सुशील जोशी [Hindi PDF, 68 kB]

विज्ञान को समझने में यह बात समझना ज़रूरी है कि विज्ञान आज़माइश और सुधार की प्रक्रिया है। यह उस समय ज्ञात सर्वोत्तम ज्ञान का द्योतक है, न कि अन्तिम सत्य का। यह बात परमाणु संरचना के इतिहास में बार-बार उभरती है।

जब बोर ने परमाणु संरचना पर विचार करना शुरू किया उस समय कई बातें स्पष्ट थीं। पहली तो यह कि परमाणु अविभाज्य नहीं है और स्वयं कुछ उप-परमाणविक कणों से मिलकर बना है। इनमें से एक कण ऋणावेशित है जिसे इलेक्ट्रॉन का नाम दिया गया है।

रदरफोर्ड का सौर मण्डल मॉडल
इसके आधार पर थॉमसन ने परमाणु का तरबूज़ मॉडल प्रस्तुत किया था।

मगर रदरफोर्ड के प्रयोगों से पता चला था कि परमाणु का धनावेश एक छोटे-से केन्द्रक में घनीभूत है और परमाणु का अधिकांश हिस्सा खोखला है यानी परमाणु में ढेर सारी खाली जगह है।

हम देख ही चुके हैं कि इसके आधार पर रदरफोर्ड ने परमाणु का सौर मण्डल मॉडल प्रतिपादित किया था।

मगर रदरफोर्ड के मॉडल के साथ कुछ दिक्कतें थीं:
1. यदि परमाणु में इलेक्ट्रॉन धनावेशित केन्द्रक के चक्कर काटेंगे तो उनमें त्वरण पैदा होगा और त्वरण के चलते वे विद्युत चुम्बकीय विकिरण का उत्सर्जन करेंगे। इस उत्सर्जन के कारण उनकी ऊर्जा का ह्यास होगा और वे लगातार केन्द्रक के समीप खिंचते जाएँगे और अन्तत: उसी में समा जाएँगे। लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है।

रदरफोर्ड का सौर मण्डल मॉडल

2. यदि इलेक्ट्रॉन सतत ढंग से ऊर्जा उत्सर्जित करेंगे तो जो विद्युत-चुम्बकीय विकिरण उत्पन्न होगा वह भी सतत प्रकृति का होगा (यानी उसमें सारी तरंग लम्बाइयाँ मिलनी चाहिए)। वास्तविक प्रयोगों में देखा गया था कि तत्वों के वर्णक्रम सतत नहीं होते बल्कि स्पष्ट रेखाओं से बने होते हैं। इसका मतलब यह है कि ऊर्जा का उत्सर्जन अलग-अलग तरंग लम्बाइयों पर होता है, सारी तरंग लम्बाइयों पर नहीं।

बोर ने इन दिक्कतों के समाधान के लिए जो तरीका सुझाया वह एकदम नवीन था। इस तरीके में नए विकसित होते क्वांटम भौतिकी के सिद्धान्तों का उपयोग किया गया था। उन्होंने इन सिद्धान्तों के आधार पर कुछ नियम विकसित किए थे। कहते हैं कि इसके साथ विज्ञान के एक नए युग की शुरुआत हुई थी। अवलोकनों के साथ फिट होने वाले नियम बनाने का तरीका शुरू हुआ, चाहे वे नियम मौजूदा सिद्धान्तों के खिलाफ ही क्यों न नज़र आएँ।

असम्भव से लगते कारगर नियम  
इस सन्दर्भ में बोर ने कहा था, “ये कुछ नियम हैं जो असम्भव-से लगते हैं मगर ये परमाणुओं के व्यवहार को भलीभाँति समझाते हैं। तो इन नियमों को सही मानकर इनका उपयोग करते हैं।” बोर ने दो नियम विकसित किए थे जो प्रायोगिक परिणामों से मेल खाते थे।

1. इलेक्ट्रॉन बगैर विकिरण उत्सर्जित किए मात्र कुछ कक्षाओं में परिक्रमा कर सकते हैं। इन्हें बोर ने स्थिर कक्षाएँ कहा। ये कक्षाएँ केन्द्रक से कुछ निश्चित दूरियों पर होती हैं। ये कक्षाएँ निश्चित ऊर्जा मान की द्योतक होती हैं और इन्हें ऊर्जा स्तर भी कहा जाता है। इन कक्षाओं में परिक्रमा करते इलेक्ट्रॉन में त्वरण तो होता है मगर इस त्वरण के कारण विकिरण का उत्सर्जन नहीं होता।

2. इलेक्ट्रॉन एक स्थिर कक्षा से किसी दूसरी स्थिर कक्षा में ही जा सकते हैं। यानी यदि इलेक्ट्रॉन ऊर्जा सोखेगा या छोड़ेगा तो किन्हीं दो स्थिर कक्षाओं के बीच अन्तर के बराबर ऊर्जा ही सोखेगा या उत्सर्जित करेगा। यानी उत्सर्जित या अवशोषित विकिरण की आवृत्ति इस बात से तय होगी कि उन दो कक्षाओं के बीच ऊर्जा का अन्तर कितना है।

Δ  E = E2  -  E1 = hv

इन दो नियमों की मदद से परमाणु व्यवहार की सारी गुत्थियाँ सुलझ जाती हैं। अलबत्ता, गौरतलब बात यह है कि बोर को यह पता नहीं था कि क्या वास्तव में परमाणुओं में इलेक्ट्रॉन इन नियमों का पालन करते हैं और इन नियमों का भौतिक धरातल क्या है। मतलब यह पता नहीं है कि परमाणु के भौतिक चित्र में इन नियमों का आशय क्या है। खैर, इन नियमों से उस समय उपलब्ध सारे अवलोकनों की व्याख्या हो जाती है।

बोर का परमाणु मॉडल

सबसे पहला काम तो इस मॉडल ने यह किया कि रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल को स्थिरता प्रदान की। चूँकि नियम-1 के मुताबिक स्थिर कक्षाओं में परिक्रमा करते इलेक्ट्रॉन विकिरण नहीं छोड़ते, इसलिए अब उनके केन्द्रक में समाहित हो जाने का खतरा नहीं रहा।

दूसरा महत्वपूर्ण काम यह हुआ कि तत्वों के परमाणु वर्णक्रम की सफल व्याख्या हो पाई। जैसा कि हम देख चुके हैं, तत्वों के परमाणु वर्णक्रम में कुछ ही तरंग लम्बाइयों का विकिरण पाया जाता है। चूँकि इलेक्ट्रॉन एक स्थिर कक्षा से किसी अन्य स्थिर कक्षा में ही जा सकते हैं, इसलिए उनके द्वारा सोखी गई या उत्सर्जित ऊर्जा (तरंग लम्बाई) का मान भी एक निश्चित ऊर्जा पैकेट के रूप में ही होगा।

बोर ने काफी विस्तृत गणनाएँ करके यह स्पष्ट किया कि उनके द्वारा प्रस्तुत नियमों के आधार पर हाइड्रोजन वर्णक्रम के राइडबर्ग सूत्र को प्रतिपादित किया जा सकता है। यहाँ उस गणित में जाने की ज़रूरत नहीं है मगर उस समय भी सभी लोग इस बात के कायल हो गए थे कि निराधार होने के बावजूद बोर के नियम कारगर हैं।


सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित रुाोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।