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पत्तियाँ ही पत्तियाँ
अपने आसपास की पत्तियों को पहचानने की एक गतिविधि...

इकाइयाँ – सुशील जोशी
चित्र: हरमनप्रीत सिंह
कैसे इकाइयों के चलते नाप-तौल में होने वाली गफलतें कभी-कभी भयानक हादसों में बदल जाती हैं, जानने के लिए पढ़िए इकाइयों के महत्व को बताता यह दिलचस्प लेख।

भूलभुलैया
चित्र
: हरमनप्रीत सिंह
दिए गए कई रास्तों में से सही रास्ते को खोजने की जद्दोजहद...

क्यों-क्यों
क्यों-क्यों में इस बार का सवाल था: “यदि तुम स्कूल में पढ़ाए जाने वाले विषयों में कोई एक नया विषय जोड़ सकते और एक पुराना विषय हटा सकते तो वो कौन-से विषय होंगे, और क्यों?” कई बच्चों ने अपने दिलचस्प जवाब हमें भेजें। इनमें से कुछ आपको यहाँ पढ़ने को मिलेंगे, और साथ ही बच्चों के बनाए कुछ चित्र भी देखने को मिलेंगे।

कहानी लिखो
चित्र
: स्मिता
इस दिलकश चित्र में कितना कुछ है। अलग-अलग किरदारों को लेकर कितनी ही कहानियाँ बुनी जा सकती हैं। इस चित्र को देखकर तुम भी अपनी बुनी कोई कहानी हमें भेज सकते हो…

तुम भी जानो
इस बार जानिए:
कमाल की पॉटी
रेडियो पर स्कूल

भुतहा जामुन – बसन्त
चित्र
: नीलेश गहलोत
एक गाँव में जामुन का एक पेड़ था। बड़े ही रसीले जामुन थे उसके। कहते हैं कि एक भूत को उस जामुन के बीज बहुत पसन्द थे। अगर कोई व्यक्ति बीज वाला जामुन खा ले तो भूत बीज को खोजते-खोजते जामुन खाने वाले के ऊपर सवार हो जाता था।

कहानी में आगे क्या होता है, जानने के लिए पढ़िए...

हवा चली जब मस्ती में – श्रवण कुमार सेठ
चित्र: वसुन्धरा अरोड़ा
हवा चली जब मस्ती में,
आँधी आई बस्ती में...

अन्तर ढूँढ़ों
एक सरीखे दिखने वाले दो चित्रों में अन्तर खोजने की एक रोचक गतिविधि...

तालाबन्दी में बचपन - एक छींक – कोमल गोस्वामी
चित्र: तवीशा सिंह
इस कॉलम में हर माह दिल्ली की अंकुर संस्था से जुड़े किसी बच्चे का संस्मरण होता है। इस लेख में कोमल ने बड़ी खूबसूरती से यह बयां किया है कि कोरोना काल में छोटी-छोटी चीज़ों के चलते भी किस तरह से बर्ताव बदल जाता है...  

उजियारा – वीरेन्द्र दुबे
चित्र: अर्शी, नौवीं, लक्ष्यम संस्था, दिल्ली
घटता-बढ़ता
घुप्प अँधेरा
आकर बैठा उजियारा...

अकेला जूता – शुभम नेगी
चित्र
: शुभम लखेरा
एक जूते का जोड़ीदार कहीं खो गया। उसे बहुत अकेलापन महसूस हुआ। तो वह चल पड़ा अपने दोस्त को ढूँढ़ने। वह कहाँ-कहाँ गया, चलो देखते हैं...

बचपन के कपड़े – प्रेमपाल शर्मा
चित्र
: अक्षय सेठी
अपने बचपन के पहनावे को याद करते हुए प्रेमपाल जी लिखते हैं कि:
“पाँचवीं तक गाँव के स्कूल में ड्रेस नाम की कोई चीज़ थी ही नहीं। सर्दी हो या बरसात — कोई
कुछ भी पहनकर आ जाता। बरसात में हम अक्सर जूट की बोरी से अपना बचाव करते। यही
बोरी स्कूल के फर्श पर बिछाकर बैठने के काम भी आ जाती।”

मेरा पन्ना
वाकया – लहसुन-प्याज़ का गोलमाल, एक कुत्ता, मुनमुन चिड़िया, खबर, स्कूल की लापरवाही
कहानी – जादुई फूलों का बगीचा
यात्रा वृत्तान्त – यात्रा

माथापच्ची
कुछ मज़ेदार सवालों और पहेलियों से भरे दिमागी कसरत के पन्ने।

चित्रपहेली
चित्रों में दिए इशारों को समझकर पहेली को बूझना।

कालूराम शर्मा.... थोड़ा और रुकते – सुशील जोशी
चकमक के लेखक और एकलव्य के पुराने साथी रहे के. आर. शर्मा जी को याद करते हुए एक श्रद्धांजलि लेख।

शार्क और कोविड – रोहन चक्रवर्ती
कोविड के टीके के बारे में शार्क का क्या कहना है... जानिए रोहन के अन्दाज़ में।