डॉ. विजय कुमार उपाध्याय
सन 2017 में चिकित्सा एवं शरीर क्रिया विज्ञान के नोबेल पुरस्कार हेतु तीन वैज्ञानिकों का चयन किया गया है: जेफ्री सी. हॉल, माइकेल रॉसबैश तथा माइकेल डब्ल्यू. यंग।
72 वर्षीय जेफ्री सी. हॉल का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयार्क में हुआ था। उन्होंने वाशिंगटन विश्वविद्यालय, कैल्टेक, ब्रौंडिस विश्वविद्यालय तथा मैन विश्वविद्यालय जैसे कई संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में काम किया। आजकल वे मैन विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
73 वर्षीय माइकेल रॉसबैश का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका के कैंसास नामक नगर में हुआ था। उनकी पढ़ाई लिखाई मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी तथा एडिनबरा विश्वविद्यालय में हुई थी। सन 1974 से वे ब्रौंडिस विश्वविद्यालय में फैकल्टी मेम्बर हैं।
68 वर्षीय माइकल डब्ल्यू यंग का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका के मियामी में हुआ था। उन्होंने ऑफ टेक्सास विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट डिग्री प्राप्त की थी। उसके बाद कुछ समय तक स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में पोस्ट डॉक्टरल फैलो के रूप में काम किया। सन 1978 से वे रॉकफेलर विश्वविद्यालय में फैकल्टी मेम्बर हैं।
उपरोक्त वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार इनके द्वारा जीवों की शारीरिक घड़ी से सम्बंधित सर्केडियन रिदम को नियंत्रित करने वाली आण्विक क्रियाविधि की खोज के लिए प्रदान किया गया है। पृथ्वी पर हमारा दैनिक जीवन चक्र पृथ्वी के घूर्णन अर्थात रात-दिन के दैनिक चक्र के अनुसार व्यवस्थित होता रहता है। विज्ञान के अनुसार प्रकृति का अपना एक विशिष्ट पैटर्न तथा लय होती है जो सूर्य की गति के अनुसार चलती है। प्रकृति के इसी पैटर्न और लय के अनुसार हमारा शरीर कार्य करता है। इसी लय को आंतरिक जैविक घड़ी कहते हैं। हमारे शरीर की आंतरिक जैविक घड़ी के अनुसार ही सोने-जगाने की प्रक्रिया संचालित होती है।
उपरोक्त तीन वैज्ञानिकों ने इस आंतरिक जैविक घड़ी के अंदर झांकने का प्रयास करके इसकी कार्य प्रणाली की व्याख्या करने की कोशिश की है। उनके द्वारा की गई खोज ने इस बात की व्याख्या की है कि कैसे वनस्पतियां, जंतु तथा मानव अपनी जैविक घड़ी की लय का सामंजस्य पृथ्वी के घूर्णन के साथ बैठा लेते हैं। इन वैज्ञानिकों ने फ्रूट फ्लाई को एक मॉडल के रूप में इस्तेमाल करके एक ऐसा जीन अलग किया जो जैविक घड़ी की लय को नियंत्रित करता है। इन वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों से दिखाया कि यह जीन एक ऐसे प्रोटीन का निर्माण करता है जो रात के समय कोशिका में जमा होता है तथा दिन के समय विघटित हो जाता है। फिर इन वैज्ञानिकों ने ऐसे प्रोटीन की खोज की जो उस क्रिया विधि का भेद खोलता है जिसकी बदौलत जैविक घड़ी आत्म निर्भर रहती है।
हमारी आंतरिक जैविक घड़ी बहुत ही सटीक ढंग से दिन के अलग-अलग समय पर नाटकीय ढंग से अपना तालमेल बैठाती है। हमारी जैविक घड़ी हमारे शरीर के विभिन्न क्रियाकलापों एवं व्यवहारों को बहुत ही सटीक ढंग से नियंत्रित करती है। इनमें शामिल हैं हार्मोन स्तर, नींद, शरीर का तापमान तथा चयापचय (मेटाबोलिज़्म) इत्यादि। जब बाहरी पर्यावरण तथा आंतरिक शरीर घड़ी के बीच बेमेल की स्थिति आ जाती है तो हमारा स्वास्थ्य प्रभावित होता है। उदाहरण के तौर पर हवाई यात्रा के दौरान जब हम अलग-अलग टाइम ज़ोन से होकर गुज़रते हैं तो हम ‘जेट लैग’ से प्रभावित होते हैं। ऐसे संकेत मिले हैं कि यदि हमारी शारीरिक घड़ी की लय तथा हमारी जीवन शैली के बीच लंबे समय तक बेमेल की स्थिति बनी रही तो हमारे शरीर में अनेक प्रकार के रोग पैदा होने की आशंका रहती है।
अधिकांश जीव-जंतु पर्यावरण में होने वाले दैनिक परिवर्तन हेतु तैयार रहते हैं तथा उन परिवर्तनों के अनुसार अपने शरीर का तालमेल बैठा लेते हैं। 18वीं सदी के दौरान जीन जैक्स नामक खगोलविद ने माइमोसा नामक पौधे का अध्ययन किया तथा पाया कि उसके पत्ते दिन में खुल जाते हैं तथा शाम को बंद हो जाते हैं। उनके मन में एक बात आई कि यदि इस पौधे को लंबे समय तक अंधेरे में रखा जाए तो क्या होगा? उन्होंने यह प्रयोग किया तथा पाया कि लगातार अंधेरे में रखने पर भी उसके पत्तों के खुलने तथा बंद होने की क्रिया पूर्ववत चलती रहती है। इससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि पौधे में अपनी जैविक घड़ी होती है जिसके द्वारा उसकी सभी क्रियाएं नियत समय पर चलती रहती हैं।
अन्य शोधकर्ताओं ने भी पाया कि न सिर्फ पौधे अपितु जंतुओं (मानव सहित) में भी जैविक घड़ी मौजूद रहती है जो पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार शरीर-क्रिया को व्यवस्थित करती है। इसी को दैनिक लय कहते हैं। परंतु वैज्ञानिकों को पहले यह मालूम नहीं था कि जैविक घड़ी काम कैसे करती है।
1970 के दशक में सिमाउर बेंजर तथा उनके शोध छात्र रोनॉल्ड कोनोप्का ने सोचा कि क्या फ्रूट फ्लाई में उस जीन का पता लग सकता है जो जैविक घड़ी की लय को नियंत्रित करता है? उनके शोध से पता चला कि फ्रूट फ्लाई में एक अज्ञात जीन का उत्परिवर्तन दैनिक लय को बाधित करता है। इन वैज्ञानिकों ने इस जीन का नाम रखा ‘पीरियड’। अब अगला सवाल था कि यह जीन दैनिक लय को कैसे प्रभावित करता है?
इस प्रश्न का उत्तर ढूंढा 2017 के नोबेल विजेताओं ने। इसके लिए ये लोग भी फ्रूट फ्लाई का अध्ययन कर रहे थे। बोस्टन स्थित ब्रौंडीस विश्वविद्यालय के जेफ्री हॉल तथा माइकेल रॉसबैश एवं रॉकफेलर विश्वविद्यालय के माइकेल यंग ने 1984 में ‘पीरियड’ नामक जीन को पृथक करने में सफलता प्राप्त की। उसके बाद हॉल एवं रॉसबैश ने उस प्रोटीन को खोजने का प्रयास किया जो पीरियड नामक जीन द्वारा बनाया जाता है, जो रात को कोशिकाओं में जमा होता है तथा दिन में विघटित हो जाता है। इस प्रकार इस प्रोटीन का 24 घण्टे के अंदर कोशिकाओं में एकत्र होने तथा विघटित होने का चक्र चलता रहता है।
अब इन वैज्ञानिकों को यह पता लगाने का काम बाकी था कि उपरोक्त चक्र कैसे उत्पन्न होता है और कैसे अनवरत चलता रहता है? हॉल तथा रॉसबैश की परिकल्पना थी कि यह प्रोटीन स्वयं पीरियड जीन की क्रिया को बाधित कर देता है। उनका मानना यह था कि निषेधात्मक फीडबैक के द्वारा यह प्रोटीन अपना ही संश्लेषण रोक देता है जिससे उसके जमा होने और विघटित होने का चक्र अविराम चलता रहता है।
हॉल तथा रॉसबैश की परिकल्पना के आधार पर प्रस्तुत किया गया मॉडल काफी रोचक था, परंतु इसमें कुछ बिन्दु स्पष्ट नहीं थे। पीरियड जीन की क्रियाशीलता को बाधित करने हेतु कोशिका द्रव्य में निर्मित होने वाले उक्त प्रोटीन को कोशिका के केंद्रक में पहुंचना होगा जहां जेनेटिक सूचनाएं होती हैं। हॉल तथा रॉसबैश यह नहीं बता पाए थे कि वह प्रोटीन कोशिका के केंद्रक में पहुंचता कैसे है?
1994 में माइकेल यंग ने जैविक घड़ी से सम्बंधित एक दूसरे जीन की खोज की जिसका नाम रखा गया ‘टाइमलेस’। जब टाइमलेस द्वारा निर्मित प्रोटीन तथा पीरियड द्वारा निर्मित प्रोटीन एक साथ बंधते हैं तो वे कोशिका के केंद्रक में घुसने में सक्षम हो जाते हैं। वहां वे पीरियड जीन की क्रिया को बाधित करते हैं।
परंतु एक प्रश्न अभी भी अनुत्तरित था। प्रश्न था कि कोशिका में प्रोटीन के रात में जमा होने तथा दिन में विघटित होने की आवृत्ति क्या थी? माइकेल यंग ने एक और जीन की पहचान की जिसका नाम रखा गया ‘डबल टाइम’ जो डीबीटी नामक प्रोटीन बनाता है। इसकी वजह से पीरियड-प्रोटीन के जमा होने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इसकी वजह से रात में एकत्र होने तथा दिन में विघटित होने का चक्र 24 घंटे का हो जाता है।
यह खोज चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है। जैविक घड़ी हमारी शारीरिक क्रिया सम्बंधी विभिन्न पहलुओं से काफी गहराई से जुड़ी है। हमारे शरीर के अधिकांश जीन की कार्य प्रणाली जैविक घड़ी से ही नियंत्रित होती है। इन तीन नोबेल पुरस्कार विजेताओं को 90 लाख स्वीडिश क्रोनर की रकम प्रदान की जाएगी जिसमें प्रत्येक को बराबर का हिस्सा अर्थात 30-30 लाख स्वीडिश क्रोनर दिए जांएगे। इसके अलावा प्रत्येक को एक-एक स्वर्ण पदक तथा प्रमाण पत्र देकर भी सम्मानित किया जाएगा। (स्रोत फीचर्स)