Read Entire MagazineMay 2016

Cover - Illustration by Atanu Roy & Anmol Shrivastava

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कविता कार्ड - जगहों के नाम/ कविता - तेजी ग्रोवर
वो शुरुआती मानव था जो अपने आसपास से पूरी तरह से एकमेक होकर रहता था। उसका दायरा इतना विस्तृत था कि वो क्या है इसे परिभाषित करना उसके लिए कितना मुश्किल रहता होगा। कबीर शायद इसीलिए कहते थे - हम हैं सब मा, सब है हम मा, हम हैं बहुरी अकेला। पर आज सब कुछ तय है। हम लगातार तय करते जाते हैं। और फिर उस तय किए पर बिना सोचे समझे चलते चले जाते हैं। कोई आशंका नहीं, कोई उत्सुकता नहीं, कोई सवाल-जवाब नहीं। हमारे पास बस एक सूची होती है और हमारी पूरी कोशिश उस सूची पर किए जा चुके कामों पर हो गया है का निशान लगाने की होती है। एक मशीनी तरीके से। जिसमें और कुछ भी हो मज़ा नहीं होता। खुशी नहीं होती। तेजी की यह बेहद सुन्दर कविता हमारी इसी फितरत की बानगी है। और साथ हैं सुजाशा दासगुप्ता के उतने ही सुन्दर चित्र।

Parchai - by Udayan Vajpai, Illustrations by Taposhi Ghoshal
परछार्इं - परछार्इं दिन की रोशनी में बचा हुआ रात का अँधेरा है जो सूरज के चकाचौंध में भी बचा रह जाता है।... परछार्इं दिनभर हमसे सटी हुई इसीलिए फैली रहती है कि अगर उस पर सूरज की नज़र पड़े तो वो भागकर हमारे पीछे छिप जाए...चकमक में हमारी लगातार कोशिश रहती है कि वो सारी चीज़ें जो हमें हमेशा नज़र आती हैं। हम सब के पास होती हैं। उन्हें हम देखें। उन्हें इस तरह से देखें कि हमें भी नज़र आए कि परछार्इं रात का बचा हुआ अँधेरा है जो हमारे साथ बना रहता है ताकि सूरज की नज़र से बच सके।... साथ में है चित्रकार तापोशी घोषाल की परछार्इं की कल्पना। उदयन जी ने इससे पहले स्वाद, गन्ध, स्पर्श, देखना और सुनने पर भी बेहद रचनात्मक तरीके से लिखा है।

Agar Magar - A column on children’s question
अगर-मगर - बच्चों के सवाल पर गुलजार के जवाब इस नए कॉलम में गुलज़ार बच्चों के सवालों के जवाब देते हैं। आप भी अपने यहाँ के बच्चों के साथ गुलज़ार के लिखे गानों को साझा करें। उनकी फिल्मों पर बात करें। उनके गीत किस कमाल की कल्पनाएँ लिए होते हैं। उन पर बात करें। और फिर बच्चों से कहें कि वे गुलज़ार साब से क्या पूछना चाहते हैं। और हम तक उनके सवालों को ज़रूर भेजें।

Pyare Bhai Ramsahay - A story by Swayam Prakash, Illustrations by Atanu Roy
प्यारे भाई रामसहाय - वो 16 साल का था। पर खून देने के लिए कम से कम 18 का होना ज़रूरी था। उस वक्त जब सभी के मन में खून देने को लेकर तमाम संशय थे वो ज़रा न झिझका। उसका यह एक निर्णय उसका भीतर बयान कर गया था। जो मास्टरजी को उस वक्त भी याद रहा जब उसका एक छद्म भीतर लोगों के सामने आया। पर मास्टरजी का उस पर यकीन कायम रहा। एक बेहद मार्मिक कहानी।

Basti - A book excerpt from Intezar Hussain’s book “Basti”, Illustrations by K.G.Subramanyam
बस्ती - इन्तज़ार हुसैन विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे। विभाजन से पहले वे उत्तरप्रदेश के एक छोटे से कस्बे में रहते थे। बस्ती में इन्तज़ार हुसैन रूपनगर में बिताए अपने दिनों को याद करते हैं और विभाजन के बाद के समय को भी। इस अंक में हमने बस्ती का एक बेहद मार्मिक अंश प्रकाशित किया है। रूपनगर में बिजली का आना किस तरह बन्दरों की मौत बन गया। साथ में हैं महान चित्रकार के जी सुब्रामण्यम के जीवन्त स्कैच।

Mera dost Gulmohar - Story and illustration by Divyanshi Jain, 5th std DPS Ludhiana
मेरा दोस्त गुलमोहर - देवांशी के गुलमोहर में न पत्ते हैं न फूल। पर क्या कमाल की सादगी और किफायत कि चन्द कतरे हरे और लाल के उसे गुलमोहर से भी ज़्यादा गुलमोहर बना गए हैं। देवांशी चौथी में हैं यह न तो उनकी कलम से लगता है न उनकी कूची से।

Kalkatta - A memoir by Shankh Ghosh, translation by Sanjay Bharti, Illustrations by Habib Ali
कलकत्ता - कलकत्ता की सड़कों पर भीड़ है। कोलाहल है। यह कोलाहल सड़कों पर ही नहीं लोगों के मन-दिमाग में भी भर गया है। जहाँ कोलाहल है वहाँ ठहराव नहीं हो सकता। धीरज नहीं हो सकता। उस दिन जब बस भीड़ में फँस गई। और लोग ड्राइवर को सीख देने लगे कि गाड़ी चलाई कैसे जाती है। कैसे चलाई जानी चाहिए। और कहाँ उसने गड़बड़ी की... तो भी वो शान्त बना रहा। कैसे? लोग तो इस कोलाहल के रोज़ हिस्सा न बनते होंगे। फिर कैसे वो इस का हिस्सा बने रहने के बावजूद इससे बचा रहा...लेखन इस पर सोचते रहे और उनके मन में यह अनुभव अचानक एक कविता का रूप पा गया। इस संस्मरण को एक गतिविधि के रूप में भी देखा जा सकता है। इसे पढ़कर अगर किसे के मन में कोई कविता रूप लेती है तो हमें ज़रूर लिख भेजें।

Munna Bunaaiwale - A story by Priyamvad, Illustrations by Atanu Roy
मुन्नाबुनाईवाले - मुन्नाबुनाईवाला हममें प्यार भर जाता है। अपनी सादगी और ईमानदारी से। काम, ईश्वर और ईश्वर के बन्दों के प्रति अपने प्रेम से। और यह प्रेम इतना संक्रामक है कि आपको अपनी चपेट में ज़रूर ले लेगा। इसीलिए शायद हम ऐसे लोगों के पास जाने से डरते हैं। हमें भी उनसे प्रेम हो जाएगा। हम प्रेम से डरे लोग हैं। पर मुन्नाभाई प्रेम में ही रहते हैं। प्रेम से ही रहते हैं। इस कहानी को आप भूल नहीं सकते। इसमें जिस तरह से मुन्नाभाई का किरदार रचा है वो आपको इसे भूलने नहीं देगा। एक बेहद सुन्दर कहानी।

Wo humare kya lagte hain - A short write -up by Bihu, 11 years, Illustration by Vibhuti Pandey
वो हमारे क्या लगते हैं - हमें पता नहीं चलता। पर यह सही है कि एक डोर है। जिसके एक सिरे को पकड़कर खींचें तो सब खिंचते चले आएँगे। हम शायद न जानते हों पर 11 साल की बीहू जानती है यह। तभी तो वो सवाल उठा पाती हैं वो हमारे क्या लगते हैं? वो पूछती हैं एक किसान का फाँसी लगा लेना हमारे जीवन में क्या मायने रखता है? क्या हमने सोचा है इसे? क्या हमने उस डोर को खींच के देखा है? क्या हमारे सीने में कहीं खिंचाव महसूस होता है इस डोर को खींचने पर?

Putri ka Khat pita ke naam - A letter from a daughter to her Father, Illustration by Nilesh Gehlot
पुत्री का खत पिता के नाम - बच्चे भले ही हमारी ही दुनिया साझी करते हैं पर हमने उनके देखने-समझने पर कभी यकीन नहीं किया। अमूमन हम यकीन नहीं करते। चकमक में हम हमेशा से ही बच्चों के पन्नों को अहमियत देते रहे हैं। पर यह कॉलम - चश्मा नया है -
यह सोच के शुरू किया कि किशोर बच्चों के अन्तद्र्वंद्वों को, उनके देखने को तरजीह मिले।

Palaniya - A story by Prabhat, Illustration by Mayukh Ghosh
पलानिया - रेलगाड़ी के सफर में अकसर छोटे बच्चे दिख जाते हैं। कभी गाड़ी का फर्श साफ करते, कभी कुछ बेचते, कभी भीख माँगते, कभी करतब दिखाते। हमारा उनसे रिश्ता सिर्फ इतना ही बनता है - कभी उन्हें दो पैसे दिए, कभी कुछ बचा खाना दे दिया। कभी उनका करतब देखा और मुँह अखबार में घुसा लिया। उनके संघर्ष, उनके तनाव, उनका जीवन हमसे कटा ही रहता है। उनके जीवन में झाँकने की एक कोशिश है पलानिया।

Kya keet bhi bolte sunte hain - An article on Insects by Bharat Poorey, Illustrations by Habib Ali
क्या कीट भी बोलते-सुनते हैं - हमारा बोलना-सुनना मुँह और कानों से होता है। कीट भी बोलते-सुनते हैं पर उनके पास ये काम करने के दूसरे अंग हैं। शरीर के कुछ अंगों से वे बालना-सुनना करते हैं। एक जानकारी परक लेख।

Aur Haathi kya sochte hain - A book review of “Beyond words”
और हाथी क्या सोचते होंगे - सिंथिया पिछले 14 सालों से हाथियों के साथ रह रही हैं। वे कहती हैं कि हाथी उसी तरह का जीवन जीते हैं जिस तरह के जीवन की हम कामना करते हैं। वे हर हाथी को नाम से पहचानती हैं।

Bicholi Khass ke ladke - A story by Ramesh Upadhayay, Illustration by Prashant Soni
बिचौली खास के लड़के - नाम में क्या रक्खा है...बहुत कुछ रक्खा है। नटखट नाम है उसका। और उसके गाँव का नाम है बिचौली खास। पर मास्टरजी उसे बिचौली के लड़के कह कर पुकारते हैं। नटखट को यह बुरा लगना ही था। लगा भी। तो उसने अपने बड़े भाई झटपट के साथ मिलकर एक प्लान बनाया। प्लान काम कर गया। और मास्टरजी का बोलना बन्द हो गया। पर प्लान क्या था?

Ek tha haji, Ek tha Naji - Fun story by Swayam Prakash, Illustration by Atanu Roy
एक था हाजी, एक था नाजी - हर बार की तरह हाजी - नाजी के गुदगुदाते किस्से।

Boli Rangoli - A column on children’s illustrations on Gulzar’s Couplet
बोली रंगोली - गुलज़ार साब की कविता पर बच्चों के चित्रों का यह कॉलम अब अपनी एक जगह बना चुका है। आप सब से गुज़ारिश है कि आप भी अपने यहाँ के बच्चों तक इन पंक्तियों को पहुँचाएँ और उनसे कहें कि वे इन्हें जिस भी तरह से समझे हैं उन्हें चित्रों में लिखें। अगले माह की पंक्तियाँ हैं -
काँटा चुभा था क्या पाँव में
पानी भरा था क्या गाँव में
दूर से आया इब्ने बतूता
पाँव में क्यों न पहने जूता

Ek patr - A letter from a Chakmak reader Ramakant ji, Illustration by Hariom Patidar
एक पत्र - चकमक के बारे में एक बेहद सुधी पाठक का बयान। हम चाहेंगे कि हमें और खत मिलें जिनमें चकमक की समीक्षा हो। क्या अच्छा, क्या बुरा। क्या होना चाहिए जो नहीं है।...क्या कम है, क्या ज़्यादा। भाषा, विषयवस्तु, कहन, चित्रों पर आप सभी की विस्तृत प्रतिक्रिया का स्वागत है। इन्तज़ार है।

Chunav ke bare mai - A real life experience of Adharsheela’s student Sachin on Elections, Illustration by Vibhuti Pandey
चुनाव के बारे में - चुनाव होते हम सब देखते हैं। फिर कुछ समय बाद उनके नतीजे हमारे सामने आते। और सत्ता उन के हाथ में आ जाती है जिन्हें हमने “चुना” है। पर यह चुना कैसे जाता है इसका कुछ अन्दाज़ तो हमें है पर सचिन ने अपने गाँव में चुनावों के दौरान जो देखा। उसे लिखा।

Rashtra aur Rashtrawaad - An article by Kumkum Roy, Illustrations by Snigdha Banerjee
राष्ट्र और राष्ट्रवाद - इन दिनों ये दो शब्द बहुत चलन में हैं - राष्ट्र और राष्ट्रवाद। और जो भी इन्हें बोलता है कुछ इस भाव से जैसे वही इसका एकमात्र अर्थ है और इस अर्थ में छेड़छाड़ की कोई गुँजाइश नहीं। पर कुमकुम बताती हैं कि जैसे किसी भी शब्द के अर्थ अलग-अलग समय में, अलग-अलग सन्दर्भों में नए अर्थ पाते हैं वैसे ही ये दो शब्द भी हैं। इतिहास में किन्ही खास स्थितियों में किन्हीं खास मकसद को पूरा करने के लिए इन्हें अर्थ मिले। एक बेहद महत्वपूर्ण लेख, खास तौर पर आज के सन्दर्भ में।

Kanchedi - A memoir by Sushil Shukl, Illustration by Mayukh Ghosh
कन्छेदी - किसी घटना का घटना। उसे घटते हुए देखना। उसे देखते हुए हमारे अन्दर का घटना। हमारा घटना। सालों तक सालता रह सकता है। आप समय में पीछे जाकर कुछ नहीं कर सकते। ऐसी ही एक घटना सालों पहले घटी। कसूरवार न होते हुए कन्छेदी पिटा। सब जानते थे उसका दोष नहीं पर कोई कुछ नहीं बोला। दादी भी जानती थीं कि वो कसूरवार नहीं फिर भी उन्होंने उसे पीटा। एक बेहद मार्मिक घटना।

Maidaan ki kahani - A story by Neel, 9 years old, Illustration by Shubham Lakhera
मैदान की कहानी - नौ साल के नील के इतने पैने अनुभव की आप हैरान रह जाएँगे।

Ek Adna -sa Nayaab Tohfa - A poem by Yashi Mahendra, 12 years, Illustrations by Ashika Harbhanjaka
एक अदना-सा नायाब तोहफा - प्रकृति से हम कितना कुछ लेते हैं। देते क्या हैं। क्यों लेते हैं इतना कुछ? 12 साल की याशी के सुन्दर कविता।

Chitrapaheli
चित्र पहेली - हमेशा की तरह चित्रों की पहेली।