छछूंदर को तो सभी पहचानते हैं। किंतु यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि यह दुनिया के सबसे छोटे स्तनधारियों में से है। और अब पता चला है कि इसमें कुछ अनोखे गुण पाए जाते हैं। जैसे ठंड का मौसम आते ही इसकी खोपड़ी सिकुड़ने लगती है और वसंत के आगमन के साथ वापिस अपना मूल आकार हासिल कर लेती है।
वैसे यह बात 1940 के दशक में पोलैंड के प्राणि वैज्ञानिक ऑगस्ट डेह्नेल ने रिपोर्ट की थी कि छछूंदरों की साइज़ जाड़ों में कम हो जाती है। इसे ‘डेह्नेल परिघटना’ कहा जाता है। किंतु ताज़ा अध्ययन में एक-एक छछूंदर को साल भर विभिन्न मौसमों में नापा-तौला गया है। मैक्स प्लांक पक्षी विज्ञान संस्थान के पीएच.डी. छात्र जेवियर लज़ारो ने 12 छछूंदरें पकड़ीं। उन्हें बेहोश करके एक्सरे तस्वीरें खींची गईं और पहचान के लिए माइक्रोचिप्स लगा दिए गए। फिर इन्हें नियमित अंतराल पर पकड़-पकड़कर पूरे एक साल तक स्कैन किया गया।
आंकड़ों से पता चला कि बारह-की-बारह छछूंदरों में पैटर्न एक जैसा था - सभी में जाड़ों में सिकुड़ना और वसंत में फैलना दिखाई दिया। और तो और, सिकुड़न सिर्फ खोपड़ी में नहीं हुई। उनके मस्तिष्क भी ठंड में 30 प्रतिशत तक सिकुड़े। अन्य अंगों के वज़न में भी कमी आई। यहां तक कि रीढ़ की हड्डी भी छोटी हो गई। कुल मिलाकर समझ में आया कि जुलाई से फरवरी के बीच उनके वज़न में 18 प्रतिशत तक की कमी आती है जो वसंत में बहाल हो जाती है।
वैसे शोधकर्ताओं का कहना है कि छछूंदर ही अकेले नहीं हैं इस मामले में। जाड़े के दिनों में भोजन की कमी होने पर कई जंतुओं का वज़न कम होता है। किंतु छछूंदर की हड्डियों और मस्तिष्क में जिस मात्रा में सिकुड़न होती है, वह आश्चर्यजनक है। इसका मतलब है कि जाड़ों में हड्डियों को वापिस शरीर में सोखा जा रहा है और वसंत में उनका पुनर्निर्माण हो रहा है। लज़ारो और उनके साथियों को लगता है कि यदि हम इसका कारण समझ पाएं तो मनुष्यों में होने वाले रोगों, जैसे अस्थिछिद्रता, के बारे में कुछ समझ बनेगी। वैसे अभी यह देखना बाकी है कि मस्तिष्क के सिकुड़ने का छछूंदर के मानसिक कामकाज पर क्या असर होता है। (स्रोत फीचर्स)