फ्रेडरिक शोपिन एक मशहूर पियानोवादक थे। उनकी मृत्यु के बाद की घटनाओं ने कई विशेषज्ञों को लगभग एक शताब्दि तक उलझाए रखा था। इस बात को लेकर विवाद चलता रहा कि इस प्रसिद्ध संगीतकार की मौत किस वजह से हुई थी। अब पोलैंड के वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने शोपिन की मौत की गुत्थी सुलझा ली है और इसके लिए उन्होंने मृतक के दिल का अध्ययन किया है। तो शोपिन का दिल उन्हें मिला कहां से?
किस्सा कुछ इस तरह है: शोपिन ने अपनी मृत्यु से पहले ये शब्द लिखे थे: “कसम खाओ कि उन्हें मजबूर करोगे कि वे मेरी चीरफाड़ करें, ताकि मुझे ज़िन्दा न दफनाया जाए।” ज़िन्दा दफनाए जाने के इस डर को एक नाम दिया गया है - टेफीफोबिया। कहते हैं कि कई अन्य मशहूर लोगों के अलावा अल्फ्रेड नोबेल (जिनके नाम से नोबेल पुरस्कार दिए जाते हैं) भी इस डर से पीड़ित थे। इसी डर के चलते उस समय कई ताबूत में ऐसे अलार्म लगाए गए थे, जिन्हें अंदर लेटा व्यक्ति बजा सकता था।
खैर, इन शब्दों का असर यह हुआ कि शोपिन की मौत के बाद उनकी बहन ने उनकी ऑटोप्सी करवाई। ऑटोप्सी के दौरान उनका दिल निकाल लिया गया। तो शोपिन का पूरा शरीर तो पैरिस में (जहां उनकी मौत हुई थी) दफन कर दिया गया किंतु बहन ने उनके दिल को एक जार में (ब्रांडीभरकर) पैक कर दिया और उसे किसी प्रकार से पोलैंड ले आईं। पोलैंड में शोपिन के दिल को वॉरसा के एक चर्च के खंभे में चुन दिया गया। इसके कई दशकों बाद इस दिल को एक नाज़ी कमांडर ने निकलवाकर सुरक्षित रख लिया। इस कमांडर का कहना था कि उसे शोपिन के संगीत से मोहब्बत थी। युद्ध के बाद दिल चर्च को लौटा दिया गया था।
2014 में वैज्ञानिकों को आमंत्रित किया गया कि वे उस जार में रखी वस्तु का मुआयना करें और बताएं कि शोपिन की मृत्यु क्यों हुई थी। मूल ऑटोप्सी के दस्तावेज़ तो गुम हो चुके थे। ले-देकर दिल ही बचा था। अब वैज्ञानिकों के उस दल ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है और दी अमेरिकन जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित करने जा रहे हैं।
उन्नीसवीं सदी में की गई ऑटोप्सी के दौरान दिल को बहुत चोटें पहुंची थीं। इसलिए आज वैज्ञानिक इतना ही कह पा रहे हैं कि शोपिन की मौत टीबी की पेचीदगियों के कारण हुई थी। संभवत: पेरिकार्डाइटिस की वजह से वे मौत के मुंह में गए थे। पेरिकार्डाइटिस यानी ह्रदय के आसपास उपस्थित झिल्ली में सूजन आ जाना।
लगता है किस्सा पूरा हुआ। किंतु अभी एक पेंच बाकी है। कुछ विशेषज्ञों का मत है कि शायद जिस दिल की बातें हो रही हैं, वह शोपिन का है ही नहीं। दूसरी बात यह है कि कुछ विशेषज्ञों का मत है कि जेनेटिक विश्लेषण करके पता लगाया जाना चाहिए कि शोपिन कहीं सिस्टिक फाइब्राोसिस की वजह से तो नहीं मरे थे। 2014 में वैज्ञानिकों को अपनी जांच-पड़ताल के दौरान जार को खोलने की इज़ाजत नहीं दी गई थी। अब बात 50 साल के लिए टल गई है क्योंकि 50 साल बाद ही फिर से दिल का मुआयना किया जाएगा। तब तक उम्मीद करें कि शोपिन अपने टेफीफोबिया से मुक्त होकर दफन हैं। (स्रोत फीचर्स)