यह 7 माही मिश्रित पद्धति का कोर्स एकलव्य फाउंडेशन, भोपाल एवं इंस्टिट्यूट ऑफ़ होम इकोनॉमिक्स , दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा संचालित व प्रमाणित है। 

परिचय 
यह कोर्स भारतीय संदर्भों में बच्चों और बचपन को, खास तौर पर वंचित तबकों के बच्चों को समझने के उद्देश्य से बनाई गई है। बचपन और विकास के केन्द्रीय मुद्दों पर काम करते हुए यह कोर्स बच्चों और उनके सीखने की प्रक्रिया को समझने के लिए परिवार, स्कूल और समुदाय की विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक वास्तविकताओं को सामने रखती है। कोर्स के तहत प्रयास यह है कि सहभागी, मनोविज्ञान के विषय-क्षेत्र से आगे जाकर, अपने ज़मीनी ज्ञान और अनुभवों की मदद से सभी बच्चों, और खास तौर पर विशेष ज़रूरतों वाले बच्चों, तथा उनके विकास की समझ को और विस्तृत व गहरा करें।

कोर्स के उद्देश्य 

  • बच्चों के विकास और उनके सीखने की प्रक्रियाओं, खासकर विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के संदर्भ में इन विषयों के बारे में सहभागियों की क्षमताओं को सशक्त करना।
  • विकास और अधिगम के मुद्दों पर ज़मीनी अनुभव और सिद्धान्त आधारित ज्ञान के बीच के सम्बंधों को पनपाना तथा मज़बूत करना ताकि सहभागी बच्चों के साथ अपने काम के बारे में और मननशील हो सकें।
  • कुछ केन्द्रीय अवधारणात्मक मुद्दों और ताज़े शोधों के बारे में जानकारी बढ़ाना जिससे बच्चों के साथ सहभागियों के जुड़ाव और काम में सकारात्मक परिवर्तन आ सके।
  • फील्ड से मिलने वाले सीखों, पढ़ाई और चर्चाओं की मदद से विचार-मंथन की प्रक्रिया को बढ़ावा देना।
  • अकादमिक पढ़ने और लिखने में सहभागियों की क्षमताओं का विस्तार करना।

कोर्स विषय-वस्तु 
हम 5 ऐसे मुद्दों पर काम करेंगे जो बच्चों के संदर्भ में गंभीरता से लिए जाने चाहिए -

  • बचपन की अवधारणा 
  • बाल विकास की अवधारणा 
  • सीखने की प्रक्रिया की पुरानी-नई मान्यताएँ और सिद्धान्त
  • बच्चों का भावनात्मक स्वास्थ्य और अभिप्रेरणा 
  • विशेष ज़रूरतें और सीखने से उसके सम्बंध

यह कोर्स किसके लिए है? वर्तमान या भावी स्कूली शिक्षकों, ज़मीनी स्तर पर शिक्षा में काम करने वाले कार्यकर्त्ताओं, अभिभावकों, शिक्षा तंत्र में या उसके साथ काम करने वाले प्रबंधकों, बी.एड. या डी.एड. पढ़ाने वाले शिक्षक-शिक्षकों तथा बच्चों के साथ काम करने वाले या उनसे सरोकार रखने वाले हर शख्स के लिए यह कोर्स उपयोगी होगा।

भाषा/माध्यम – कोर्स हिन्दी माध्यम में होगा। अतः प्रतिभागियों से हिन्दी पढ़ने, समझने, बोलने और लिखने की अपेक्षा होगी। यदि हिन्दी में टाइप कर सकें, तो और अच्छा। 

मिश्रित पद्धति 

  • कोर्स के तहत नवम्बर 2024 और मार्च 2025 में दो रिहायशी कार्यशालाएँ होंगी जिसमें सभी प्रतिभागियों को शामिल होना होगा। 
  • साथ ही बीच के अन्तराल में कुछ ऑनलाइन सत्र होंगे जिनमें भागीदारी ज़रूरी होगा।
  • दोनों कार्यशालाओं के बीच में और दूसरी कार्यशाला के बाद प्रतिभागियों को कुछ पढ़ने, सोचने और लिखने के काम तथा प्रोजेक्ट कार्य दिए जाएँगे। इन्हें असाइनमेंट के रूप में तय तारीखों तक ईमेल से जमा करना होगा। 
  • हर सहभागी के लिए कोर्स के दौरान एक मेंटर तय किया जाएगा और पूरे कोर्स के दौरान वे अपने-अपने मेंटरों से मार्गदर्शन और मदद ले सकेंगे।

प्रमाण पत्र – कोर्स पूरा करने का प्रमाण एकलव्य फाउंडेशन द्वारा दिया जाएगा। प्रमाण पत्र पाने के लिए आकलन के मापदंड इस प्रकार होंगे-

  1. कोर्स की दोनों कार्यशालाओं में पूरे समय उपस्थिति।
  2. कार्यशाला के सत्रों में भागीदारी - सवाल पूछना, चर्चा में शामिल होना, टिप्पणी करना, अपने सहपाठियों की मदद करना आदि। 
  3. कार्यशालाओं में हर रोज़ दैनिक रिपोर्ट लिखना। दैनिक रिपोर्ट में सत्र की प्रमुख बातों को दर्ज करना व उनके बारे में अपने विचार लिखना।
  4. कोर्स के सभी ऑनलाइन सत्रों में उपस्थिति तथा सक्रिय भागीदारी।
  5. संबंधित पठन सामग्री को पढ़ना और उस पर विचार करना। 
  6. कोर्स में सीखी अवधारणाओं के आधार पर बच्चों के प्रति अपने नज़रिए, व्यवहार व काम में नए प्रयास करना। 
  7. कोर्स के दौरान 4 असाइनमेंट कार्य पूरे करना। इसके लिए प्रश्न को ध्यान से समझना, विषय के बारे में पढ़ना, अपनी मौजूदा समझ को विस्तार देना, अपने मौलिक विचारों और अनुभवों को पढ़े गए से जोड़ना, सिलसिलेवार और व्यवस्थित प्रस्तुति की कोशिश करना ज़रूरी होगा। 
  8. असाइनमेंट में आपकी अपनी आवाज़, अपना लिखने का तरीका, अपने अनुभव शामिल करना ज़रूरी है। नकल जैसे प्रयास करने की बजाय ईमानदारी के साथ कोर्स के शिक्षकों से तथा आपके मेंटर से मदद माँगना अपेक्षित होगा।
  9. असाइनमेंट को शिक्षकों व साथियों से मिले फीडबैक के बाद एक तय समय-सीमा में सुधारकर भेजने का एक मौका सभी के पास होगा।

स्रोत व्यक्ति – यह कोर्स एकलव्य और इंस्टीट्यूट ऑफ होम इकोनॉमिक्स, दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ फैकल्टी द्वारा डिजाइन और संचालित किया जाता है। कोर फैकल्टी की प्रोफाइल इस प्रकार है:

  • अनु गुप्ता ने किशोरों के साथ स्वास्थ्य और शिक्षा के मुद्दों पर 20 से अधिक वर्षों तक काम किया है। एकलव्य के सदस्य के रूप में, उन्होंने शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रम और सामग्री विकसित करने की दिशा में कई राज्य सरकार की एजेंसियों के साथ भी काम किया है। वह बेटी करे सवाल और बेटा करे सवाल किताब की लेखिका हैं।
  • निधि गुलाटी दिल्ली विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑफ़ होम इकोनॉमिक्स में डिपार्टमेंट ऑफ़ एलीमेंट्री एजुकेशन में पढ़ाती हैं। वह पिछले दो दशकों से शिक्षा और सामाजिक विकास के क्षेत्र के विभिन्न पहलों में सक्रिय रही हैं। उनकी रुचि के क्षेत्र बचपन, लोकप्रिय संस्कृति और शिक्षक शिक्षा है।
  • दीप्ति सैनी दिल्ली विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑफ़ होम इकोनॉमिक्स में डिपार्टमेंट ऑफ़ एलीमेंट्री एजुकेशन में पढ़ाती हैं।
  • रश्मि पालीवाल तीन दशकों से अधिक समय तक एकलव्य का हिस्सा रही हैं और उन्होंने कई राज्य सरकार की एजेंसियों और एनसीईआरटी के साथ सामाजिक विज्ञान पाठ्यक्रम, प्राथमिक विद्यालय की भाषा और गणित शिक्षण और सीखने, और सामग्री विकास के क्षेत्र में काम किया है।
  • टुलटुल बिस्वास ने एकलव्य के प्रकाशन कार्यक्रम के संपादकीय समन्वयक के रूप में दो दशकों से अधिक समय तक काम किया – बाल साहित्य के साथ-साथ शैक्षिक साहित्य की संकल्पना, विकास और प्रकाशन। शिक्षक शिक्षा के लिए कोर्स और सामग्रियों के विकास से जुड़ी रहीं| वे अब एकलव्य के शिक्षक शिक्षा, आउटरीच और एडवोकेसी कार्यक्रम की सदस्य हैं।
  • रूचि शेवड़े एकलव्य फाउंडेशन में टीचर एजुकेशन, आउटरीच एंड एडवोकेसी प्रोग्राम के साथ काम करती हैं। वर्तमान में, वे शिक्षा और प्रणालियों में संवाद, शांति और न्याय के विषय में दिलचस्पी रखती हैं।
  • मिहिर पाठक पिछले 10 वर्षों से औपचारिक और अनौपचारिक स्पेस के साथ काम कर रहे हैं, जो बच्चों को 'स्व-डिज़ाइन किए गए शिक्षण' के लिए मेंटरिंग करते हैं और प्रकृति-प्रोजेक्ट, थियेटर-आधारित और अनुभवात्मक शिक्षण के माध्यम से अपरंपरागत सीखने के अनुभवों को फसिलिटेट करते हैं।
  • करुणा एमी गुड़िया एकलव्य फाउंडेशन में टीचर एजुकेशन, आउटरीच एंड एडवोकेसी कार्यक्रम से जुड़ी हैं। उनकी रूचि शिक्षक व्यवसायिक विकास के मुद्दों को समझना और उसे सार्थक बनाने के लिए संभावनाएं तलाशना है|

इसके अलावा, शिक्षाविद्, पेशेवर मनोवैज्ञानिक व विषय विशेषज्ञ भी समय-समय पर फैकल्टी के रूप में भागीदारी करते हैं। 

समयावधि – यह कोर्स 7 माह का है। इसमें दो रिहायशी कार्यशालाएँ शामिल हैं – पहली 5 दिन की और दूसरी 6 दिन की - कुल 11 दिन। इसके अलावा अन्तराल अवधि में ऑनलाइन सत्र होंगे और असाइनमेंट कार्य के लिए लगभग 5 दिन का समय प्रतिमाह लगाना होगा। 7 माह में लगभग 35-40 दिन का कुल समय इस कोर्स के अध्ययन के लिए देना होगा।

स्थान – कोर्स की कार्यशालाएँ नर्मदापुरम (होशंगाबाद) अथवा भोपाल में स्थित एकलव्य के कैम्पस में होंगी। इसके अलावा के सभी काम प्रतिभागी अपनी-अपनी जगह से कर सकेंगे।

महत्वपूर्ण तारीखें 
ऑनलाइन आवेदन फॉर्म भरने की आखिरी तारीख – 12 अक्टूबर 2024 
चयनित सहभागियों की सूची जारी होगी – 15 अक्टूबर 2024 
पहली कार्यशाला – नवम्बर 2024 (तारीख जल्दी घोषित की जाएँगी)
दूसरी कार्यशाला – मार्च 2025
सर्टिफिकेट व अनुशंसा पत्र – मई 2025

कोर्स शुल्क 
कोर्स सम्बंधी व्यय में आंशिक भागीदारी के तौर पर हम सहभागियों / उन्हें भेजने वाली संस्थाओँ से सहयोग की अपेक्षा करते हैं। पूरे कोर्स (जिसमें 11 दिन की रिहायशी कार्यशालाएँ शामिल हैं) की फीस 18000/- रुपये है| (कोर्स के लिए चयनित भागीदारों के साथ शुल्क भरने की जानकारी साझा की जाएगी)| कुछ सीमित संख्या में शुल्क पर रियायत उपलब्ध है जो प्रत्येक केस के आधार पर दी जा सकेगी|      

सम्पर्क - Email: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

आवेदन करने के लिए यहाँ क्लिक करें 

पिछले बैच के प्रतिभागियों से फीडबैक: 

  1. सोनू तायडे (बैच 2), भोपाल में मुस्कान संस्था के साथ बस्ती आँगनवाड़ी में पढ़ाती हैं। वे लिखती हैं - 
    “कोर्स के पहले बच्चों को इस तरीके से नहीं समझती थी। पर व्यगोत्स्की और पियाजे की वजह से बच्चों को देखना शुरू किया तो कहीं न कहीं उनकी बाते झलकती हैं।”
  2. यश विद्या मंदिर, फैज़ाबाद की शिक्षिका (बैच 2) ने लिखा है –
    “अब मैं अभिप्रेरणा (और उसे बाह्य से आतंरिक बनाना), बच्चे परिवेशीय वातावरण से अंतःक्रिया करके जुड़कर, समझकर कैसे सीखते हैं, प्रतिस्पर्धात्मक और सहयोगात्मक कक्षा का निर्माण कैसे कर सकते हैं, बच्चे की भावना और सीखने में सम्बंध और एक शिक्षक की इसमें क्या भूमिका है - इन बातों को और अच्छी तरह समझ रही हूँ|”
  3. समावेश, भोपाल में कार्यरत आसिफ (बैच 3) लिखते हैं – 
    “मुझे लगता है की मैं अब ज़्यादा अपनी कक्षा का सूक्ष्म अवलोकन कर सकता हूँ| साथ ही उनमें पियाजे और व्यगोत्सकी के सिद्धांतों के नज़रिए से देखने के साथ साथ अपना नज़रिया मिलेगा|”
  4. होशंगाबाद ज़िले के एक शासकीय प्राथमिक शिक्षक (बैच 4) – 
    “बाल विकास सीखना सिखाना एवं मनोविज्ञान से संबंधित बहुत सारी समस्याओं का समाधान मिला एवं साथ ही मेंटर्स के सटीक और श्री स्पष्ट शब्दों के द्वारा समझ विकसित करने के कौशल से प्रेरित भी हुआ जो मेरे लिए हमेशा यादगार रहेगा”
  5. राहुल सिंह (बैच 4), प्रजायत्न, उत्तर प्रदेश, लिखते हैं –
    “समावेशन के तरीके विद्यालय में बच्चों की सीख में कैसे मदद करेंगे यह सीखना एक दम नया था।“