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कमाल है – शादाब आलम
चित्र: योगिता धोटे
दादी जी की ठुड्डी पर जो एक बाल है
एक बाल ठुड्डी का सचमुच बेमिसाल है...
पत्थर चला घूमने – लोकेश मालती प्रकाश
चित्र: प्रोइति रॉय
एक बार एक नन्हा पत्थर दूरदराज़ की जगहों पर घूमना चाहता था। उसे एक साथी मिला और वह निकल पड़ा सफर पर... वह कहाँ-कहाँ गया, किन-किन से मिला... जानने के लिए पढ़िए...
तुम भी जानो
दुनिया का सबसे लम्बा पैदल रास्ता
हायाबूसा-2 की वापसी
किताबें कुछ कहती हैं... – नयनतारा वाकणकर
इस कॉलम में बच्चे अपनी पसन्द या नापसन्द की किताबों के बारे में अपने विचार लिखते हैं। इस बार नयनतारा ने द बॉय इन द डार्क होल किताब के विविध पहलुओं मसलन उसकी विषयवस्तु, प्रवाह और चित्रों का बहुत ही सटीक विश्लेषण किया है।
क्यों-क्यों
क्यों-क्यों में इस बार का सवाल था: “हम खर्राटे क्यों लेते हैं? और बड़ों की तुलना में बहुत कम बच्चे खर्राटे लेते हैं, ऐसा क्यों? कई बच्चों ने अपने दिलचस्प जवाब हमें भेजें। इनमें से कुछ आपको यहाँ पढ़ने को मिलेंगे, और साथ ही बच्चों के बनाए कुछ चित्र भी देखने को मिलेंगे।
बड़ों का बचपन – छोटे लोगों का बचपन – सी. एन. सुब्रह्मण्यम्
चित्र: भारती तिहोंगर
स्कूल में औसत दर्जे के एक विद्यार्थी के रूप में अपने अनुभवों को बताते हुए सी. एन. सुब्रह्मण्यम् लिखते हैं:
“बहरहाल मैं अपने बचपन को याद करता हूँ तो मुझे साफ हो जाता है कि मैं बचपन से ही नालायक होने की पहचान देते रहा। मुझे अभी भी याद है एक बार तीसरी कक्षा की गणित शिक्षिका मुझसे त्रस्त होकर झल्लाईं, “जितने सवाल देती हूँ, सभी को गलत हल कैसे कर लेते हो?”
अबाबीलें – गौरांशी चमोली
‘झुण्ड में मानो जंग का माहौल हो
मालूम पड़ता है बिस्तर के लिए छीना-झपटी हो रही है’...
कतरनों से कलाकारी – शशिकला नारनवरे और मेघा चारमोड़े
चित्र: मुस्कान संस्था के बच्चों द्वारा
मुस्कान संस्था, भोपाल में कक्षा तीसरी व चौथी के बच्चों के साथ एक गतिविधि की गई। फिर बच्चों ने मिलकर कतरनों से बहुत सारे चित्र बनाए। इस गतिविधि की एक छोटी-सी रपट और चित्रों की कुछ झलकियाँ आप यहाँ देख पाएँगे...
पप्पू भाईजान और कटी पतंग – अनिल सिंह
चित्र: प्रशान्त सोनी
“अस्फाक खान उर्फ 'पप्पू' पूरे घर का लाड़ला था। लेकिन बाई (दादी) उसे छूती न थीं और वह भी इस बात की पूरी कदर किया करता। पर ऐसा भी नहीं था कि बाई उसे काम न सौंपती थीं या वह बाई का कोई काम न करता था। बाई उसके लिए थैली और पैसा वहीं देहरी पर रख देतीं और वह उनके लिए बाज़ार से पान ले आता, बारीक सुपारी कटवा लाता, किसी के भी आँगन से फूल-पत्ती तोड़ लाता। सब कुछ लाकर देहरी में रख देता था। उसके लिए सब कुछ उठाने-धरने की एक अघोषित हद बनी थी घर में...”
कहानी में आगे क्या होता है, जानने के लिए पढ़िए...
पतंगे - नेचर कॉन्ज़र्वेशन फाउंडेशन
हमारे आसपास ऐसी कई चीज़ें घटित होती रहती हैं जिन्हें हम देखते तो हैं, लेकिन अमूमन उन पर गौर नहीं करते। इन पन्नों में प्रकृति में पाई जाने वाली ऐसी ही तमाम चीज़ों के बारे में दिलचस्प जानकारियों के साथ कुछ छोटी-छोटी मज़ेदार गतिविधियाँ भी होती हैं।
इस बार इन पन्नों में आप जानेंगे पतंगों के एंटीना और उनसे जुड़ी कुछ अन्य मज़ेदार बातें…
चाबी वाले – निधि और मुनीर
चित्र: शुभम लखेरा
“क्या कोई चाबी ऐसी भी हो सकती है जिसका कोई ताला ही न हो? या कोई ताला जिसकी कोई चाबी ही न हो?”
पढ़िए चाबी वाले मुनीर चाचा और निधि की दिलचस्प बातचीत...
भूलभुलैया
एक ताला अपने खुलने का इन्तज़ार कर रहा है। लेकिन चाबी उस तक पहुँच नहीं पा रही। आप मदद करना चाहेंगे?
गोल चीज़ें क्यूँ लुढ़कती हैं – सुशील जोशी
कुछ समय पहले हमने क्यों-क्यों कॉलम में यह सवाल पूछा था कि गोल चीज़ें लुढ़कती क्यों हैं। दिसम्बर अंक में हमने कुछ बच्चों के जवाब भी छापे थे। सुशील जोशी ने वह सभी जवाब पढ़े और अपना जवाब दिया, जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं…
थकान ऑनलाइन – प्रार्थना
चित्र: अंकिता ठाकुर
‘तालाबन्दी में बचपन’ यह नया कॉलम है। इसमें हर माह दिल्ली की अंकुर संस्था से जुड़े किसी बच्चे का संस्मरण होता है। इस बार पढ़िए आठवीं कक्षा की प्रार्थना के ऑनलाइन पढ़ाई की थकान से भरे अनुभव…
मेरा पन्ना
वाकया – मेरा दोस्त टॉमी
वाकया – दीदी और मैं
वाकया – भण्डारा
वाकया – एक सौम्य, जंगली जीव से पहली मुलाकात
कहानी – साँप
और बच्चों के बनाए हुए कुछ दिलकश चित्र।
माथापच्ची
कुछ मज़ेदार सवालों और पहेलियों से भरे दिमागी कसरत के पन्ने।
चित्रपहेली
चित्रों में दिए इशारों को समझकर पहेली को बूझना।
बन्दरों को खाना... – रोहन चक्रवर्ती
रोहन चक्रवर्ती अपने दिलकश अन्दाज़ में बता रहे हैं कि बन्दरों को खाना देते हुए लोग क्या सोचते हैं और उन्हें खाना देने से असल में होता क्या है...
मछली जल की रानी है – रिनचिन और सुशील शुक्ल
चित्र: मुस्कान संस्था के बच्चों द्वारा