Read Entire MagazineChakmak - January 2014

Cover- Illustration by Shobha Ghare
चकमक का इस बार का कवर गुलज़ार की कविता पर आधारित है। जानी-मानी चित्रकार शोभा घारे ने मूर्त्त- अमूर्त (realistic-abstract) के दो सिरों के बीच के किसी बिन्दु पर इसे रखा है। जैसे पिछले किसी अंक में सिनेमा के बारे में हमने कहा था कि फिल्म देखते हुए हमारा समूचा ध्यान कहानी पर चला जाता है। उसमें प्रस्तुत अन्य कलाएँ हमसे छूट जाती हैं। लगभग इसी तरह मूर्त (रियलिस्टिक) चित्र भी होते हैं। ऐसे चित्रों को लगभग आसानी से डिकोड कर हम आगे बढ़ जाते हैं। उसमें उपस्थित रंग-रंगतों जैसी कई चीज़ें हमसे छूट जाती हैं। अमूर्त चित्रों में अनेक अर्थ खुलते हैं। हम रंग आदि विभिन्न पहलुओं पर ठहरकर सोचते हैं जब हम एक अमूर्त चित्र देखते हैं। एक अमूर्त चित्र में एक पाठक अपने एक विशिष्ट अर्थ के साथ प्रवेश कर सकता है।

Index
विषयसूची पेज: साल चढ़ने का ज़ीना है, पाँव में पहला महीना है - पंक्ति पर दो बेहद कल्पनाशील चित्र।

Boli Rangoli- Children Illustration on a couplet by Gulzar
बोली रंगोली
कवि गुलज़ार की दो पंक्तियों - 
“साल चढ़ने का ज़ीना है
पाँव में पहला महीना है” 
साढ़े चार सौ चित्रों में से गुलज़ार के चुने हुए पाँच चुनिंदा चित्र तथा अन्य प्रशंसनीय तीस चित्र पेज-29 पर। यह कॉलम इसी अंक से शुरू हुआ है। इसमें अपेक्षा है कि बच्चे कविता को समझकर अपनी कल्पना से उसका एक और पाठ तैयार करेंगे। कविता के समानांतर। इस तरह वे किसी कविता को समझने की तरफ एक कदम आगे बढ़ेंगे। वे किसी शब्द पर बार-बार ठहरेंगे। उसके तमाम सम्भव अर्थ टटोलेंगे। अपने अनुभवों को जोड़कर वे शायद एक अपना अर्थ निकाल पाएँगे। वे उस पुल को भी अनुभव करेंगे जो एक कला से दूसरी कला के बीच बन सकता है। बच्चों के सामने चुनौती होगी कि क्या वे एक बहुअर्थी कविता के समानांतर एक बहुअर्थी, उतना ही खुला चित्र सोच सकते हैं?

Asmaan ka chulha Chand ki roti - A Bajjika folk tale retold by Prabhat, Illustration by Taposhi Ghoshal
आसमान का चूल्हा चाँद की रोटी: यह एक बज्जिका लोककथा है। लोककथाएँ हमारे आज के समूचे कथासाहित्य की पूर्वज कथाएँ हैं। वे एक तरह से हमारे समाज की सूझ के जीवाश्म हैं। कभी-कभी लोककथाओं को उसी बारीकी से देखना चाहिए जैसे हम शैलचित्रों को देखने जाते हैं। ये कथाएँ एक साथ बड़ों व बच्चों को समान रूप से लुभाती हैं। लोककथाएँ पढ़ते हुए यह बात बार-बार मन में आती है कि लोककथाएँ इतनी अकल्पनीय बातों को विश्र्वसनीय रूप से कैसे पेश कर देती हैं। जैसे प्रस्तुत कहानी में दो पहलवान हैं। पहलवान ऐसे हैं कि सत्तू पोखर में उड़ेल देते हैं और पूरा पोखर पी डालते हैं। वे कुश्ती लड़कर यह जानना चाहते हैं कि कौन बड़ा पहलवान। एक बुढ़िया से कुश्ती देखकर इसका निर्णय करने को कहते हैं। बुढ़िया अपनी हथेली फैला देती है। दोनों पहलवान उसकी हथेली पर कुश्ती लड़ते हैं। यह कल्पना की बड़ी मज़ेदार उड़ानों की कहानी है। कभी पाठक इस बात पर मुस्कुरा रहा होता है कि दो पहलवान अपनी ताकत दिखाने चले हैं इस बात से बेखबर कि एक बुढ़िया है जो उन्हें अपनी हथेली पर खड़ाकर कुश्ती लड़ा सकती है। 
यह कहानी बिहार के समस्तीपुर ज़िले के एक गाँव की बुज़ुर्ग बुधन पासवान से रूपम कुमारी ने सुनकर लिखी है।

Googli - A Cartoon strip by Rajendra Dhodapkar
गुगली: जाने-माने कार्टूनिस्ट राजेन्द्र धोड़पकर का यह कोना इसी अंक से शुरू हुआ है। एक बच्चा सुनता है कि मंगल पर मानव रहित यान भेजा गया है। वह सोचता है कि काश उसका बस्ता ऐसे ही किसी तरकीब से स्कूल पहुँचा दिया जाता। क्या बच्चों को सचमुच यह लगने लगा है कि स्कूल में उनसे ज़्यादा महत्व की चीज़ बस्ता बन जाता है? जब स्कूल को बस्ता ही चाहिए तो वह उसे पहुँचा दिया जाए। ऊपर-ऊपर हँसाता यह छोटा-सा कार्टून हमें ऐसे कई सवालों से भर जाता है।

Some experiments with Magnet by Umesh Chauhan, Illustration by Prashant Soni
अपनी चुम्बकीय सुई बनाओ: यह पिछले अंक में दिए चुम्बक के साथ कुछ प्रयोगों की अगली कड़ी है। आसान, मज़ेदार प्रयोगों से चुम्बक की अवधारणाएँ समझने में बच्चों को ज़रूर रस आएगा।

Naam mein kya rekha hai - An article on nomenclature in birds by Jitendra Bhatia
नाम में क्या रक्खा है: इस श्रंखला में इस बार पक्षियों के नामकरण के बारे में विचार है। पक्षियों के नाम किन-किन आधारों पर रखे जाते हैं। अलग-अलग इलाकों में उनकी विशेषताओं के आधार पर पक्षियों के अनेक नाम रखे जाते हैं। तो दूसरे इलाके वाला कैसे जाने कि फलाँ चिड़िया असल में कौन-सी चिड़िया है। पक्षियों का अध्ययन करनेवालों को लगा कि हर चिड़िया का क्या हर जीव का एक वैज्ञानिक नाम होना चाहिए। सारी दुनिया के लिए एक नाम। जानकारी आधारित है यह लेख।

Gana aaye ya na aaye gana chahiye - An interesting piece by Vishnu Nagar
गाना आए या ना आए गाना चाहिए: गीत हमारे जीवन के अभिन्न हिस्से हैं। हमारे यहाँ तो हर अवसर के लिए कोई न कोई गीत है। हमारी पाठ्यपुस्तकों की कविताएँ बच्चों के प्रेम को तरसती रह जाती हैं और सिनेमाई गीत बच्चों से चुटकी में हिल जाते हैं। उनकी ज़बान पर चढ़ जाते हैं। यह लेख गीत गाने की सिफारिश करता है। जब ठीक से गाना आएगा तब नहीं बल्कि कैसा भी गाना आने पर गाने की। एक तरह से गीत के बहाने उन सभी शौकों के लिए एक जगह बचाए रखने की अपील है इस लेख में, जिन्हें हम संकोच आदि में दूसरों से छुपाए रहते हैं। और बच्चों को खासतौर पर यह लेख पसंद आना चाहिए जो बड़ों की दुनिया में गुमे-गुमे रहते हैं। कैरीकेचर शैली में अतनु राय के चित्र देखकर आप मुसकराए बिना नहीं रह पाएँगे।

Mudbhed - A story by Amit Kumar, Illustration by Dileep Chinchalkar
मुठभेड़: हालाँकि कहानी में क्या सच क्या झूठ पर यह किस्सा एक असल वाकए पर आधारित है। एक व्यक्ति है जो भालू के बच्चे पकड़कर उन्हें मदारियों आदि को बेचता है। बहुत छोटे बच्चे इसलिए कि उन्हें आसानी से सिखाया जा सकता है। उनके पास बच्चे पकड़ने की पूरी योजना है जिस पर वे सालों से सफलतापूर्वक काम करते रहे हैं। पर इस बार योजना धरी की धरी रह गई। वे बच्चे पकड़ते इससे पहले ही मादा भालू आ धमकती है। भालू से मुठभेड़ की यह कहानी रोंगटे खड़े करनेवाली है। एक प्लास्टिक सर्जन की जुबानी यह कहानी सुनना एक जीते-जागते अनुभव से गुज़रने जैसा है। इसके चित्र भी देखने लायक हैं। चित्रकार हैं दिलीप चिंचालकर।

Raat - An interesting imagery of night by Anamitra Ray, Illustration by Jagdish Joshi
रात: अनमित्र राय बंगाल से हैं। बांग्ला में लिखते हैं। और बहुत कल्पनाशील लिखते हैं। इस बार उन्होंने रात के इर्द-गिर्द एक कल्पना रची है। बांग्ला में रात उभयलिंगी शब्द है। यानी रात स्त्री और पुरुष दोनों हो सकती है। पर जब इसे हिन्दी में अनूदित किया तो उसे स्त्रीलिंग में बदलना पड़ा। इसलिए जगदीश जोशी सरीखे बड़े चित्रकार ने भी उसे एक स्त्री के रूप में ही चित्रित किया है। इस लेख के बहाने कभी बच्चों से यह बात की जा सकती है कि अगर उन्हें रात की इस कल्पना का चित्र बनाना हो तो वे क्या बनाएँगे।

Mera Panna - Children's Creativity Corner
मेरा पन्ना: इसमें हर बार की तरह बच्चों की रचनाएँ हैं। चित्र व कहानियाँ-किस्से। एक किस्सा पारदी जनजाति की एक लड़की ने लिखा है। दिघाड़ू के इण्डो। यानी मोर के अण्डे। जब वह जंगल में अपनी संगी-साथियों के साथ लकड़ियाँ बटोरने जाती है तो उसे एक जगह मोर के अण्डे मिलते हैं। अण्डे घर ले जाकर उनकी सब्ज़ी बना लेने की योजना बनती है। पर तमाम बातचीत के बाद तय होता है कि उन्हें उसी जगह सुरक्षित रख दिया जाए। ताकि जब मोरनी वापिस आए तो उसे अपने अण्डे सही सलामत मिलें।

Chitron ki Bhasha - A column on art orientation by Shefalee Jain
चित्रों की भाषा: चकमक में कला के इर्द-गिर्द नियमित रूप से बातचीत होती रही है। इसी सिलसिले में इस बार मुनोज़ के एक काम पर बातचीत है। मुनोज़ ने इस बार गैलरी में अपने चित्र कुछ इस तरकीब से प्रदर्शित किए हैं कि दर्शक उन्हें देखकर चकित हो जाएँ। वह एक ऐसी जगह खुद को खड़ा पाएँ कि उसे लगे कि वह खुद भी एक देखने की वस्तु बन गया है। मुनोज़ कहते हैं - कला और दर्शक के बीच एक रिश्ता बनना चाहिए जिसमें कला दर्शक को सोचने पर मजबूर करे।

Chimanlal ke payjame - A memoir by Anil Singh, Illustration by Joel Gill
चिमनलाल के पायजामे: अनिल सिंह एक शौकिया लेखक हैं। उनके अनुभव इतने ताज़ा होते हैं कि लगता है हम साक्षात जीवन में ये किस्से घटते देख रहे हैं। जैसे अभी-अभी पढ़ा वाकया जीवन से गुज़रकर किस्सा नहीं हुआ है। कि अगर जल्दी उस कस्बे में पहुँच गए तो वह वहाँ घटते हुए मिल जाएगा। जैसे किसी खेल की कमेण्ट्री को बीच में छोड़कर हम खेल के मैदान पर पहुँच जाएँ। 
यह किस्सा एक इंसान के दूसरे इंसान से बन गए एक बेहद मीठे रिश्ते का है। एक कस्बा है जहाँ लोग अपनी धार्मिक पहचानों से ऊपर उठकर एक-दूसरे के साथ रहते हैं। उसी में एक बाज़ार है जहाँ तरह-तरह के काम वाले, विभिन्न वर्गों के, जातियों के लोग अपने-अपने काम में लगे हुए हैं। यह किस्सा एक साथ - दोस्ती, प्रेम, उदात्तता, मिल-जुल....सभी का है। आमतौर पर बच्चों के लिए लिखे गए साहित्य में त्याग, उदात्तता आदि को बड़े जोर-शोर से पेश किया जाता है। इस किस्से में कहन की चुपचाप है। यही चुपचाप इसकी मिठास बढ़ा देती है। जोएल गिल ने बाज़ार का अच्छा चित्रांकन किया है।

Kis mitti mein panapti hain khushiyan - Dileep Chinchalkar remembers that evening walk
किस मिट्टी में पनपती हैं खुशियाँ: जीवन में कभी कहीं से कुछ बड़ा घट जाएगा और तब खुशी आएँगी। नायपॉल भी तो हम भारतीयों के बारे में कहते हैं कि हम जीवनभर खुशी का इंतज़ार करते रहते हैं। फलाँ काम हो जाए तब सुखी हो जाएँगे...आदि। इस लेख में दिलीप चिंचालकर अपने अनुभवों को साझा करते हुए लगभग यह कहते हैं कि खुशियाँ जीवन की बेहद साधारण-सी बातों में बिखरी पड़ी हैं। स्याह रात का चमकदार दिन में बदलना, तारों का एक-एक कर बुझते जाना, पेड़ों का काले से हरे होते जाना, आकाश की बदलती रंगतें... और इस तरह सुबह का होना। हालाँकि इस लेख को पढ़कर कुछ सवाल मन में आ सकते हैं। जैसे कि क्या एक मज़दूर - जिसे अभी जल्दी से उठकर, दौड़ते-भागते कलेवा करके र्इंटें ढोने जाना है- भी सुबह का ऐसा आनंद उठा सकता है? तो क्या यह लेख मध्यवर्गीय व उच्चमध्यवर्गीय समाजों के लिए लिखा गया है? इसमें दिलीप जी का बनाया आकाश का चित्र बहुत सुन्दर बन पड़ा है।

Verna... A picture story by Pallavi Singhal
वरना : पल्लवी सिंघल एक चित्रकार हैं, थियेटर करती हैं। उन्होंने पहली बार बच्चों के लिए एक चित्रकथा बनाई है। बेहद कम रेखाओं के बने उनके चित्र लुभाते हैं। रंगों का उपयोग बहुत किफायत से उन्होंने किया है। कई बार नासमझी से, गलतफहमी से युद्ध जैसे विकराल परिणाम सामने आते हैं। एक राजा दूसरे राजा को संदेश भिजवाता है। दूसरा राजा उस संदेश को गलत समझ बैठता है। और युद्ध हो जाता है। एक बौद्ध भिक्षु उन्हें आपस में बातचीत करने के लिए बुलाता है तो पता चलता है कि वे दोनों कितने मूर्ख हैं। अंत में दोनों वादा करते हैं कि आगे से वे साफ-साफ बातचीत किया करेंगे। इस कहानी में हास्य के माध्यम से एक त्रासदी को सामने लाने की कोशिश हुई है।

Moor - A memoir by Anil Avchat, Illustration by Dileep Chinchalkar                                                                   

मोर: शेज़ारी का मतलब होता है पड़ोसी। शेज़ारी नाम के इस नए कॉलम के माध्यम से मराठी के साहित्य की बेहतरीन रचनाएँ पाठक पढ़ सकेंगे। इस बार मराठी के प्रसिद्ध लेखक अनिल अवचट की कहानी मोर पेश है। लेखक किसी कार्यक्रम में भाग लेने किसी शहर पहुँचता है। वहाँ वह स्वछंद रूप से विचरते एक मोर को देखता है। मोर पर उसका दिल आ जाता है। वह उसकी लचक, उसके रंगों की प्रशंसा में गुम है। पर थोड़ी देर में ही दृश्य बदल जाता है। मोर का एक दूसरा पक्ष सामने आता है। और आखिर में अगर लेखक की मदद करने मकानमालिक न आता तो मोर लेखक को जख्मी कर देता।

हम अकसर घटनाओं को इकहरे रूप में देखते हैं। उनके कई दूसरे पक्ष भी होते हैं। वैसे कहानी ऐसे किसी संदेश भर के लिए नहीं लिखी जाती। वह तो एक अनुभव की सघन यात्रा होती है। आखिर में आप कहाँ पहुँचते हैं इस बात में उतनी मिठास नहीं है जितनी कि वहाँ तक पहुँचने की यात्रा में। यह कहानी सुंदरता आदि पर बनी हमारी रुटीन अवधारणाओं पर भी सवाल उठाती है।

Judwan - They remained together but not until death - By Vivek Ranade
जुड़वाँ: वे दोनों मंदिर नहीं जाते, वैसे ही दोनों किसी घर में भीतर नहीं जाते। हाँ, उन घरों में ज़रूर भीतर तक पहुँच जाते जहाँ उन्हें तुच्छ न समझा जाता हो। ....कई साल बीत गए। एक रोज़ दाहिने को किसी ने ट्रक के नीचे लटकता पाया। लोगों का कहना था कि ट्रक को किसी की नज़र न लगे इसलिए उसे लटकाया गया है। पर असल बात कुछ और थी। ट्रक के नीचे लटककर देश की गली-गली वो अपने बिछुड़े बाएँ को ढूँढता फिर रहा था। 
विवेक रानडे पेशे से फोटोग्राफर हैं। चकमक में बच्चों के लिए वे दूसरी बार लिख रहे हैं। पहली बार उन्होंने अपने एक फोटोग्राफ पर लिखा था। कि क्यों उन्हें वो फोटोग्राफ पसंद है। इस बार उन्होंने लिखा है अपने नए फोटोशूट के बारे में। उस विचार के बारे में जिसके इर्द-गिर्द वे अपनी नई फोटोयात्रा पर निकलने वाले हैं। उसका विचार है जुड़वाँ। पाठक जब जुड़वाँ पढ़कर पूरा कर रहा होगा उसके मन में यह सवाल ज़रूर उठेगा कि वह रोज़-रोज़ घण्टों साथ रहनेवाले जूतों के बारे में कितना कम जानता था।

Mahakumbh ka Mahavritant - A story by Sanjeev, Illustration by Nargis Sheikh
महाकुम्भ का महावृतांत: यह एक सच्ची कहानी है। कुम्भ की। उस ज़माने की बात है तब हमारे प्रधानमंत्री नेहरू थे। एक व्यक्ति कुम्भ यात्रा में जाता है। भगदड़ मचती है और वह उसमें फँस जाता है। बड़े संघर्ष के बाद पुलिस वालों को दस रुपए रिश्वत देकर वह ज़िन्दा बच निकलता है। बड़े दिनों बाद घर पहुँचता है पर घरवाले आसानी से मानते नहीं कि वह असल में वही है। और ज़िन्दा है। चित्रकार नरगिस ने कुम्भ का बेहतरीन चित्रांकन किया है।

Hatasha se ek vyakti beth gaya tha - Poetry orientation by Naresh Saxena on Vinod Kumar Shukl’s poem, Illustration by Dileep Chinchalkar
हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था: इस बार विनोदकुमार शुक्ल की बहुचर्चित इस कविता पर जाने-माने कवि नरेश सक्सेना की टिप्पणी। कविता में भाषा बेहद रचनात्मक ऊँचाई के साथ सामने आती है। कविता भाषा की सबसे छरहरी तसवीर दिखाती है। वह एक ही शब्द के अर्थ के दायरे को खींचकर विस्तृत कर देती है। कविता की इसी तासीर को समझने के लिए इस कालम की एक और किस्त। 
यह कविता खासतौर पर अपने कहने के अंदाज़ के लिए पढ़ी जानी चाहिए। कवि कई बार अपनी बात को इस कमाल के साथ कहता है कि पाठक को लगने लगता है कि यह बात सिर्फ कविता में ही कही जा सकती है। यानी उसकी बुनाई उधेड़कर उसका गद्य नहीं बनाया जा सकता है। हमारी उम्मीद है कि कविता में अर्थों की खोज और कहन के अन्दाज़ से रुबरु होने का यह कॉलम स्कूलों में कविता शिक्षण को सरस बनाने में कुछ भूमिका ज़रूर अदा करेगा।

Gravity - Film review by Vivek Soley
ग्रैविटी: अंतरिक्ष विषय पर यह अब तक की बनी कुछ सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक है। इस फिल्म के विभिन्न पहलुओं पर विवेक सोले ने तफसील से लिखा है। कैसे इस फिल्म के दृश्य विश्र्वसनीय बनाए गए हैं। गुरुत्वाकर्षण, भारहीनता आदि विषयों पर भी इस समीक्षा में चर्चा की गई है... अंतरिक्ष में वातावरण का अभाव है इसलिए वहाँ आवाज़ एक से दूसरी जगह नहीं पहुँच पाती है। इसीलिए यान के नष्ट होने की इतनी बड़ी तबाही भी बेआवाज़ होती है। यह फिल्म जितना आँखों को सजग रहने की माँग करती है उतनी ही कानों को चौकन्ना रखने की भी माँग करती है।

Chitra Paheli- Children’s Activity Corner
चित्रपहेली: हर बार की तरह चित्र संकेतों से जूझकर किसी शब्द तक पहुँचना।

Kahani ka parivar - A story by Prabhat, Illustrations by Sujasha Dasgupta
कहानी का परिवार: प्रभात की बेहद खूबसूरत लघुकथा। कवितानुमा कहानी। .......एक कहानी थी। कहानी के परिवार में एक चाँद, तीन तारे, बादल और ठण्डी हवा थे। कहानी का परिवार रात के घर में रहता था। ........
इस कहानी के बेहद खूबसूरत चित्र मशहूर चित्रकार सुजाशा दासगुप्ता ने बनाए हैं।