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Cover - A poem “Chand chala hai nav chalane” by Manoj Kumar Jha, Illustration by Atanu Roy
चाँद चला है नाव चलाने- एक कविता है। आसमान में कुहासा है। चाँद को लगता है कि कोई नदी है। वह नाव लेकर नद में निकल पड़ा है। पर सितारे कहते हैं कि रात को थोड़ा थिराने दो। - थिराना - लगता है हमारी भाषा से दूर चला गया शब्द है। इसलिए कि बड़े दिनों बाद कभी लौटता है। इस शब्द का ठीक-ठीक विकल्प शब्द क्या हो सकता है? क्या आज आपाधापी में थिरना शब्द बाहर हो गया है? ठहरने, गहराने, जमने, स्थावर, धैर्य, निथरने आदि के पड़ोस के शब्द अब कम इस्तेमाल में आते हैं। इन शब्दों की जगह अब कौन-से शब्द ज़्यादा इस्तेमाल होने लगे हैं? जैसे सूर्य निकलता है, गहराता है और अस्त होता है। वैसे ही शब्द हैं। थिराना क्या एक अस्त होता हुआ शब्द है? (नद भी इस कविता में आया है।) शब्द के प्रेम में हम पड़ जाते हैं - उनकी ध्वनि, अर्थ और लिपि कई वजहों से। नया शब्द सीखते ही उसे इस्तेमाल कर लेने की इच्छा आती है। बचपन में खासतौर पर। भाषा का एक खेल चलता है। कोई कहेगा - शब्दों से प्रेम नहीं करना चाहिए। अपनी बात कहनी चाहिए। क्योंकि शब्द तो अपने-आप में कुछ नहीं होते हैं। पर कहीं भी जाइए रास्ते में शब्दों से प्रेम का एक टुकड़ा रास्ता पड़ेगा ही। इस बार का कवर बच्चों के प्रिय चित्रकार अतनु राय ने बनाया है। इस चित्र की सबसे मज़ेदार चीज़ क्या लगी? मुझे यह ख्याल बड़ा अच्छा लगा कि चित्रकार को इस चाँद को जूते पहनाने थे। वह कई दुकानों में गया। पर हर जगह कोई भी चाँद के लिए एक जूता देने को तैयार नहीं हुआ। थक-हारकर चित्रकार को एक जोड़ी जूते ही लेने पड़े। तो दूसरे जूते का क्या करें? तो चित्रकार ने चाँद को एक और पैर लगा दिया। पर चाँद के दूसरे पैर को दिखाने से तो चाँद की शक्ल बिगड़ जाएगी। तो क्या एक पैर सिकुड़ा बना सकते हैं। अतनु राय के चित्रों में यही बातें ह्रूमर पैदा करती हैं। यह कुछ वैसा ही नहीं है कि एक डेंटिस्ट दाँत निकलवाने आए एक व्यक्ति से कहता है कि अरे यार दस रुपए खुल्ले नहीं हैं। एक और दाँत निकलवा लो। ......यह कितने कमाल की बात है न - न चाँद, न आसमान, न नाव सब अपनेपन में नहीं हैं। क्या यह हमारा दूर की चीज़ों को पास लाने का तरीका है? या हम ज़्यादा दिनों किसी अनजानी चीज़ का कोई चित्र बनाए नहीं रह सकते हैं?
Kasali kasali peth - A poem by Shiv Govind Tripathi, Illustration by Sheefali
कसली कसली पीठ - एक और बेहद सुरीली कविता। छोटे बच्चों की जबान पर यह सहज ही चढ़ जाएगी। शिवगोविन्द त्रिपाठी की यह कविता जाने कहाँ खोई पड़ी थी!
कसली कसली पीठ कि घोड़ा टप टप टप टप
हिलती डुलती पूँछ कि झाड़ू झप झप झप झप
कसली पीठ मानी?
कसी हुई?
तो कसली क्यों? ल शब्द झड़ गया। पेड़ों की तरह शब्दों पर भी पतझड़ आते हैं। इसी कविता में एक लाइन है - नौसिखिया असवार कि मन में थर्रम थर्रम ।
असवार यानी अश्वरोही या सवार। यह कमाल चित्रों में भी तो होता है। बच्चे अकसर करते हैं। इस कविता के मनमोहक चित्र शैफाली ने बनाए हैं। वही जो चकमक में चित्रों की भाषा के सिलसिले के लिए जानी जाती हैं।
Index
इंडेक्स - पाँचवीं में पढ़ने वाले सन्दीप का बनाया एक बहुद ही सुन्दर चित्र। पीला इतना बसन्ती है कि बसन्त को भी इसे उधार लेने का मन कर जाएगा...
Boli Rangoli - A column on children’s Illustrations on Gulzar’s couplet
बोली रंगोली - इस बार की कविता थी -
बारह महीने बाद इस घर की
नम्बर प्लेट बदलती है
पता-वता रहता है वही
पर घड़ी दुबारा चलती है
आठ साल की भूमिका ने एक घर बनाया है। यह घर कहाँ स्थित है? घर को दिखाने के लिए कितनी सरल युक्ति चित्रकार ने आज़माई है। इसके अलावा पाँच और चित्र भी दिखेंगे।
Chhatri - A story by Manzoor Ahtesham, Illustrations by Atanu Roy
छतरी - एक बेहद कसी हुई कहानी। कथाकार हैं मंज़ूर एहतेशाम। एक व्यक्ति धूप से बचने के लिए रोज़ छतरी लगा कर एक बाज़ार से निकलता है। लोग मॉनसून का इंतज़ार करके थक गए हैं। आसपास कई घटनाएँ हो रही हैं। लोग कई चीज़ों से परेशान हैं। इस जगह की फिज़ाँ में कुछ सुलग रहा है। फिर एक दिन यह ज्वार फट पड़ता है। निमित्त बनता है यही बेचारा छतरी वाला। इतने में ही बारिश आ जाती है। लोगों को अपनी छतरी की याद आ जाती है। इस कहानी के सटीक चित्र अतनु राय ने बनाए हैं।
Radio ka Bhedia - A story by Prabhat, Illustration by Dilip Chinchalkar
रेडियो का भेड़िया - रेडियो क्या कमाल की चीज़ है! कितने लोग अपने काम में लगे रहकर रेडियो सुना करते हैं। पर यह एक ऐसे गाँव के एक आदमी का किस्सा है जिसे रेडियो उसकी अपनी सीमित दुनिया में एक दखलंदाज़ी की तरह दिखता है। इस कहानी को पढ़ कर सोचना- क्या यह कहानी रेडियो की कहानी है? या मज़दूर लड़के की या उसके पिता की? या गाँव और शहर या नये और पुरातन की? रेडियो ने क्या गाँव के सुर छीन लिए? या दो अदृश्य ताकतों की - एक अदृश्य गाने वाले की। जो सुननेवाले से बेपरवाह गाए ही जा रहा है। और एक अदृश्य पुरुष सत्ता की। उसे भी नहीं मालूम कि उसकी सत्ता के नीचे कितने लोग पिसे जा रहे हैं। रेडियो से जब एक आदमी के साथ एक औरत की आवाज़ आती है तो पिता के लिए असहनीय हो जाती है। पर इस कहानी में किस्सागोई के कुछ खूबसूरत हिस्से हैं - मसलन लड़के के पिता का रेडियो से रुकने के लिए मनुहार करते जाना। “जो जूता में है वो गीता में भी नहीं” तक का सफर रोमांचक सफर है। ज़िन्दगी के रंग देखो - अभी-अभी रेडियो को तोड़ आए पिता एक लोकगीत गुनगुनाने लगते हैं - मीठे बोलेगो तो विघ्न कटेंगे। यह पूरी ही कहानी दो विषमों के बीच झूलती रहती है।
Ek path ke liye ek shehar ki khoj - An interesting article about a discovery of a city by Rasmi Paliwal
एक पाठ के लिए एक शहर की खोज- रश्मि पालीवाल पिछले लगभग पच्चीस वर्षों से सामाजिक अध्ययन शिक्षण में काम कर रही हैं। इसी विषय की किताब के लिए उन्हें एक पाठ की खोज है। जिसमें उन्हें 700-1200 ईस्वीं के समय की एक झलक बच्चों को दिखानी है। उन्हें सीयडोणी नामक एक पुराने शहर की जानकारी मिलती है। विभिन्न रुाोतों की मदद से पाठ बन जाता है। फिर एक संयोग बनता है इसी पुराने शहर की यात्रा का। उस पाठ की स्मृतियों के सहारे उस शहर की यात्रा होती है। एक गाँव में जगह-जगह उस पुराने शहर सीयडोणी के अवशेष मिलते चले जाते हैं। वह शिलालेख भी मिलता है जिसके आधार पर कभी एक पाठ तैयार किया गया था। मौजूँ फोटोग्राफ्स के साथ एक सुरीली इतिहास यात्रा।
Dost - A picture story by Shashi Kiran
दोस्त- एक व्यक्ति हैं। उन्होंने एक कुत्ता पाला। और उनकी उस कुत्ते से इस कदर दोस्ती हुई कि उनकी सारी दुनिया उसी तक सीमित हो गई। जैसा कि अकसर कहानी में और जीवन में और जीवन में और कहानी में होता है एक दिन कुत्ते की एक बीमारी से मृत्यु हो जाती है। लेखक की ज़िन्दगी में एक बड़ा शून्य पैदा हो जाता है। उसकी स्मृतियों से लेखक ने कई चित्र बनाए और कहानी लिखी। इसी कहानी का पहला हिस्सा। चार चित्रों के माध्यम से।
Ajeeb Saza - A short fun trivia by Sukumar Rai, translation from Bangla by Laltu, Illustrations by Taposhi Ghoshal
अजीब सज़ा- सुकुमार राय हिन्दुस्तान के बच्चों के साहित्य के सबसे दक्ष लेखक माने जाते हैं। कहते तो यहाँ तक हैं कि सुकुमार राय इतना अच्छा लिखते थे कि खुद रवीन्द्र बाबू ने उनके रहते कभी बच्चों के लिए नहीं लिखा। एक छोटी-सी कहानी। ह्रूमर से भरपूर। कवि लाल्टू इसे बाँग्ला से हिन्दी में लाए हैं। एक कक्षा है जिसमें घोर शरारती बच्चे हैं और एक मस्तमौला शिक्षक। बच्चों की शरारतों से शुद्ध हास्य प्रकट होता है। तापोषी घोषाल के अनुपम चित्र।
Magarmaccho ki ladai - A serial story by Jasbir Bhullar, Illustrations by Atanu Roy
मगरमच्छों की लड़ाई - जसबीर भुल्लर का यह धारावाहिक यूँ है मानो आप खुद मगरमच्छों के ये करतब देख रहे हों। ये अत्यन्त रोचक कहानी आपको बाँध लेगी और अगली कड़ी का इन्तज़ार करने से रोके नहीं सकेगी...। जंगल की गंध, आवाज़ें, रोमांच शब्दों से लिपटे हुए हैं। इसमें अतनु राय के बेहद गतिवान, ऊर्जा से भरे चित्रों का भी बड़ा संग है।
Ek bundh todi - An art activity by Vidushi Yadav
एक बूँद तोड़ी - कागज़ को घुमाते हुए उस पर गिरी बूँद को फूँक से सरकाकर हम बचपन से कितने ही चेहरे-मोहरे बनाते आए हैं। अब इसमें थोड़ी और कलाकारी जोड़ देते हैं। पानी पर कलम से तुरपाई और फिर कलम से आँखें, हाथ, पैर जो चाहो टाँक दें। बच्चों को भी इस कलाकारी में बेहद मज़ा आया। उनकी हज़ारों कलाकारियाँ हमें मिलीं…
Mera Panna - Children’s Creativity column
मेरा पन्ना - हर बार की तरह चित्रों और शब्दों में बसी बच्चों की दुनिया की एक झलक देते बच्चों के अपने पन्ने
Do Gatividhiyan - Two activities by Vivek Mehta, Illustration by Rajkumari
दो गतिविधियाँ- पिछले तीन अंकों से विभिन्न गतिविधियों के ज़रिए बच्चों से मिलने-जुलने के कई मौके हाथ लगे हैं। ये दो गतिविधियाँ भी एक ऐसा ही मौका हैं। एक के लिए साइकिल रिक्शे की ज़रूरत होगी जो शायद हर बच्चे की पहुँच में न हो यह सोच एक और गतिविधि दी है जिसमें कागज पर बताए तरीके से कुछ आकृतियाँ बनानी हैं और फिर उनका अवलोकन करना है। आज जब थमकर सोचना इतनी महीन चीज़ हो गई है कि वो आसानी से कहीं गुम होकर रह गई है। हमारी कोशिश उसे ढूँढ कर सामने आने की है... आईआईटीकानपुर के पढ़े विवेक मेहता हर बार इस गतिविधि को रोचक बनाए रखते हैं। और हाँ उनकी यह कोशिश सिर्फ विज्ञान तक ही सीमित नहीं रही है, वो समाज की कई रूढियों की ओर भी ध्यान खींच ले जाते हैं।
Lal Gulab aur Hari pattiyan - An article on “how color decreases” by Rama Chari.
लाल गुलाब और हरी पत्तियाँ - वैज्ञानिक रमा चारी से जब प्रकाश, ध्वनि... जैसे विषयों पर बेहद बुनियादी स्तर से लिखने का विचार साझा किया तो वे इसके लिए सहर्ष तैयार हो गर्इं। उनका आभार। यह लेख प्रकाश विषय पर उनका दूसरा लिख है। पिछले अंक में उन्होंने रंगों के जोड़ पर बेहद रोचक लिखा था। इस अंक में बात की है रंगों के घटाने की। लाल गुलाब बाकी सब रंगों को सोखकर केवल लाल रंग को बिखरा देता है। और वो हमें लाल दिखता है। यानी उसने कुछ रंग घटाकर बाकी रंग बिखरा दिए...। प्रकाश पर लेखों का क्रम आगे भी जारी रहेगा...एक बेहद पठनीय लेख।
Gajju ka bada aur maniwala sanp - A memoir by Anil Singh, Illustrations by Taposhi Ghoshal
गज्जू का बाड़ा और मणिवाला साँप - एक समय में जिन चीज़ों को हमने घटते देखा है वो हमारे भीतर बनी रहती हैं -यादें बन। अजब तस्वीरें होती हैं यादें - जिनमें उस वक्त के दृश्यों के साथ-साथ आवाज़ें, गंध और तमाम डर, खुशियाँ, दुख सभी जुड़े रहते हैं। और कई साल बाद कभी किसी सड़क को पार करते हुए या सब्ज़ी खरीदते हुए या यूँ ही कुछ करते-करते आचानक वो उचककर ऊपर आ जाती हैं। और फिर कागज़ पर बिखर आती हैं। ऐसी ही एक याद के गवाह बने अनिल हमसे साझा करते हैं गज्जू के बाड़े की यादों को। अपने दोस्तों को। और हम सब उनके साथ उस घटना के गवाह बन जाते हैं। इन्हें पढ़ते हुए निश्चित ही कितनी यादें उचक कर हमारे भीतर से भी बाहर निकलना चाहेंगी। इसलिए आप भी कागज पर उन्हें बिखर जाने दें...
Do Tasveeron ki Dastan- Photo observation description by Vivek Mehta and observations of students.
दो तस्वीरों की दास्तां - दो गतिविधियों में हमने जिन गतिविधियों का ज़िक्र किया था यह उसकी एक बानगी है। पिछले अंक में दो गतिविधियाँ दी थीं- एक रिटायर्ड व्यक्ति की अस्पताल की सेवा पुस्तिका और अस्पताल की हेल्प डेस्क की तस्वीरें। पर अफसोस की बहुतों को वो नज़र ही नहीं आया जिस पर ध्यान खींचने की कोशिश की गई थी। दरअसल हम इतनी सारी चीज़ों के देखने के इतने आदी हो चुके होते हैं कि हमें उसमें कोई समस्या नहीं दिखती। नर्स, सेक्रेटरी, स्कूल में टीचर आदि जैसे कामों में मान लिया जाता है कि वो महिला ही होगी। गरीब, औरत, दलितों का पिटना अगर हमारी मुट्ठियों को जकड़े नहीं, हमारी साँस की रफ्तार को बदले नहीं, हमारे भीतर लपट न पैदा करे... तो समझो कि हम एक मृत समाज में जी रहे हैं...। विवेकशून्य होती दुनिया पर विवेक मेहता की सटीक टिप्पणी।
Prawasi pakshiyon ki yatrayein - An article on journey of migratory birds by Jitendra Bhatia
प्रवासी पक्षियों की यात्राएँ - कच्छ की हरमिरसर झील। सर्दियाँ खत्म हो जाने के बाद भी तीन हवासिल अपने देश लौटे नहीं। यहीं बस गए। लोगों को आश्चर्य हुआ। पर फिर देखा कि उनमें से एक घायल था। उड़ नहीं सका तो बाकी दो दोस्त भी वापस नहीं गए। और फिर गए ही नहीं। आज भी उन्हें देखा जा सकता है....जितेन्द्र भाटिया का पक्षियों के अनोखे संसार का दर्शाता एक सुन्दर लेख।
Chitrapaheli
चित्रपहेली - चित्रों के सुरागों से शब्द तक पहुँचने की पहेली।
Paine danto wali - A part of Nagarjun’s poem “Paine danto wali”, Illustration by Kanak
पैने दान्तोंवाली - नागार्जुन की पैने दान्तोंवाली कविता का एक अंश।
धूप में परसकर लेटी है
मोटी-तगड़ी, अधेड़, मादा सुअर...
यह भई तो मादरे-हिन्द की बेटी है।
तुम जब लिखने बैठते हो या लिखने का सोचते हो तो क्या चीज़ तुमको लिखने को उकसाती है? किन चीज़ों को तुम अपनी कविता कहानी का विषय बनाना चाहोगे? तुम विषयों का चुनाव कैसे करते हो? कुत्ते, बिल्ली, बकरी जैसे कुछ जीवों से हमें बड़ा प्रेम होता है। वो दिखता भी है हमारी कहानियों-कविताओं या बातों में पर सुअर...सोचो सुअर का ज़िक्र तुमने कहाँ पढ़ा, सुना। किन सन्दर्भों में सुना? ऐसा क्यों होता होगा? क्या सुअर तुम्हारी किसी कविता का विषय हो सकता है? क्या तुम्हें नहीं लगता कि हमारे समाज में भी एक बड़ा तबका यूँ ही दरकिनार, नज़रअन्दाज़ रह जाता है। यह उन्हीं हाशिए में कर दिए लगों की प्रतिनिधि कविता है। इसके साथ दिए चित्र को भी देखो। ध्यान से देखो। तुम्हें अपने समय की कितनी ही चीज़ें दिखेंगी। एक कोने में दिख रहे “ च्छ ” और “ त ” पर ध्यान दो। इसे देख तुम्हें आज के समय के किस नारे का ध्यान आता है? साहित्य यही तो काम करता है। वो एक हिस्सा दिखाता है जिसे फिर तुम अपने अनुभव से पूरा करते हो।