दीमक की बांबियां तो सबने देखी होंगी। ये वास्तु कला का सुंदर उदाहरण पेश करती हैं। मगर दीमकें परस्पर सहयोग से इतनी जटिल संरचना का निर्माण कैसे करती हैं, यह काफी समय से अटकलों का विषय ही रहा है।
शोधकर्ता यह मानते आए हैं कि जब कोई एक दीमक किसी एक जगह पर मिट्टी जमा करने लगती है तो इस प्रक्रिया में वे कोई रसायन छोड़ती हैं। यह रसायन बाकी दीमकों को भी उसी जगह मिट्टी जमा करने को प्रेरित करता है। मगर अब इस मामले में नई जानकारी मिली है जिसने दीमक की बांबियों के बारे में वैज्ञानिक सोच को बदलकर रख दिया है।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के बेन ग्रीन और उनके साथियों ने दीमकों को मिट्टी से लेपित कांच की तश्तरियों में बांबी बनाने का मौका देकर उनके व्यवहार का सावधानीपूर्वक अवलोकन किया। ये दीमकें दो प्रजातियों की थीं। इनकी गतियों और व्यवहार में सबसे पहली बात वैज्ञानिकों ने यह देखी कि वे बेतरतीबी से मिट्टी खोदना शु डिग्री करती हैं। इसके  कुछ समय बाद ही अधिकांश दीमकें उस स्थान पर इकट्ठी हो जाती हैं जहां खुदाई सबसे अधिक हो रही हो। इन स्थानों पर जमा की गई मिट्टी ही नई बांबी का आधार बनती हैं।
टीम ने इस घटना की दो अनुकृतियां (मॉडल्स) भी तैयार की। एक में यह मानकर चला गया था कि दीमकें सबसे व्यस्त खुदाई स्थल पर इकट्ठा होती हैं। जबकि दूसरी में दीमकें किसी रासायनिक संकेत के प्रत्युत्तर में किसी स्थान पर मिट्टी जमा करती हैं। प्रोसीडिंग्स ऑफ रॉयल सोसायटी बी में प्रकाशित शोध पत्र में ग्रीन व उनके साथियों ने बताया है कि पहले वाला मॉडल वास्तविकता से ज़्यादा मेल खाता प्रतीत होता है। (स्रोत फीचर्स)