डॉ. अरविंद गुप्ते
डॉ. डेनिएला रूज़ का जन्म 1963 में रोमानिया में हुआ था। 1993 में उन्होंने अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। अपने अध्यापन कार्य की शुरूआत उन्होंने अमेरिका के ही डार्टमथ कॉलेज से की और वहां रोबोटिक्स प्रयोगशाला की स्थापना की। वर्तमान में वे मशहूर एमआईटी में रोबोटिक्स विभाग की अध्यक्ष हैं। उनकी प्रयोगशाला में कई प्रकार के रोबोट विकसित किए गए हैं, विशेष रूप से ऐसे रोबोट जो बिना किसी बाहरी निर्देश के अपने आप को परिस्थिति के अनुसार ढाल लेते हैं। ऐसे रोबोट विशेष परिस्थितियों में बढ़िया काम कर सकते हैं, जैसे गहरे समुद्र में या अंतरिक्ष में।
वे ऐसे रोबोट विकसित करने का प्रयास कर रही हैं जो एक-दूसरे से जुड़कर एक टीम के समान काम करें। रोबोटिक्स के इस क्षेत्र को डिस्ट्रिब्यूटेड रोबोटिक्स कहते हैं। उनकी प्रयोगशाला में ऐसे रोबोट बनाए गए हैं जो बागवानी कर सकते हैं, नाच सकते हैं, केक काट सकते हैं, बिस्किट बना सकते हैं आदि। यहां ऐसे रोबोट बनाने की कोशिश की जा रही है जो खेती कर सकें और यातायात, सुरक्षा, पानी के नीचे शोध आदि क्षेत्रों में काम कर सकें।
डॉ. रूज़ की प्रयोगशाला में हाल में एक ऐसा उपकरण विकसित किया गया है जो दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए बड़े काम का है। इस उपकरण के दो भाग हैं - एक है कैमरा जिसे दृष्टिबाधित व्यक्ति अपने गले में लटका लेता है और जो सामने के और साइड के दृश्य का छायांकन करता रहता है। उपकरण का दूसरा भाग एक बेल्ट है जो व्यक्ति के पेट पर बंधा होता है। इस बेल्ट पर पांच सेन्सर लगे होते हैं - एक बीचोंबीच में और दो-दो दोनों तरफ बराबर दूरी पर। यदि कोई दृष्टिबाधित व्यक्ति किसी रुकावट की सीध में चलता जा रहा है तो कैमरे से बेल्ट के बीच वाले सेन्सर को संदेश पहुंचाता है और बेल्ट में कम्पन होने लगता है। यदि फिर भी व्यक्ति रुकने या मुड़ने की बजाय चलता ही जाता है तो बेल्ट में और अधिक कम्पन होने लगता है। इससे उस व्यक्ति को पता चल जाता है कि वह रूकावट से कितनी दूर है। यदि रूकावट व्यक्ति के ठीक सामने नहीं, बल्कि दाएं-बाएं हो तो उस ओर के सेन्सर कम्पन के द्वारा इसकी सूचना देते हैं।
बेल्ट पर एक टच पैड लगा होता है जिस पर ब्रोल लिपि में अक्षर और संख्याएं लिखी होती हैं। इस टच पैड की सहायता से उपकरण को पहनने वाला व्यक्ति कोई विशिष्ट कार्य करने के लिए निर्देश दे सकता है। उदाहरण के लिए यदि किसी सभागार में खाली कुर्सी ढूंढना हो तो इसके लिए उपकरण के कंप्यूटर को निर्देश दिए जा सकते हैं।
यह उपकरण आकर्षक भले ही लगता हो, किंतु इस बात की उम्मीद कम है कि निकट भविष्य में यह पूरी दुनिया के दृष्टिबाधितों के काम आ सकेगा। इसके साथ पहली कठिनाई यह है कि वर्तमान में दृष्टिबाधित व्यक्ति जिस सफेद छड़ी का उपयोग करते हैं उसकी तुलना में इस उपकरण का मूल्य बहुत अधिक होगा और विशेष रूप से गरीब देशों के दृष्टिबाधितों की पहुंच से बाहर ही होगा। दूसरी कठिनाई यह है कि सफेद छड़ी का सहारा लेकर चलते हुए व्यक्ति को देख लेने भर से लोग उसकी कमज़ोरी पहचान जाते हैं और उससे उसके अनुरूप व्यवहार करते हैं। कैमरा (चाहे वह विशेष प्रकार का ही क्यों न हो) गले में लटकाए हुए व्यक्ति को कम ही लोग दिव्यांग के रूप में पहचान पाएंगे। (स्रोत फीचर्स)