Read Entire MagazineJanuary 2015

Cover – Illustration by Taposhi Ghoshal
कवर - चकमक 2015 का कवर इस बार हमारी आधी दुनिया -जिसे हम लगभग नज़रंदाज़ करते चले आए हैं - को समर्पित है। आधी दुनिया का यह पद स्त्रियों तथा लड़कियों के लिए अकसर उपयोग में लाया जाता है। इस सिलसिले में दो बातें - पहली कि वे आधी भी नहीं हैं। आधी से कम होती जा रही हैं। हर हज़ार पर अस्सी के आसपास कम हो रही हैं। एक हज़ार के अनुपात में यह संख्या कम लगे पर ज़रा अपनी आबादी यानी एक अरब पच्चीस करोड़ के हिसाब से जोड़ोगे तो पता चलेगा कि इस हज़ार पर 920 का मतलब कितना भयावह है। दूसरी बात, आधी दुनिया भले ही हम कहें पर आधे के असंतुलन से आधा ही असंतुलित नहीं होता है। पूरा का पूरा असंतुलन का शिकार होता है। जैसे आधा शरीर स्वस्थ होने का मतलब या एक आँख के काम करने के मतलब।
नागार्जुन की मशहूर कविता - नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है - पेश की। तापोषी घोषाल ने एक प्रफुल्ल लड़की को चित्रांकित किया है। मेरी भी आभा है इसमें....कितना खूबसूरत ख्याल है। जिसमें कितना आत्मविश्वास है। हक भी है।

Aur Ped - A poem by Rajesh Joshi, Illustration by Taposhi Ghoshal
और पेड़ - हिन्दी के शीर्ष कवि राजेश जोशी की यह कविता है। कविता का नाम है और पेड़? कवि ने अपनी माँ से सुन रखा है कि पेड़ रात में सोते हैं। तो कवि इस बात पर प्रतिप्रश्न करता है। अगर पेड़ रात में सोते हैं तो दिन में क्या करते हैं? एक रास्ता तो इस कविता को समझकर उसके तथ्य वगैरह पर चले जाने के लिए जाता है। मसलन, आप कहें कि नहीं पेड़ तो दिन में आक्सीजन आदि देता है...विज्ञान की चर्चा करने लग सकते हैं। बढ़िया है। यह भी करें। पर कुछ और बातें भी ध्यान में रखें। मसलन, पेड़ दिन में क्या करते हैं? सवाल का उत्तर क्या होगा यह कवि खुद नहीं जानता। वरना वह उत्तर देकर लेख लिखता। पर कवि तो उस हज़ारों साल से चली आ रही बात पर सवाल खड़े करता है। कि भई अगर तुम कहते हो कि पेड़ रात में सोते हैं तो वे दिन में क्या करते हैं? ऐसे कितने ही सवाल होंगे जिनकी दूसरी तरफ हम नहीं झाँकते। उन पर कोई सवाल नहीं उठाते। यहाँ कवि ने उस हज़ारों सालों से स्थगित एक सवाल पूछा है। कविता का एक दूसरा हिस्सा है। जिसमें कवि कहता है कि अफसर अफसरी करता है और थककर सोता है। यहाँ अफसर के अफसरी से थक जाने की बात व्यंग्य तब हो जाती है जब वह अगली पंक्ति में कहता है कि - हम्माल हम्माली करता है और थककर सोता है।
इस कविता के बेहद खूबसूरत चित्र तापोषी घोषाल ने बनाए हैं। पाठकों से इस बात पर चर्चा करना शायद बड़ा मुफीद रहे कि इस कविता के चित्र बनाने का मौका अगर उन्हें मिले तो वे क्या चित्रित करेंगे। जब कविता को चित्र में पिरोने की बात आएगी तब यह तो समझना ही होगा कि कविता असल में किस बारे है। वह क्या कह रही है? उसकी अंतर्वस्तु क्या है? तो क्या कविता की अंतर्वस्तु को समझकर उसका चित्र ही बनाना चाहिए? बना सकते हैं। पर कई दूसरे विकल्प भी हैं। क्या आप इस कविता को समझकर इस कविता में जोड़ते हुए कुछ नया कहना चाहते हैं। इस कविता के सहारे उपजा कोई एक और विचार। तब चित्र कविता को एक नया विस्तार दे सकेगा।

Boli Rangoli - A letter by Gulzar’s sahab.
बोली रंगोली - गुलज़ार साब की एक चिट्ठी है। बोली रंगोली के सिलसिले में। उन्होंने इस चिट्ठी में एक नया शब्द भी पाठकों के सामने रखा है - मुसव्विर। इस चिट्ठी में उसका मतलब भी लिखा है। पर यह एक रोचक गतिविधि हो सकती है कि घर पर या स्कूल में कहीं एक कोने में एक कार्डशीट लगी रहे। कोई भी चाहे बच्चे या बड़े जब वे किसी नए शब्द के सम्पर्क में आएँ उसे उस कोने में लिखकर साझा करें। चाहें तो एक-दो लाइन उसके संदर्भ के बारे में भी लिखें।

Akal ka tumba - A short story of Birbal, Illustrations by Tanushri Roy Paul
अक्ल का तूम्बा- अकबर और बीरबल हमारे किस्सों के दो अमर पात्र हैं। और वे इतने लचीले हैं कि आज के किसी किस्से को भी आप उनकी मार्फत सुनाना चाहें तो वे मना नहीं करेंगे। इससे किस्सों की एक बड़ी बात सामने आती है कि किस्सों में असल बात को समझा जाता है। सच-झूठ आदि चीज़ों से किस्सों को कबकी मुक्ति मिल चुकी है। यहाँ ईरान के बादशाह ने अकबर के चतुर बीरबल के नाम एक चिट्ठी भेजी है और दरख्वास्त की है कि थोड़ी अकल भेज दें। बीरबल ने भेज दी है। ईरान के बादशाह के पास जब अकल पहुँची तो वे इसे भेजने के तरीके के कायल हो गए। तनुश्री राय पाल के सुन्दर चित्र।

Prakash - An article on light by Arun Kamal, Illustrations by Kanak
प्रकाश - हिन्दी के विख्यात कवि अरुण कमल ने प्रकाश के बारे में लिखा है। इस श्रृंखला में पहले तुम देखना, सुनना आदि के बारे में पढ़ चुके हो और आगे ध्वनि, हवा, जल आदि जीवन की हमारे आसपास की सबसे बुनियादी चीज़ों के बारे में पढ़ोगे। ये सारी चीज़ें इतनी बुनियादी हैं कि हमारी नज़र से ओझल की तरह रहती हैं। और इतनी ज़रूरी कि उनके न होने से जीवन ही सम्भव न होगा। बच्चों से किस चीज़ पर लिखवाएँ? क्या विषयों को ढूँढते हुए आप कभी इन बेहद बुनियादी चीज़ों पर पहुँचे? इन विषयों पर सबके कई बेहद अपने अनुभव ज़रूर होंगे। बस कुरेदने भर की देर है।

Kahani se bhare patte - An short article on activity with leaves
कहानी से भरे पत्ते - ओमेद असादी को पत्तियों को देखने का शौक था। वे इनमें से कुछ को उठाकर घर ले आते रहे। इन में से कुछ को किताबों के पन्नों में चपेटकर रख दिया। कई दिनों बाद किसी पुस्तक को पलटाते हुए ये पत्ते मिले। और असादी को लगा कि इन पत्तों पर कलाकारी की जा सकती है। एक पैनी छुरी, एक सुई और एक लैंस से उन्होंने पत्तियों पर कलाकारी का एक संसार रच दिया। इसकी एक झलक।

Suno Darjin - An article about Darjin by Bansilal Parmar
सुनो दर्ज़िन- बंशीलाल परमार एक शिक्षक हैं, पक्षी प्रेमी हैं। फोटोग्राफी का शौक है। हिन्दुस्तान की दर्ज़नों पत्रिकाएँ उनके निकाले कई फोटोग्राफ्स का इंतज़ार करती हैं। पर उन्होंने हमारे लिए पक्षियों की दुनिया का एक अनुभव लिखा है। एक दर्ज़िन है उसने दुनिया को छोड़ एक दो फुट ऊँचे छोटे से आम के पौधे पर अपनी घोंसला बनाया है। पौधा एक गमले में उगा है। पत्तों को सिलकर बड़े करीने से बने घोंसले में उसने अण्डे भी दिए। इस पूरे अनुभव को लेखक ने बहुत ही आत्मीय भाषा में लिखा है। साथ ही साथ हरेक अनुभव की तस्वीरें भी साथ में हैं।

Rango ka jod - An article on mixing of colors by Rama Chari
रंगों का जोड़ - जैसे चार में पाँच को हम जोड़ देते हैं और नौ ले आते हैं क्या वैसे ही रंगों को भी जोड़ा जा सकता है? मसलन, लाल को हरे में जोड़ दो तो क्या आएगा? इस पूरे मसले पर भौतिकशास्त्री रमा चारी जी ने एक दिलकश लेख लिखा है। इस पूरे लेख में जगह-जगह ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें आज़माया जा सकता है। करके देखा जा सकता है।

Ghadha Aur Ghoda - A short story by Chandan Yadav, Illustrations by Joel Gill
गधा और घोड़ा - एक किस्सा है एक गधे का और एक घोड़े का। गधे को एक घोड़ा दिखता है और उसे लगता है कि वह ज़रूर गधा ही रहा होगा पर किसी बीमारी ने उसे घोड़ा बना दिया है। पर यह बात वह घोड़े को कैसे समझाए? किस्सों को पढ़ लेना चाहिए। उनका लुत्फ भी उठाना चाहिए और फिर वे क्या कहना चाहते हैं यह भी समझना चाहिए। जैसे इस किस्से में घोड़े और गधे दो पात्र हैं। क्या ऐसे वाकए हमारे आसपास होते हैं? होते हैं तो उन्हें घोड़े और गधे की जगह रखा जा सकता है। बस एक बात का दुख रहेगा कि गधे को हमेशा बेवकूफ ही दिखाया जाता है। पर इसे थोड़ी देर के लिए भूल कर इसे पढ़ें। एक बात और, अगर यह किस्सा हमारे जीवन का किस्सा होता तब हम ज़्यादा सटीकता से विचार करते या अब कर पाएँगे जब यह गधे और घोड़े की मार्फत कहा जा रहा है? पंचतंत्र के किस्से तुमने सुने होंगे। वहाँ राजकुमारों को कूटनीति सिखाने के लिए हर कहानी शेर, हिरण, खरगोश आदि के मार्फत ही कही गई है। आज भी ज़्यादातर बच्चों की कहानियों के पात्र पशु-पक्षी ही होते हैं। तुम्हें इस बारे में क्या कहना है? हमें हर बात घोड़ों-गधों के मार्फत कहने की क्या ज़रूरत?
इसी पन्ने पर एक और किस्सा है। एक सनकी राजा का। और बुद्धिमान आम आदमी का। राजा महराजाओं को गए हुए कितने साल हो गए हैं? अगर वे पैदल भी गए होंगे तो इस पृथ्वी पार पहुँच चुके होंगे। पर फिर भी हम उन्हें जलील करते रहते हैं। क्यों? जैसे हर साल रावण जलाते हैं। शायद हमारे अवचेतन में उनका शासन इतना गहरा उतरा है कि अभी तक हम उससे मुक्त नहीं हो पाए हैं। या राजा हमारे आसपास की हर सत्ता का प्रतिनिधित्व करते हैं। क्या इसलिए हमें बार-बार राजाओं के परास्त होने की कहानियाँ सुख देती हैं?

Haji-Naji - Fun Stories by Swayam Prakash, Illustrations by Joel Gill
हाजी - नाजी- कथाकार स्वयंप्रकाश का यह स्तम्भ चकमक में सबसे ज़्यादा सराहा जाता है। तो क्या हमें पूरी चकमक को इस प्रकार की समाग्री से नहीं भर देना चाहिए? क्यों? क्या लोकप्रियता किसी रचना की सबसे प्रमुख कसौटी हो सकती है? क्यों नहीं? हमारे यहाँ हास्य को दोयम दर्जें की रचना माना जाता है। इसलिए पूरी हिन्दी पट्टी में यानी आज के हिसाब से बात करें तो कोई सत्तर करोड़ लोगों की भाषा में अच्छे हास्य-व्यंग्य लिखने वाले चार-पाँच से ज़्यादा नाम नहीं हैं। परसाई, शरद जोशी की सूची बहुत आगे नहीं बढ़ पाई है। कोई रचना जब तुम्हें हँसाती है तो क्या तुम सोचते हो कि उसमें हास्य का स्त्रोत क्या है? रचना की कौन-सी बात तुम्हें हँसा रही है? क्या वह कोई पात्र है? वह हमारे समाज के किस वर्ग या जाति या धर्म या लिंग से ताल्लुक रखता है? क्या आमतौर पर इसी धर्म, जाति या वर्ग के लोग इस तरह के किरदारों में आते हैं? क्या उस रचना में व्यक्ति की जाति, धर्म, वर्ग, लिंग बदल देने पर भी हास्य बचा रह जाता है? मसलन, एक रचना में पुरुष और स्त्री पात्र हैं। मान लो उसमें से स्त्री पात्र हास्य पैदा करने का कारण बन रहा है। क्या इस रचना में स्त्री की जगह पुरुष को रख दें तब भी रचना में उतनी ही हँसी आएगी? हास्य-व्यंग्य एक सहनशील समाज का द्योतक होना चाहिए?

Bachpan ki Kahani - A memoir by Urmila Pawar, Illustrations by Taposhi Ghoshal
बचपन की कहानी - उर्मिला पँवार मराठी की प्रसिद्ध लेखक हैं। उनका बचपन बेहद संघर्षों में बीता। एक जाति विशेष से होने की वजह से यह संघर्ष और गहरा हो गया। पर उनकी माँ के जीवट की वजह से उन्हें हिम्मत मिली। बचपन की पढ़ने लायक कहानी। क्या तुम्हारे आसपास इस प्रकार के भेदभाव होते हैं? क्या तुम कभी जानबूझकर या अनायास इनमें शामिल हुए हो? हमारी जाति, धर्म, वर्ग कौन से होंगे यह कौन तय करता है? अगर तुम्हें ये सब चीज़ें तय करने का मौका मिले तो? तुम लड़का होना चाहोगे या लड़की? क्यों?
क्या तुम्हें मालूम है कि जिन्हें कमतर समझा जाता है उन धर्मों, वर्गों, जातियों, लिंगों में रहने वाले लोगों की संख्या सम्भवतया ऊँची समझी जाने वाली जातियों, वर्गों, धर्मों, लिंगों के लोगों से बहुत ज़्यादा होगी फिर भी उनकी कहानियाँ, गीत हमें पढ़ने को नहीं मिलते। ऐसा क्यों? क्या तुम इस तरह की रचनाएँ पढ़ना चाहते हो? क्यों? तापोषी घोषाल के बेहतरीन चित्रों ने इस कहानी को और गहरा किया है।

Raste jo Ramkumar ne dhunde aur banaye hain - An article on Ramkumar's journey by Prayag Shukl
चित्रकार रामकुमार हमारे देश के बड़े चित्रकार माने जाते हैं। ऐसा नहीं कि उन्होंने बचपन से ही चित्र बनाना शुरू कर दिया था। बल्कि वे अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरा करने के बाद इस क्षेत्र में आए। वे क्यों एक बड़े चित्रकार माने जाते हैं और उनके चित्रों की क्या खासियत है इसी पर केन्द्रित है यह आलेख। उनके मित्र और कवि प्रयाग शुक्ल ने यह लिखा है। रामकुमार के बनाए चित्रों को उनकी इजाज़त से हमने चकमक में प्रकाशित किया है। जैसे एक चुटकी मिट्टी से एक गोली यानी कंचा बनाया जाता सकता है, और उसी गोली से पृथ्वी भी दिखाई जा सकती है। ऐसे ही एक कुछेक इंच की जगह पर इस तरह चित्र बनाया जा सकता है कि उसमें समुद्र का विस्तार पैदा किया जा सके। रामकुमार के चित्रों को ध्यान से देखना और उनके स्कैचों को भी। रंग और आकृतियों के खेल। जैसे किस्सों कहानियों की दुनिया सीधे असल जीवन का ज्यों का त्यों उतार देना भर नहीं है वैसे ही चित्र किसी दृश्य के सीधे चित्रण से इतर उसका आभास पैदा करने का हुनर होते हैं।

Mera Panna - Children’s Creativity column
मेरा पन्ना - तो तुम जानते ही हो बच्चों की रचनाओं का एक गुच्छा होता है। आठ साल की बीहू ने एक चित्र बनाया है। दो पेड़ हैं। क्या पता एक दिन हो या एक रात हो। एक ज़मीन है एक आसमान है। ज़मीन ज़्यादा ठोस होती है। उससे हम ज़्यादा परिचित हैं इसका भान हमें होता है और आकाश तो हर पल नया बनता है। उसमें बेहद उमड़-घुमड़ है। वह बादलों से है। बादल का तो मतलब ही घुमंतुपन है। इसलिए आकाश को बनाते समय बीहू ने ब्राुश को खूब घुमाया है। बहुत सारे छल्ले बनाए हैं। पर पृथ्वी के रंग लगाते वक्त वह ज़्यादा शांत हैं। पर सोचो, क्या सचमुच ऐसा है? पृथ्वी पर एक छोटे से टुकड़े में ही कितनी उठापटक होती रहती है। कितनी छीना-झपटी है। पर चित्रकार कहाँ बैठकर, किस मन से यह चित्र बना रहा है यह बहुत पते की बात है।

Magarmacho ka basera- A serial story by Jasbir Bhullar, Illustrations by Atanu Roy
मगरमच्छों का बसेरा - जसबीर भुल्लर पंजाबी के जाने-माने लेखक व बालसाहित्कार हैं। भारतीय भाषाओं के दामन से कुछ बढ़िया सामग्री जुटाने के हमारे प्रयासों के सिलसिले में ही उनसे मुलाकात हुई और यह रचना मिली। यह एक लम्बी कहानी है मगरमच्छों के जीवन की। इसमें मगरमच्छों के जीवन को बारीकी से बुना गया है। रोमांच की एक दिलकश कहानी। और अतनु राय के उतने ही सजीव चित्र।

Mathapacchi - Brain teasers
माथापच्ची -मसलन एक सवाल है- गिनती का अंत क्यों नहीं होता। कोई भी संख्या बोलो तो पाओगे कि उससे बड़ी संख्या है। इस सवाल का एक छोटा-सा जवाब भी इस बार की माथापच्ची में है। साथ ही पहेलियाँ भी हैं -
बिन दाना-पानी का खाना
एक राह से आना-जाना
मंज़िल आकर न पहचाने
तीनों सगे पर रहे बेगाने

Taaro ka janamna - A folktale by Neury, Illustration by Vidushi Yadav
तारों का जन्म - जर्मनी की 14 वर्षीय न्यूरी ने यह कहानी लिखी है। लोककथानुमा इस कहानी के चित्र बहुत ही खूबसूरत हैं। आईडीसी की युवा चित्रकार विदूषी यादव ने इन्हें बनाया है। हमारे मन में कई सवाल उठते हैं। उन्हें कई बार हम लोककथा में सहेज लेते हैं। इससे ये सवाल शायद हमारी कथा-कहानियों में आ जाते हैं और हमेशा हम इसे टकराते रहते हैं। एक तरह से ये हमारे साझे सवाल होते हैं। दूसरी बात, कहानियाँ हमारे भाषाई खेल होते हैं। ये खेल सिर्फ कहानियों में ही नहीं रहते। जैसे गुड्डे-गुड्डियों के खेल कपड़े के गुड्डे-गुड्डियाँ बनकर हमारे साथ रहने चले आते हैं। ज़रा देखो अपने आसपास कितनी ही ऐेसी चीज़ें तुम्हें दिखेंगी जो कहानियों से उतरकर तुम्हारी दुनिया में रहने चली आई हैं? गिनो तो? और फिर उन चीज़ों को भी गिनों जो हमारे जीवन से किस्से कहानियों में चली आई हैं।

Ek Prayog - An article on observations received for an balloon experiment by Vivek Mehta
एक प्रयोग - एक प्रयोग पिछले अंक की चकमक में शाया हुआ था। बच्चों की कई प्रतिक्रियाएँ मिलीं। फिर उन सबको समेटकर एक लेख तैयार किया गया। इसमें बच्चों के सवालों को भी जगह दी गई। बच्चों के कुछेक अवलोकन भी इसमें आपको पढ़ सकते हैं।

Photo Observation
एक फोटो गतिविधि - इस कालम में दो तस्वीरें दी गई थीं। उन्हें गौर से देखना था और अवलोकन लिखने थे।
ये फोटो लिंगभेद पर विचार विमर्श के लिए आधारभूमि तैयार करते हैं।

Darjin - A poem by Vinod Padraj, Illustration by Dilip Chinchalkar
दर्जिन - एक कविता दर्ज़िन पर। कवि विनोद पदरज की। जो लेख पढ़ा था उसकी कुछ अनुगूँजों के लिए खासतौर पर यह कविता दी गई। कविता और लेख पढ़कर एक गतिविधि तो यह भी हो सकती है। असल में कविता इस तरह भले ही न लिखी जा सकती हो पर उसके शिल्प उसके फॉर्म के बारे में यह गतिविधि मदद कर सकती है वो यह कि - लेख के आधार पर एक कविता लिखो। दर्जिन पर।

Ek hi handi ke chatpate aatte- baatte - An interesting article on a “Ukadhandu” by Dilip chinchalkar
एक ही हाण्डी के चट्टे-बट्टे- लेखक व चित्रकार दिलीप चिंचालकर से तुम अब अच्छी तरह वाकिफ होगे। उनके चित्र व लेख तुम नियमित रूप से चकमक में पढ़ते रहे हो। क्या इस तरह लगातार एक ही लेखक को पढ़ते रहने से उसकी रचनाओं को समझना आसान होता है? खैर।
यहाँ लेखक एक आदिवासी अंचल में गया है। वहाँ अपने दोस्त से मिलने। उसके पेट में चूहे दौड़ रहे हैं। और उसका एक बेहद चटपटा इंतज़ाम उसके दोस्त व दोस्त की बीबी ने किया। यह जो आज लेखक ने खाया वह याद रह जाने वाला है। कुछेक कंदों से मिलाकर बने इस भोजन की रेसिपी के साथ साथ उसी मौके के उतारे कुछ चित्र भी हैं कि अगर तुम कभी इस खाने को बनाने चलो तो मुश्किल न हो।

Na Bole Tum.. - An article on sign language by Indrani Roy, Illustration by Dilip Chinchalkar
न बोले तुम...भाषाशास्त्री इंद्राणी राय ने अपने भाषा के कालम में इस बार संकेतों की भाषा पर बहुत ही दिलचस्प लेख लिखा है। मुख्तसर। कि कैसे बिना कहे भी हम अकसर बहुत कुछ कह देते हैं। जैसे फिल्मों में अकसर ध्वनि से डरावना दृश्य पैदा किया जाता है।

Dhoop - A Poem by Ramesh Tailang, Illustration by Chandramohan Kulkarni
धूप- एक कविता है कवि रमेश तैलंग की। धूप के बारे में वे सोचते हैं -
दिन भर शोर मचाती है
शाम ढले सो जाती है
अब सोचो कोई दूसरी भाषा जानने वाला इसे पढ़े तो क्या समझे। धूप का शोर मचाने से क्या ताल्लुक। और उसका सो जाने से क्या ताल्लुक। पर हम कहावतों में, व्यंग्यों में तथा कविता में इसी तरह कहते हैं। जहाँ शब्दों के प्रचलित अर्थ स्थगित हो जाते हैं। नए अर्थ खुलते हैं। शोर का एक अर्थ है और सो जाने का भी। पर एक बात और सोचो, अगर तुम्हें इस कविता को किसी को गद्य में समझाना हो यानी प्रोज में उधेड़ना हो तो क्या कहोगे? कि धूप दिन में होती है और शाम होते ही खत्म हो जाती है। पर क्या बात सचमुच इतनी ही है। इसलिए कहते हैं कि कविता को कभी भी पूरी तरह प्रोज में खोला नहीं जा सकता है। जो बातें रह जाती हैं वो ही किसी रचना को कविता भी बनाती हैं। यही उसकी फॉर्म है।

Chitrapaheli
चित्रपहेली - वही, चित्रों के संकेत से शब्द तक पहुँचने की माथापच्ची। बेहद दिलकश। एक उड़ता पक्षी है। अब पता नहीं क्या यह उड़ान के लिए है। क्या यह पक्षी के लिए है? क्या यह पंखों का संकेत है? क्या यह कोई विशेष पक्षी है? क्या पता आसमान का संकेत तो नहीं? इसका पता कहाँ चलेगा? पड़ोस से। खानों के पड़ोस वाले बताएँगे कि यहाँ कौन आ सकता है?