ह्रदय रोगों के इलाज में कई तरीके अपनाए जाते हैं, और इस तरह के इलाज पर लाखों रुपए खर्च भी होते हैं। लेकिन चिकित्सकों के मन में यह सवाल बना हुआ है कि कैसे ह्रदय रोगों के इलाज के परिणाम मरीज़ की दिमागी स्थिति पर भी निर्भर करते हैं?
लगभग आधी सदी से ह्रदय रोग विशेषज्ञ एंजियोप्लास्टी नामक तकनीक का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। यह तकनीक धमनी के उस हिस्से को वापिस खोल देती है जो कई कारणों से बंद हो गया था या सिकुड़ गया था। इसके माध्यम से ह्रदय रोग के लक्षणों में सुधार हो सकता है।
आजकल यह प्रक्रिया बहुत आम हो गई है। इस प्रक्रिया में बहुत कम समय में ही एक तार आपकी धमनियों से होता हुआ आपके ह्रदय की धमनियों तक पहुंचता है और यह सब उसी समय पर कैमरे से जुड़ी स्क्रीन पर दिखाई भी देता रहता है। ह्रदय रोग विशेषज्ञ द्वारा इस तार की मदद से अवरुद्ध या सिकुड़े हुए स्थान पर पहुंचकर एक गुब्बारे को फुलाया जाता है। इससे वह धमनी खुल जाती है। कभी-कभी इस स्थान पर एक स्टेंट लगा दिया जाता है जो उस धमनी को वापिस सिकुड़ने नहीं देता। एक्स-रे में फौरन ही दिखाई पड़ता है कि रक्त का बहाव ठीक हो गया है और धमनियां ठीक तरह से काम कर रहीं हैं।
केंटक्की, लुईविले के कार्डिएक इलेक्ट्रोफिज़ियोलॉजिस्ट जॉन मेन्डरोला का कहना है कि जब हम मरीज़ को कहते हैं कि हमने आपको दुरुस्त कर दिया है तो मरीज़ पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उनका कहना है कि कई अन्य डॉक्टरों ने पाया है कि इस उपचार से मरीज़ को छाती में दर्द की शिकायत कम होती है और वह ज़्यादा ऊर्जावान व तंदुरुस्त महसूस करता है।
एंजियोप्लास्टी एथेरोस्क्लेरोसिस नामक रोग के लिए इस्तेमाल की जाती है। इस बीमारी में ह्रदय की धमनियों में प्लाक जमा हो जाता है और वे सख्त हो जाती हैं। डॉक्टर एंजियोप्लास्टी करने का सुझाव तब देते हैं जब दवाइयां अथवा जीवन शैली में बदलाव काम न आएं।
इस उपचार को करने में आपके डॉक्टर का निर्णय गलत भी हो सकता है। दी लेसैंट में हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कई मामलों में गंभीर रूप से अवरुद्ध ह्रदय धमनियों के ब्लॉकेज खोलकर स्टेंट लगाने की प्रक्रिया के बावजूद एंजाइना को ठीक नहीं कर पाते हैं। इस रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि गैर-आपातकालीन परिस्थितियों में एंजियोप्लास्टी करना बेकार है और पैसे की बरबादी है।
लेकिन कई डॉक्टरों का मानना है कि यह कारगर है। मरीज़ को जब यह पता लगता है कि उसे ब्लॉकेज है और एक स्टेंट लगाकर इसे ठीक किया जा सकता है, तो यह खबर मरीज़ को तसल्ली देती है। यह एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव है जिसे प्लेसिबो प्रभाव कहते हैं। इसी सकारात्मक प्रभाव की वजह से गंभीर बीमारी से ग्रस्त मरीज़ ठीक भी हो सकता है। (स्रोत फीचर्स)