मलेरिया मच्छर द्वारा फैलाए जाने वाले एक परजीवी की वजह से होता है जिसका सबसे सामान्य लक्षण बुखार है। किंतु मलेरिया का परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करता है, और कभी-कभी दिमाग को भी प्रभावित करता है। अब चूहों पर किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि यह हड्डियों की वृद्धि पर भी असर डालता है।
मलेरिया का परजीवी शरीर में प्रवेश करने के बाद लीवर से होता हुआ लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर जाता है। यहां वह हीमोग्लोबीन नामक महत्वपूर्ण रसायन को अपना भोजन बनाता है और अंत में लाल रक्त कोशिका को फोड़कर बाहर निकलता है। इस दौरान यह कई सारे हानिकारक रसायनों का निर्माण भी करता है।
यह तो पहले ही पता था कि मलेरिया परजीवी अस्थि मज्जा में भी पहुंच जाता है किंतु यह पता नहीं था कि वहां इसकी करतूतें क्या होती हैं। इस बात का पता करने के लिए जापान के ओसाका विश्वविद्यालय के स्नातक छात्र माइकल ली और प्रतिरक्षा वैज्ञानिक सिवेयिर कोबन ने मलेरिया परजीवी की दो प्रजातियां लीं। उन्होंने अलग-अलग चूहों में ये परजीवी प्रविष्ट कराए और देखा कि दोनों प्रजातियां चूहों के कंकाल को प्रभावित करती हैं। उन्होंने पाया कि हड्डियों के अंदर उपस्थित रंध्रमय पदार्थ विघटित होने लगा था और हड्डियां टूटने लगी थीं। रंध्रमय पदार्थ के रंध्र बड़े हो गए थे और वह कम वज़न झेल पाता था।

यह भी देखा गया कि छोटे चूहों में हड्डियों की वृद्धि भी धीमी हो गई थी। साइन्स कम्यूनिकेशन्स में शोधकर्ताओं ने बताया है कि संक्रमित चूहों की जांघ की हड्डियां सामान्य चूहों से 10 प्रतिशत छोटी थीं। परजीवी के इस असर को समझने के लिए ली और कोबन ने एक परिकल्पना बनाई जो अस्थि मज्जा में उपस्थित दो तरह की कोशिकाओं पर आधारित है। अस्थि मज्जा में एक तरह की कोशिकाएं होती हैं ऑस्टियोक्लास्ट जो हड्डियों को गलाती हैं। इसके विपरीत ऑस्टियोब्लास्ट हड्डियों का निर्माण करती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि मलेरिया संक्रमित चूहों में दोनों तरह की कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं। जब शरीर से परजीवी बाहर कर दिया जाता है तब दोनों प्रकार की कोशिकाएं अपना-अपना काम फिर से शु डिग्री कर देती हैं। किंतु हड्डियां गलाने का काम ज़्यादा गति से चलने लगता है। इसका मतलब है कि ऑस्टियोक्लास्ट ज़्यादा काम कर रही हैं।

ली और कोबन का मत है कि इन कोशिकाओं के काम बंद करने का कारण स्वयं परजीवी नहीं बल्कि परजीवी द्वारा बनाए गए रसायन हैं जो परजीवी के हट जाने के काफी समय बाद तक उपस्थित रहते हैं। इनमें से एक हीमोज़ोइन है जो परजीवी द्वारा हीमोग्लोबीन के नष्ट करने की क्रिया के दौरान बनता है। संक्रमण समाप्त होने के दो महीने बाद भी हड्डियों में हीमोज़ोइन पाया गया। जब शोधकर्ताओं ने अस्थि मज्जा की कोशिकाओं को हीमोज़ोइन व अन्य पदार्थों में पनपाया तो उनमें ऐसे पदार्थ बने जो ऑस्टियोक्लास्ट को बढ़ावा देते हैं।
अच्छी बात यह है कि इस स्थिति का मुकाबला करना अपेक्षाकृत आसान है। शोधकर्ताओं ने पाया कि यदि मलेरिया संक्रमित चूहों को विटामिन डी जैसा एक पदार्थ (अल्फाकेल्सिडॉल) दिया जाए तो ऑस्टियोक्लास्ट को रोका जा सकता है और ऑस्टियोब्लास्ट को बढ़ावा दिया जा सकता है। अब सवाल सिर्फ यह है कि चूहों में देखे गए ये असर क्या मनुष्यों में भी होते हैं। यदि ऐसा है तो अल्फाकेल्सिडॉल मलेरिया के इलाज का एक हिस्सा बन जाएगा। (स्रोत फीचर्स)