड़े गए सूक्ष्मजीवों के अनुठे एवं विशिष्ट मिश्रण का भी उपयोग किया जा सकेगा।
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि माइक्रोबायोटा में अन्तर ही लोगों को संक्रमण के प्रति कम या ज़्यादा संवेदनशील होने में योगदान दे सकता है।
सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम से ग्रस्त शिशुओं की आँतों के सूक्ष्मजीव, सामान्य शिशुओं के सूक्ष्मजीवों से भिन्न होते हैं। इस बीमारी का अत्यन्त गैर-जानकारीपूर्ण नाम ही, बीमारी के बारे में हमारी समझ (की कमी) को दर्शाता है।
शिशुओं का सूक्ष्मजीव समुदाय वयस्कों की तरह नहीं होता है। माँ के दूध से मिलने वाले सूक्ष्मजीव ही बच्चे को ठोस आहार खाने-पचाने के लिए तैयार करने में मदद करते हैं। आँतों के सूक्ष्मजीव, प्रतिरक्षा प्रणाली के विकास को प्रभावित करते हैं और सम्भवत: बाद के जीवन में एलर्जी से बचाते हैं।
शिशुओं का सूक्ष्मजीव समुदाय लगभग दो साल की उम्र के बाद से वयस्कों के सूक्ष्मजीवों के सामान होना शुरू हो जाता है।
जैसे किसी भी जटिल समुदाय के साथ होता है, मानव सूक्ष्मजीवों का समुदाय स्थिर औसत अवस्था में बना रहता है।
एंटीबायोटिक दवाओं का अत्याधिक सेवन या आहार में बड़े बदलाव, इसे एक भिन्न स्थिर अवस्था में स्थानान्तरित कर सकते हैं।
सूक्ष्मजीवों की इस अपूर्ण बहाली के परिणाम अज्ञात हैं और आज की स्थिति में इनके बारे में पूर्वानुमान लगाना भी बहुत कठिन है।
चेतावनी- किसी भी तरह से यह सुझाव नहीं दिया जा रहा है कि आपको निर्धारित एंटीबायोटिक्स नहीं लेने चाहिए। यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा कि एंटीबायोटिक से फायदा कितना होगा और जोखिम कितना है।
यह मसला पूरे जंगल पर एक प्रजाति के विलुप्त होने के प्रभाव की भविष्यवाणी करने जितना कठिन है।
एक समय अमेरिका के येलोस्टोन राष्ट्रीय उद्यान में अत्याधिक शिकार के कारण वहाँ भेड़िये विलुप्त हो गए थे, जिसके परिणामस्वरूप एल्क (एक हिरण वर्ग का जानवर) की आबादी बहुत बढ़ गई। चूँकि एल्क शाकाहारी होते हैं, तो उनकी संख्या बढ़ जाने पर घास और पेड़-पौधों की संख्या बहुत कम हो गई। पेड़ कम हो जाने से मिट्टी का अपरदन बढ़ गया और नदियों के मार्ग तक बदल गए।
येलोस्टोन उद्यान की परिस्थितियों में काफी हद तक गिरावट आई और कई प्रजातियों की जनसंख्या में उल्लेखनीय कमी आई।
जब तक भेड़ियों को वास्तव में पुन: प्रवेशित नहीं किया गया तब तक राष्ट्रीय उद्यान के संरक्षण के कई प्रयास असफल रहे। सूक्ष्मजीवों के एक समुदाय पर एंटीबायोटिक दवाओं का प्रभाव भी इसी तरह से हो सकता है। इससे पहले कि हम बदले हुए सूक्ष्मजीवीय पारिस्थितिकी तंत्र के प्रभावों का पूर्वानुमान करने का प्रयास करें, हमें और अधिक शोध की आवश्यकता है।
चारुदत्त नवरे: होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन (एच.बी.सी.एस.ई.), मुम्बई में शोध के छात्र हैं। आइकेन चिकित्सा स्कूल, न्यू यॉर्क और एन.सी.एल, पुणे से शोध का अनुभव। उनके द्वारा तैयार की गई यह पुस्तक एकलव्य से शीघ्र प्रकाशित होने वाली है।
सभी चित्र: रेशमा बर्वे: अभिनव कला महाविद्यालय, पुणे से वाणिज्यिक कला में पढ़ाई। कई पुस्तकों का चित्रांकन किया है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: कोकिल चौधरी: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।