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Cover - A couplet from poem "Chand ki Chaya" by Prabhat, Illustration by Prashant Soni
चाँद न सही छुएँ चाँद की छाया
हरी भरी घासों के मन में आया
आपने भी शायद फिल्म सरस्वती चन्द्र के एक गाने का यह अन्तरा सुना होगा -
खुशबू आती रहे दूर ही से सही,
सामने हो चमन कोई कम तो नहीं...
हममें से कितनी ही लोग हैं जो यह समझौता किए हुए हैं। चाँद की आस है पर उसकी छाया से मन बहलाए हुए हैं। चमन की चाहत है पर खुशबू ही हासिल है। चाँद, चमन दूर की कौड़ी है। इसी से खुश हो लेते हैं। या फिर इससे भी कि कितने ही लोग हैं जिन्हें यह छाया और खुशबू भी हासिल नहीं। और जीवन इसी तरह दूसरी-तीसरी पायदान में खड़े-खड़े बीत जाता है।
प्रभात की इस खूबसूरत कविता को चित्र दिया है प्रशान्त ने। जब कुछ हासिल न हो तो अकसर झुलझुलाहट, खीज होती है। पर यहाँ घास शान्त हैं। इस नीरव शान्ति में घासों के साथ हवा है, पानी है, कुछ कीड़े पतंगें, मछलियाँ हैं, मिट्टी है...और चाँद की छाया है। अगर चाँद हासिल होता तो ये सब न होते। तब सिर्फ चाँद होता। और शायद ढेर सारा अकेलापन...।
Kavita Card - Poetry Card Advertisement
कविता कार्ड - चकमक ने पिछले सौ सालों की बेहतरीन कविताओं को लोगों के बीच लाने की एक कोशिश की है। इसी के तहत 12-12 कार्ड के चार गुच्छे तैयार हुए हैं। इस पहल को बेहद सराहा जा रहा है। कक्षा में, घर-परिवार में कभी भी, कहीं भी इसे पढ़ा जा सकता है, उपहार में दिया जा सकता है। चाहो को इसके पीछे चिट्ठी लिखकर दोस्त को, नाना-नानी को भेज सकते हो।
इस बार की कविता है -
साँझ ढले जब नींद की झपकी
पेड़ों को आने लगती
गुमसुम-सी पेड़ों की अम्मा
मन में पछताने लगती
फैल-फूटकर जगह घेरकर
सोते पर्वत बड़े-बड़े
मेरे दिल के टुकड़े कैसे
सो पाएँगे खड़े-खड़े
Bachcho ki pehal - An initiative by students of Murudam farm school for saving the sacred groves of Sonagiri situated around the hill of Thrivannamalai
बच्चों की पहल - तमिलनाडु में थिरुवनम्मलाई की पहाड़ी की परिक्रमा करने हर साल हज़ारों तीर्थयात्री पहुँचते हैं। इसी पहाड़ी पर घना जंगल है। अनूठे पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं से भरा-पूरा समद्र्ध जंगल। पर सरकार परिक्रमावाले रास्ते को चौड़ा करना चाहती है। इसके लिए जंगल की कटाई शुरू हो गई थी। पर जब बच्चों ने इसे देखा तो वे इसे अनदेखा न कर सके। उऩ्होंने चिट्ठियाँ लिखीं, चित्र बनाए, जंगल के साथ अपने रिश्ते को दर्ज किया। और यह भी दर्ज किया कि जंगल के साथ रिश्ता सिर्फ उनका ही नहीं हम सबका भी है। इसी अनूठी पहल की एक बानगी...
Haji Naji - Fun stories by Swayam Prakash, Illustration by Priya Kurian
हाजी-नाजी - हाजी नाजी हर बार हमें अपने किसी न किसी किस्से से गुदगुदा जाते हैं। पर चुटकलों में हँसी कब आती है? क्यों आती है? सोचिएगा।
Rone ki Jagah - A memoir by Prayag Shulk, Illustrations by Shashi Shetey
रोने की जगह - किसी दिन, किसी जगह हम हँसे हों सब। मिलकर। समय के साथ हम यह भले ही भूल जाएँ। पर रोने की जगह देर तक याद रहती है। हँसना अकसर सबके साथ होता है। और रोना अकेले में। दुख अकसर बहुत निजी होता है शायद इसीलिए। हमारी ज़िन्दगी में कितनी ही चीज़ें घटित होती हैं। पर स्मृति में जगह कुछ ही चीज़ें बना पाती हैं। और अकसर ये साझी होती हैं। इसीलिए संस्मरण हम सबको अपने भीतर की एक यात्रा पर ले जाते हैं। हिन्दी के जाने-माने साहित्यकार, कवि और कला मर्मज्ञ प्रयाग शुक्ल अपने बचपन का एक किस्सा साझा करते हैं जब वो सीढ़ियों पर बैठकर रो रहे थे। आता-जाता हर व्यक्ति उसके सिर या गाल पर चपत लगाकर जाता-आता जा रहा था। किसी ने उनसे रोने का कारण न पूछा। न पास बैठना, सिर पर हाथ फेरना ही मुनासिब समझा। अन्त में वो एक कोठरी में बैठ गए। यहाँ उन्हें राहत मिली। और यही उनकी रोने की जगह बन गई। और सालों बाद जब उन्होंने यह बात अपनी बहन को बताई तो वो इसपर बहुत हँसीं। वे भी हँसे।
Machchar ko Malaria hota hai ya nahi? - An article by Sushil Joshi, Illustrations by Dilip Chinchalkar
मच्छर को मलेरिया होता है या नहीं - वाजिब सवाल है। मच्छर ने हमें काटा, हमें मलेरिया हो गया। तो उसे क्या मलेरिया नहीं होता। एक रोचक लेख।
Tony ki Dairy - A diary pages of Tony Kurian, Illustrations by Swetha Nambiar
टोनी की डायरी - टोनी का बचपन केरल में बीता। संगीत, सिनेमा, राजनीति, ट्रैकिंग, कम्प्यूटर...टोनी की दिलचस्पियाँ बहुत हैं। उनको लगता है कि जो लोग देख नहीं सकते, बोल-सुन नहीं सकते या हाथ-पाँव से मोहताज हैं वो भी उन तमाम जगहों में आसानी से आ-जा सकें जहाँ वाकी सभी जा पाते हैं। एक समय था जब टोनी देख नहीं पाने को अपनी एक कमी मानते थे पर अब वे सोचते हैं कि यह समाज की कमी है जो सभी को एक नज़र से नहीं देख पाता है। चकमक में वो अपने बचपन के और बड़े होने के दौरान हुए कुछ अनुभव साझा करेंगे..टोनी की डायरी के माध्यम से...।
Pyare Bhai Ramsahay - A story by Swayam Prakash, Illustrations by Prashant Soni
प्यारे भाई रामसहाय - प्यारे भाई रामसहाय में हर बार हमारे आसपास के किरदारों की कहानी होती है। उनके साथ बिताया वक्त होता है। और साथ ही होती है कोई टीस, कोई ग्लानी, कोई सवाल। अगर ये न होते तो ये कहानी भी न होती। इस बार बात स्कूल के एक दोस्त की हो रही है - राजेन्द्र लश्करी। बहुत दबंग। बात-बात में लोगों के मीन-मेख निकालनेवाला। उसे सबके सामने ज़ाहिर करनवाला। सालों बाद उससे मिलना होता है। अब स्थिति बदल चुकी है। उसका ओहदा कम हो गया है। अब सोचनेवाली बात थी कि क्या इससे उसकी आदत बदली?
Anany ke Viruddha - A story by Chekhov, Illustration by Habib Ali
अन्याय के विरुद्ध - क्या अपराधी अन्याय करनेवाला ही है? या वो भी जिसने सहा। अगर वो सहता नहीं तो अन्याय होता ही नहीं। चिखव की एक झकझोरदेनेवाली कहानी। साथ में है हबीब के सूझबूझ भरे चित्र।
PNG ke kuch Nakhare - An article by linguistic Ramakant Agnihotri, Illustration by Nilesh Gehlot
पीएनजी के कुछ नखरे - भाषा की दिलचस्प दुनिया श्रंख्ला का यह दूसरा लेख है। इसे लिखा है जाने-माने भाषाविद रमाकान्त अग्निहोत्री ने। इस कड़ी में वे भाषा में पुरुष यानी पर्सन, वचन यानी नम्बर और लिंग यानी जेंडर पर बात कर रहे हैं।
Pooriyon Ki Gathari (Part-4) - A long story by Krishan Kumar, Illustrations by Jagdish Joshi
पूड़ियों की गठरी (भाग- 4) पूड़ियों की गठरी की यह चौथी किस्त है। स्कूल की एक बरसों से खराब पड़ी बस है। स्कूल की प्रिंसिपल कहती हैं कि निवाड़ी में होनेवाली खेल प्रतियोगिता में लड़कियाँ इसी बस में बैठकर जाएँगी। सब अचरज में हैं। ऐसा कैसे हो सकता है? पर वो ठीक होने लगती है। एक्सिल, गियर प्लेट, क्लच प्लेट, ब्रोक, टायर-ट्यूब सब ठीक होने लगते हैं। और फिर एक दिन बस ठीक हो जाती है। सभी उसमें बैठकर निवाड़ी के लिए निकल जाते हैं। पर बड़ी बहनजी उसमें नहीं होतीं। असल में बड़ी बहनजी सभी के लिए पूड़ियाँ बनवा रही होती हैं। पूड़ियों का गट्ठर लेकर वो अगली बस से निकलती हैं। बीच रास्ते में उन्हें अपनी बस दिखती है। वो फटाफट बस रुकवाकर उसमें चढ़ जाती हैं। सब बड़ी बहनजी को अपने साथ पाकर बहुत खुश होते हैं। पर थोड़ी देर बाद जब भूख लगती है तो पता चलता है गट्ठरी तो उसी बस में रह गई। शिक्षा के विभिन्न आयामों में गहरी पैंठ रखनेवाले कृष्णकुमार की यह कहानी मन में एक हिम्मत, एक उम्मीद बाँधे रखती है। मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए...। जगदीश जोशी के जीवन्त चित्र बरबस ध्यान खींच लेते हैं।
Chashma naya hai - “Ramzaan ka pehla din” is a memoir by 13 year old Zeba Khatoon, Illustration by Atanu Roy
चश्मा नया है - रमज़ान से पहलेवाला दिन और रमज़ान का पहला दिन भी बाकी दिनों से बहुत अलग होता है। अगले दिन की पूरी तैयारी। सहरी की तैयारी। रात में चाँद का दिखना। अगले दिन से पूरी दिनचर्या बदल जाती है। सुबह जल्दी उठना, सहरी करना, खाना-पीना बनाना नहीं इसलिए खूब सारा खाली वक्त मिल जाना, शाम होते ही रात की इफ्तारी की तैयारी करना।
एक दिन में इतना कुछ होता है। इस सब पर गौर करना। औऱ इसे दर्ज करना। वो भी 10 साल की उम्र में। इस एक दिन के रेखा चित्र को पढ़कर आप भी हैरान रह जाएँगे।
Boli Rangoli - A column on children’s illustration on Gulzar’s couplet
बोली रंगोली - गुलज़ार हर महीने एक कविता लिखते हैं जिसे बच्चे समझकर चित्र बनाते हैं। इस महीने की कविता थी -
ऐसा कोई शख्स नज़र आ जाए जब
कान पे जिसका हाथ न हो
दाएँ-बाएँ टहल-टहल के
खुद ही हँसता बोलता न हो
बिन मोबाइल खाली हाथ नज़ार आ जाए कोई तो
खामख्वाह ही हाथ मिलाने को जी करता है
हमें इस पर हज़ारों चित्र मिले। कहीं रेल में सवारी करते पास-पास बैठे लोग, परिवार मोबाइल में वयस्त हैं तो कहीं एक हाथ से काम कर रहे लोग दूसरे हाथ से मोबाइल पकड़े हैं। हो सकता है इसे बनाते हुए बच्चों को ये दूसरा बँधा हाथ बहुत परेशान कर रहा हो!
Mathapachhi - Brain teasers
माथापच्ची - सोच-सवालों का पन्ना।
Jungle mein Mangal (Part -1) - A travelogue by Kamla Bhasin and Beena Kak
जंगल में मंगल - दो बहनों का मसाईमारा यात्रा- केन्या का मसाईमारा अभयारण्य। अकसर इनके बारे में हम नैशनल ज्योग्राफिक या एनिमल प्लैनेट जैसे चैनल से जानते हैं। या फिर अँग्रेज़ी किताबों से। पर यहाँ दो बहनें 70 साल की कमला भसीन और 60 साल की बीना काक पहुँचीं। अपने साथ तमाम लाव-लश्कर यानी कैमरे, लैंस लेकर। केन्या की राजधानी नैरोबी से वे एक छोटे विमान से मसाईमारा पहुँचे। वहाँ तम्बुओं में रहे और दिन भर जानवरों के बीच। और क्या रोमांचक यात्रा वृतांत लिखा हमारे लिए। अगले दो-तीन अंकों में हम मसाईमारा में घूमेंगे। आप साथ ज़रूर रहिएगा।
Mera Panna - A children’s creativity column
मेरा पन्ना - बच्चों की रचनात्मकता को मंच देते पन्ने।
School ke Din - A memoir by Chandan Yadav, Illustrations by Joel Gill
स्कूल के दिन- स्कूल में सीखना निश्चित होता है। सिर्फ पढ़ना-लिखना ही नहीं दुनियावी चीज़ें भी। जैसे दोस्ती निभाना, धर्म, जाति-बिरादरी अमीरी-गरीबी से ऊपर उठकर। दोस्ती, प्यार, इज़्जत, विविधता को जगह, बराबरी अगर ये सब सीख लिए तो अ ब स तो कभी भी सीखे जा सकते हैं। 40-45 साल पहले अपने कस्बे के स्कूल को याद कर रहे हैं चन्दन यादव। चित्र हैं जोएल गिल के।
Barsaati Sangeet - An article on Musical note flower by Kishore Panwar
बरसाती संगीत सुनाते फूल - अपने घर में खिले इन अनूठे फूलों को देख लेखक ने इसकी पहचान पानी चाही। इंटरनेट, दोस्त, सहकर्मियों से होते हुए वे संगीत के नोट की तरह दिखते इन फूलों के बारे में बता रहे हैं किशोर पँवार।
Nawab Sahab aur pet dard - A “Kissa” of Nawab Sahab by Himanshu Bajpai, Illustrations by Priya Kurian
नवाब साहब और पेट का दर्द एक नवाब थे। नवाब जैसे नवाब। दिन भर हुक्का गुड़गुड़ाते और हुक्म बजाते। उनकी बीबी बेचारी कपड़े सीकर घर का गुज़ारा करतीं। पर नवाब ठहरे नवाब। एक दिन उनका जी हलवा खाने का किया। सो हुक्म कर दिया। बीवी काम में मशगूल थीं तो कह दिया अभी न हो सकेगा। काम पूरा होगा तभी हलुआ पकेगा। नवाब न सुनने के आदी न थे। सो रसोईखाने में घुसे औऱ लगे हलवा पकाने। पर जब बात बिगड़ते दिखी तो कह दिया हलवा नहीं गुलगुले खाएँगे। पर वहाँ भी बात न बनी तो चिल्लों पर हाथ आज़माने लगे। वहाँ भी सूरत बिगड़ती दिखी तो पेट दर्द का बहाना बनाने के सिवा कोई तरकीब न बची। वैसे कभी मिले हैं ऐसे नवाब से जिनकी बीवी घर चलाने के लिए कपड़े सिलती हों? मेरे ख्याल से मिले ही होंगे। हमसे ज्ञ्द्ध ज़रूर मिलवाइएगा। साथ में प्रिया कुरियन के खूबसूरत चित्र पर भी गौर फरमाइएगा।
Chitrapaheli
चित्र पहेली - चित्रों वाली पहेली। नए शब्दों से दोस्ती करने का पन्ना।