पेट्रोल, डीज़ल, केरोसीन जैसे जीवाश्म ईंधनों को जलाकर हम ऊर्जा प्राप्त करते हैं और आज की अर्थ व्यवस्था काफी हद तक जीवाश्म ईंधनों के उपयोग पर टिकी है। किंतु जीवाश्म ईंधनों की मात्रा सीमित है और जल्दी ही चुक जाएगी। जब इन ईंधनों को जलाया जाता है तो कार्बन डाईऑक्साइड बनती है जो धरती को गर्माने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लिहाज़ा, वैज्ञानिकों की कोशिश रही है कि किसी प्रकार से इस कार्बन डाईऑक्साइड को फिर से ईंधन में तबदील कर दिया जाए ताकि जीवाश्म ईंधन की कमी से भी निज़ात मिले और कार्बन डाईऑक्साइड से भी।
दरअसल, पेड़-पौधे इस क्रिया को काफी सहजता से करते हैं। वे हवा में उपस्थित कार्बन डाईऑक्साइड तथा पानी को जोड़कर कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं। इस क्रिया के लिए ऊर्जा सूरज की रोशनी से प्राप्त होती है। इसे प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। वैज्ञानिकों के लिए यह एक लक्ष्य रहा है कि हम प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रयोगशाला में (और आगे चलकर कारखानों में) करवा सकें।

प्रयोगशालाओं में इस क्रिया को पूरा करने के लिए पहले कार्बन डाईऑक्साइड को कार्बन मोनोऑक्साइड में बदला जाता है। तरीका यह है कि कार्बन डाईऑक्साइड को पानी में से बुलबुलों के रूप में एक उत्प्रेरक पर से प्रवाहित किया जाए, और विद्युत धारा के रूप में ऊर्जा प्रदान की जाए। इसके लिए आम तौर पर कॉपर ऑक्साइड का उपयोग उत्प्रेरक के रूप में किया जाता है।
दिक्कत यह होती है कि विद्युत ऊर्जा का ज़्यादा उपयोग कार्बन डाईऑक्साइड को कार्बन मोनोऑक्साइड में बदलने की बजाय पानी के अणुओं को तोड़ने में हो जाता है। लिहाज़ा इस क्रिया की कार्यक्षमता बहुत कम हो जाती है।
अब संयोगवश कहानी में नया मोड़ आया है। लौसाने स्थित स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के छात्र मार्सेल श्राइरर ने यह समझने की कोशिश की कि कॉपर ऑक्साइड उत्प्रेरक काम कैसे करता है। उन्होंने कॉपर ऑक्साइड उत्प्रेरक की पतली झिल्ली टिन ऑक्साइड के इलेक्ट्रोड पर फैलाकर उसका उपयोग कार्बन डाईऑक्साइड घुले पानी में विद्युत प्रवाहित करने हेतु किया। इस नए उत्प्रेरक ने कार्बन डाईऑक्साइड को तोड़कर कार्बन मोनोऑक्साइड में बदलने का काम अपेक्षाकृत ज़्यादा कुशलता से किया। ऐसा लगता है कि टिन की वजह से कॉपर ऑक्साइड उत्प्रेरक पर वे हॉटस्पॉट खत्म हो जाते हैं जो पानी को तोड़ने का काम कर रहे थे।

अब विचार यह है कि इस प्रक्रिया में बनी कार्बन मोनोऑक्साइड का उपयोग अल्कोहल, हाइड्रोकार्बन वगैरह बनाने में किया जाएगा जिनका इस्तेमाल ईंधन के रूप में हो सकता है। पूरी प्रक्रिया को सम्पन्न करने के लिए ऊर्जा सौर विद्युत से प्राप्त होगी।
वैसे अभी इस प्रक्रिया से प्राप्त ईंधन इतना सस्ता नहीं है कि वह कुदरती पेट्रोल वगैरह का मुकाबला कर सके किंतु शोधकर्ताओं को लगता है कि नवीकरणीय ऊर्जा की घटती कीमतों के साथ यह प्रक्रिया भी सस्ती हो जाएगी और इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि हम कार्बन डाईऑक्साइड को बांध सकेंगे और सौर ऊर्जा का भंडारण कर सकेंगे। (स्रोत फीचर्स)